Supreme Court asks Centre to consider alternatives to pellet guns in Kashmir

सुप्रीम कोर्ट ने जम्मू-कश्मीर में भीड पर पैलेट गन के इस्तेमाल के विकल्प तलाशे जाने के निर्देश सरकार को दिए हैं. कोर्ट नेे कहा कि पैलेट गन की जगह गंदा-बदबूदार पानी, कैमिकल युक्त पानी या अन्य कोई विकल्प तलाश किया जा सकता है.

हालांकि अटॉर्नी जनरल मुकुल रोहतगी ने कहा है कि कोर्ट को यह तय करने का अधिकार नहीं है कि सुरक्षा बल कौन-सा हथियार चलाएं और कौन सा नहीं. कश्मीर में फोर्सेस पर रोज करीब 50 हमले होते हैं. आतंकी बुरहान वानी की मौत के बाद सीआरपीएफ कैंपों पर 252 हमले हुए हैं. सुरक्षा बलों पर पत्थर चलाने के लिए बच्चे तैयार किए जा रहे हैं. ऐसे में बलों को भी अपने तरीके से सुरक्षा का अधिकार होना चाहिए.

कोर्ट ने सरकार को जवाब देने के लिए 10 अप्रैल तक का समय दिया है. सीजेआई जेएस खेहर की अगुआई वाली जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस एसके कौल की बेंच ने यह निर्देश दिया है. जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट बार एसोसिएशन की पैलेट गन बंद कराने की मांग वाली याचिका पर सुनवाई हो रही थी.

मुकुल रोहतगी ने सरकार का पक्ष रखते हुए कहा कि जम्मू-कश्मीर के हालात का अंदाजा वही लगा सकता है जो उन्हें झेल रहा है. फिलहाल सेना के लिए पैलेट गन ही सही ऑप्शन है. इसके बाद चीफ जस्टिस ने पैलेट गन के विकल्प तलाशे जाने के निर्देश दिए.

अल्पसंख्यक कौन, जवाब दे जे एंड के सरकार  

सुप्रीम कोर्ट ने जम्मू-कश्मीर सरकार से 4 सप्ताह में जवाब मांगा है कि यहां अल्पसंख्यक का दर्जा किसे मिलना चाहिए? 68 प्रतिशत मुस्लिम आबादी को या फिर 32 प्रतिशत आबादी वाले हिंदू, सिख और बौद्ध वर्गों को. सीजेआई जेएस खेहर की बेंच ने अंकुर शर्मा की याचिका पर यह आदेश दिया है. याचिका में कहा गया है कि यहां 68% मुस्लिम आबादी को माइनॉरिटी वाली सभी फैसिलिटीज मिल रही हैं, जबकि 32% आबादी में शामिल वर्गों को अल्पसंख्यक का दर्जा तक नहीं मिला है. केंद्र की ओर से पेश एएसजी तुषार मेहता ने कहा कि कश्मीर में आर्टिकल 370 के चलते केंद्रीय कानून लागू नहीं हैं. यहां सब मनमाने तरीके से चल रहा है.

 

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