दिल्ली: आम चुनाव 2019 से ठीक पहले सरकार ने सामान्य वर्ग के गरीबों को 10 फीसदी आरक्षण देने का कानून बनाया जिसका कई विपक्षी दल विरोध भी कर रहे हैं. जिसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिका भी दायर की गई थी. इस जनहित याचिका को सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के लिए मंजूर कर लिया है. हालांकि इस कानून पर स्टे नहीं लगाया है. यानी आरक्षण पर तत्काल रोक से सुप्रीम कोर्ट ने इंकार कर दिया है. अब शीर्ष कोर्ट इस कानून की न्यायिक समीक्षा करेगा.

फिलहाल कोर्ट ने इस मामले में केंद्र की मोदी सरकार को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है. इस महीने के शुरुआत में सुप्रीम कोर्ट में यूथ फॉर इक्वलिटी नामक एनजीओ ने एक जनहित याचिका (PIL) दाखिल की थी, जिसमें सामान्य वर्ग के गरीबों को 10 फीसदी आरक्षण देने वाले कानून को चुनौती दी गई थी. अब सुप्रीम कोर्ट इस मामले की सुनवाई करने के लिए राजी हो गया है. इसकी सुनवाई चीफ जस्टिस रंजन गोगोई और जस्टिस संजय खन्ना की पीठ करेगी.

  • सवर्ण आरक्षण पर तत्काल रोक नहीं- SC
  • सवर्ण आरक्षण के खिलाफ PIL सुप्रीम कोर्ट में मंजूर
  • चीफ जस्टिस रंजन गोगोई और जस्टिस संजय खन्ना की पीठ करेगी सुनवाई
  • सवर्ण आरक्षण के खिलाफ PIL पर कोर्ट ने सरकार से मांगा जवाब
  • शीर्ष कोर्ट सवर्ण आरक्षण की न्यायिक समीक्षा करेगा

आपको बता दें कि मोदी सरकार ने आर्थिक आधार पर सामान्य वर्ग को 10 फीसदी आरक्षण देने के लिए संविधान में 124वां संशोधन किया था. संसद के दोनों सदनों ने इस आरक्षण विधेयक को महज 2 दिन में ही पारित कर दिया था. इसके बाद तीन दिन में राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने इस विधेयक को मंजूरी दे दी थी. इसमें आर्थिक आधार पर सामान्य वर्ग को शिक्षण संस्थानों और सरकारी नौकरियों में आरक्षण देने की व्यवस्था की गई है.इस आरक्षण कानून को सबसे पहले गुजरात सरकार ने अपने यहां लागू किया. इसके बाद फिर उत्तर प्रदेश और झारखंड समेत अन्य राज्यों में भी इसको लागू किया गया था. हालांकि पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने अपने सूबे में इस आरक्षण कानून को लागू करने से साफ इनकार कर दिया था. इसके अलावा डीएमके अध्यक्ष एमके स्टालिन भी आर्थिक आधार पर आरक्षण देने का पुरजोर विरोध कर रहे हैं. सुप्रीम कोर्ट ने आरक्षण पर तत्काल रोक से इंकार किया है लेकिन निकट भविष्य में रोक लग सकती है कुल मिलाकर अगर देखा जब कानून पर रोक लग जाएगी और ये अप्रभावी हो जाएगा तो ये सवाल मन में जरूर उठेगा कि ठीक चुनाव से पहले ये कानून बनाने पर सरकार का मकसद क्या था महज वोटबैंक की राजनीति या सच में सरकार गरीब सवर्णों का भला करना चाहती थी ?

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