uri-attackएेसा लगता है कि मोदी सरकार में क्रिटिकल थिंकिंग की कोई जगह नहीं है और न ही सुरक्षा जैसे संवेदनशील मामले पर कोई वास्तविक विश्‍लेषण करने में इच्छुक है. अगर कोई करता होता तो उरी जैसा आतंकी हमला नहीं होता. सुरक्षा जैसे गंभीर मामले में भी सरकार के जिम्मेदार लोग अनर्गल बयानबाजी और एक दूसरे की पीठ थपथपाने में जुटे हैं. मंत्री हों या अधिकारी सब क्रेडिट लेने की होड़ में लगे हैं. रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर ने तो गैरजिम्मेदार-बयानबाजी की सारी हदें लांघ दी हैं. टीवी स्टूडियो और जनसभाओं में सरकार की
सुरक्षा-नीति का खुलेआम ढिंढोरा पीटने की नई प्रथा शुरू हो गई है. जिन बातों को प्रधानमंत्री कार्यालय, रक्षा मंत्रालय या गृहमंत्रालय से बाहर नहीं आना चाहिए, उन बातों को भी सार्वजनिक रूप से बोलने में कोई पीछे नहीं है.
ऐसा लगता है कि सरकार में बैठे जिम्मेदार लोग राष्ट्रीय सुरक्षा की संवेदनशीलता को अभी तक समझ नहीं पाए हैं. जिन लोगों पर सैन्य-प्रतिष्ठानों की सुरक्षा का विश्‍लेषण और ऱणनीति बनाने की जिम्मेदारी है, वो या तो स्थिति की गंभीरता को समझ नहीं पा रहे हैं या फिर उनमें काबिलियत ही नहीं है. यही वजह है कि वो सही फैसले नहीं ले रहे हैं. सैन्य-प्रतिष्ठानों को कैसे अभेद्य बनाया जाए, इस पर न तो कोई सोच रहा है और न ही कोई रणनीति है. सब कुछ लुंज-पुंज चल रहा है. इसका नतीजा ये है कि हम आतंकी हमले को रोकने में पूरी तरह से विफल रहे हैं. अगर हम पठानकोट में वायुसेना के एयरबेस पर हुए हमले के बाद भी संभल नहीं पाए, तो ये चिंता की नहीं, बल्कि शर्म की बात है. पाकिस्तान द्वारा प्रशिक्षित आतंकवादी भारत में बेरोकटोक घुसने और सैन्य प्रतिष्ठानों पर हमला करने में लगातार सफल हो रहे हैं. वो भी ऐसे समय में, जब देश को यह बताया जा रहा है कि कश्मीर में सेना हाई एलर्ट पर है.
उरी में भारतीय सेना के ब्रिगेड हेडक्वार्टर पर 18 सितंबर 2016 को आतंकी हमला हुआ था. हमला एक ऐसे परिदृश्य में हुआ, जब पूरे कश्मीर घाटी में अशांति थी. आतंकी बुरहान वानी की हत्या के बाद 8 जुलाई 2016 से ही कश्मीर में रोजाना हिंसक झड़पें हो रही थीं. बुरहान वानी की मौत के बाद से ही हाफिज सईद, सैयद सलाहुद्दीन और मसूद अजहर पाकिस्तान से लगातार धमकियां दे रहा था कि वे बुरहान वानी की मौत का बदला लेंगे. ये आतंकी खुलेआम हमले की धमकी दे रहे थे. पाकिस्तान में भी कश्मीर का मुद्दा गरम था. वहां का मीडिया, राजनीतिक दल और सेना लगातार कश्मीर के मुद्दे पर बयानबाजी कर रहे थे. पाकिस्तान की सरकार पर इतना दबाव बना कि उन्होंने कश्मीर के मुद्दे को संयुक्त राष्ट्र के जनरल एसेंबली में उठाने का फैसला कर लिया.
वैसे भी सितंबर का महीना था, बर्फ पड़ने से पहले सीमा पार से घुसपैठ ज्यादा होती है. ऐसे माहौल में आतंकी हमले का खतरा कितना बढ़ जाता है, यह समझने के लिए रक्षा विशेषज्ञ होने की जरूरत नहीं है. जो कोई भी आतंकी हमले की थोड़ी बहुत जानकारी रखता है, उसे पता है कि हर बड़े अंतरराष्ट्रीय कार्यक्रम के पहले आतंकी हमला करते हैं. दूसरी बात यह कि पिछले कई आतंकी हमलों से यह निष्कर्ष आसानी से निकाला जा सकता है कि आतंकवादियों ने अपनी रणनीति में बदलाव किया है. आतंकी आमलोगों यानी बाजार या भीड़भाड़ वाले इलाकों को छोड़ कर अब सैनिक-प्रतिष्ठानों पर हमला करने लगे हैं. इसके बावजूद अगर सैन्य प्रतिष्ठानों पर हमला होता है और सैनिक मारे जाते हैं, तो इसे एक आपराधिक चूक ही माना जाएगा. अब सवाल यह है कि उरी में भारतीय सेना से कहां और किस स्तर पर चूक हुई?
उरी में जो हुआ, उसे अगर एक शब्द में कहा जाए तो इसे हम कमांड एंड कंट्रोल का पूरी तरह से फेल हो जाना कह सकते हैं. ऐसा लगता है कि उरी ब्रिगेड मुख्यालय में न तो किसी को खतरे का आभास था और न ही सुरक्षा की चिंता थी. हमले की खुफिया जानकारी पहले से थी, फिर भी जिम्मेदार लोग वस्तुतः सोये हुए थे. हमले का खतरा सर पर मंडरा रहा था, लेकिन ब्रिगेड के वरिष्ठ अधिकारी गोल्फ खेलने में व्यस्त थे. न पहरा बढ़ाया गया, न ड्यूटी में कोई बदलाव किया गया, न चौकसी बढ़ाई गई, कुछ भी नहीं किया गया. हकीकत तो ये है कि उरी ब्रिगेड हेडक्वार्टर में स्टैंडर्ड ऑपरेटिंग प्रोसिजर यानी मानक संचालन प्रक्रिया का भी पालन नहीं हो रहा था. हाई एलर्ट की स्थिति तो दूर, आमतौर पर शांति के समय सेना द्वारा की जाने वाली साधारण कार्य-प्रणाली का भी पालन नहीं हो रहा था.
यह कहा जा सकता है कि आतंकियों ने उरी हमला नहीं किया, बल्कि इस ब्रिगेड ने अपनी अकर्मण्यता से हमले को न्यौता दिया. समझने वाली बात यह है कि हर शाम सेना को खुफिया जानकारी दी जाती है. ये रूटीन कार्य है. हर शाम लोकल कमांडर को बताया जाता है कि ये खतरा है और चौकन्ना रहने की जरूरत है. उरी हमले के कुछ दिन पहले पुंछ में ऐसा ही हमला हुआ था. उस हमले की भी खुफिया जानकारी थी, लेकिन पुंछ की पलटन चौकस थी, इसलिए जब आतंकियों ने हमला किया तो जबरदस्त तरीके से जवाब दिया गया. पुलिस के एक जवान शुरू में शहीद जरूर हुए लेकिन सेना ने आतंकियों को बाहर ही मार गिराया. लेकिन उरी में क्या हुआ?
उरी में जब आतंकवादियों ने हमला किया तो पूरा ब्रिगेड सो रहा था. उरी हमले के वक्त ब्रिगेड कमांडर सोमा शंकर थे. अब उन्हें उरी से हटा दिया गया है. बताया ये जाता है कि उरी के ब्रिगेड कमांडर साहब का ब्रिगेड के कामकाज से ज्यादा ध्यान गोल्फ खेलने में रहता था. इनके बारे में धारणा तो ये थी कि उनकी पहुंच काफी ऊपर तक है, इसलिए उनके क्रियाकलापों पर कोई सवाल नहीं उठा सकता है. ब्रिगेड की सुरक्षा की जिम्मेदारी ब्रिगेड कमांडर की होती है. उनकी यह ड्यूटी होती है कि वो ब्रिगेड के अंदर हर क्रियाकलापों पर नजर रखें और जहां कहीं भी गड़बड़ी हो, उसे ठीक करें. ब्रिगेड में चहारदीवारी कितनी सुरक्षित है, चौकसी कैसी है, दिन और रात में ड्यूटी पर कितने लोग हैं? मतलब यह कि ब्रिगेड की सुरक्षा की स्थिति और चौकसी का जायजा लेना और योजना बनाने का दायित्व ब्रिगेड कमांडर का होता है.
आमतौर पर शाम साढ़े छह बजे खुफिया जानकारी पर बातचीत और कहां, कैसे, किसकी ड्यूटी होगी, ये तय होता है. वैसे भी उरी ब्रिगेड हेडक्वार्टर कश्मीर में है और तनावपूर्ण स्थिति है, इसलिए यहां तो और सतर्कता की जरूरत थी. सेना के एक सूत्र के मुताबिक उरी ब्रिगेड हेडक्वार्टर में पूरी तरह से ढिलाई बरती गई थी. ब्रिगेड कमांडर को इन जरूरी कामों में रुचि नहीं थी. बाकी चौकसी रखना तो दूर, ब्रिगेड कमांडर का ध्यान इस पर भी नहीं गया कि ब्रिगेड मुख्यालय के आसपास और चहारदीवारी से सटे कई जगहों पर लंबे-लंबे घासों की सफाई भी जरूरी है. वो इसलिए क्योंकि इन लंबे घासों के अंदर कोई भी छिप सकता है. मौका पाकर अंदर दाखिल हो सकता है. यह तो लापरवाही की पराकाष्ठा है क्योंकि कश्मीर की स्थिति को देखते हुए आतंकी हमले का खतरा हर सैन्य प्रतिष्ठानों पर मंडरा रहा था. इस खतरे की तस्दीक हर दिन मिलने वाले खुफिया रिपोर्ट के जरिए बताई जा रही थी. सवाल तो ये पूछा जाना चाहिए कि खतरे की जानकारी मिलने के बाद ब्रिगेड कमांडर ने क्या किया? खतरे से निपटने के लिए ब्रिगेड कमांडर ने क्या आदेश दिए?
समझने वाली बात यह है कश्मीर हो या नॉर्थ ईस्ट या फिर कोई जगह, आमतौर पर हर पलटन में सवेरे चार बजे से ही हलचल शुरू हो जाती है. वो इसलिए क्योंकि ज्यादातर जगहों पर शौचालय की कमी होती है. सेना में हर किसी को हर दिन सेविंग करनी होती है. ठंडे इलाकों में गरम पानी की जरूरत होती है. वर्दी तैयार करना होता है. सूर्योदय से पहले सबलोग तैयार हो जाते हैं. मेस में नाश्ते के लिए भी जाना होता है. ये सब वहां होता है, जहां अनुशासन होता है. स्वयं अधिकारी भी अनुशासन का पालन करते हैं. अगर किसी ब्रिगेड में ऊपर से लेकर नीचे तक अनुशासनहीनता और समय का पालन न होता हो तो उरी जैसी स्थिति पैदा होना लाजिमी है. उरी ब्रिगेड हेडक्वार्टर की जगह अगर कोई दूसरी जगह होती तो साढ़े पांच बजे जवान व अधिकारी जगे हुए मिलते. जिस तरह उरी में आतंकियों को सब लोग सोते हुए मिले, वैसा नहीं होता. वो तो ऊपरवाले का शुक्र है कि आतंकवादी ब्रिगेड के अंदर हमला करते हुए खाली बैरक में घुस गए. और वहीं पर भारतीय सेना ने उन्हें घेर लिया, वरना और भी ज्यादा नुकसान होता.
बताया ये जाता है कि उरी के 12 ब्रिगेड में चहेते अधिकारी को भेजा जाता है. यहां वैसे ही अधिकारी को ब्रिगेड कमांडर बना कर भेजा जाता है जो रक्षा मंत्रालय के अधिकारियों का नजदीकी या सेनाध्यक्ष का पसंदीदा ऑफिसर हो. सेना में इसे पोस्टिंग ऑफ च्वाइस कहा जाता है. उरी ब्रिगेड मुख्यालय शहर से बिल्कुल सटा हुआ है. यह श्रीनगर से करीब 100 किलोमीटर की दूरी पर है और राष्ट्रीय राजमार्ग से ज़ुडा है. दो घंटे में उरी से श्रीनगर पहुंचा जा सकता है. मतलब यह कि दो घंटे में आप एयरपोर्ट पहुंच सकते हैं और एक घंटे की उड़ान से दिल्ली आ सकते हैं. पहले कभी इस इलाके में आतंकी गतिविधियां नहीं होती थीं. वो इसलिए क्योंकि इस ब्रिगेड में काम कम और मजा ज्यादा है.
बताया ये जाता है कि वर्तमान ब्रिगेड कमांडर पूर्व मिलिट्री सेक्रेटरी लेफ्टिनेंट जनरल राजीव भल्ला के नजदीकी थे. वो इनके स्टाफ ऑफिसर रहे हैं. यही वजह है कि ब्रिगेड कमांडर को राजीव भल्ला ने ही नियुक्त किया था. ये वही अधिकारी हैं, जिन पर प्रमोशन के लिए घूस लेने का आरोप है. उरी के ब्रिगेड कमांडर को सिर्फ हटाने से बात पूरी नहीं होती है. जांच इस बात की भी होनी चाहिए कि इनकी नियुक्ति में भाई-भतीजावाद या फेवरेटिज्म का कोई खेल तो नहीं हुआ. जांच इस बात की भी होनी चाहिए कि ब्रिगेड में चल रही गड़बड़ियों पर जीओसी की नजर क्यों नहीं गई? इस बात की भी पूछताछ होनी चाहिए कि वो क्या कारण थे जिसके चलते ब्रिगेड कमांडर बेरोकटोक अपनी कारगुजारी करते रहे और किसी ने उनसे पूछने तक की जहमत नहीं उठाई कि ब्रिगेड में क्या चल रहा है? हैरानी की तो बात ये है कि सेनाध्यक्ष कई बार कश्मीर का दौरा कर चुके हैं. क्या उन्होंने भी ये जानने की कोशिश नहीं की कि किसी ब्रिगेड में क्या चल रहा है?
आतंकवादियों की योजना सटीक थी. करीब साढ़े पांच बजे सुबह चार आतंकवादी भारतीय सेना के ब्रिगेड हेडक्वार्टर में दाखिल हुए. ये लोग ब्रिगेड हेडक्वार्टर की परिसीमा के तार को काट कर अंदर दाखिल हुए. पहली चूक यहीं हुई. सवाल ये है कि ये तार काट के अंदर घुस गए और किसी को पता क्यों नहीं चला? जानकार बताते हैं कि सेना की ये पुरानी तकनीक है कि जहां-जहां तार का घेरा होता है, वहां तार पर बोतल और घंटी लगा देते हैं ताकि कोई भी हलचल होती है तो आवाज होने लगती है और पहरा दे रहे सैनिक को पता चल जाता है कि कुछ गड़बड़ है. यहां न तो कोई पहरा दे रहा था और न ही तार पर कोई सेफ्टी मेजर ली गई थी. ये बात और है कि हमले के बाद कई तथाकथित एक्सपर्ट तार में बिजली और सीसीटीवी लगाने की पैरवी कर रहे हैं. सवाल तो ये है कि युद्ध जैसी स्थिति के दौरान जब लोग सो रहे होंगे तो कुछ भी काम नहीं आएगा. चारों आतंकवादी आसानी से ब्रिगेड के अंदर घुस जाते हैं. उन्हें न कोई देखता है और न ही कोई चुनौती देता है.
चारों आतंकियों ने तीन मिनट के अंदर 17 ग्रेनेड फेंके. धमाके की आवाज से ब्रिगेड के जवानों की नींद टूटी, लेकिन तब तक नुकसान हो चुका था. दरअसल यह हमला ऐसे मौके पर हुआ, जब इस ब्रिगेड में 6 बिहार रेजिमेंट की तैनाती हो रही थी. ये लोग 10 डोगरा रेजीमेंट की जगह लेने वाले थे. अभी पूरी तरह से लोग सेटल नहीं हुए थे, इसलिए 6 बिहार रेजीमेंट के लोगों को अस्थाई रूप से एक टैंट में रखा गया था. लेकिन यहां एक ऐसी गलती हुई, जो अक्षम्य है. जिस टैंट में बिहार रेजीमेंट के लोगों को रखा गया था, वो टैंट ठीक फुएल डम्प के बगल में था. मतलब कि ये टैंट वहां बनाया गया था जहां डीजल पेट्रोल रखा गया था. इसलिए जब ग्रेनेड से हमला हुआ तो वहां भीषण आग लग गई. ज्यादातर लोगों की मौत टैंट में आग लगने की वजह से हुई. एक तो आतंकी आसानी से अंदर घुसे, दूसरा आपने आतंकियों को बना बनाया टारगेट दे दिया. बिना गोली चलाए और बिना लड़े आतंकियों ने 17 सैनिकों की जान ले ली.
अब सवाल उठता है कि ब्रिगेड कमांडर ने क्या स्टैंडर्ड ऑपरेटिंग प्रोसिजर (सामान्य कार्य विधि) का पालन किया? डीजल-पेट्रोल के ढेर के बगल में सैनिकों के टैंट लगाने की अनुमति किसने दी? क्या 6 बिहार रेजीमेंट के जवानों को डीजल-पेट्रोल के ढेर के बगल में रखने का आदेश ब्रिगेड कमांडर ने दिया था? ये तो कॉमनसेंस की बात है कि जहां पर ज्वलनशील पदार्थों को रखा गया हो, वहां लोगों के आने जाने पर पाबंदी रहनी चाहिए, लेकिन यहां तो टैंट बनाकर सैनिकों को अस्थाई रूप से रहने की व्यवस्था कर दी गई.
इसके अलावा, कुछ बड़े सवाल हैं, जैसे कि आतंकियों को ब्रिगेड हेडक्वार्टर के अंदर की पूरी जानकारी कैसे थी? आतंकियों की योजना अकाट्य थी. उन्हें पूरी जानकारी थी कि कहां से अंदर घुसने पर किसी की नजर नहीं पड़ेगी? उन्हें ये भी पता था किस वक्त अंदर घुसना है, जब सबलोग सो गए होंगे? आतंकवादियों को ये भी पता था कि कहां हमला करना है? कहां पर डीजल-पेट्रोल है और कहां पर लोग टैंट में सो रहे होंगे? जिस वक्त आतंकी अंदर घुसे उस वक्त अंधेरा था, फिर भी उनकी गतिविधि ऐसी थी जैसे वो ब्रिगेड हेडक्वार्टर के चप्पे-चप्पे से वाकिफ हों. इस हमले की तहकीकात एनआईए कर रही है. शुरुआती जानकारी आते ही ब्रिगेड कमांडर को हटा दिया गया है और ये बताया गया कि उनसे कई चूक हुई है. सूत्रों के मुताबिक ब्रिगेड कमांडर को हटाना इस मामले को ठंडा करने की कोशिश है. हकीकत ये है कि ब्रिगेड कमांडर का गैरजिम्मेदाराना रवैया और चूक की वजह से 20 लोगों की जान गई है. इस ब्रिगेड के अंदर होने वाली गतिविधियों से कई शर्मनाक सवाल उठने की आशंका है. एनआईए अगर ब्रिगेड कमांडर की सारी गतिविधियों की जांच और विवेचना करे और इसे सार्वजनिक करे तो उरी हमले से कई लोगों को सीख मिलेगी. उम्मीद यही है कि एनआईए अपनी जांच में दूध का दूध पानी का पानी करेगी.
ये मान भी लिया जाए कि ब्रिगेड कमांडर से चूक हुई. लेकिन सवाल तो ये भी उठता है कि राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार, रक्षामंत्री और सेनाध्यक्ष को क्या सही जानकारी नहीं मिल रही है. वो भी ऐसे वक्त जब कश्मीर की स्थिति चिंताजनक है. सवाल तो ये भी उठता है कि राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार की जिम्मेदारी क्या है? सेनाध्यक्ष की जिम्मेदारी क्या है? हर हमले के बाद घटनास्थल पर पहुंचने से जिम्मेदारी पूरी नहीं हो जाती है. सरकार को यह समझना होगा कि घटनास्थल पर पहुंच कर मीडिया की सुर्खियों में स्थान बनाने के बजाय हिंसक घटनाओं की जड़ में जाकर उन्हें रोकने के लिए कार्रवाई करना ज्यादा जरूरी है. पिछले दो साल में हुए हमलों में आम जनता से ज्यादा सैन्य-संस्थाएं आतंकवादियों के निशाने पर रही हैं. जब आर्मी ब्रिगेड और वायुसेना के एयरबेस में घुस कर आतंकी हमला करने में सफल हो जा रहे हैं तो यह देश के सुरक्षा संस्थानों के लिए चिंता की बात है.
ऐसा लगता है कि राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार को नेशनल सिक्योरिटी एपरेटस की कोई चिंता ही नहीं है. कश्मीर में सौ दिन तक हंगामा होता रहा और सरकार को ये समझ में ही नहीं आया कि इससे कैसे निपटा जाए. कश्मीर में जल्द से जल्द शांति बहाल हो, ये किसकी जिम्मेदारी है? कश्मीर में पहले भी हंगामा होता रहा है, लेकिन ये हंगामा शहरों में ही सीमित होता था, इस बार ये गांव तक पहुंच गया. पाकिस्तान और आईएसआईएस के झंडे शहरों से ज्यादा कश्मीर के गांवों में लहराए गए. हमारा खुफिया तंत्र क्या कर रहा है? सवाल तो ये भी उठाना चाहिए कि कश्मीर में अब हमारे पास जानकारी इकट्ठा करने वाला खुफिया तंत्र है भी या नहीं? अगर है तो इस बार घाटी से दूर-दूर बसे गांवों के लोग आंदोलित कैसे हो गए? कश्मीर में हुई चूक की जिम्मेदारी किसकी है? पहले गांवों में भारतीय सेना और केंद्र सरकार के समर्थित सरपंच और जमीनी स्तर पर काम करने वाले लोग थे. अब ये नेटवर्क खत्म हो चुका है. यही वजह है कि कश्मीर का गांव अब सरकार के कंट्रोल में नहीं है.
राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार को ये बताना चाहिए कि राष्ट्रीय रायफल की तैनाती में इतने बड़े पैमाने पर बदलाव क्यों हुए? राष्ट्रीय रायफल के ग्रिड में जो भारी बदलाव किया गया उसका विश्‍लेषण कौन करेगा? सुरक्षा के मामले को अगर जिम्मेदार लोग मीडिया-इवेंट बनाने लग जाएं तो देश की जनता को चिंता होना लाजिमी है. उरी हमले के बाद जो हुआ, वो यही हुआ. हमले के बाद दिल्ली और श्रीनगर के बीच हेलीकॉप्टर उड़ने लगे. सारे जिम्मेदार लोगों में मीडिया में सुर्खियां बनने की होड़ लग गई. होम मिनिस्टर हों, राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार हों, रक्षा मंत्री या सेनाध्यक्ष, इन्हेंे ऐसी कौन सी जानकारी श्रीनगर में मिली जो दिल्ली में नहीं मिल सकती थी. ऐसा लगता है कि जिम्मेदार लोगों ने मीडिया मैनेजमेंट के जरिए ही सरकार चलाने का फैसला कर लिया है. उरी हमले की हकीकत का सही आकलन होना चाहिए और जिम्मेदार लोगों पर कार्रवाई होनी चाहिए चाहे वो कितना बड़ा अधिकारी क्यों न हो. अधिकारियों की चूक की वजह से जांबाज सैनिकों की जान चली जाए यह माफी के योग्य नहीं है. अफसोस के साथ कहना पड़ता है कि उरी हमले के बाद भी रणनीति और योजना के स्तर पर कुछ बदलाव नहीं हुआ है. बस, इतना हुआ है कि जवानों की ड्यूटी बढ़ा दी गई है.

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