कश्मीर की टूरिज्म इंडस्ट्री से जुड़े हर शख्स के लिए तुमान के चिंता की एक वजह शायद यह भी है कि वो कई वर्षों तक ईश्वर का प्रतिनिधित्व करते रहे हैं. अज़ीम तुमान वर्षों तक कश्मीर हाऊस बोट ऑनर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष रहे हैं. चौथी दुनिया के साथ एक बातचीत में उन्होंने भले दिनों की इन शब्दों में चर्चा की. ‘मेरे बचपन में भारत, अंग्रेजों के वर्चस्व से अभी-अभी आजाद हुआ था. कश्मीर विश्व के सर्वश्रेष्ठ पर्यटन स्थलों में गिना जाता था. विश्व भर से पर्यटक आकर यहां हफ्तों रहते थे. कश्मीर की समृद्धि का ये सिलसिला 1990 की शुरुआत में ही खत्म होने लगा.

shikaraअज़ीम तुमान श्रीनगर के पर्यटन उद्योग से जुड़ा एक जाना पहचाना नाम है. एक शानदार जीवन व्यतीत कर चुके ये अधेड़ उम्र के व्यक्ति इन दिनों बीमार हैं. लेकिन अपने स्वास्थ्य से ज्यादा चिंतित वो इस बात से हैं कि कश्मीर का पर्यटन उद्योग अपना वो नाम और स्थान खो रहा है, जो उसे कभी प्राप्त था. श्रीनगर की प्रसिद्ध निगीन झील में अज़ीम तुमान के तीन हाऊस बोट हैं, लेकिन ये तीनों हाऊस बोट पिछले एक साल से खाली पड़े हैं और पर्यटकों के आने की प्रतीक्षा कर रहे हैं. हाऊस बोटों के खाली रहने का मतलब उनके मालिकों का लगातार घाटा है, क्योंकि ये होटलों की तरह नहीं होते, जिन्हें ताला बंद करके रखा जा सकता है. एक हाऊस बोट को उसकी शान व शौकत के साथ बहाल रखने के लिए लगातार खर्च करना पड़ता है. अज़ीम तुमान के तीन हाऊस बोटों के उदाहरण से इसका बखूबी अंदाजा लगाया जा सकता है.

हाऊस बोटों की देखरेख और पर्यटकों की खिदमत  के लिए कम से कम चार कर्मचारी चौबीस घंटे तैनात रखने पड़ते हैं. ये शख्स केवल अपने घाटे के लिए परेशान नहीं हैं, बल्कि अपने कबीले के लोगों के लिए भी चिंतित हैं. उनका कहना है कि मैं तो जैसे-तैसे ये घाटा लगातार बर्दाश्त कर रहा हूं, लेकिन आप उस शिकारा वाले की कल्पना करें जिसने बैंक से कर्जा लेकर इस उम्मीद पर एक शिकारा बनवाया कि वो उसमें पर्यटकों को डल झील की सैर करवाएगा और अपने कुनबे के लिए पैसा कमाएगा. यहां लगातार एक साल से कोई पर्यटक नहीं आ रहा है. कश्मीर की टूरिज्म इंडस्ट्री से जुड़े हर शख्स के लिए तुमान के चिंता की एक वजह शायद यह भी है कि वो कई वर्षों तक ईश्वर का प्रतिनिधित्व करते रहे हैं. अज़ीम तुमान वर्षों तक कश्मीर हाऊस बोट ऑनर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष रहे हैं. चौथी दुनिया के साथ एक बातचीत में उन्होंने भले दिनों की इन शब्दों में चर्चा की. ‘मेरे बचपन में भारत, अंग्रेजों के वर्चस्व से अभी-अभी आजाद हुआ था. कश्मीर विश्व के सर्वश्रेष्ठ पर्यटन स्थलों में गिना जाता था. विश्व भर से पर्यटक आकर यहां हफ्तों रहते थे.

कश्मीर की समृद्धि का ये सिलसिला 1990 की शुरुआत में ही खत्म होने लगा. जब यहां सशस्त्र आंदोलन हुआ, इसके पश्चात ही पर्यटकों ने कश्मीर से रुख मोड़ना शुरू कर दिया. यहां की हिंसक स्थिति को देखकर अमरीका और यूरोपियन मुल्कों समेत कई देशों ने अपने नागरिकों के नाम एडवाइजरी जारी करते हुए उन्हें कश्मीर के पर्यटन पर न जाने का सुझाव दिया. ये एडवाइजरी यानी कश्मीर की टूरिज्म इंडस्ट्री के लिए मौत का संदेश थीं. हिंसक स्थिति के कारण 1990 से लेकर 2004 तक घाटी की टूरिज्म इंडस्ट्री पूरी तरह प्रभावित रही है. इसके बाद हालात में सुधार आने शुरू हुए, लेकिन पिछली दशक के दौरान कई घटनाएं घटीं, जिनके कारण टूरिज्म इंडस्ट्री नए सिरे से बहाल होना संभव न हो सका. वर्ष 2008 में घाटी में अमरनाथ श्राइन बोर्ड के साथ जमीन के एक मामले पर बड़ा आंदोलन चला, जिसमें दर्जनों लोग मारे गए. 2009 में दक्षिणी कश्मीर के शोपियां में दो औरतों के साथ बलात्कार और हत्या की वारदात पर यहां एक बड़ा आंदोलन छिड़ गया.

2010 में सरहदी कस्बा कुपवाड़ा में सेना के हाथों तीन निर्दोष कश्मीरियों की हत्या पर हालात बहुत ज्यादा खराब हो गए, जिस दौरान फोर्सेज के हाथों दर्जनों नई उम्र के बच्चे मारे गए. 2014 में भयानक सैलाब आया, 2016 में बुरहान वानी की हत्या के बाद भयानक आंदोलन छिड़ गया. इस साल भी समय-समय पर हालात खराब रहे. इस लगातार हिंसा और अशांति के कारण ग्रीन वैलियों, सुंदर झीलों, बर्फीले रेगिस्तानों, ऊंची पहाड़ी सड़कों और खूबसूरत मैदानों की ये भूमि बदहाली की जगह बनी नजर आ रही है. लगातार खराब हालत का प्रभाव यहां के व्यक्तिगत और सामूहिक जीवन तक और सामाजिक से लेकर आर्थिक मामलों तक पड़ रहा है. शायद ही यहां जीवन का कोई क्षेत्र हो, जो हिंसक हालात के नतीजे से प्रभावित नहीं हुआ हो. शिक्षा, स्वास्थ्य, व्यवसाय, विकास, सामाजिक, आर्थिक यानी हर क्षेत्र हालात के थपेड़ों का शिकार हो चुका है. अर्थशास्त्रियों का कहना है कि कृषि के बाद टूरिज्म इंडस्ट्री कश्मीर की अर्थव्यवस्था के लिए रीढ़ की हड्‌डी है. लेकिन ये इंडस्ट्री पिछले दो साल से पूरी तरह ठप है, जिसके कारण प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से लाखों लोग बेरोजगारी, बेकारी और बदहाली का जीवन गुजारने पर मजबूर हो रहे हैं.

पिछले साल जुलाई में मिलिटेंट कमांडर बुरहान वानी के मारे जाने के बाद पूरी घाटी भयानक हिंसा की चपेट में आ गई थी. ये वो समय था जब कश्मीर में टूरिज्म शीर्ष पर था. हालात खराब होने के फौरन बाद यहां मौजूद लाखों पर्यटकों ने अपना बोरिया बिस्तर बांध लिया. लगातार छह महीने तक कश्मीर में हड़ताल और कर्फ्यू के कारण टूरिज्म इंडस्ट्री जैसे पूरी तरह ही दम तोड़ बैठी. इस दौरान यहां के तमाम व्यावसायिक संस्थान बंद रहे, तमाम होटल और हाऊस बोट खाली रहे, नया साल यानी 2017 आया, लेकिन समय-समय पर हालात की खराबी के कारण इस साल भी पर्यटन क्षेत्र पूरी तरह प्रभावित रहा. साफ जाहिर है कि कश्मीर का मसला यहां की जनता का अमन-चैन और खुशहाली छीन चुका है. अज़ीम तुमान को विश्वास है कि जब तक कश्मीर के मसलों को हल करके यहां मुकम्मल शांति बहाल नहीं की जाती, तबतक यहां की टूरिज्म इंडस्ट्री ही नहीं, बल्कि जीवन के तमाम क्षेत्र बदहाली के शिकार रहेंगे. फिलहाल कश्मीर के मसले के हल की संभावनाएं दूर दूर तक कहीं नजर नहीं आ रही हैं.

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