इसी टाइटल से फेसबुक के उपर मेरी तिसरी बार तकरार की पोस्ट है !
फेसबुक खोलतेही पुछता है “कि आप क्या सोच रहे हैं ?” और जैसे ही कुछ सोचने के बाद पोस्ट करते हैं ! तो कहता है “कि हमारे मानकों के अनुरूप नहीं है !” क्या यह अभिव्यक्ति की आजादी का उल्लंघन नहीं है ?
अब फेसबुक के अनुसार सोचने की ट्रेनिंग लेनी होगी ? हमारे अमरावती के मित्र मराठी के लेखक, कवी और रेखाचित्र और शायद चित्र भी बनाते हैं ! और वह मराठी के समिक्षा में ! अपनी समिक्षा के वजह से, मुर्धन्य साहित्यकारों में अपनी जगह बना चुके हैं ! और इसिलिये मराठी साहित्य संमेलन के, अध्यक्ष भी रह चुके हैं ! श्री. वसंत आबाजी डहाके का अस्सि के दशक में ‘अधोलोक’ नाम का उपन्यास, मराठी में प्रकाशित हुआ था !

और उन्होंने कहा “कि इस उपन्यास के पात्रों में आप (आंदोलनजीवी) लोग हैं !” तो बहुत ही गौर से पढ़ने की कोशिश की थी ! लेकिन कुछ पल्ले नही पड़ा था ! फिर कोशिश की तो भी ! लेकिन वसंतराव, जॉर्ज अॉरवेल की मराठी एडीशन है ! यह 1984 में ! और वसंत आबाजी डहाके का अधोलोक शायद चालीस साल बाद थोड़ा – थोड़ा समझ में आ रहा है !


टेक्नोलॉजी ने जीवन के सभी पैमाने ही बदल देने की शुरुआत कर दी है ! 1909 में महात्मा गांधी ने यह संकेत हिंद स्वराज्य में दिया है ! जिस तरह से लोगों को थोड़ी देर के लिए भी नेटवर्क नही है ! तो भयंकर तनाव में देखता हूँ ! लगता है कि अब अगर थोड़ी देर में, नेटवर्क उपलब्ध नहीं हुआ ! तो मोबाइल फोन तोड़ने पर उतारू हो जायेगा !
हालांकि यह सब कुछ पिछले 25 सालों के भीतर की बात है ! कैसे पोस्ट कार्ड, आंतर्देशीय पत्र या लंबी बात है ! तो पैकेट में लिखकर भेजते थे ! और उतना ही सब्रसे इंतजार करते थे ! इंफोसिस के मालिकों में से एक प्रमुख खुद श्री. नारायण मूर्ति को लॅण्ड लाईन टेलिफोन कनेक्शन के लिए ! बहुत दिनों तक इंतजार करना पड़ा था ! आप और हमारे नसिब में सिनेमा में या किसी बड़े व्यापारी को, एक हाथ में टेलिफ़ोन के साथ दुसरे हाथ हिला – हीला कर बातें करते हुए देखकर, हंसी के मारे लोटपोट हुआ करते थे !


लेकिन जिंदगी चल रही थी ! होस्टल में महिने में एक बार मनीआर्डर आती थी ! और हमारी पढ़ाई में कोई विशेष व्यवधान नहीं आया ! और यात्रा भी उम्र के पंद्रह साल के पहले से ही शुरू हो गई थी ! शुरुआत स्टेट ट्रान्सपोर्ट की बसों से हुई ! और भारतीय रेल सेवा का लाभ ! पहली बार बुआ के गांव गर्मी की छुट्टियां बिताने ! जाते वक्त 1964 – 65 के मई माह में ! इसलिए याद आ रहा है ! 27 मई को अचानक बुआ के घर के ! फिलिप्स रेडियो ने गाने बजाने छोड़कर ! बीच में ही अब हमारे देश के प्रधानमंत्री श्री. पंडित जवाहरलाल नेहरू नही रहे ! के समाचार, और उसके बाद, अंत्येष्टि की रनिंग कॉमेंट्री, हमारे बुआ के मोहल्ले के सभी लोगों को ! सुना – सुनाकर पूरे देश में रुलाते हुए ! मैंने अपने जीवन के ग्यारह वर्ष की उम्र में ! खुद देखा है ! ( लेकिन अब पता चला है ! “कि कुछ लोग रोना तो दूर की बात है खुशियां मना रहे थे !” जो अभी खुद ही उस पदपर बैठे हैं ! ) मतलब भारत के प्रथम प्रधानमंत्री के मृत्यु से लेकर, हॉकी, क्रिकेट, फुटबॉल के खेलों के दौरान भी ! रेडियो प्रसारण के माध्यम से, सब कुछ आंखों देखा हाल लगता था ! और चार आने के टिकट पर ! गांव की नदी की बालु मे बैठकर !

टाट के पडदे वाली खुली टुरिंग टॉकीज में ! जंगली, खानदान, धूल का फूल, मिस्टर एक्स इन बॉम्बे , नवरंग और अनारकली, मुगले आजम के हर गाने शुरू हुए की ! चिल्लर पैसे पडदे के तरफ फेकने वाले ! कुछ शौकीन लोगों को देखते हुए गाने का मजा, दुगुना हो जाता था !


और अब मल्टीप्लेक्स, यूटूब, अमेझान और क्या – क्या नये सिनेमा दिखाने के माध्यम जो टीवी चैनल को भी मात दे रहे हैं ! लेकिन सब कुछ नेटवर्क और तथाकथित सेटबॉक्स के ठेकेदारों की कृपा से ! इस तरह सूचना प्रौद्योगिकी को कोई कंट्रोल कर सकते है ? यह सिर्फ पहले अधोलोक तथा 1984 और शायद कुछ सायन्स फिक्शन में इशारों – इशारों में बताया गया है ! आज वह सब कुछ हमारे अगल – बगल में जाल जैसा बिछाया गया है ! जिसमें हमारे घर में काम करने वाली लड़की से लेकर, हमारे मोहल्ले में कभी-कभी मुनसिपल कॉर्पोरेशन के सफाई कामगार, एक हाथ में झाडू और दुसरे हाथ में ऐड्राईड फोन लेकर ! झाडू कम फोन ज्यादा चलाते हुए ! देखकर उसे कुछ भी बोलने की गुंजाइश नहीं रहती ! वहीं हाल सब्जी बेचने की जगह ! और झुग्गियों में भी दरवाजे पर बैठे महिलाओं को फोन पर, व्यस्त देखा जा सकता है !


और मुंबई की लोकलट्रेन में, लगभग हरेक के कानों में ! लगे हुए बड देखकर ! अपने जैसे गांव – देहांत के लोगों को कुछ पुछने की गुंजाइश नहीं है ! सब व्यस्त हैं !
और वह क्या देख – सुन रहे हैं ? तो मेरे जैसे पचास वर्षों से ! अधिक समय से सार्वजनिक क्षेत्र में रहते हुए ! संवाद का अभाव, दिन – प्रतिदिन बढते हुए, नजर जा रहा है ! और सामाजिक – राजनीतिक, सांस्कृतिक आर्थिक किसी भी बात पर हमारे अगल – बगल के लोगों के साथ कैसे संवाद करे ? यह एक नई समस्या लगती है !


और कोई संवाद के क्षेत्र में का कहता है ! “कि आप को इतना जबरदस्त संवाद का हथियार आपके हाथ में है ! उसका इस्तेमाल किजीये !” और फेसबुक से लेकर व्हाट्सअप, मेसेंजर ! और जो भी कुछ है, सब के सब ब्लॉक करने से लेकर, दुनिया भर की धमकीया आये दिन देते रहते हैं ! मैंने इसी हप्ते भर में महात्मा गाँधी जी की बदनामी के खिलाफ ! तथा मेरे एक मित्र जो पचास साल से भी अधिक समय से ! आदिवासीयो में काम करने वाले की ! श्रध्दांजलि की पोस्ट से लेकर ! आतंकवाद के असली सुत्रधार कौन है ? और कश्मीर के किसानों के सेब की, फसल की बर्बादी जैसे संगीन मुद्दों पर इंटरव्यू तथा लेखों को ब्लाक करते हुए ! कहा कि हमारे मानकों के अनुरूप नहीं है !
तो भाई आप लोग आपकी ऐप लॉन्च करने के पहले से ही अपने मानकों को पूरा बताया करेंगे ! तो हम तय करेंगे कि इस ऐप को डाउनलोड करना है या नहीं !
एक तरफ हम अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के हिमायती है ! के दावे करना ! और बाद में अलग – अलग तरीके से, छोटी – छोटी बातों पर, मानकों का हवाला देते हुए ! ब्लॉक करने की कृती, कौन-सी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता में आती है ?
डॉ सुरेश खैरनार 4 अक्तुबर 2022, नागपुर

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