उत्तर प्रदेश के करीब-करीब सभी बड़े कारखाने बंद हो चुके हैं. जिन मंझोले और लघु उद्योग-धंधों पर यूपी को कभी नाज था, आज उन उद्योगों का भी समापन किस्त ही चल रहा है. मध्यम और लघु उद्योगों को जिंदा रखने और उन्हें संवर्धित करने के लिए भारतीय लघु उद्योग विकास बैंक (सिडबी) की स्थापना हुई थी. सिडबी का मुख्यालय उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में बनाया गया था. इससे लोगों की उम्मीद जगी थी कि प्रदेश के मंझोले और लघु उद्योगों को ऑक्सीजन मिलता रहेगा और कालीन, चूड़ी, पीतल के बर्तन, बुनकरी और ताले बनाने से लेकर मिट्‌टी के बर्तन बनाने और चिकनकारी से लेकर कशीदाकारी जैसी हमारी ढेर सारी अन्य पारंपरिक कलाएं जिंदा रहेंगी और रोजगार के लिए कारीगरों को कहीं अन्यत्र हाथ नहीं पसारना पड़ेगा. लेकिन सिडबी ने इन उद्योग धंधों का सत्यानाश करके रख दिया. प्रदेश के मंझोले और लघु उद्योग बंद होते चले गए और यहां के कारीगर आज बड़े शहरों में दिहाड़ी मजदूर बन कर अपनी आजीविका चला रहे हैं. सिडबी जैसी सरकारी वित्तीय संस्थाएं बड़े-बड़े व्यापार में पैसा लगाने वाले कॉरपोरेट-फिनांशियल हाउस में तब्दील हो चुकी हैं और अफसरों की अय्याशी का अड्‌डा बन गई हैं.

सिडबी के मौजूदा चेयरमैन मोहम्मद मुस्तफा अभी सिडबी को रसातल पहुंचाने में लगे हैं. इसके पहले आईएएस अधिकारी डॉ. छत्रपति शिवाजी सिडबी के सीएमडी थे, दो साल रहे और मनीला के एशियन विकास बैंक में एक्जक्यूटिव डायरेक्टर होकर चले गए. सिडबी के शीर्ष पदों पर कैडर के अधिकारियों या बैंकिंग विशेषज्ञों को तैनात करने के बजाय आईएएस अफसरों को तैनात करने का चलन इन खास विशेषज्ञता वाले संगठनों को बर्बाद कर रहा है. पिछले पांच साल का सिडबी का काम देखें तो पाएंगे कि इस दरम्यान सिडबी ने मुद्रा बैंक के गठन के अलावा कुछ नहीं किया, लेकिन वह भी अपने मूल उद्देश्य से भटक गया. मुद्रा बैंक प्रधानमंत्री मुद्रा योजना का हिस्सा है. मुद्रा बैंक को माइक्रो-फाइनांस (सूक्ष्म वित्त) के नियामक के रूप में, निगरानीकर्ता के रूप में और पुनर्वित्त प्रदाता के रूप में काम करना था, लेकिन उसने पुनर्वित्त के अलावा कुछ नहीं किया. बहरहाल, अभी हमारा मुद्दा सिडबी है, मुद्रा बैंक नहीं. सिडबी ने प्रधानमंत्री की स्टैंडअप और स्टार्टअप जैसी महत्वाकांक्षी योजनाओं के लिए भी उत्तर प्रदेश में कुछ नहीं किया. उत्तर प्रदेश के सूक्ष्म लघु मध्यम उद्यम के लिए सिडबी प्रबंधन कोई बड़ी कार्ययोजना लेकर सामने नहीं आ सका.

जनता के पास वित्तीय उत्पादों के साथ वित्तीय समावेशन के नए-नए तरीके और रणनीति लेकर जाने के बजाय सिडबी घिसी-पिटी तकनीक और कागजी घोड़े ही दौड़ाती रह गई. सिडबी ने जो भी ऋृण बांटे हैं वो उत्तर प्रदेश के आकार और उसकी जरूरतों के हिसाब से अत्यंत कम हैं. देश की अर्थव्यवस्था में उत्तर प्रदेश का 15 प्रतिशत हिस्सा है. आधिकारिक तौर पर अभी उत्तर प्रदेश में दो हजार मंझोले उद्योग और करीब साढ़े तीन लाख लघु उद्योग बचे हैं. सिडबी ने उत्तर प्रदेश के लिए क्या किया है, इसका अगर आधिकारिक आंकड़ा देखें तो आपको शर्म आएगी. सिडबी ने पिछले पांच साल में उत्तर प्रदेश के मात्र 418 ग्राहकों को महज 491 करोड़ रुपए का ऋृण दिया. यह ऋृण कुल बांटे गए ऋृण के छह प्रतिशत से भी कम है. यह तब है जब सिडबी का मुख्यालय लखनऊ में है. यूपी को लेकर सिडबी ने कभी कोई कार्ययोजना बनाई ही नहीं. अगर यूपी को लेकर सिडबी का शीर्ष प्रबंधन गंभीर होता तो क्या अलीगढ़, बरेली, रायबरेली की शाखाएं बंद हो जातीं! लखनऊ के अलावा वाराणसी, इलाहाबाद, कानपुर, आगरा, गाजियाबाद, नोएडा और नोएडा विस्तार मिला कर अब सिडबी की कुल आठ शाखाएं बची हैं. इनमें से तीन शाखाएं गाजियाबाद, नोएडा और नोएडा विस्तार राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में होने की वजह से हैं. यूपी के मंझोले और लघु उद्योगों के पारंपरिक केंद्र मसलन, मुरादाबाद, अलीगढ़, बरेली, गोरखपुर, भदोही, शाहगंज(हरदोई), मिर्जापुर, बलरामपुर, फिरोजाबाद, मेरठ, मोदीनगर, बुलंदशहर सिडबी की प्राथमिकता पर नहीं हैं, इसीलिए इन शहरों में सिडबी ने कभी अपनी शाखा तक नहीं खोली.

Adv from Sponsors

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here