cow-deathमहाराष्ट्र और हरियाणा में गोमांस के धंधे पर रोक लगाने को मानवाधिकार हनन का मुद्दा बनाया जा रहा है. इसमें बॉलीवुड से लेकर दुनिया की कई नामचीन हस्तियां शामिल हैं और उन्हें ताकत दे रहा है देश में संगठित रूप से काम करने वाला चमड़ा सिंडिकेट. महाराष्ट्र में गोमांस पर पूर्ण प्रतिबंध लगते ही मुंबई के ताकतवर चमड़ा सिंडिकेट में हाहाकार मच गया है. इस सिंडिकेट को केवल पैसे की चिंता है, देश के पशुधन और पर्यावरण से उसे क्या लेना-देना! प्रतिबंध लगते ही सिंडिकेट ने फिल्मी हस्तियों और अन्य प्रभावशाली लोगों को सामने लाकर गोमांस पर प्रतिबंध का विरोध शुरू करा दिया, जबकि उसका मुख्य लक्ष्य इस बहाने चमड़े के धंधे को निर्बाध गति से चलाते रहना है. महाराष्ट्र में गोमांस पर पाबंदी लगने के बाद यहां चमड़े के दाम बढ़ गए हैं. गोमांस डीलर्स एसोसिएशन के मुखिया मोहम्मद अली कुरैशी का बयान है कि कोलकाता और चेन्नई की चमड़ा फैक्ट्रियों में जानवरों की खाल आपूर्ति करने में महाराष्ट्र सबसे आगे रहा है, लेकिन पाबंदी लगने के बाद देवनार स्थित बूचड़खाना मुंबई में रोज़ाना स़िर्फ 450 जानवरों की खालें ही आपूर्ति कर पा रहा है, इनमें से भी ज़्यादातर भैंस की खालें होती हैं. इसके पहले खाल 1,500 रुपये प्रति पीस की दर से खरीदी जाती थी, लेकिन पाबंदी के बाद कम से कम दो हज़ार रुपये प्रति पीस की दर से खाल खरीदनी पड़ रही है. 2012 में चमड़ा 45 रुपये प्रति फुट की दर पर खरीदा जा रहा था, लेकिन पिछले कुछ महीनों में इसकी क़ीमत 100 रुपये प्रति फुट तक पहुंच चुकी है.
गोमांस का व्यापार तो दूसरे नंबर पर है, पहले नंबर पर है चमड़े का धंधा, जिसका अंधाधुंध निर्यात विदेशों में हो रहा है और उससे अकूत कमाई की जा रही है. चमड़ा सिंडिकेट भारत और बांग्लादेश में संगठित रूप से काम कर रहा है और मांस की कमाई चमड़ा सिंडिकेट से जुड़े लोग खा रहे हैं. गोमांस की कमाई खाने वालों में मुसलमान, हिंदू एवं ईसाई यानी सब शामिल हैं, साथ ही कई नामचीन हस्तियां भी. चमड़ा सिंडिकेट से मिलीभगत करके यही लोग गायों की बेतहाशा तस्करी करा रहे हैं. उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, ओडीशा एवं पश्‍चिम बंगाल गायों की तस्करी का कॉरीडोर बन चुका है और बांग्लादेश इसका हब है. केंद्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह बीएसएफ से बार-बार कह रहे हैं कि गायों की तस्करी रोकने के लिए बांग्लादेश सीमा पर पुख्ता इंतजाम किए जाएं, लेकिन चमड़ा सिंडिकेट की सामर्थ्य के आगे केंद्रीय गृहमंत्री का आदेश बेमानी साबित हो रहा है. सिंडिकेट की कमाई का जूठन सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) और स्थानीय पुलिस के पास बाकायदा पहुंच रहा है, इसलिए गायों की तस्करी रोकने के सारे फॉर्मूले नाकाम साबित हो रहे हैं. सरकारी आंकड़े बताते हैं कि गोहत्या पर रोक के बावजूद बीफ की रा़ेजाना खपत 61 लाख किलो है. मध्य प्रदेश, जो गायों की तस्करी के मुख्य नक्शे में नहीं है, वहां कुछ अर्से में ही सवा लाख से अधिक गायें पशु तस्करों के चंगुल से छुड़ाई गईं. यह ख़बर बताती है कि देश का पशुधन किस तरह के पैशाचिक संकट से गुज़र रहा है.
सरकारी आंकड़े बताते हैं कि अकेले झारखंड में हज़ारों गायें रोज़ाना कटती हैं. महाराष्ट्र और हरियाणा में लगे प्रतिबंध को राजनीतिक मुद्दा बनाने की कोशिश की जा रही है. यह मुद्दा नहीं, बल्कि एक साजिश है. 20 साल की लंबी लड़ाई के बाद महाराष्ट्र सरकार गो-हत्या पर पूर्ण प्रतिबंध लगाने में कामयाब हुई. वैसे तो महाराष्ट्र में गो-हत्या 1976 से ही प्रतिबंधित है. अब बैल-बछड़े की हत्या भी इस दायरे में आ गई है. देश के 24 राज्यों में गो-हत्या पर प्रतिबंध है, लेकिन ज़मीनी हकीकत कुछ और है. झारखंड, महाराष्ट्र, दिल्ली, उत्तर प्रदेश एवं पंजाब में प्रतिबंध के बावजूद गायों की अंधाधुंध हत्या हो रही है. मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, गुजरात एवं राजस्थान में गायों की हत्या के मामले उतने नहीं सुनने को मिलते, लेकिन इन राज्यों से गो-तस्करी बड़े पैमाने पर हो रही है. बिहार में गायें बेतहाशा काटी जा रही हैं और गो-मांस का धंधा वीभत्स तरीके से फल-फूल रहा है. गायों की तस्करी का भी बिहार देश का सबसे बड़ा केंद्र बन गया है. बिहार के ग़ैर-लाइसेंसी बूचड़खानों में बड़ी तादाद में गायें कट रही हैं. सरकार को सब कुछ पता है, लेकिन कभी कोई कार्रवाई नहीं होती. हालत यह है कि भारत में बीफ की खपत में क़रीब 10 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है. 2011 में बीफ की खपत 20.4 लाख टन थी, जो 2014 में बढ़कर 22.5 लाख टन हो गई. पशुगणना के अनुसार, देश में गोवंश की संख्या में 2007 के मुकाबले 2012 में 4.1 प्रतिशत की कमी आई. इसमें भी देसी गो-वंश की संख्या में क़रीब नौ प्रतिशत की कमी आई है. इस दौरान नर भैंसों की संख्या में 18 प्रतिशत की कमी दर्ज की गई है. भारत ने पिछले वर्ष 19.5 लाख टन बीफ का निर्यात किया. भारत बीफ निर्यात में विश्‍व में दूसरे स्थान पर है. पिछले छह महीनों में ही बीफ निर्यात में 15.58 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई है. विडंबना तो यह है कि बीफ निर्यातकों को सरकार की तरफ़ से 13 तरह की सब्सिडी भी मिलती है.

बांग्लादेश सीमा पर गो तस्करी रोकने के लिए होने वाली मुठभेड़ों पर भी मानवाधिकार संगठन बीएसएफ पर सवाल उठाते रहते हैं. इन सवालों से अब आम नागरिकों में भी यह मत बन रहा है कि मानवाधिकार संगठन अपराधियों, माफियाओं, तस्करों एवं राष्ट्रद्रोहियों के प्रवक्ता बनकर रह गए हैं. गायों को बर्बर तरीके से ट्रकों में ठूंसकर ले जाने के आम दृश्यों पर ये मानवाधिकारवादी कभी विरोध दर्ज नहीं कराते. पशुप्रेमी भी इस मसले पर आपराधिक चुप्पी साधे रहते हैं.

तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश एवं कर्नाटक में भी गो-हत्या प्रतिबंधित है. तेलंगाना के मेडक के अल्लाना में हर साल दो लाख से ज़्यादा पशु काटे जाते हैं. वहीं मांस निर्यातक अल-कबीर में एक लाख से ज़्यादा पशुओं की हत्या की जाती है. कर्नाटक में 3,100 अवैध स्लॉटर हाउस हैं. एक स्लॉटर हाउस से रोज़ाना 7 से 8.25 टन कचरा (वेस्ट) निकलता है. केरल में गो-हत्या पर कोई क़ानूनी प्रतिबंध नहीं है. यह भारतवर्ष के क़ानून का मखौल ही है कि महाराष्ट्र में गोमांस पर प्रतिबंध के ख़िलाफ़ केरल में बीफ फेस्टिवल मनाया जाता है और इसे पूरे देश में ले जाने की तैयारी की जाती है. हरियाणा के मेवात और दिल्ली के जाफराबाद एवं मुस्तफाबाद गो-हत्या के लिए कुख्यात हैं. यहां के थ्री व्हीलर गैंग गायों की हत्या करके रात में ही होटलों तक गोमांस पहुंचा देते हैं. यहां इसका कोड वर्ड सफेदा है. पांच सितारा होटलों में बीफ टेंडरलायन, फिलेट मिगनॉन वगैरह नामों से परोसा जाता है. देश में सरकारी लाइसेंस वाले 62 स्लॉटर हाउस हैं. इनमें से सबसे ज़्यादा 38 बूचड़खाने उत्तर प्रदेश में हैं. इसके अलावा अनगिनत अवैध बूचड़खाने हैं, जिनमें पंजाब, हरियाणा, राजस्थान एवं अन्य राज्यों से रा़ेजाना पांच सौ से हज़ार गायें काटने के लिए लाई जाती हैं. मध्य प्रदेश जैसे राज्य में कुछ अर्से में 1.20 लाख गायें तस्करों के चंगुल से छुड़ाई गईं. राजस्थान में अलवर से सर्वाधिक गो-तस्करी की ख़बरें आती हैं. छत्तीसगढ़ में पिछले एक-दो साल के भीतर 5,508 गायों और 8,689 बैलों को तस्करों के चंगुल से मुक्त कराया गया. गुजरात में भी गायों की तस्करी के 10 मामले दर्ज हुए. पंजाब में एक साल में गोहत्या-तस्करी के 312 मामले दर्ज हुए और पांच हज़ार गायें छुड़ाई गईं. बिहार-झारखंड, बिहार-नेपाल और बिहार-बंगाल की सीमा पर हर साल 10 हज़ार से अधिक गोवंशीय पशु पकड़े जाते हैं. बांग्लादेश सीमा पर हर वर्ष कम से कम 50 हज़ार गोवंशीय पशुओं की तस्करी होती है.
बांग्लादेश सीमा पर गो तस्करी रोकने के लिए होने वाली मुठभेड़ों पर भी मानवाधिकार संगठन बीएसएफ पर सवाल उठाते रहते हैं. इन सवालों से अब आम नागरिकों में भी यह मत बन रहा है कि मानवाधिकार संगठन अपराधियों, माफियाओं, तस्करों एवं राष्ट्रद्रोहियों के प्रवक्ता बनकर रह गए हैं. गायों को बर्बर तरीके से ट्रकों में ठूंसकर ले जाने के आम दृश्यों पर ये मानवाधिकारवादी कभी विरोध दर्ज नहीं कराते. पशुप्रेमी भी इस मसले पर आपराधिक चुप्पी साधे रहते हैं. पिछले कुछ वर्षों में बीएसएफ ने 261 बांग्लादेशी तस्करों को मार गिराया, लेकिन इसके लिए बीएसएफ की काफी आलोचना की गई. बांग्लादेश की एक करोड़ साठ लाख आबादी के 90 प्रतिशत से ज़्यादा लोग मांस खाते हैं और यह आधिकारिक सूचना है कि अधिकतर गायें भारत से ही आती हैं. भारत और बांग्लादेश के बीच होने वाले इस अवैध व्यापार की कमाई अरबों में है. राजस्थान, हरियाणा एवं पंजाब से गायें पश्‍चिम बंगाल के पशु बाज़ारों में लाई जाती हैं और ये सारे बाज़ार बांग्लादेशी सीमा पर स्थित हैं. संगठित गैंग इन गायों को बाज़ारों से खरीदते हैं और 2,400 किलोमीटर की सीमा पर अलग-अलग जगहों से उनकी तस्करी करते हैं. गायों की तस्करी करने वाले गिरोह भारतीय पुलिस, बीएसएफ और कस्टम अधिकारियों को अपने काम के लिए रिश्‍वत देते हैं. गायों की तस्करी के धंधे से जुड़े लोगों का कहना है कि बीएसएफ के जवानों के साथ मुठभेड़ तस्करी रोकने के सवाल पर नहीं, बल्कि रिश्‍वत के बंटवारे के मामले में होती है. तस्करी के लिए कुछ नेताओं को भी उनका हिस्सा मिलता है.
गायों की तस्करी रोकने के लिए कई नियोजित नौटंकियां भी हुईं. मसलन, गायों के लिए पहचान-पत्र जारी करने तक के चुटकुलेबाज तरीके ढूंढे गए. बांग्लादेश की सीमा से सटे पश्‍चिम बंगाल में बीएसएफ के जवान गायों की फोटो खींचते हुए भी देखे गए, ताकि उनके पहचान-पत्र बन सकें. बीएसएफ ने आधिकारिक तौर पर भी कहा कि गायों की तस्करी रोकने के लिए उनका पहचान-पत्र जारी करने का अभियान चलाया जा रहा है. सीमावर्ती मुर्शिदाबाद ज़िले में गांव वालों को अपने पशुओं के पहचान-पत्र बनवाने के लिए फोटो स्टूडियो के बाहर कतारों में लगे देखा गया. भारत और बांग्लादेश के बीच 4,096 किलोमीटर की विस्तृत सीमा है. सीमा के एक हिस्से पर तारबंदी की गई है, लेकिन उसका अधिकांश हिस्सा टूटा-फूटा है. पश्‍चिम बंगाल और बांग्लादेश के बीच 2,000 किलोमीटर से ज़्यादा की सीमा में क़रीब 500 किलोमीटर क्षेत्र को नदियों ने आड़ा-तिरछा कर रखा है. तस्कर अपने काम के लिए नदियों का भी इस्तेमाल करते हैं. संगठित तस्कर गिरोह सीमा पर लगे तार काट डालते हैं और अच्छा-खासा गैप बनाकर उसमें से गायें ले जाते हैं. बीएसएफ का एक बड़ा काम तो अब यह भी हो गया है कि वह तार काटने वाले स्थान चिन्हित करे और वहां दोबारा तारबंदी की जाए. सरकारी आंकड़े बताते हैं कि वर्ष 2011 में 279, 2012 में 561, 2013 में 412 और 2014 में 510 स्थानों पर तार काटे गए. इस वर्ष जनवरी तक कुल 25 स्थानों पर तार काटे गए. वर्ष 2014 में गो-तस्करों से मुठभेड़ में बीएसएफ के 99 जवान घायल हुए थे. इस वर्ष अब तक बीएसएफ के 20 जवान घायल हो चुके हैं और एक जवान शहीद हुआ. वहीं तीन बांग्लादेशी तस्कर मार गिराए गए.


मुगल शासकों ने लगाया था गो-हत्या पर प्रतिबंध

बाबर ने अपनी वसीयत तूजुक-ए-बाबरी में अपने बेटे हुमायूं से कहा था कि मुगल साम्राज्य में न गायों की बलि हो और न गायों को मारा जाए. अकबर, जहांगीर एवं अहमद शाह जैसे मुगल शासकों ने गो-हत्या पर प्रतिबंध लगा रखा था. मैसूर रियासत के हैदर अली और टीपू सुल्तान ने भी गो-हत्या एवं गो-मांस भक्षण को संज्ञेय अपराध करार दिया था. हुक्म था कि यदि कोई गो-हत्या में लिप्त पाया गया या गोमांस बेचता या खाता हुआ पाया गया, तो उसे सख्त सजा मिलेगी और उसके दोनों हाथ काट लिए जाएंगे.

गोमांस उत्पादन

2013-14 कुल उत्पादन 20 करोड़ टन
2021-22 तक का लक्ष्य 13.75 करोड़ टन

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