manmohanपूर्वोत्तर के लोग सड़क, शिक्षा, बिजली, पानी एवं रोज़गार के मामले में आज भी सौ साल पीछे हैं. गांवों में 24 घंटों में दो घंटे बिजली, पीने का अच्छा पानी नहीं. बारिश में पोखर का जमा हुआ पानी पीना. स्कूलों में अध्यापक नहीं. उच्च शिक्षा पाने के लिए पलायन की मजबूरी, क्योंकि यहां के राज्यों में अच्छे विश्‍वविद्यालय नहीं हैं. पूर्वोत्तर इतने दुर्गम पहाड़ों से भरा है कि आने-जाने का मार्ग नहीं है. बीमार होने पर लोग सही समय पर अस्पताल नहीं पहुंच पाते. ऐसी स्थिति में, यह देखना काफी ज़रूरी है कि यहां के सांसदों ने संसद के भीतर क्या किया? जनसमस्याओं के समाधान के लिए क्या किया? उनकी आवाज़ ने सरकार का ध्यान यहां की ओर खींचा या नहीं या फिर वे केवल कोरम पूरा करने के लिए संसद में बैठे रहे?page-7
15वीं लोकसभा में नेशनल फूड सिक्योरिटी बिल जैसे कई महत्वपूर्ण बिल पास हुए. कई बिल पेंडिंग भी हैं. पूर्वोत्तर के लिए मिजोरम यूनिवर्सिटी एमेंडमेंट बिल 2007, द नॉर्थ ईस्टर्न एरियाज (रिऑर्गेनाइजेशन) एमेंडमेंट बिल 2011 आदि महत्वपूर्ण बिल पास हुए और द नॉर्थ ईस्टर्न काउंसिल (एमेंडमेंट) बिल 2013 पेंडिंग रहा. पूर्वोत्तर के कुल 25 सांसद हैं, जिन्होंने संसद के भीतर पूर्वोत्तर की मूलभूत समस्याओं पर कई महत्वपूर्ण सवाल उठाए. अपने क्षेत्र की आवाज़ बुलंद की और दिल्ली में पूर्वोत्तर के लोगों पर हुए अत्याचार का एक स्वर से विरोध किया. हाल में दिल्ली में अरुणाचल के छात्र नीडो तानिया की हत्या पर अरुणाचल प्रदेश (पूरब) के कांगे्रसी सांसद निनोंग इरिंग ने संसद में आवाज़ उठाई. उन्होंने अरुणाचल प्रदेश में गैस आपूर्ति के लिए पाइप लाइन बिछाने की मांग करते हुए कहा कि इंडस्ट्रियल जोन में भी गैस पहुंचाने के लिए पाइप लाइन बिछाई जाए. पूर्वोत्तर भारत में उल्फा जैसे संगठनों ने कई बार पाइप लाइन को क्षति पहुंचाई है.
त्रिपुरा (पश्‍चिम) के सीपीआई (एम) के सांसद खगेन दास ने रियांग शरणार्थियों के पुनर्वास, त्रिपुरा में एक स्वतंत्र हाईकोर्ट की स्थापना, रोजमर्रा की ज़रूरत की वस्तुओं की क़ीमतों में वृद्धि, रेल, बिजली, पानी एवं परिवहन संबंधी मुद्दे संसद में उठाए. सबसे अहम सवाल उन्होंने संसद में किया कि 2005 में प्रधानमंत्री द्वारा उद्घाटन किया हुआ नेशनल हाईवे-44 अभी तक अधूरा पड़ा है. यह त्रिपुरा के लिए लाइफलाइन है, लेकिन 10 सालों से अभी तक काम चल ही रहा है. मेघालय (तुरा) से एनसीपी की युवा सांसद अगाथा संगमा जब लोकसभा में पहली बार चुनकर आईं, तब उन्होंने लोगों को खूब आकर्षित किया. केंद्र में ग्रामीण विकास मंत्री भी बनीं. अपने कार्यकाल में उन्होंने पूर्वोत्तर के ग्रामीण विकास को लेकर काम किया, लेकिन कई काम अधूरे रह गए. अगाथा ने आर्म्ड फोर्सेस स्पेशल पावर एक्ट (अफसपा) को लेकर सवाल उठाया था कि यह क़ानून पूर्वोत्तर में लागू न हो. उन्होंने यह एक्ट हटाने के लिए कई वर्षों से भूख हड़ताल कर रहीं इरोम शर्मिला से मुलाकात कर उनकी मांग का समर्थन किया.
मणिपुर (इनर) के कांग्रेसी सांसद थोकचोम मैन्य ने भी अफसपा जैसे सवाल संसद में उठाए, भले ही उन्हें मीडिया के सामने तीखी आलोचना झेलनी पड़ी. ग़ौरतलब है कि जब नेशनल हाईवे-39 दो महीने से ज़्यादा समय तक बंद रहा, तब लोगों का जीना दुश्‍वार हो गया था. एलपीजी सिलेंडर, पेट्रोल, दवाइयों एवं खाद्य पदार्थों के दाम दोगुने हो गए थे. उन्होंने फर्जी मुठभेड़, आतंकी संगठनों, एनएससीएन (आईएम) प्रमुख मुइवा की जन्मस्थल वापसी, नेशनल हाईवे (इंफाल-जीरी), ऑटोनोमस डिस्ट्रिक काउंसिल आदि मामलों पर आवाज़ बुलंद की. लुक ईस्ट पॉलिसी के तहत म्यांमार और पूर्वोत्तर से जुड़ने वाला रोडमैप तैयार कराने की बात कही. इंफाल तक रेल पहुंचने से रोज़गार बढ़ेगा, इसलिए वहां जल्द से जल्द रेल पहुंचाने की मांग की. नगालैंड के नगालैंड पीपुल्स फ्रंट के सांसद सीएम चांग नगा राजनीतिज्ञ हैं. वह नगाओं की समस्याएं संसद में उठाते रहे.
असम से पूर्वोत्तर के सबसे ज़्यादा यानी कुल 14 लोकसभा सदस्य हैं, जिनमें डिब्रूगढ़ से इंडियन नेशनल कांग्रेस (आईएनसी) के पवन सिंह घटोवार प्रमुख हैं. वह डेवलपमेंट ऑफ नॉर्थ ईस्टर्न रीजन एंड पार्लियामेंट्री अफेयर्स (स्वतंत्र प्रभार) मंत्री हैं. उन्होंने कई महत्वपूर्ण सवाल संसद में उठाए. उन्होंने असम में बाढ़ की स्थिति में लोगों की सहायता की मांग उठाते हुए संसद में बहस भी की. स्वतंत्रता सेनानियों, ब्रह्मपुत्र बोर्ड, असम चाय अनुसंधान, झूम कल्टीवेशन एवं पूर्वोत्तर के नेशनल हाईवे को 4 लेन करने संबंधी मुद्दे उन्होंने संसद में उठाए. पूर्वोत्तर के सांसदों ने सदन के भीतर स्थानीय समस्याएं उठाने का काम ज़रूर किया, लेकिन उनकी आवाज़ पर 15वीं लोकसभा ने कितना ध्यान दिया, सरकार उनकी मांगों के प्रति कितनी गंभीर रही, यह तब पता चलता है, जब हम पूर्वोत्तर की लगातार बदतर हो रही स्थिति को देखते हैं. प्रधानमंत्री, सोनिया गांधी एवं राहुल गांधी रस्मी तौर पर पूर्वोत्तर की यात्राएं करते रहे, लेकिन उनकी घोषणाओं एवं आश्‍वासनों पर अमल नहीं हुआ. ज़ाहिर है, पूर्वोत्तर के सांसदों को अब पार्टी लाइन से ऊपर उठकर न स़िर्फ संसद के भीतर आवाज़ उठानी होगी, बल्कि अपनी मांगें पूरी कराने के लिए उन्हें सड़क पर आने से भी परहेज नहीं करना चाहिए.

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