Baba-Ramdevउत्तर प्रदेश का सियासी कारवां तमाम किंतु-परंतु के साथ आगे बढ़ता जा रहा है. नेता बड़े-बड़े दावे कर रहे हैं, जनता सुन रही है. कुछ जगहों पर जनता और नेताओं के बीच विरोधाभास भी देखने को मिल रहा है. राज्य की क़रीब आधी लोकसभा सीटों के मतदाता अपना फैसला ईवीएम मेंे बंद कर चुके हैं. मतदान का अंतिम दौर 12 मई को ख़त्म हो जाएगा. 16 मई को जब नतीजे आएंगे, तब नेताओं की हकीकत से पर्दा उठेगा, लेकिन जातिवाद-सांप्रदायवाद को भुनाने की तमाम दलों के नेताओं की जो कसरत राजनीति की पिच पर हुई, वह अपने पीछे कई सवाल खड़े कर गई है. आम आदमी तो यही नहीं समझ पा रहा है कि राष्ट्रभक्ति बड़ी होती है या फिर धर्म की शक्ति. चुनाव देश के विकास एवं खुशहाली के लिए हो रहा है, लेकिन नेता धर्मगुरुओं की चौखट पर दस्तक दे रहे हैं. अच्छा हुआ, जो देवबंद और नदवा जैसी ख्यातिप्राप्त संस्थाओं ने चुनावी मौसम तक अपने दरवाजे नेताओं के लिए बंद कर दिए. कुछ हिंदू एवं अन्य धर्मों के प्रमुख भी राजनीति से दूरी बनाकर चल रहे हैं, लेकिन कई धर्मगुरु ऐसे भी हैं, जिन्हें इबादत की जगह सियासत की पिच पर बैटिंग करने में ज़्यादा मजा आता है. बाबा रामदेव, योगी आदित्य नाथ, साक्षी महाराज, उमा भारती, जामा मस्जिद के इमाम अहमद बुखारी, कल्बे रुशैद, तौकीर रजा एवं मदनी आदि राजनीति के क्षितिज पर कभी तेजी से और कभी हल्के चमकते रहते हैं. धर्म के साथ रहकर राजनीति करने के कारण इन धर्मगुरुओं को आलोचना भी झेलनी पड़ती है. जामा मस्जिद के इमाम तो कब किस पार्टी के पक्ष में अपील जारी कर दें, कोई नहीं जानता. यही वजह थी समाजवादी पार्टी से नाराज़ बुखारी ने कांगे्रस के पक्ष में वोटिंग करने की अपील की, तो भारतीय जनता पार्टी ने उनका विरोध किया ही, कई नामचीन मुस्लिम हस्तियां भी बुखारी के ख़िलाफ़ सामने आ गईं.
बुखारी के बयान का उत्तर प्रदेश में असर हुआ, उनकी अपील पर मुसलमानों ने कांगे्रस को वोट दिए, ऐसा लगता तो नहीं है, लेकिन असलियत तो ईवीएम ही बताएंगी. बुखारी के बयान पर शिया धर्मगुरु एवं ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के उपाध्यक्ष मौलाना कल्बे सादिक का कहना था कि उनकी नज़र में बुखारी मुनासिब शख्स नहीं हैं, वह एक बिकाऊ माल हैं. चुनाव के समय ऐसे शख्स की अपील का कोई महत्व नहीं हो सकता. सब जानते हैं कि जामा मस्जिद की इमामत भी उन्होंने हाईजैक की है. पिछले दिनों भाजपा के अध्यक्ष एवं लखनऊ से प्रत्याशी राजनाथ सिंह भी मौलाना कल्बे जव्वाद के पास गए थे, लेकिन जव्वाद ने उन्हें कोई भरोसा नहीं दिया.
ऑल इंडिया मुस्लिम महिला पर्सनल लॉ बोर्ड की अध्यक्ष शाइस्ता अंबर कहती हैं कि मुसलमान खुद समझदार हैं, सही और गलत की पहचान कर सकते हैं. ऐसे में किसी दल या नेता को वोट देने की अपील बेअसर ही रहेगी. फिर अहमद बुखारी की मुसलमान क्यों सुनें, जब वह खुद किसी एक के नहीं हैं. बुखारी की अपील पर आगबबूला हुए देवबंदी उलेमाओं का कहना था कि मुसलमान कांग्रेस पार्टी के बंधुआ मज़दूर नहीं हैं. अरबी के विद्वान मौलाना नदीमुलवाजदी ने कहा कि इमाम की अपील सरासर गलत है. दारूल उलूम वक्फ के वरिष्ठ उस्ताद मौलाना मुफ्ती आरिफ कासमी ने कहा कि जनता खुद फैसला करे कि उसके वोट का सही हक़दार कौन है.
लखनऊ ईदगाह के इमाम एवं इस्लामिक सेंटर ऑफ इंडिया के अध्यक्ष मौलाना खालिद रशीद फिरंगी महली का कहना था कि बुखारी भाजपा का भी समर्थन कर चुके हैं. मुसलमान मतदाता अब जागरूक हो चुके हैं, उन पर अहमद बुखारी की अपील का कोई असर नहीं पड़ने वाला. मोमिन अंसार सभा के राष्ट्रीय अध्यक्ष मोहम्मद अकरम अंसारी ने कहा कि मुसलमान अब जागरूक हैं, वे राजनीतिक पार्टियों एवं उनके उम्मीदवारों को अच्छी तरह समझते हैं. अहमद बुखारी की अपील से कांग्रेस को कोई फायदा नहीं होगा, बल्कि नुकसान हो सकता है. मुसलमान अब उसे वोट करेगा, जो सुरक्षा, न्याय, रोज़गार की बात करेगा. मुसलमान पिछले 65 सालों में स़िर्फ सियासी पार्टियों की नहीं, उलेमा की नीयत भी समझ चुका है. शिया चांद कमेटी के अध्यक्ष मौलाना सैफ अब्बास नकवी ने कहा कि अहमद बुखारी मुसलमानों के ठेकेदार नहीं हैं. इस तरह के उलेमा वोटरों को गुमराह करने में कामयाब ज़रूर होते हैं, लेकिन उनका ज़्यादा असर नहीं होता. चुनाव के दौरान दिल्ली के शाही इमाम का बयान बचकाना है.

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