कल दो अक्तुबर महात्मा गाँधी जी के 155 वे जन्मदिन पर संपूर्ण विश्व में अहिंसा दिवस मनाया जायेगा !

लद्दाख के लोग लद्दाख के पर्यावरण संरक्षण से जुड़े विभिन्न समस्याओं को लेकर जिसमें हिमालय के ग्लेशियर पिघलने से लेकर चिन द्वारा की जा रही घुसपैठ की तरफ ध्यान खिंचने जैसे संवेदनशील मुद्दे है ! जिनकी तरफ हमारे देश की वर्तमान सत्ताधारी पार्टी के लोगों का ध्यान आकर्षित करने के लिए पिछले एक महीने से पैदल एक हजार किलोमीटर की यात्रा करते हुए कल दो अक्तुबर के दिन दिल्ली के राजघाट पर पहुंचना चाहते थे !


लेकिन बात – बात में देशभक्ति का ढिंढोरा पिटने वाले सत्ताधारी पार्टी के लोगों ने जो असंवेदनशीलता का परिचय दिया है ! वह उनके देशभक्ति के पाखंड को उजागर करने के लिए पर्याप्त है ! और इन्ही मुद्दों के बारे में पिछले कुछ दिनों से ध्यान खिंचने के लिए, लद्दाख में पद्मश्री सोनम वांगचुक के नेतृत्व में लद्दाखी लोग आंदोलन कर रहे थे ! देशभर से उन्हें समर्थन देने के लिए विभिन्न संघटनो के लोग भी लोग गए थे ! लेकिन हमारे देश की केंद्र सरकार के कानों में जूं तक नहीं रेंगी ! इसलिए लद्दाखी लोग अंत में लद्दाख से 1000 किलोमीटर पिछले एक महीने से पैदल चलकर जिसमें देश के विभिन्न हिस्सों से भी लोग हैं ! जिनमें 75 वर्ष के बुजुर्गों से लेकर नौजवान और महिलाएं भी शामिल है ! दिल्ली के राजघाट पर दो अक्तुबर को महात्मा गांधी की समाधी तक पहुँचना चाहते थे ! लेकिन अभि – अभि खबर आई है कि, उन्हें दिल्ली की सिंधू बॉर्डर पर रोक दिया है !


वर्तमान सरकार ने किसानों के आंदोलन के समय से आंदोलनकारियों को राजधानी में घुसने नही देने का, नया तरीका शुरू किया है ! उसके लिए उन्होंने सड़कों को खोदकर खाईयां बनाने से लेकर, सड़कों पर बड़ी – बड़ी लोहे की किलो को गाडने के साथ ही, आंदोलनकारियों पर मायनस टेंपरेचर में ढंडे पानी की बौछारें, तथा लाठीचार्ज से लेकर, गोली मारकर रोकने का काम किया है ! जिसमें शेकडो की संख्या में लोगों की मौत हुई है !


यही सत्ताधारी दल ने राममंदिर आंदोलन को पिछले चालीस सालों से लगातार चलाते हुए ! रथयात्राए तथा विभिन्न धरना – प्रदर्शन करते हुए, और हजारों लोगों की दंगों में मौत होने के बाद यह मुकाम हासिल किया है ! खुद आजादी के बाद सबसे हिंसक आंदोलन करने के बाद भाजपा सत्ताधारी दल बना हैं ! अगर यही रोकने के तरीके तत्कालीन सरकारों ने किए होते तो भाजपा आज कहा तक पहुंची होती ?
लेकिन देश के सामान्य लोगों को अपने रोजमर्रा के सवालों के तरफ ध्यान खिंचने के लिए सत्याग्रह नामका सबसे अहिंसक मार्ग 11 सितंबर 1906 के दिन दक्षिण अफ्रीका के एंपायर थिएटर की सभा में खोजकर देने वाले, महात्मा गाँधी के 155 वे जन्मदिन पर राजघाट उनकी समाधि तक पहुंचने से पहले ही, दिल्ली की सिमावर्ति इलाके पर रोकने की कृति हर तरह से महात्मा गाँधी के सत्याग्रह का अपमान करने की कृति है !


जबकि दक्षिण अफ्रीका की रंगभेदी सरकार ने वहां रह रहे भारतीयों को दक्षिण अफ्रीका के नागरिकों के अधिकारों से वंचित करने का फैसला ले लिया था ! तो उसके खिलाफ महात्मा गाँधी ने आजसे 118 वर्ष पहले सत्याग्रह की खोज की है ! और उसके द्वारा दक्षिण अफ्रीका में आंदोलन करते हुए, भारतीय मूल के लोगों को उनके अधिकार दिलवाने के बाद, वह भारत में 1915 में हमेशा के लिए वापस लौटने के बाद ! यहां पर भी भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में सब से पहले चंपारण तथा खेड़ा के किसानों के आंदोलन और उसके बाद भारत के स्वतंत्रता आंदोलन को अपने सत्याग्रह के हथियार का इस्तेमाल करते हुए ! 32 सालों के अथक प्रयासों के बाद 1947 को भारत को अंग्रेजो से मुक्त कराने में सफल हुए हैं !


उसी महात्मा गाँधी के 155 वे जन्मदिन पर लद्दाख के लोग भी महात्मा गाँधी के जैसे 1000 किलोमीटर पैदल चलकर दिल्ली की महात्मा गाँधी की समाधि स्थल राजघाट पर 2 अक्तुबर को पहुचना चाहते ! लेकिन वर्तमान सरकार इतनी संवेदनहीन है कि, वह हमारे अपने ही देश के महिला खिलाड़ी, विस्थापन के शिकार लोगों से लेकर , किसानों, मजदूरों, महिलाओं से लेकर दलित तथा आदिवासी और सबसे अधिक हमारे देश के युवाओं से डरते हुए, उन्हे रोकने का काम करते रहती है ! और उसके बावजूद “सबका साथ सबका विकास” जैसा नारा देने का पाखंड भी करती है ! कम-से-कम पाखंड तो बंद करे !

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