किसान आंदोलन को अब एक महीना पूरा होने जा रहा है ! और साथ-साथ उत्तर भारत की ठंड अपनी तीव्रता बता रही है!और शायद उसीके परिणामस्वरूप सरकार भी ठंडा रूख अपना रही है!और उधर 30 से ज्यादा किसान इसी आंदोलन मे बली चढ गऐ ! और सरकार के कानों में जूभी नहीं रेंग रही है ! और रेंगे भी कैसे ? धन्नाशेठो से चुनावी बाँडो के नाम पर करोड़ों रुपये लेकर बैठे हैं ! आज अपने आप को विश्व की सबसे बड़ी पार्टी और सबसे ज्यादा पैसे वाली पार्टी किनकी कृपा से बन गई है?

बीजेपी भारत की सबसे कम उम्र की पार्टी होने के बावजूद उसे इस मुकाम तक पहुंचाने के लिए विशेष रूप से किनके-किनके हाथ लगे हुए हैं ? इसकी इन्क्वायरी होनी चाहिये प्रधानमंत्री ट्रांसपरंसी का राग अलापते रहते हैं तो उनमें कुछ इमानदारी बाकी है तो वह देश को बताये कि उनकी पार्टी इतने कम समय में यह मुकाम कैसे हासिल कीया है और प्रधानमंत्री राहत कोष रहने के बावजूद तथाकथित पीएम रिलीफ फंड से किसे रिलीफ दिला रहे हो?

जिसे सार्वजनिक ना कहते हुए प्रायवेट करने का कारण? आप भारत के पहले ही प्रधानमंत्री हो जो इस तरह की मनमानी कर रहे हैं और वह भी उस पद का उपयोग कर के ! क्यों इस फंड को सूचना का अधिकार से बाहर रखा है? क्या प्रधानमंत्री पद संविधान के दायरे से बाहर कर लिया है ?

जैसे श्रीमती इंदिरा गाँधी जी ने आपातकाल में तथाकथित संविधान संशोधन करने के बाद अपने आप को कर लिया था ! आपने यह संशोधन कब और कौनसी संसद में किया ? इंदिरा गाँधी जी भी कोई बात नही मानती थी वैसे ही अडियल रवैये से आप किसानों के आंदोलन की अनदेखी करते हुए !

और यह बात आज किसान आंदोलन को एक महीना पूरा होने जा रहा है और वह क्यों उनकी बात नहीं मान रहे हैं ? जनतंत्र में 1973-74 के समय मे जयप्रकाश नारायण जी ने अपने तरफसे उस समय के देश के महत्वपूर्ण सवालों के खत तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गाँधी जी को एक साल से भी ज्यादा समय लगातार लिखे थे !और मैडम इंदिरा गाँधी जी ने उनके खतो का जवाब देना तो दूर उन्होंने एक्नोलेज भी नही दिया था !

और यह बात मै अपने बगल से निकाल कर नहीं लिख रहा हूँ श्रीमती इंदिरा गाँधी जी के निजी कार्यालय के कर्मचारियों मे से एक बिशन टंडन जो उनके प्रमुख पी एन धर साहबके जूनियर अफसरों मे से एक थे और वह अपने आदतों के अनुसार रोज सोनेके पहले डायरी लिखने की आदत के कारण उन्होंने अपने रिटायर होने के बाद अपने अनुभव लिख कर यह उनकी किताब के हवाले से मै लिख रहा हूँ कि श्रीमती इंदिरा गाँधी जी को पी एन धर जो उनके पर्सनल कार्यालय के प्रिंसिपल सेक्रेटरी थे और मैडम इंदिरा गाँधी जी को बार-बार कहा था कि आप जयप्रकाश नारायण जी के पत्रों का जवाब दीजिये लेकिन आज के प्रधानमंत्री की फिमेल एडिशन आप हो और यह बात मैंने 2014 के चुनाव प्रचारमे आपके गृहराज्य गुजरात के एतिहासिक शहर सोमनाथ की जनसभा में कहीं थी कि नरेंद्र मोदी इंदिरा गाँधी जी के मेल एडिशन है!

श्रीमती इंदिरा गाँधी जी के भीतर भी एक तानाशाह मौजूद था और वह भी किसी की भी सलाह नहीं मानती थी और अपनी मनमानी करने के कारण ही 1977 साल के चुनाव में सत्ता से बाहर हो गई थी ! और एक दूसरे आप हो जो अपने आप को पार्टी, संसद, न्यायालय और सबसे संगीन बात आप देश के संविधान सेभी अपने आप को उपर मानते हो !

बिल्कुल इतिहास में इस बात का गवाह है कि जनता की अनदेखी करने वाले तानाशाह फिर वह भारत के हो या बाहर के क्या हश्र हुआ इसके भी प्रमाण इतिहास में मौजूद है ! और डाक्टर बाबा साहब अंबेडकर जी ने बहुत ही मौलिक बात कही है कि जो इतिहास से सीखता नही उसे वर्तमान कभी माफ नहीं करेगा !

मै वर्तमान प्रधानमंत्री के लिए विशेष रूप से यह चेतावनी दे रहा हूँ ! कि जिस तरह से उन्होंने सत्ता सह्माल्ने के बाद से लगातार जन विरोधी नीतियाँ नोटबंदी से लेकर रिझर्व बैंक के इतिहास में इस तरह पहली बार रिझर्व फंड को हाथ लगाने का काम करने से लेकर भारत की सभी प्रमुख बैंक के पूंजीपतियों लिए पैसे उडाने के लिए मजबूर कर दिया और वह भी कम पडा तो भारत सरकार के अपने खुद के बहुत ही बेहतरीन तरह से चलने वाले सार्वजनिक उद्योग बेचना इससे ज्यादा देशद्रोही काम और कौनसा हो सकता है?

और यह कम लगा तो और एक देशद्रोही बात! ऐसा कानून जिससे देश के बटवारे की नींव रखने के लिए तथाकथित नागरिकता का कानून जिसको सिर्फ आसाम में लाने के जगह संपूर्ण भारत में लाने का कोई तुक नहीं था!
और वह भी पूंजीपतियों के लिए विशेष रूप से लाभ देने के लिए काम करने की कवायद शुरू कर चुके है!और किसानों के खिलाफ तीनों अध्यादेशों के लिए उन्होंने हमारे संसदीय लोकतंत्र का गला घोंटकर लादने की कोशिश की है !वह उन्हें और उनके सरकार को ले डुबेगी !

क्योंकी भारत के अबतक के सभी आंदोलनों में और इस आंदोलन मे बहुत बडा मौलिक फर्क है कि यह उस्फूर्त रूप से शुरू हुआ शत-प्रतिशत किसान आंदोलन है और वह भी चौबीसों घंटे लगातार सडक पर इतनी ठंड में भी बैठे हुए हैं और अब तो महिलाओ के शामिल होने की शुरुआत हो चुकी है और सिंधु बार्डर से 20 किलोमीटर का पूरा हायवे पर आंदोलनोकारियो का ठिय्या लगा हुआ है और उसके अगलबगल के जमीन पर उनके तंबू और ट्रेक्टरो तथा ट्रकों की छतों पर तारपोलीन की तात्कालिक तौर पर रहने सोने का बंदोबस्त यही नजारा देखने के बाद  बिल्कुल आज से दस साल पहले के इजिप्त की राजधानी कैरौ के तहरीर चौक पर हजारों की संख्या में लोगों ने होस्नी मुबारक की सरकार के खिलाफ आंदोलन के समय टेंट डाल कर रात दिन बैठे थे !

और मैदान के चारों तरफ आर्मि लाकर खड़ा कर दिया था लेकिन होस्नी मुबारक की सरकार को वह आंदोलन के बाद इस्तीफा देने के लिए मजबूर किया था! और मै उस नजारे के साक्षीदार लोगों मे से एक हूँ ! और कम अधिक प्रमाण मे दिल्ली के अन्य दिशाओं की सीमाओ पर भी यही नजारा देखने में आ रहा है !

और यह सिर्फ दिल्ली के आंदोलन की बात नही है देश के अन्य हिस्सों में भी शुरू हो चुका है और सबसे बड़ी बात प्रधानमंत्री और गृहमंत्री के गृहराज्य गुजरात में भी वैसे देखा जाए तो प्रधानमंत्री भी जेपी आंदोलन के एक सिपाही रहे हैं और उनके सिपाही अमित शाह शायद बच्चो मे शुमार रहे होंगे लेकिन नरेंद्र मोदी जी को याद होगा ! और अब इस आंदोलन ने रफ्तार पकडनी शुरू कर दिया है ! और महाराष्ट्र, कर्नाटक और देश के अन्य राज्यों में भी किसान रस्ते पर आ रहे हैं !

मै समझ सकता हूँ कि वर्तमान सरकार ने पूंजीपतियों से जो भी कुछ पडदे के पीछे किया है ! उसमें वह फस चुके हैं और यही बात उन्हे बेदखल करने के लिए विशेष रूप से काम आने वाली है ! सीधा-सीधा बिल वापस लेने का छोडकर तथाकथित वार्ता के दौर करने की हरकतों से बाज नहीं आते हैं तो संपूर्ण भारत में जयप्रकाश नारायण जी के आंदोलन के बाद यह आंदोलन भारत के इतिहास का अबतक का सबसे बड़ा और बहुत ही बेहतरीन ढंग से चलने वाले आंदोलन है !

हालांकि बीजेपी खुद जयप्रकाश नारायण जी के आंदोलन के बाद ही अपनी जमीन बनाने वाले पार्टियों में से एक है और उसके बाद लाल कृष्ण आडवाणी जी ने आयोध्या स्थित बाबरी मस्जिद-राम जन्मभूमि के आंदोलन के बाद ही बीजेपी को इस मुकाम तक पहुंचा ने के लिए आंदोलन की ही मदद मिली है और वही पार्टी की सरकार आंदोलन को अनदेखा करने की गलती कर रही है तो जेपी जीने श्रीमती इंदिरा गाँधी जी के इसीतरह के अडियल रवैये को लेकर बहुत ही महत्वपूर्ण टिप्पणी की थी कि विनाशकाले विपरीत बुद्धि !

डॉ सुरेश खैरनार

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