कोरोना ने सबको कैद मे किया और कैद मे दुनिया ने अपने आपको बचाने के लिये भगवान तक को कैद मे डाल दिया क्या मन्दिर क्या मस्जिद और क्या गिरिजाघर और गुरुद्वारा। सब बन्द। यहां तक की पूजा, नमाज और पाठ सब घर से। आज ऐसा दिन आ गया है जब लोग सभी सुख सुविधा को तरस रहे है ना मूवी ना मसाला। सब तो सब बनारसी लोगो ने पान के लिये तरसना और तड़पना भी मंजूर कर लिया है। सब कुछ लॉक डाउन हां अगर कुछ खुला है तो वो है आसमान बिल्कुल खुला खुला खिला खिला। और अब जब हरिद्वार मे गंगा जल पीने लायक हो गया मतलब साफ है हम कैद मे हैं तो प्रकृति आजाद है। दिल्ली मुम्बई हो या हिमाचल के पहाड़ हर जगह एक नयी उर्जा क्योकी आज प्रकृति आज़ाद है। अब वर्ल्ड अर्थ डे पर शायद सबसे खुश तो यह जमीन ही है आलम यह है कि दिल्ली मे तो धरती ने अप्रैल मे अपने आपको दो बार हिलाकर चेक किया की पता नही लोग कहा चले गये। ना गाड़िया दौड रही है ना मशीने, ना फैक्ट्री चल रही है। और ना ही कही धुवां और केमिकल निकल रहा है मतलब साफ है की आज माँ धरती आराम कर रही है और शायद यह कोरोना काल है जिसने उनको यह अवसर दिया है। अगर हमारी सरकारे और समाज इसको समझ पाये तो बस आगे से आने वले समय मे जब कोरोना गायब हो जाएग तब क्या हम सब दो चार दिन लॉक डाउन का आनन्द ले सकते है खुद को कैद मे डालकर धरती माँ को आज़ाद कर सके।शायद इससे अच्छा और कोई तरीका नही होगा इस डे को मनाने का। अप्रैल मे चारो तरफ ओले , बर्फ बारी और बारिश का माहौल के बीच मानो धरती माँ ने अपने आपको आजाद होने का उत्सव मना रही हो भले ही इससे फसल का नुक्सान हो या मौसम बदला हो पर साफ है कि यह उत्सव एक अच्छी फील के साथ है। आज मिट्टी पर गिरि बूंदो की महक दिल्ली मे मह्सूस की जा सकती है और पहली बार दिल्ली मे रैनबो दिखी यह एक अच्छी बात है। शायद कोरोना मे यही एक अच्छी बात है जो दुनिया को राहत देती दिख रही है और इसी की वजह से शायद दूर होते रिश्तो मे भी नजदीकिया आई है। धन्य है यह डर और कैद जिसने धरा को और हमारी आने वाली पीढियो को एक आज़ाद स्वस्थ पर्यावरण दिया है पर हम मानेगे नही मोदी जी दिया जलाने के लिये बोलेगे तो लोग पटाखे फोड़कर इस कैद मे रह्ते हुए धरती और आकाश को धमकाते जरूर रहेगे। यह सब पढे लिखे लोग है जो कुछ उत्साह मे बढ़ चढ़कर जश्न मनाते वक़्त सिर्फ पटाखे ही फोड़ते है।

“विजय शुक्ल”

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