पदकों के लिए फर्जी मुठभेड़, हथियार माफियाओं से मिलीभगत, अवैध धन के लिए जमीन घोटाला और तरक्की के लिए तिकड़म संवेदनशील पूर्वोत्तर राज्यों में तैनात सेना की इकाइयों की फितरत बन चुका है. वे चीन से क्या लड़ेंगे, जिन्हें खुद के विरोधाभासों से फुर्सत नहीं है. पूर्वोत्तर में तैनात सेना आयुध कोर (आर्मी ऑर्डनेंस कोर) की जो नई करतूतें सामने आई हैं, वे हैरत से भरने वाली हैं. आला अधिकारियों के भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ जिसने भी शिकायत की, उसे यहां पागल बनाने की आपराधिक कोशिशें हो रही हैं. अगर किसी स्वस्थ व्यक्ति को पागल होने की दशा में पहुंचाने या पागल साबित कराने की कोशिश की जाती है, तो भारतीय क़ानून इसे अत्यंत गंभीरता से लेता है. आपराधिक साज़िश करने वाले ऐसे व्यक्ति अथवा व्यक्तियों के ख़िलाफ़ भारतीय दंड विधान में सख्त सजा का प्रावधान है. लेकिन, भारतीय सेना के कुछ भ्रष्ट अधिकारियों में भारत के क़ानून का कोई खौफ नहीं है. 
p-1-hअसम में सिलचर के पास मासिमपुर में तैनात भारतीय थल सेना की 57 माउंटेन डिवीजन ऑर्डनेंस यूनिट में यही सब कुछ हो रहा है. इस यूनिट में बिल्कुल विद्रोह की स्थिति बन गई है. मध्यम दर्जे के अधिकारियों एवं सामान्य सैन्य कर्मियों में अपने आला अधिकारियों के भ्रष्ट कृत्यों और उनके द्वारा अराजकतापूर्ण माहौल बनाने के ख़िलाफ़ जबरदस्त गुस्सा है. यह नाराज़गी कब कौन-सी विपरीत शक्ल ले लेगी, कोई नहीं कह सकता. लेकिन, कुछ फौजी ही दबी जुबान से यह कहते हैं कि ऐसी ही स्थिति में आएदिन विभिन्न सैन्य यूनिटों में आपस में गोलियां चलती हैं और लोग मारे जाते हैं. मरने वालों में अधिकारी भी होते हैं और सामान्य फौजी भी. संवेदनशील पूर्वोत्तर में तैनात सेना की इकाइयों में बन रहे ऐसे असैनिक माहौल पर सेना मुख्यालय कोई ध्यान नहीं दे रहा है, जो कि आश्‍चर्यजनक है. सेना आयुध कोर मुख्यालय में भी इस मामले को लेकर किसी तरह की सुगबुगाहट नहीं दिख रही है, जबकि शिकायत ऑर्डनेंस हेड क्वार्टर तक पहुंच चुकी है.
57-एमडीओयू का दायित्व चीन से लगी अंतरराष्ट्रीय सीमा पर दिन-रात चौकसी में लगीं विभिन्न सैन्य इकाइयों को सैन्य आयुध समेत सारे साजो-सामान की सप्लाई करना है. इसकी गिनती युद्ध इकाई (फील्ड यूनिट) के रूप में होती है, इसलिए वार एकाउंटिंग सिस्टम के तहत इसका ऑडिट नहीं होता. इस विशेषाधिकार की आड़ में आला सैन्य अधिकारी खुलकर भ्रष्टाचार में लिप्त हैं. उनके काले कारनामों के ख़िलाफ़ जो भी अधिकारी या सैनिक मुंह खोलता है, उसका ट्रांसफर करके, उस पर हमले कराकर या पागल करार देकर उसे रास्ते से हटा दिया जाता है. सेना ऑर्डनेंस कोर को इसमें महारथ हासिल है. ग़ौरतलब है कि कुछ अर्सा पहले मध्य कमान के सेना आयुध कोर में तैनात मेजर आनंद कुमार को पागल साबित करने के बाद उन्हें अपमानित (कैशियरिंग) करके नौकरी से निकाला गया था. मेजर आनंद कुमार की गलती यही थी कि उन्होंने सेना के संवेदनशील आयुधों की बिक्री बाहरी एवं संदिग्ध लोगों के हाथों किए जाने का पर्दाफाश किया था, जिसमें तमाम आला अधिकारी लिप्त थे. वही करतूत अब फिर से दोहराई जा रही है.
ऐसा कई बार हुआ है कि आतंकवादियों एवं नक्सलियों के पास से सेना के आयुध और सेना द्वारा निर्मित सैन्य उपकरण बरामद हुए हैं. यहां तक कि उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश के बीहड़ों में सक्रिय डकैतों के पास से भी सेना के आयुध पकड़े जा चुके हैं. उत्तर प्रदेश के माफिया विधायक मुख्तार अंसारी के पास से तो सेना की लाइट मशीन गन तक पकड़ी जा चुकी है. सेना आयुध कोर के मेजर आनंद कुमार और उत्तर प्रदेश पुलिस के डीएसपी शैलेंद्र सिंह यही तो शिकायत कर रहे थे. मेजर आनंद को नौकरी से निकाल दिया गया और शैलेंद्र सिंह को डीएसपी की नौकरी से त्यागपत्र देना पड़ा. और अब, यही विरोध सूबेदार अजय कुमार सिंह या आयुध तकनीशियन नायक सलीम खान या ऑनररी कैप्टन पी एन तिवारी या हवलदार सुरेंद्र सिंह कर रहे हैं. फर्क यह है कि उस बार शिकायत करने वाला एक कमीशंड अधिकारी था और इस बार जूनियर कमीशंड या नॉन कमीशंड अधिकारी शिकायत कर रहे हैं. इनमें नायक सलीम खान को पागल साबित करने वाला फॉर्म-10 भर कर सेना के मानसिक रोग अस्पताल (160 मिलिट्री हॉस्पिटल) में जबरन भर्ती करा दिया गया. इसके पहले नायक सलीम खान की बुरी तरह पिटाई भी की गई. 160 मिलिट्री रिपोर्ट में इस बात की पुष्टि भी हुई कि कंपनी हवलदार मेजर एवं अन्य फौजियों के हाथों सलीम खान की बुरी तरह पिटाई कराई गई और उल्टा उसे पागल करार देकर अस्पताल में डंप कर दिया गया. इसी तरह सूबेदार अजय कुमार सिंह पर सेना के अंदर कातिलाना हमला कराकर उन्हें रास्ते से हटाने की कोशिश हुई, जबकि अधिकारियों के भ्रष्टाचार की शिकायत करने वाले अन्य लोगों का फौरन ट्रांसफर कर दिया गया. हमले की शिकायत करने पर सूबेदार अजय कुमार सिंह को टेम्प्रेरी ड्यूटी पर बाहर भेज दिया गया. पति की सुरक्षा के लिए चिंतित सूबेदार की पत्नी को डीजीओएस तक को पत्र लिखकर आगाह करना पड़ा.
खैर, सैन्य आयुधों और साजो-सामान की ग़ैर-क़ानूनी बिक्री के प्रसंग में हम आपको यह याद दिलाते चलें कि सेना में इस्तेमाल गोली के खाली खोखे तक की गिनती करके उन्हें सुरक्षित रखे जाने का सख्त प्रावधान है. फायरिंग प्रैक्टिस करने वाले जवानों से गोलियों के खोखे तक चुनवा लिए जाते हैं. लेकिन, आला अधिकारी संवेदनशील सैन्य साजो-सामान को खुले बाज़ार में बेच डालने में भी संकोच नहीं कर रहे हैं. असम के रंगा पहाड़ स्थित माउंटेन डिवीजन के एम्युनिशन प्वाइंट से भेजे गए खाली एम्युनिशन स्टील बॉक्स (एचटूए बॉक्स) को बाहरी लोगों के हाथों बेच डालने में 57 माउंटेन डिवीजन ऑर्डनेंस यूनिट के कमांडिंग अफसर कर्नल अरुणेंद्र ठाकुर ने कोई संकोच नहीं किया और उससे प्राप्त धन हड़प लिया. भारी तादाद में एचटूए बॉक्स बाहर बेचने का पर्दाफाश एक ट्रक के लिए गुपचुप जारी हुए गेट पास से हो गया. मेजर ए चौहान के हस्ताक्षर से जारी गेट पास 57 माउंटेन डिवीजन ऑर्डनेंस यूनिट में चल रहे गोरखधंधे का खुलासा करता है. सेना के एम्युनिशन बॉक्स को सिविल में बेचना सैन्य अपराध की श्रेणी में आता है, लेकिन सेना के सूत्र कहते हैं कि यह धंधा निर्बाध रूप से चल रहा है. इस मामले की शिकायत पर 117 फील्ड रेजिमेंट से आए जांच अधिकारियों ने डिफेंस सिक्योरिटी सर्विस के ऑनररी कैप्टन पी एन तिवारी या अन्य किसी भी संबंधित अधिकारी या कर्मचारी से कोई पूछताछ नहीं की. इस बीच सूबेदार पी ए खान समेत कई अधिकारियों एवं कर्मचारियों का अन्यत्र तबादला भी कर दिया गया.
इससे भी आश्‍चर्यजनक घटना तो तब हुई, जब नए नियुक्त हुए तक़रीबन डेढ़ सौ फायरमैनों (नॉन कॉम्बैटेंट) को रेगुलर आर्मी दिखला कर उन्हें साल भर से अधिक समय तक सेना का फ्री-राशन खिलाया जाता रहा. जबकि उन फायरमैनों से मांसाहार के लिए प्रति व्यक्ति75 रुपये और शाकाहार के लिए प्रति व्यक्ति 50 रुपये वसूले जाते रहे और वसूली की राशि हड़पी जाती रही. उल्लेखनीय है कि सेना में केवल युद्धक इकाइयों (कॉम्बैटेंट यूनिट्स) के अधिकारियों एवं जवानों को फ्री राशन की सुविधा उपलब्ध है. फायरमैनों को सेना का फ्री राशन दिलाने के लिए दस्तावेजों में गड़बड़ी की गई. फर्जी लास्ट राशन सर्टिफिकेट (एलआरसी) बनवाए गए, नाम बदले गए, सभी को नियमित सेना का जवान दिखाया गया और फ्री राशन के नाम पर सेना को एक बड़ा आर्थिक ऩुकसान पहुंचाया गया. सेना के उच्च एवं शीर्ष प्रशासन का हाल यह है कि यूनिट का परेड स्टेटमेंट या इश्यू राशन रजिस्टर तक चेक नहीं किया गया और न ही किसी एक फायरमैन को बुलाकर उसका बयान रिकॉर्ड करने की प्राथमिक औपचारिकता निभाने का काम किया गया. फर्जी दस्तावेज बनाकर सेना की सप्लाई से राशन ड्रॉ करना और उसे ग़ैर फौजियों को खिलाना अपराध है, लेकिन इस अपराध पर कोई अंकुश नहीं है. उल्लेखनीय है कि भारतीय सेना में एक फौजी को प्रतिदिन 620 ग्राम आटा/चावल, 480 ग्राम दूध, 90 ग्राम दाल, 185 ग्राम मीट/12 अंडे, 90 ग्राम तेल, 9 ग्राम चाय की पत्ती, 90 ग्राम फल और 220 ग्राम सब्जी मुफ्त देने का प्रावधान है.
सेना के उच्च एवं शीर्ष कमान के पास उक्त सारी शिकायतें की गईं. यूनिट लाइन के तीन-चार तालाबों की मछलियों का सालाना ठेका मसकंदर अली ठेकेदार को देकर उसका पैसा खा जाने से लेकर स्टोर में फर्जी अभाव दिखाकर खुले बाज़ार से ऊंची क़ीमतों पर सामान खरीदने तक की जानकारियां ऊपर दी गईं. लेकिन, कोई ठोस नतीजा नहीं निकला. लोकल परचेज के नाम पर बाज़ार में हज़ारों रुपये का भुगतान दिखा कर पैसा हड़प लिया गया, लेकिन माल स्टोर में आया ही नहीं. इसके बावजूद स्टोर इंचार्ज हवलदार सुरेंद्र सिंह को जबरन स्टॉक टेकओवर करने का दबाव डाला गया. इसकी शिकायत करने पर उचित कार्रवाई करने की बजाय सुरेंद्र सिंह का ही तबादला कर दिया गया. सेना के सूत्रों का कहना है कि 57 माउंटेन डिवीजन की आयुध कोर यूनिट के स्टोर में ली गई तलाशी में 12 ट्रक अतिरिक्त माल पड़ा पाया गया, जिसे वापस करने का आदेश हुआ. इस आदेश पर अन्य फौजी यूनिटों से उनकी ज़रूरत पूछे बगैर सामान वापस कर दिया गया, लेकिन कुछ ही दिनों के बाद उसी सामान की कमी दिखाकर उसे खुले बाज़ार से ऊंची क़ीमत पर लोकल परचेज कर लिया गया. स्टोर में पड़ा अतिरिक्त सामान अन्य यूनिटों से उनकी मांग पूछे बगैर वापस भेजकर उसी सामान को खुले बाज़ार से खरीदने जैसे कई गंभीर घोटाले हो रहे हैं, लेकिन कोई देखने-सुनने वाला नहीं. केवल फौरी औपचारिकताएं हो रही हैं. घोटालों की शिकायत पर सेना ने असम के डिंगजॉन्ग स्थित 117 इंफैंट्री ब्रिगेड के ब्रिगेडियर विकास रैना के नेतृत्व में कोर्ट ऑफ इंक्वायरी गठित की. जांच कमेटी में दो कर्नल भी शामिल किए गए, लेकिन जांच कमेटी ने मूल शिकायतकर्ता सूबेदार अजय कुमार सिंह का ही बयान दर्ज नहीं किया. विडंबना यह है कि जांच के लिए ही सूबेदार को 57 माउंटेन डिवीजन मुख्यालय के आदेश (संख्या-57387/3/ए) के तहत अगरतला स्थित 301 लाइट इंफैंट्री रेजिमेंट से मासिमपुर भेजा गया था. सूबेदार को 9 से 16 मई तक मासिमपुर में रोक कर रखा गया, लेकिन उनका बयान दर्ज नहीं किया गया. जांच टीम ने केवल हवलदार सुरेंद्र सिंह का बयान दर्ज किया. इन सात दिनों में जांच टीम मौज-मस्ती करती रही और उपकृत होती रही. सूबेदार अजय कुमार सिंह ने कोर्ट ऑफ इंक्वायरी के प्रमुख ब्रिगेडियर विकास रैना को रजिस्टर्ड पोस्ट से बयान भेजा, फिर भी उसे लेने से इंकार कर दिया गया. जबकि जांच टीम को ऐसा ग़ैर-क़ानूनी कृत्य नहीं करना चाहिए था. मजाकिया तथ्य यह है कि मूल शिकायतकर्ता का बयान दर्ज किए बगैर ही कोर्ट ऑफ इंक्वायरी ख़त्म भी हो गई और अब समरी ऑफ एविडेंस की तैयारी हो रही है. इसके पहले भी सूबेदार अजय कुमार सिंह की शिकायत की जांच के लिए 117वीं फील्ड रेजिमेंट के कमांडिग अफसर कर्नल पी एस विध्वंस को आदेश दिया गया था, लेकिन उस जांच का भी कोई नतीजा नहीं निकला. और, जब ब्रिगेडियर स्तर के शीर्ष अधिकारी विकास रैना को जांच का दायित्व सौंपा गया, तब भी मामला ढाक के तीन पात ही रहा. 57 माउंटेन डिवीजन की सेना आयुध कोर यूनिट में चल रहे घोटाले में कमांडिंग अफसर कर्नल अरुणेंद्र ठाकुर और सूबेदार मेजर मदन लाल की सीधी भूमिका की शिकायत की गई है. जांच निष्पक्षता से होती, तो पूरा नेक्सस सामने आ जाता.
आपको याद ही होगा कि फौजियों को एक्सपायर्ड खाद्य सामग्री सप्लाई किए जाने के मामले में सेना सर्विस कोर के प्रमुख लेफ्टिनेंट जनरल एस के साहनी का कुछ ही अर्सा पहले कोर्ट मार्शल करके जेल भेजा जा चुका है. सेना में खाद्य घोटाले के कुछ अन्य आरोप भी जनरल साहनी पर प्रमाणित हुए थे. अब तक लेफ्टिनेंट जनरल स्तर के दो ही अधिकारियों को इस तरह सजा मिली है. सुकना भूमि घोटाले में लेफ्टिनेंट जनरल पी के रथ को भी कोर्ट मार्शल की कार्रवाई झेलनी और सजा भुगतनी पड़ी. सुकना घोटाले में ही लेफ्टिनेंट जनरल अवधेश प्रकाश को स़िर्फ जबरन स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति लेने भर से ही मुक्ति मिल गई थी.
इसके पहले सेना आयुध फैक्ट्री बोर्ड के डायरेक्टर जनरल सुदीप्त घोष एवं तीन अन्य लोगों को भी सीबीआई रंगे हाथों पकड़ चुकी है. डीजी ने विदेशी कंपनियों के साथ मिलीभगत करके कई सैन्य सौदे तय कराए थे. ऑर्डनेंस फैक्ट्री बोर्ड का मुख्यालय कोलकाता में है और यहीं से सेना के आयुध बनाने वाली 40 फैक्ट्रियां संचालित होती हैं. हथियार डीलर सुधीर चौधरी एवं उसके गुर्गे प्रदीप राणा ने मिलकर जमीन से आकाश में मार करने वाली मध्यम रेंज की मिसाइल बनाने की 10 हज़ार करोड़ की डील ओएफबी के डीजी से साठगांठ करके की थी. यह डील इजरायल एयरोस्पेस इंडस्ट्रीज से हुई थी, जिसकी एवज में छह सौ करोड़ का कमीशन लिया गया था. इसी डील के तहत बिहार के नालंदा में 12 सौ करोड़ की लागत से ऑर्डनेंस फैक्ट्री का लगना तय हुआ था, जिसमें बोफोर्स तोप के गोले एवं अन्य आयुध बनाए जाते. बाद में भेद खुलने पर सरकार ने इजरायली प्रतिष्ठान समेत क़रीब दर्जन भर ऐसी कंपनियों से करार रद्द कर दिए थे. इसी तरह सौ करोड़ के रक्षा सौदा घोटाले में एडीजी (टेक्निकल स्टोर) मेजर जनरल अनिल स्वरूप का नाम आ चुका है. यह घोटाला उजागर होने के बाद मेजर जनरल अनिल स्वरूप नोएडा के सेक्टर 44 स्थित अपने आवास से रहस्यमय तरीके से गायब हो गए थे. बाद में यह रहस्य भी खुला कि सेना ने खुद ही मेजर जनरल अनिल स्वरूप को अगवा कर रखा था. सेना कहती है कि उन्हें पूछताछ के लिए ले जाया गया था, जबकि सेना के सूत्र कहते हैं कि रक्षा सौदे में फंसे शीर्ष अधिकारियों को जाल से बाहर निकालने का उपक्रम हो रहा था.

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