बहादुर वतन परस्त (देश भक्त)

सुल्तान फतेह अली खान यानी कि टीपू सुल्तान |  टीपू सुल्तान को इतिहास न केवल एक योग्य शासक, योद्धा और भारत के पहले स्वतंत्रता सेनानी के रूप  के तौर पर देखता है बल्कि वो विद्वान भी थे | टीपू सुल्तान हमेशा ही अपनी बहादुरी और निडरता के लिए जाने गए हैं| उन्होंने दक्षिण भारत में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी का पुरजोर विरोध किया था|

टीपू सुल्तान अंग्रेज़ो के दिलों में एक ख़ौफ़ का पैग़ाम था शायद ही हिंदुस्तान के किसी सुल्तान या राजा का इतना ख़ौफ़ अंग्रेज़ो के दिलो पर रहा होगा| टीपू सुल्तान ने उस वक़्त अंग्रेज़ो की नींद हराम कर दी थी जिस वक्त के नवाब, राजे-राजवाड़े अपनी हुकूमते और वजूद बचाने के लिये अंग्रेज़ो की चौखटो पर नाक रगड़ रहे थे।

जिस दिन सुल्तान टीपू शहीद हुए थे उस दिन ब्रिटेन में जश्न मनाया गया था जिसमे लंदन के नामचीन साहित्यकार रंगकर्मी और कलाकार शामिल हुए थे अंग्रेज़ो में टीपू सुल्तान का इतना खौफ़ था की उनकी लाश के पास जाने कि अंग़्रेज़ हिम्मत नहीं कर पा रहे थे, जब एक गोली उनके दाएं सीने में धंस गई तब वो ज़मीन पर गिर गए थे जब अंग़्रोज़ो को किसी ने यक़ीन दिलाया की टीपू मारे गए तब एक सिपाही ने उनकी म्यान में जड़ा रत्न निकालने की कोशिश तो टीपू सुल्तान ने अपने आख़िरी वक्त़ में उसका हाथ अपनी तलवार से ज़ख्मी कर दिया था इसी तरह एक फौजी ने उन्हे तलवार से मारना चाहा तो सुल्तान टीपू ने इतने ज़्यादा घायल और मौत के क़रीब होने के बावजूद उस फौजी के सर में अपनी तलवार से इतना ज़बरदस्त वार किया की वह फौजी वहीं ख़त्म  हो गया।

टीपू सुल्तान के ख़ौफ़ का अंदाजा़ इस बात से लगाया जा सकता है की जब टीपू सुल्तान शहीद हो गए तब गर्वनर जनरल ने कहा था की आज हमने हिंदोस्तान को फ़तह कर लिया, अंग़्रोज़ो के लिये टीपू सुल्तान की मौत की खुशी का अंदाजा़ इस बात से भी लगाया जा सकता है कि Wilkie Collins की मशहूर नॉवेल The Moonstone के शुरुआती सीन में टीपू सुल्तान की दार उल सल्तनत श्रीरंगपट्टनम मे अंग्रेजों की लूट पाट और घेराबंदी को दिखाया गया है शायद ही किसी शासक ने अंग्रेज़ो से इस तरह लोहा लेने की जुर्रत करी होगी।

टीपू ने 18 वर्ष की उम्र में अंग्रेजों के विरुद्ध पहला युद्ध जीता था|

 

चौथे एंग्लो-मैसूर युद्ध में हुई थी टीपू सुल्तान की मौत

जानकारी के अनुसार चौथे एंग्लो-मैसूर युद्ध में, ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के शाही बलों को हैदराबाद के निज़ाम और मराठों  ने अपना समर्थन दिया था. इसके बाद ही उन्होंने टीपू को हराया था और 4 मई 1799 को श्रीरंगापटना में उनकी हत्या कर दी गई थी.

लड़ाई के आखिरी वक़्त में टीपू के बॉडीगार्ड राजा खां चाहते थे की टीपू सुल्तान चुपचाप से मैदान छोड़ कर निकल जाएं लेकिन मर्द-ए-मुजाहिद को ये ज़ेब कहां की वो मैदान से पीठ दिखा दे, शेर आखरी वक़्त और आख़री गोली तक मैदान में डटा रहा और शहीद हुआ जब आप का जनाज़ा श्रीरंगपट्टनम की गलियों से निकला तो लोग दोनो ओर कतारें लगा कर खड़े हो गए और कई लोग तो ज़मीन पर लौट कर मातम कर रहे थे।

टीपू सुल्तान ने अंग्रेज़ो के ख़िलाफ़ मदद हासिल करने लिये अपने ‘सफ़ीर’ उस्मानिया सल्तनत और फ्रांस तक भेजे थे असल में टीपू, अंग्रेज़ो को लेकर आने वाले खतरे को भाप गए थे और पता था की अंग्रेज़ सारे मुल्क को अपना गुलाम बना लेंगे।

टीपू सुल्तान पश्चिमी देशो की युद्धकला से बहुत ज़्यादा प्रभावित थे उन्होने फ्रांस से बंदूके गोलियाँ और दूसरे हथियार बनाने के लिये बहतरीन इंजीनियरो को मैसूर बुलाया था बाद में खुद उन्होंने ब्रोंज़ तोपे और लंबी नाल की बंदूके बनाने का कारख़ाना मैसूर में स्थापित किया था टीपू सुल्तान को भारत में रॉकेट लांचर का जनक भी माना जाता है।

आविष्कारक टीपू सुल्तान

टीपू सुल्तान को दुनिया का पहला मिसाइल मैन माना जाता है. बीबीसी की एक खबर के मुताबिक, लंदन के मशहूर साइंस म्यूजियम में टीपू सुल्तान के रॉकेट रखे हुए हैं. इन रॉकेटों को 18वीं सदी के अंत में अंग्रेज अपने साथ लेते गए थे.

बांस के रॉकेट का किया था अविष्कार

बता दें, अपने शासनकाल में टीपू सुल्तान ने सबसे पहले बांस से बने रॉकेट का आविष्कार किया था. ये रॉकेट हवा में करीब 200 मीटर की दूरी तय कर सकते थे और इनको उड़ाने के लिए 250 ग्राम बारूद का प्रयोग किया जाता था. बांस के बाद उन्होंने लोहे का इस्तेमाल कर रॉकेट बनाने शुरू किए, जिससे ये रॉकेट पहले के मुकाबले अधिक दूरी तय करने लगे| हालांकि, लोहे से बने रॉकेट में ज्यादा बारूद का इस्तेमाल किया जाता था. इससे ये विरोधियों को ज्यादा नुकसान पहुंचा पाते थे|

लड़ाई में किया था रॉकेट का इस्तेमाल

टीपू सुल्तान ने अपने शासनकाल में कई तरह के प्रयोग किए थे| इसी बदलाव के कारण उन्हें एक अलग राजा की उपाधि भी प्राप्त है| जानकारी के अनुसार टीपू सुल्तान के पिता हैदर अली के पास 50 से अधिक रॉकेटमैन थे और वह अपनी सेना में इन रॉकेटमैन का बखूबी इस्तेमाल करते थे| दरअसल, इन्हें रॉकेटमैन इसलिए कहा जाता था क्योंकि ये रॉकेट चलाने में माहिर थे| वो युद्ध के दौरान विरोधियों पर ऐसे निशाने लगाते थे जिससे उन्हें काफी नुकसान होता था| टीपू सुल्तान के शासन में ही पहली बार लोहे के केस वाली मिसाइल रॉकेट बनाई गई थी|

 

इतिहास लोहे की तख्ती पर लिखा जाता है उसे कभी मिटाया नहीं जा सकता।

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