mautकभी गांधी की कर्मभूूमि रहा चम्पारण 20 वीं सदी के अंतिम दशक तक मिनी चम्बल के रूप में कुख्यात हो गया. चार दशक तक चम्पारण डकैतों, आपराधिक गिरोहों का अभ्यारण्य बना रहा. चम्पारण का गंडक दियारा और जंगल में गन्ना की खेती की जगह अपराधी पनपने लगे. इनके सफाए के लिए या अपराध पर लगाम लगाने के लिए बिहार पुलिस द्वारा किए गए तमाम प्रयास विफल साबित हुए. यहां तक कि ऑपरेशन ब्लैक पैंथर जैसे अभियान भी चम्पारण से दस्युओं का सफाया नहीं कर सके.

जबकि इस अभियान का संचालन बिहार के तेजतर्रार तत्कालीन आईपीएस अधिकारी रामचन्द्र खान कर रहे थे. इस अभियान के लिए आंध्र प्रदेश से भी कई पुलिस पदाधिकारियों को बुलाया गया था, पर ऑपरेशन ब्लैक पैंथर भी सफल नहीं हो सका. चम्पारण का क्षेत्र, जो उतर प्रदेश एवं नेपाल की सीमा से लगा है, डकैतों-तस्करों के लिए एक तरह से अभ्यारण्य बना हुआ है. पिछले डेढ़ दशक में ऐसी स्थिति आई कि चम्पारण में कईदस्यु सरदार पुलिस के सामने सरेंडर कर गए या मुठभेड़ में मारे गए. कई की तो जेल मेें ही मौत हो गई. आज भी अनेक दस्यु सरदार बगहा-बेतिया की जेल में बंद हैं. ये सभी ऐसे दस्यु थे, जिनके नाम से ही पूरे चम्पारण में खौफ था.

इनके गिरोह द्वारा हत्या-अपहरण कर फिरौती वसूलना रोजमर्रे की बात होती थी. किसी के घर इन दस्यु का पत्र लेवी के लिए पहुंच जाता, तो उस परिवार में कोहराम मच जाता. ऐसे ही दर्जन भर से अधिक दस्यु सरदार और दस्यु पश्चिम चम्पारण के बेतिया एवं बगहा जेल में सैकड़ों आपराधिक मामलों में बंद हैं.

कई दस्युओं को तो जेल में बंद हुए एक से डेढ़ दशक तक बीत गए हैं. चम्पारण के गंडक दियारा एवं जंगल क्षेत्र में बेखौफ आखेट करने वाले और अब जेल में बंंद दस्यु बाहर नहीं निकलना चाहते हैं. कभी दहशत के लिए कुख्यात इन दस्युओं को डर है कि बाहर निकले, तो उनकी हत्या हो सकती है. बगहा कोर्ट में दस्युओं के मुकदमे लड़ रहे वकीलों की आपसी बातचीत में इस बात का खुलासा हुआ. कुछ वकीलों ने बताया कि जेल में जो दस्यु बंद हैं, उनका गिरोह अब छिन्न-भिन्न हो गया है.

गिरोह के सदस्यों ने भी समय और हालात को देखते हुए अपने आप को बदल लिया. कुछ  खेती में लग गए, तो कुछ व्यवसाय-धंधे में लग गए. कुछ डकैतों के गिरोह में रहने वाले दर्जनों लोग उतर प्रदेश या फिर नेपाल जाकर बस गए. हालांकि दस्युओं के सफाए के लिए बिहार पुलिस ने चम्पारण के गांव-गांव में शहीदी जत्था का भी गठन किया था. इसके लिए ग्रामीणों में पुलिस ने लाइसेंसी हथियार भी बांटे थे, जिससे कि गांव के लोग डकैतों का सामना कर सकें. बगहा अनुमंडल के चौतरवा थाना के सिसवा बाजार गांव के बदरी पांडेय के नेतृत्व में इस जत्थे का गठन किया गया था. डकैतों ने इस जत्थे के कई लोगों को भी मौत के घाट उतार दिए थे. इस जत्थे से भी दस्युओं का आतंक रुका नहीं.

पश्चिम चम्पारण के गंडक दियारा क्षेत्र विशेषकर बगहा पुलिस जिला के अंतर्गत आने वाले और गंडक नदी के गर्भ में स्थित चार प्रखंडों भितहां, मधुबनी, ठकराहां और पिपरासी समेत उतर प्रदेश तथा नेपाल के सीमावर्ती क्षेत्र के दस्यु सम्राट के नाम से विख्यात वासुदेव यादव उर्फ तिवारी बेताज बादशाह था. इस पर बिहार सरकार ने दो लाख रुपए और यूपी सरकार ने 25 हजार रुपए इनाम घोषित कर रखा था.  वासुदेव यादव को बिहार-उतर प्रदेश के कुछ राजनेताओं का संरक्षण भी प्राप्त था. इसका बेटा रामाधार यादव 2005 के बिहार विधान सभा चुनाव में धनहां विस क्षेत्र से समाजवादी पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़ा था.

रामाधार यादव आज भी अपने पंचायत का मुखिया है. वासुदेव यादव पर हत्या, अपहरण, डकैती व फिरौती के एक सौ से अधिक मामले विभिन्न थानों में दर्ज हैं. 24 मई 2008 को इसने बगहा पुलिस जिला के तत्कालीन एसपी विकास वैभव के समक्ष आत्मसमर्पण किया था, तब से वो बगहा जेल में ही है. उसने जब आत्मसमर्पण किया था, तब उसकी उम्र्र 70 वर्ष थी. पिछले 40 साल से वो मिनी चम्बल यानी चम्पारण के क्षेत्र में अपराध की दुनिया का सबसे बड़ा दहशतगर्द था. जानकारी मिली है कि उम्र के अंतिम पड़ाव पर खड़ा वासुदेव यादव अब जेल से बाहर निकलना नहीं चाहता है.

हरनाम यादव 1998 में वासुदेव यादव के गैंग में शामिल हुआ था. कुछ दिनों में ही वह वासुदेव का दाहिना हाथ बन गया. वासुदेव के आत्मसमर्पण के बाद हरनाम ही इस गैंग का कर्ता-धर्ता बन गया. इस पर भी हत्या, अपहरण, फिरौती, डकैती के दर्जनों मामले दर्ज हैं. पश्चिम चम्पारण के बथवरिया थाना क्षेत्र के शेरा बाजार गांव निवासी हरनाम यादव को बिहार एसटीएफ ने गुप्त सूचना पर उतर प्रदेश के लखनऊ के मड़ियांव थाना क्षेत्र से दो मई 2014 को गिरफ्‌तार किया. हरनाम भी बगहा जेल में बंद है.

राधा यादव व चुम्मन यादव नामक दो भाई भी कुख्यात दस्यु गैंग में शामिल थे. चम्पारण में इन दोनों भाई का भी बहुत आतंक था. दोनों भाइयों पर चम्पारण के विभिन्न थाना क्षेत्रों में दर्जनों आपराधिक मामले दर्ज हैं. नेपाल की सीमा से लगे चम्पारण के दियारा व जंगल क्षेत्रों में इन दोनों भाइयों का आतंक था. नेपाल में जब माओवादियों का आतंक बहुत बढ़ गया, तब नेपाल की शाही सेना ने दोनों भाइयों को अपनी सेना में माओवादियों से लड़ने के लिए बहाल कर लिया था. दोनों भाई वर्षों तक नेपाल की शाही सेना में थे. एक अन्य गिरोह का सरदार रामचन्द्र मल्लाह था. इसका गिरोह भी अपहरण, डकैती व फिरौती की घटना को अंजाम देता था. रामचन्द्र मल्लाह भी आज बगहा जेल में बंद है.

पश्चिम चम्पारण के मुख्यालय बेतिया क्षेत्र में कुख्यात भांगड़ यादव की एक तरह से समानांतर सरकार ही चलती थी. उसने बिहार सरकार जंगल पार्टी नाम से चम्पारण के दियारा एवं जंगली क्षेत्रों में आतंक कायम कर रखा था. इसका गंडक नदी के दियारा क्षेत्र में करीब दस हजार एकड़ भूमि पर कब्जा था. 1984 में भांगड़ यादव अपराध की दुनिया में शामिल हुआ था. उस पर 109 आपराधिक मामले दर्ज हैं.

भांगड़ यादव ने बैरिया थाना में आयोजित आत्मसमर्पण समारोह में अपने कई साथियों के साथ आत्मसमर्पण किया था. कुछ वर्ष पूर्व भांगड़ यादव की जेल में मौत हो गई थी. सतन यादव भी पश्चिम चम्पारण का बड़ा दस्यु सरदार था. वह 1995 में समता पार्टी की टिकट पर विधानसभा का चुनाव भी लड़ चुका था. उस पर भी दर्जनों आपराधिक मुकदमे दर्ज थे. सतन यादव की भी मौत जेल में हो गई. इन सबके अलावा दर्जनों दस्यु बगहा-बेतिया के जेल में बंद हैं.

इन दस्युओं के आतंक के कारण ही बिहार सरकार को बगहा को पुलिस जिला बनाना पड़ा. 20-21 नवम्बर 1999 को कुख्यात दस्यु सरगना लालू यादव ने बगहा अनुमंडल के चौतरवा थाना क्षेत्र के चन्द्रहा रूपवलिया गांव में डकैती के दौरान नौ लोगों की हत्या कर दी थी. इस नरसंहार के बाद बिहार सरकार ने दस्यु के खात्मे के लिए कई कड़े कदम उठाए और बगहा को पुलिस जिला का दर्जा दे दिया. कुछ महीने बाद ही लालू यादव पुलिस मुठभेड़ में मारा गया.

अब दस्यु को यह भय सता रहा है कि जैसे ही जेल से छूटेंगे, विरोधी गैंग द्वारा मार दिए जाएंगे, इसलिए कोई भी दस्यु या दस्यु सरदार आज जेल से छूटना नहीं चाहता है.

Adv from Sponsors

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here