militantsकश्मीर में मिलिटेंट्‌स का सफाया करने के लिए सेना और सुरक्षा बलों की तरफ से ऑपरेशन ऑल आउट शुरू करने के एक वर्ष बाद सुरक्षा अधिकारियों ने इस बात को स्वीकार किया है कि पिछले एक वर्ष में ऑपरेशल ऑल आउट के तहत 200 से अधिक मिलिटेंटों को मारे जाने के बावजूद इस समय 200 से अधिक मिलिटेंट सक्रिय हैं. सुरक्षा एजेंसियों के लिए केवल मिलिटेंटों की संख्या समस्या नहीं है, बल्कि उनके लिए सबसे बड़ी चुनौती कम उम्र के कश्मीरी नौजवानों का मिलिटेंसी की तरफ आकर्षित होना और मिलिटेंट को घाटी में मिलने वाला पब्लिक सपोर्ट है. इन दोनों बातों के उदाहरण आए-दिन देखने को मिलते हैं. ताजा उदाहरण नौ जनवरी का है, जब दक्षिणी कश्मीर के कोकरनाग इलाके में सुरक्षा बलों ने एक झड़प के दौरान एक अठारह वर्षीय मिलिटेंट फरहान अहमद वाणी को मार गिराया.

फरहान दक्षिणी कश्मीर के कोलगाम जिले का रहने वाला था और वह कुछ महीने पहले ही मिलिटेंसी में शामिल हुआ था. इसकी मृत्यु की खबर उसके पैतृक गांव में फैली, तो स्थानीय नौजवानों ने सड़कों पर हिंसक प्रदर्शन शुरू कर दिए. इस दौरान उन्होंने इलाके में तैनात सुरक्षाबलों पर पथराव किया. सुरक्षा बलों ने जवाब में गोली चलाई तो एक 22 वर्षीय नौजवान खालिद मारा गया. फरहान की लाश को जब उसके पैतृक गांव पहुंचाया गया तो हजारों लोग उसके अंतिम संस्कार में शामिल हुए.

उसकी जनाजे की नमाज कई बार पढ़ी गई. ये एक उदाहरण है. हकीकत तो ये है कि घाटी में पिछले कुछ समय से हजारों लोगों की मौजूदगी के दृश्य भी बार-बार देखने को मिलते हैं. सबसे बड़ा धक्का सुरक्षा बलों को 31 दिसंबर को उस समय लगा, जब तीन नौजवान मिलिटेंटों ने श्रीनगर से 22 किलोमीटर दूर लेथपुरा में पैरा मिलिट्री फोर्स के प्रशिक्षण केन्द्र पर आत्मघाती हमला किया. इस हमले में सीआरपीएफ के पांच जवान मारे गए. जबकि सुरक्षा बलों ने दो दिन तक जारी रहने वाले जवाबी कार्रवाई में तीनों हमलावरों को मार गिराया. ये हमला इसलिए भयानक था, क्योंकि आम तौर से कश्मीर में स्थानीय मिलिटेंट आत्मघाती या फिदायी हमला करते.

इस अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि किसी कश्मीरी मिलिटेंट की तरफ से पिछला फिदायीन हमला अप्रैल 2000 में हुआ था. जब एक 20 वर्षीय मिलिटेंट आफाक अहमद शाह ने बारूद से भरी गाड़ी श्रीनगर के बादामी बाग में स्थित सबसे बड़ी फौजी छावनी के दरवाजे से टकरा दी थी. 28 वर्ष बाद इस तरह की घटना देखने को मिली, जब किसी कश्मीरी मिलिटेंट ने सुरक्षा बलों पर आत्मघाती हमला किया. 31 दिसंबर 2017 को पैरामिलिट्री फोर्सेज के प्रशिक्षण केन्द्र पर फिदायीन हमला करने वाले तीन मिलिटेंट में से दो स्थानीय मिलिटेंट 16 वर्षीय फरदीन और 22 वर्षीय मंजूर अहमद शामिल थे.

दक्षिणी कश्मीर के तराल से संबंध रखने वाला फरदीन एक पुलिस वाले का बेटा था. उसने सितंबर 2017 में मिलिटेंसी ज्वाइन की थी. फिदायीन हमला करने से सिर्फ दो हफ्ते पहले फरदीन 16 वर्ष का हो गया था. कुछ माह पहले ही तराल कस्बे से संबंध रखने वाला एक और 15 वर्षीय फैजान अहमद मिलिटेंट बन गया था और सुरक्षा बलों के साथ एक झड़प में मारा गया. अगस्त 2017 में दक्षिणी कश्मीर के कोलगाम में सुरक्षा बलों के साथ 16 वर्षीय दो मिलिटेंट आकिब हमीद और सुहेल आरिफ मारे गए. ये कुछ उदाहरण हैं. हकीकत ये है कि आठ जुलाई 2016 को मिलिटेंट बुरहान वाणी की हत्या के बाद घाटी में दर्जनों नई उम्र के कश्मीरी लड़के मिलिटेंसी में शामिल हो गए और उनमें कई मारे गए.

लेकिन सुरक्षा बलों के लिए सबसे बड़ी चुनौती ये है कि इन कम उम्र लड़कों का मिलिटेंसी में शामिल होने का सिलसिला लगातार जारी है, जो एक खतरनाक ट्रेंड है. 6 जनवरी को उत्तरी कश्मीर के सोपोर कस्बे में बारूदी सुरंग के एक भयानक धमाके में चार पुलिस जवान मारे गए. ये घटना इस लिहाज से अलग है कि फिदायीन हमलों की तरह घाटी में लंबे समय से मिलिटेंटों की तरफ से बारूदी सुरंगों का इस्तेमाल नहीं किया जाता था. वर्षों बाद सुरक्षा बलों के खिलाफ इस्तेमाल होने वाली बारूदी सुरंग के इस धमाके ने भी सुरक्षा बलों को परेशान कर दिया. उल्लेखनीय है कि कश्मीर में मिलिटेंसी शुरू हो जाने के बाद मिलिटेंट अक्सर सुरक्षा बलों के खिलाफ अपनी कार्रवाई में बारूदी सुरंगों का इस्तेमाल करते थे.

लेकिन जब वैश्विक स्तर पर बारूदी सुरंगों के इस्तेमाल का विरोध शुरू हो गया और विश्वभर में विभिन्न एनजीओ ने इसके विरोध में अभियान चलाया तो 2007 में हिजबुल मुजाहिदीन ने जम्मू कश्मीर में बारूदी सुरंगों का इस्तेमाल बंद करने की घोषणा की. सोपोल में छह जनवरी को हुए बारूदी सुरंग के धमाके के बारे में विशेषज्ञों का कहना है कि ये शक्तिशाली बारूद सुरंग थी और इसके धमाके की आवाज मीलों दूर तक सुनी गई. इंस्पेक्टर जनरल ऑफ पुलिस मुनीर खान का कहना था कि ऐसा लगता है कि मिलिटेंटों की पंक्ति में कुछ नई भर्तियां हुई हैं, जो बारूदी सुरंगें तैयार करने में माहिर हैं. उन्होंने कहा कि ये गंभीर समस्या है और इस पर हमें यानी सुरक्षा एजेंसियों को मिल बैठकर कोई रणनीति तय करनी होगी, ताकि भविष्य में इस तरह के धमाके न हों.

साफ जाहिर है कि कश्मीर में एक नई तरह की मिलिटेंसी पैदा हो रही है. एक तरफ छोटे लड़के मिलिटेंसी में शामिल हो रहे हैं और दूसरी तरफ आत्मघाती हमलों और बारूदी सुरंग के धमाकों का रुझान पैदा होता दिखाई दे रहा है. इस नई मिलिटेंसी के खिलाफ सुरक्षा एजेंसियों का ऑपरेशन ऑल आउट कितना कामयाब साबित होता है, ये तो आने वाला समय ही बताएगा. लेकिन ये भी एक निर्विवाद तथ्य है कि जम्मू कश्मीर में तैनात लाखों की संख्या में सेना और अन्य बल पिछले तीस वर्षों से मिलिटेंसी से जूझ रहे हैं.

ये लाखों बल 1989 से मिलिटेंसी को खत्म करने के लिए रात-दिन यहां काम कर रहे हैं. अगर आज तीस वर्ष बाद पंद्रह वर्षीय लड़के मिलिटेंसी में शामिल हो रहे हैं, आत्मघाती हमले कर रहे हैं और बारूदी सुरंग के धमाके हो रहे हैं तो ये कहना पड़ेगा कि लाखों फौजी जवान और हजारों सुरक्षा अधिकारी इस जंग को जीतने में पूरी तरह असफल हो चुके हैं. इसका अंदाजा सरकार को हो चुका है. सात जनवरी को पूर्व मुख्यमंत्री मुफ्ती मुहम्मद सईद की दूसरी वर्षी पर मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती ने कहा कि कश्मीर घाटी में हिंसा को खत्म करने और शांति बहाल करने का एक यही रास्ता है कि भारत और पाकिस्तान संजीदगी के साथ बातचीत शुरू करें. उनका कहना था कि बातचीत के बगैर कश्मीर को हिंसा के भंवर से निकालना संभव नहीं है.

वो अपने पिता की दूसरी वर्षी पर अपने पैतृक इलाके बिजबहाड़ा में पार्टी के कार्यकर्ताओं को संबोधित कर रही थीं. पत्रकार सूफी यूसूफ का कहना है कि 2018 में आठ राज्यों जिनमें राजस्थान, मध्यप्रदेश, कर्नाटक, नगालैंड, मिजोरम, छत्तीसगढ़, त्रिपुरा और मेघालय भी शामिल है, में विधानसभा चुनाव होने जा रहे हैं. इसके बाद 2019 में लोकसभा चुनाव है. पाकिस्तान में भी 2018 में नेशनल एसेंबली के चुनाव होने जा रहे हैं. इसका मतलब है कि फिलहाल कश्मीर के मामले में कोई प्रगति संभव नहीं है.

जाहिर है कि भारत और पाकिस्तान के अंदरूनी राजनीतिक समस्याओं के संदर्भ में और दोनों देशों के सत्ताधारी दलों की वरीयता में कश्मीर मसले का हल कहीं दूर-दूर तक नजर नहीं आ रहा है. इसलिए यकीन के साथ कहा जा सकता है कि कश्मीर में इस वक्त जारी हिंसक हालात में कोई तब्दीली संभव नहीं है. यही इस इलाके के बदनसीबी का सबसे खराब पहलू है.

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