गत दस सालों से, बगैर कोई आपातकाल की घोषणा के, हमारे देश की संविधानिक संस्थाओं को वर्तमान सत्ताधारी दल ने, लगभग अपने दल की इकाइयों में परिवर्तित कर लिया है ! लेकिन कल सर्वोच्च न्यायालय ने चुनावी बॉंड ( जो 2 जनवरी 2018 को अधिसूचित किया गया था ! ) और सत्तारूढ़ दल ने कहा था ! कि “यह पारदर्शिता लाने वाले प्रयासों के तहत राजनीतिक दलों को दिए जाने वाले दान के विकल्प के रूप में पेश करने का दावा किया था !” उसिको लेकर जो फैसला सुनाया है ! उसमे सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि “गुप्त चंदा वोटर्स से विश्वासघात ! बोलते हुए, चुनावी बॉंड को असंविधानिक बताकर रद्द कर दिया है ! और आगे जाकर कहा है कि इन्हें खरीदने वाले दलों के नाम 13 मार्च तक सार्वजनिक करे ! ” सर्वोच्च न्यायालय के इस फैसले से हमारे देश की संविधानिक संस्थाओं के बारे में, जुगनू जैसी आशा की किरण दिखाई दे रही है !


अन्यथा ईडी, सीबीआई, चुनाव आयोग, संसद से लेकर, मुख्य धारा का मिडिया ! जैसे सभी संस्थान भाजपा ने 2014 में सत्ता में आने के बाद, अपने मातृसंघठन संघ के ‘एकचालकानुवर्त’ के सिद्धांत के अनुसार सभी संस्थाओं को जी एस टी के जैसा केंद्र कब्जे में कर लिया है ! सर्वोच्च न्यायालय के इस फैसले अंधेरे में एक आशा की किरण दिखाई दे रही है !
और 4 साल के सत्ता में आने दौरान उन्होंने चुनावी बॉंड के नाम पर, कार्पोरेट घरानों से पैसे वसूल करने के लिए, जिस बेशर्मी से अपने दल का खजाना भरना शुरू किया था ! जो चंद दिनों में विश्व का सबसे बड़ा दल बनने से लेकर , और उसके साथ ही, सबसे अमीर दल बनने के लिए, यह धनउगाही काम आई है ! सुनते हैं कि “दिल्ली के भाजपा मुख्यालय, जो कभी दिल्ली प्रेसक्लब के सामने स्थित अशोका रोड से हटाकर, मिंटो ब्रिज के पास दिनदयाल उपाध्याय मार्ग पर सातसितारा बना लिया है ! और भाजपा की घोषणा है,” कि इस तरह के कार्यालय भारत के सभी राज्यों में भी बनायेंगे !”


वैसे भी भाजपा कार्पोरेट घरानों के अनुकूल दल होने की वजह से ! और राममंदिर के आडमे, उसे सत्ताधारी दल बनने की हैसियत दिलाने में, औद्योगिक घरानों ने बेतहाशा धन दिया है ! महात्मा गाँधी जी की हत्या के बाद, तत्कालीन संघ प्रमुख माधव सदाशिव गोलवलकर ने सोचा कि अपनी खुद की राजनीतिक इकाई होनी चाहिए ! और इसिलिये उन्होंने 1950 में भारतीय जनसंघ के नाम से राजनीतिक दल, श्यामाप्रसाद मुखर्जी के नेतृत्व में शुरू किया ! और देश-विदेश में रहने वाले हिंदूओ के लिए विश्व हिंदू परिषद की स्थापना 1964 में धन उगाही और खुलकर सांप्रदायिक ध्रुवीकरण करने के लिए, हिंदूमहासभा के रहते हुए ! जानबूझकर अपनी खुद की और एक ईकाई की स्थापना की ! जो आयोध्या बनारस, मथुरा जैसे विवादों के ईर्द-गिर्द सांप्रदायिक ध्रुवीकरण करने का काम कीए जा रहे हैं ! इसके अलावा सामाजिक समरसता मंच, बजरंग दल, दुर्गा वाहीनी, वनवासी कल्याण आश्रम, भारतीय मजदूर संघ, अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद, राष्ट्र सेविका समिती और वैज्ञानिको से लेकर साहित्यकार, पत्रकार तथा विभिन्न क्षेत्रों में काम कर रहे लोगों के लिए भी शेकडो संघठनो का निर्माण किया !


1973 में गोलवलकर की मृत्यु के बाद बालासाहब देवरस सरसंघचालक बने ! तब जयप्रकाश नारायण के भ्रष्टाचार के खिलाफ आंदोलन की शुरूआत हो चुकी थी ! और संघने एक षडयंत्र के तहत नानाजी देशमुख, गोविंदाचार्य जैसे शातिर संघटको को उस आंदोलन में शामिल होने की खुली छूट दी गई ! और उसी वजह से 25 जून 1975 को श्रीमती इंदिरा गाँधी ने आपातकाल की घोषणा की ! और जनवरी 1977 में चुनाव की घोषणा के बाद, जनता पार्टी के निर्माण प्रक्रिया में जनसंघ भी शामिल हुआ ! लेकिन संघ का नियंत्रण बदस्तूर जारी था ! इसलिए 1980 में संघ के साथ दोहरे रिश्ते को लेकर, जनता पार्टी से जनसंघ अलग होकर एक नये नाम ! ‘भारतीय जनता पार्टी’ के नाम से वापस पुनर्जीवित किया गया !


जिसने खुलकर सांप्रदायिक ध्रुवीकरण की राजनीति का सुत्रपात पालनपूर घोषणा पत्र के माध्यम से, शुरू कर दिया ! जिसमें सबसे मुख्य मुद्दा ‘बाबरी मस्जिद- राममंदिर’ के नाम पर जो आंदोलन शुरू किया ? जिसकी बदौलत इस दल ने आज सत्तारूढ़ होने तक कि यात्रा की ! पर इस यात्रा में हजारों की संख्या लोगों की मौत हो गई है ! जिसमें 1989 का भागलपुर का दंगे से लेकर 2002 के गुजरात के दंगों के अलावा कई आतंकवादी हमले और दंगों को मिलाकर 25000 से अधिक लोगों की मौत हुई है!
और हमारे देश के औद्योगिक घरानों ने, इस दल को उदारता से धन मुहैया कराने का काम किया है ! यह देखकर, मुझे सौ वर्ष पहले जर्मनी में हिटलर के दल को जर्मनी के उद्योगपतियों इसी तरह बहुत ही उदारता से धन मुहैया कराने का फैसला लिया था ! हिटलर ने अपने दल की स्थापना करने के बाद जर्मनी के उद्योगपतियों की बैठक बुलाकर उन्हें साफ-साफ कहा कि “आप लोग जर्मनी के राष्ट्र निर्माण में बेतहाशा औद्योगिक उत्पादन किजिए, और हमारे दल को धन मुहैया किजिए !” बिल्कुल हूबहू भारत में वर्तमान समय में वही आलम जारी है ! जिसका जिता जागता उदाहरण किसानों को पुनः आंदोलन करने की नौबत क्यों आ पडी है ?


1990 में भले ही कांग्रेस ने तथाकथित खाऊजा ( खाजगीकरण, उदारीकरण, जागतिकीकरण ) आर्थिक निति की शुरुआत की थी ! लेकिन तथाकथित स्वदेशी जागरण जैसे छत्रि संघठनो को दिखावे के लिए, संघ ने बनाया ! और अपनी राजनीतिक इकाई, भाजपा के द्वारा एक तरफ देश को सांप्रदायिक ध्रुवीकरण के संकट में उलझाकर, बहुत ही आसानी से, मुक्त अर्थव्यवस्था के लिए, अकुत मात्रा में संसाधनों के दोहन के लिए ! जल जंगल और जमीन के अधिग्रहण के लिए बनायें गए, सभी कानून बदल कर कार्पोरेट घरानों को सौपने का काम किया ! और उसके एवज में पूंजीपतियों ने अपनी थैलियां भाजपा के लिए खोलकर रख दी !
2016 की नोटबंदी के बाद 2018 में, भाजपा की हिम्मत और बढ गई और हमारे देश के संविधान को धता बताते हुए ! भाजपा ने तथाकथित चुनावी बॉंड के नाम पर धनउगाही के लिए खुलकर अपनी पार्टी के लिए धन उगाही करने के लिए चुनावी बॉंड शुरू किए ! और जिस दल ने कभी जनलोकपाल बिल को समर्थन देते हुए (2012-13) अण्णा हजारे के नेतृत्व में आंदोलन में भागीदारी की थी ! उसी दल ने सत्ता में आने के बाद, सूचना के अधिकार के कई प्रावधानों को बदलना और चुनावी बॉंड, पी एम फंड जैसे पैसे इकठ्ठा करने के नये – नये तरीकोसे धन इकठ्ठा करने की शुरूआत कर दी ! और बेशर्मी की हद यह दोनो फंडों को सूचना के अधिकार से बाहर रखने की जुर्रत की है ! जिसे हमारे सर्वोच्च न्यायालय ने इसे “सूचना के अधिकार के उल्लंघन का मामला बोलते हुए ! चुनावी बॉंड योजना को असंविधानिक करार देते हुए ! सर्वोच्च न्यायालय ने अपने फैसले में कहा कि “यह नागरिकों के सूचना के अधिकार का उल्लंघन है, जिससे संविधान के अनुच्छेद 19 (1)(ए) के तहत स्वतंत्र भाषण और अभिव्यक्ति पर असर पडता है ! सर्वोच्च न्यायालयाने कहा कि ” राजनीतिक फंडिंग में पारदर्शिता पूर्ण छूट देकर हासिल नहीं की जा सकती !” और सबसे महत्वपूर्ण टिप्पणी करते हुए कहा कि “यह चुनावी योजना उस राजनीतिक दल की सहायता करेगी जो सत्ता में है ! जिससे आर्थिक असमानता राजनीतिक जुडाव के विभिन्न स्तरों को जन्म देती है ! और सरकार जिस काले धन का ढोल पीटने का काम कर रही है ! लेकिन यह चुनावी बॉंड काले धन को बढ़ावा मिलेगा ! चुनावी बॉंड के बेनामी खरीद को पारदर्शिता के खिलाफ करार देते हुए ! सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि “वह आंख बंद नहीं कर सकते हैं ! इससे काला धन खत्म नही होगा बल्कि उसे बढावा मिलेगा ! ”


और सर्वोच्च न्यायालय ने बहुत ही महत्वपूर्ण सवाल उठाया है कि “क्या कार्पोरेट चंदा निष्पक्ष चुनावों के खिलाफ है ? चुनावी बॉंड में कार्पोरेट चंदे की जानकारी नहीं मिलती है ! इससे यह पता नहीं चलता कि क्या वे किसी खास नीति के समर्थन में चंदा दे रहे हैं ? इससे स्वतंत्र चुनावों की निष्पक्षता खतरे में पड़ जाती है !”
संविधान बेंच ने कहा कि ” लोकतंत्र में मतदाता के जानने के अधिकार दानदाता की गोपनीयता से अधिक महत्वपूर्ण है ! कार्पोरेट दानदाताओं और सियासी फायदा पानेवालो के पारस्परिक लाभ की व्यवस्था एक तरह की मनी लांड्रिंग है !” ” देश की जनता को यह जानने का हक है, कि राजनीतिक दलों के पास पैसा कहां से आता है ? और कहा जाता है ?”
लोकतंत्र सिर्फ चुनाव तक सीमित नहीं होता – – – – हर वोट का मुल्य समान सीजेआई डीवाई चंद्रचूड ने अपने 158 पन्ने के फैसले में कहा है कि ” चुनाव प्रक्रिया की अखंडता सरकार के लोकतांत्रिक स्वरूप को बनाए रखने के लिए महत्वपूर्ण है ! हमारे लोकतंत्र में नागरिकों को जाति-वर्ग के भेद के बीना समानता की गारंटी दि गई है ! यहां हर मतदाता के वोट की एक जैसा मुल्य है ! लोकतंत्र सिर्फ चुनाव से शुरू हुआ और खत्म नही होता ! हम खुद से पुछे कि कंपनियां भारी फंडिंग करती है, तो क्या निर्वाचित लोग मतदाताओं के प्रति उत्तरदायी होंगे ? चुनावी बॉंड योजना में कई खामियां है ! आंकडे बताते हैं कि 94% चंदा एक करोड़ रुपये के मुल्य वर्ग में दिया गया है ! यह संपन्न वर्ग को जनता के सामने गोपनीय बनाता है, पर सियासी दलों के लिए नहीं ! ”
जनवरी 2024 तक 16,518-11 करोड़ रुपये के चुनावी बॉंड बिके है ! वित्त वर्ष 2022 – 23 तक सियासी दलों ने 12000 करोड़ रुपये के बांड भुनाकर चंदा लिया है ! जिसमें बीस राजनीतिक दलों ने चंदा लिया है उसमें आधे से अधिक 6, 566 करोड़ रुपये भाजपा को मिला है ! और अकेली माकपा ने चंदा भी नहीं लिया और कोर्ट में इस गोरखधंधा को उजागर करने के लिए चुनौती दी है ! दुसरे नंबर पर कांग्रेस को 1,123, तृणमूल कांग्रेस को 1,093, बीजद 774, डीएमके 617, आप 94,एनसीपी 64 !

Adv from Sponsors