samajwadi partyमुलायम घराने की कलह पर सुलह के प्रयास की कोशिश का सार्वजनिक मंच साबित हुआ समाजवादी पार्टी का स्थापना दिवस. समारोह में न कहीं किसी राजनीतिक दल की रजत जयंती का सारगर्भित आयोजन दिखा, न कहीं कोई महागठबंधन की गंभीरता शक्ल लेती दिखी. समाजवादी पार्टी के रजत जयंती समारोह का मंच कलह के प्रपंच से ओतप्रोत दिखा. एक तरफ प्रदेश अध्यक्ष शिवपाल यादव खम ठोकते रहे, तो दूसरी तरफ प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने तलवार भांजते रहने की मुनादी की. मंच पर बैठे सारे पुराने दिग्गज समाजवादी नेता इस कलह के रजत-जयंतीकरण के चश्मदीद बने रहे और ‘पैचअप’ की नाकाम कोशिश करते रहे. पार्टी में अर्से से जारी कलह के बावजूद कुछ लोगों को उम्मीद थी कि समाजवादी पार्टी के रजत जयंती समारोह में कुछ सार्थक होगा. महागठबंधन को लेकर कुछ ठोस निर्णय होगा, लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ.

सपा के समारोह में शरीक रहे पूर्व प्रधानमंत्री एचडी देवेगौड़ा से लेकर जदयू के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष शरद यादव तक ने कहा कि महागठबंधन को लेकर कोई बात नहीं हुई. सपा के रजत जयंती समारोह में शरीक होने जितने भी नेता आए थे, उनमें से अधिकांश लोग अखिलेश यादव की तरफ ही अपना रुझान दिखाते रहे और अखिलेश से हाथ मिला कर या हाथ खड़ा कर गौरवान्वित महसूस करते रहे. लालू यादव रहे हों या देवेगौड़ा, सबने मुलायम के बाद अखिलेश को ही अधिक तवज्जो दिया. शिवपाल उनका महत्व पाने में दूसरी पंक्ति में रहे.

पूरा प्रदेश और यह भी कह सकते हैं कि पूरा देश समाजवादी पार्टी के स्थापना दिवस को दो आयोजनों की कसौटी पर रख कर देख रहा था. एक मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की विकास यात्रा और दूसरा शिवपाल का रजत जयंती कार्यक्रम. दोनों कार्यक्रमों के बीच स्पष्ट विभाजक रेखा खिंच गई थी. अखिलेश ने विकास यात्रा से शिवपाल और उनकी टीम को बाहर रखा तो रजत जयंती कार्यक्रम से शिवपाल ने अखिलेश और उनकी टीम को बाहर रखा. दोनों लोग समाजवादी पार्टी को अपनी-अपनी ताकत दिखा रहे थे.

विकास यात्रा में जुटी भीड़ रजत जयंती समारोह में जुटी भीड़ से भिन्न थी, पर अधिक जुझारू और प्रभावकारी दिख रही थी. शिवपाल के आयोजन में जितने भी वरिष्ठ नेता बाहर-बाहर से आए थे, वे सब अखिलेश की उपेक्षा नहीं कर पाए. सारे लोग अखिलेश यादव को ‘गुड-ह्यूमर’ में रखते हुए संधि का प्रयास ऐसे कर रहे थे कि जैसे पार्टी के लिए अखिलेश ही अधिक जरूरी हों. राजनीतिक प्रेक्षकों का भी मानना है कि यदि शिवपाल का महत्व अधिक समझा जाता तो अखिलेश की राजनीतिक-उपेक्षा कर दी जाती. लेकिन ऐसा नहीं हुआ.

हालांकि शिवपाल को इसकी उम्मीद थी, और ऐसा नहीं होने से उनकी हताशा सार्वजनिक तौर पर अभिव्यक्त भी हुई. इस खीझ में उनके मुंह से ऐसी भी बातें निकल आईं, जिसे राजनीतिक तौर पर अगंभीर वक्तव्य कहा जा सकता है. शिवपाल ने कहा, ‘कुछ लोगों को पद भाग्य से मिल जाता है, कुछ लोगों को मेहनत से मिलता है और कुछ लोगों को विरासत में मिल जाता है. वहीं, कुछ लोगों को जिंदगी भर काम करने के बाद भी कुछ नहीं मिलता. आज भी हम जानते हैं कि इस सरकार में बहुत लोग उपेक्षित हैं और कुछ लोगों ने जरा सी चापलूसी करके सत्ता का पूरा मजा ले लिया. जिन्होंने जान दी, उन्हें कुछ नहीं मिला.’

बहरहाल, हम जैसे-जैसे खबर के विस्तार में जाएंगे, समाजवादी पार्टी की जमीनी असलियत का खुद ब खुद पता चलता जाएगा. समाजवादी पार्टी के 25वें सालाना स्थापना दिवस समारोह के आयोजन से ही हम बात शुरू करते हैं. इस आयोजन में समारोह का हिस्सा सिर्फ इतना ही था कि इसमें देश के पूर्व प्रधानमंत्री एचडी देवेगौड़ा, राष्ट्रीय जनता दल प्रमुख लालू प्रसाद यादव, राष्ट्रीय लोक दल प्रमुख चौधरी अजित सिंह, जनता दल (यूनाइटेड) के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष शरद यादव, इंडियन नेशनल लोक दल के नेता अभय चौटाला, वरिष्ठ कानूनविद् एवं राज्यसभा सदस्य राम जेठमलानी, वरिष्ठ पत्रकार संतोष भारतीय जैसे कई गण्यमान्य अतिथि मौजूद हुए, जिनका समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव और प्रदेश अध्यक्ष शिवपाल यादव ने स्वागत किया. इनमें से कई नेताओं ने भाषण भी दिए, लेकिन किसी भी भाषण का कोई राजनीतिक अर्थ नहीं निकला.

हां, नेताओं ने इतना शिष्टाचार जरूर दिखाया कि मुलायम को सबने नेता माना. मुलायम की वरिष्ठता के नाते यह शिष्टाचार का तकाजा था. महागठबंधन के बारे में बाहरी शोर-शराबा भले ही होता रहा, लेकिन उसकी कोई औपचारिकता समारोह में नहीं दिखी. संभावित महागठबंध के महत्वपूर्ण घटक और कारक जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष व बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की आमंत्रण के बावजूद गैरमौजूदगी और कांग्रेस को अनामंत्रण, दूसरी ही राजनीतिक दिशा का संकेत दे रहा है.

सपा के रजत जयंती समारोह का संयोजन शिवपाल ने संभाल रखा था, सो अतिथियों का स्वागत उन्हें ही करना था. समारोह में आए नेताओं का स्वागत करते हुए शिवपाल अनायास या सप्रयास फट पड़े और समाजवादी पार्टी का कलह-पुराण रजत जयंती समारोह को समेट ले गया. शिवपाल ने अपने स्वागत भाषण में अखिलेश यादव पर जमकर वार शुरू कर दिया. शिवपाल बोले, ‘मुझे मुख्यमंत्री का पद नहीं चाहिए.  जरूरत पड़ने पर मैं अपना खून भी देने को तैयार हूं. मेरा कितना भी अपमान कर लो, उफ नहीं करूंगा. खून मांगोगे वह भी दे दूंगा.’

मंच पर शिवपाल का यह वक्तव्य बिल्कुल ही अनपेक्षित था, लेकिन शिवपाल के समर्थक नेताओं का कहना है कि शिवपाल के लिए वही सबसे माकूल समय था. शिवपाल सिंह ने उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव का मंच से स्वागत जरूर किया पर कहा कि पार्टी को यहां तक लाने में पार्टी के मुखिया मुलायम सिंह यादव का पूरा जीवन खप गया. मैं भी उनके साथ लगा रहा. इस दौरान मुझे काफी कुछ झेलना भी पड़ा. मेरा जितना भी अपमान कर लेना, चाहे बर्खास्त कर लेना, लेकिन मुझे कभी भी मुख्यमंत्री नहीं बनना.

शिवपाल ने कहा कि बतौर मंत्री हमने अखिलेश का बहुत सहयोग किया. अभी भी हमारी क्षमता काफी बड़ी है. आप जितना त्याग चाहोगे उतना देंगे, खून भी देंगे. मुख्यमंत्री अखिलेश ने बहुत काम किया. हमने भी उनके साथ मंत्री के तौर पर काफी काम किया. इससे पहले भी तीन महीने के काम को खत्म करने में लोगों ने कई वर्ष लगा दिए. हमने प्रदेश के 25 सहकारी बैंक बंद होने से बचाए. प्रदेश में 36 वर्ष से राजस्व संहिता लागू नहीं हो पा रही थी. प्रदेश के कई अधिकारियों ने बहुत रोड़े अटकाए, इसके बाद भी हमने लागू करा दिया. मैंने अपने विभागों में बहुत काम किया. सिंचाई और राजस्व विभाग में बहुत काम किया.

शिवपाल ने अखिलेश पर सीधे-सीधे निशाना साधा. कहा कि कुछ लोगों को पद भाग्य से मिल जाता है, कुछ लोगों को मेहनत से मिलता है और कुछ लोगों को विरासत में मिल जाता है. कुछ लोगों को जिंदगी भर काम करने के बाद भी कुछ नहीं मिलता. समाजवादी सरकार में बहुत लोग उपेक्षित हैं और कुछ लोगों ने जरा सी चापलूसी करके सत्ता का पूरा मजा ले लिया, जिन्होंने जान दे दी, उन्हें कुछ नहीं मिला. शिवपाल यादव ने फिर यह कहते हुए बात संभाली कि वे नेताजी का अपमान बर्दाश्त नहीं कर सकते. उन्होंने कहा कि पार्टी में कुछ घुसपैठिए घुस गए हैं, उनसे सावधान रहना होगा. शिवपाल का स्पष्ट संकेत था कि अखिलेश के समर्थक पार्टी में घुसपैठिए हैं.

इस पर मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने कहा कि नेताजी ने यह पार्टी बहुत संघर्ष और खून-पसीना बहाकर बनाई है, मैं उन्हें धन्यवाद करता हूं. हमने काफी लंबा रास्ता तय किया है और अब हम समाजवादी पार्टी को नए स्तर पर ले जाएंगे, हमें साथ मिलकर यह काम करना होगा. किसी को परीक्षा देने की जरूरत नहीं है, किसी को परीक्षा देनी है तो मैं तैयार हूं. अखिलेश ने डॉ. लोहिया का संदर्भ लेते हुए कहा, ‘लोहिया जी ने कहा था कि लोग सुनेंगे जरूर लेकिन मेरे मरने के बाद. मैं इसे दूसरे शब्दों में कह रहा हूं कि लोग सुनेंगे जरूर लेकिन समाजवादी पार्टी के बिगड़ने के बाद.’

संकेतों में अपना स्टैंड साफ करते हुए अखिलेश ने कहा कि आप लोग मुझे तलवार भेंट करते हो लेकिन चाहते हो कि तलवार नहीं चलाऊं. विचारधारा को बचाने के लिए तलवार चलाना भी जरूरी होता है. समारोह में गायत्री प्रजापति के हाथों मुलायम को गदा और शिवपाल और अखिलेश को तलवारें भेंट की गई थीं. भेंट में मिली तलवार को ही संकेत बना कर अखिलेश ने अपनी बात कह दी.

अखिलेश ने कैबिनेट मंत्री गायत्री प्रजापति का नाम लेते हुए कहा, ‘प्रजापति हमें भेंट में तलवार देते हो और कहते हो कि मैं तलवार न चलाऊं, ऐसा कैसे हो सकता है.’ अखिलेश ने संकेतों में बताया कि वे मुख्यमंत्री के अधिकारों का इस्तेमाल करेंगे. क्योंकि शिवपाल भी अध्यक्ष के अधिकार का पूरा इस्तेमाल कर रहे हैं. अखिलेश ने भरोसा जताया कि समाजवादी पार्टी को आगामी विधानसभा चुनावों में जीत हासिल होगी और सपा की ही सरकार बनेगी लेकिन हमें एकजुट होकर रहना होगा.

सुलह का प्रयास ही करते रह गए लालू

समाजवादी पार्टी के रजत जयंती समारोह में अतिथि बन कर आए राष्ट्रीय जनता दल सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव रिश्तेदार के रूप में अखिलेश यादव और शिवपाल यादव के बीच सुलह कराने की कोशिश ही करते रह गए. इसके लिए लालू ने रिश्तेदारी का हवाला दिया, फिर बिरादरी का भाव जताया, अखिलेश से शिवपाल का पैर छुवाया, अखिलेश के सिर पर शिवपाल का हाथ रखवाया, इसके बावजूद कोई सकारात्मक नतीजा नहीं निकला. शिवपाल ने मंच से ही अखिलेश को खूब कोसा और अखिलेश ने उसका खुला प्रतिकार किया.

यह सब लालू के सामने ही हुआ. इसके पहले लालू बोल चुके थे कि कोई लड़ाई-झगड़ा नहीं है. लालू ने कहा कि काफी दिन से सुन रहा हूं कि शिवपाल यादव और अखिलेश यादव में तनातनी चल रही है. मुझे तो ऐसा कुछ भी नहीं लगा. शिवपाल बाबू तथा अखिलेश के संबंध तो बहुत मधुर हैं. सभी लोग मिलकर समाजवादी पार्टी को एक बार फिर से उत्तर प्रदेश की सत्ता दिलाएंगे. लालू ने ‘पुनः होने वाले मुख्यमंत्री’ कह कर अखिलेश को खुश करने की कोशिश भी की. फिर यह भी कहा कि हमारे समाज में कोई लड़ता नहीं है, कुछ लोग अपना उल्लू सीधा कर रहे हैं. लालू ने अखिलेश से कहा, ‘आप जो रथयात्रा लेकर निकले हैं, बड़ों का आशीर्वाद लेकर उसे सफल बनाइये.’ 

सबने कहा मुलायम सर्वमान्य नेता 

नेताजी ने सरकार को फिर खींचा

समाजवादी पार्टी के रजत जयंती समारोह में भी मुलायम यह कहने से नहीं चूके कि सपा केवल सत्ता में आने और जमीनों पर कब्जा करने के लिए नहीं बनी है. मुलायम यह लगातार ही कहते रहे हैं कि अखिलेश सरकार के कई मंत्री और कई सपा नेता जमीनों पर अवैध कब्जा कराने के धंधे में लिप्त हैं. हालांकि मुलायम ने यह बात भी कही कि यूपी सरकार ने अपने कार्यकाल में प्रभावशाली काम किया है.

फिर यह भी बोलने लगे कि आज सबसे ज्यादा जुल्म मुसलमानों के साथ हो रहा है. सपा सरकार में भी हो रहा है. मैं अखिलेश यादव से कहता हूं कि वह प्रशासन को आदेश देकर ऐसा होने से रोकें. उन्होंने केंद्र की भाजपा सरकार पर निशाना साधते हुए कहा कि देश की सीमाएं सुरक्षित नहीं हैं. साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि शहीदों के नाम पर राजनीति नहीं होनी चाहिए.

मुलायम ने पार्टी कार्यकर्ताओं से कहा कि वे संकल्प लें कि न अन्याय सहेंगे और न होने देंगे. मुलायम ने भूमि और अन्य सम्पतियों पर कब्जा करने की प्रवृत्ति को लेकर भी कार्यकर्ताओं को फटकारा और कहा कि क्या सपा ने इसीलिए सरकार बनाई थी कि यहां कब्जा हो जाए, वहां कब्जा हो जाए. जनता निराश हो रही है, सपाइयों को जनता के बारे में सोचना होगा. जो नारा देते हैं, उसका पालन करना चाहिए. पूर्व प्रधानमंत्री एचडी देवेगौड़ा ने  मुलायम के प्रति पूरी निष्ठा जताई और कहा कि साम्प्रदायिक शक्तियों से मुकाबले के लिए हमें मुलायम के नेतृत्व में लड़ाई लड़नी है. में 1997 में छूटी गाड़ी हमें दोबारा पकड़नी है.

देवेगौड़ा ने यह भी कहा कि साम्प्रदायिक ताकतों से लड़ने में सपा ही ‘लैंडमार्क पार्टी’ है. साम्प्रदायिक ताकतों से लड़ने के लिए सेकुलर लोगों को साथ आना ही होगा. देवेगौड़ा ने अपने दस माह के प्रधानमंत्रित्वकाल को पड़ोसियों के साथ देश का सर्वोत्तम समय बताया और कहा कि मेरे प्रधानंमत्री तथा मुलायम सिंह यादव के रक्षामंत्री के कार्यकाल के दौरान देश की सीमा बेहद सुरक्षित थी. इस दौरान कश्मीर में कोई घटना भी नहीं घटी और न वहां पर धारा 144 तक लगाने की जरूरत पड़ी.

देवेगौड़ा ने कहा कि अगर समाजवादी पार्टी उत्तर प्रदेश में मजबूत रहेगी तो देश में विपक्षी एकता भी मजबूत होगी. हम लोग मुलायम सिंह यादव के नेतृत्व में धर्मनिरपेक्ष ताकतों को मजबूत करने का काम करेंगे. राष्ट्रीय लोक दल के प्रमुख चौधरी अजित सिंह ने कहा कि भाजपा को सत्ता से दूर रखना है, तो मुलायम को क्षेत्रीय दलों को साथ लाकर लड़ना होगा. हमें 2019 के लिए तैयार रहना है. रालोद अध्यक्ष ने कहा कि मुलायम सिंह ने जितनी मेहनत सपा बनाने में की, उतनी ही मेहनत उन्होंने लोकदल को खड़ा करने में भी की थी.

चौधरी ने समाजवादी पार्टी के मुखिया मुलायम सिंह यादव को अपना सर्वमान्य नेता माना और कहा कि देश और प्रदेश में अब गठबंधन बनाना बेहद जरूरी है. अब हमारी निगाह 2019 के लोकसभा चुनाव पर है, लेकिन हमको अभी भी एकजुट होकर भारतीय जनता पार्टी को उत्तर प्रदेश में लाने से रोकना होगा. उन्होंने कहा कि देश में सरकार बदली है, अब मुलायम सिंह यादव ही एक बार फिर से अगुवाई करें, जिससे कि हम लोग भाजपा को उत्तर प्रदेश में आने से वंचित कर दें.

जदयू के पूर्व अध्यक्ष शरद यादव ने मुलायम सिंह को इंगित करते हुए कहा कि इन पर इतिहास बदलने की जिम्मेदारी है. पूरे देश की नजर यूपी पर है. शरद ने कहा कि मुलायम में समाजवादियों और चौधरी चरणसिंहवादियों को एकजुट करने की काबिलियत है. इनेलो प्रमुख अभय चौटाला ने भी महागठबंधन को जरूरी बताया. राजद प्रमुख लालू प्रसाद यादव ने कहा कि बैठते-बैठते ही गठबंधन बनता है. मुलायम की जिम्मेदारी है कि सबको समझाएं. नेताजी सब जानते हैं, बढ़िया इलाज कर देंगे. 

पर महागठबंधन की बात आगे नहीं बढ़ी

समाजवादी पार्टी के रजत जयंती समारोह के मंच से सभी नेताओं ने महागठबंधन की जरूरत पर जोर दिया, लेकिन मंच के नीचे असली राजनीतिक जमीन पर महागठबंधन की बात आगे नहीं बढ़ी. पूर्व प्रधानमंत्री और जनता दल (एस) के नेता एचडी देवगौड़ा से जब अलग से महागठबंधन की संभावना के बारे में सवाल किया गया, तो उन्होंने कहा कि उत्तर प्रदेश, गुजरात और पंजाब के चुनावों के बाद ऐसे हालात शायद पैदा हों.

फिलहाल हम यहां सपा के आमंत्रण पर रजत जयंती समारोह में हिस्सा लेने आए हैं. अभी गठबंधन पर कोई बात नहीं. जदयू नेता शरद यादव ने कहा कि सपा से पुराने रिश्ते हैं इसलिए वे समारोह में हिस्सा लेने आए हैं. उन्होंने कहा कि गठबंधन को लेकर अभी कोई बातचीत नहीं हुई है. इस बारे में मुलायम सिंह यादव बेहतर बता सकते हैं. शरद यादव ने कहा कि महागठबंधन के बारे में मुलायम से पूछें. महागठबंधन को लेकर अभी कोई बात नहीं हुई है. आगे क्या होगा देखते हैं. 

ये सब तो रहे, पर वो कहां रहे?

रजत जयंती समारोह में जुटी भीड़ मंच पर मौजूद नेताओं को देख कर आपस में ही यह सवाल दोहराती रही कि ‘ये सब तो हैं, पर वो कहां हैं?’ लोगों का सवाल अमर सिंह, प्रो. रामगोपाल यादव, आजम खान और अखिलेश के साथ हमेशा छाया की तरह रहने वाले राजेंद्र चौधरी की गैर-मौजूदगी को लेकर था. रजत जयंती मंच पर राज्यसभा सदस्य बेनी प्रसाद वर्मा, रेवती रमण सिंह, कैबिनेट मंत्री बलराम यादव, विधानसभा अध्यक्ष माता प्रसाद पांडेय, सपा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष किरनमय नंदा, सांसद डिम्पल यादव, धर्मेन्द्र यादव, अबू आजमी समेत कई अन्य नेता मौजूद थे, लेकिन वे नहीं थे, जिन्हें लोग मंच पर देखना चाहते थे. लोगों को वह धक्का भी याद रहेगा जो शिवपाल ने अखिलेश समर्थक मंत्री को लगाया. मंच पर बोल रहे अखिलेश समर्थक जावेद आबदी को शिवपाल यादव ने धक्का देकर हटा दिया. शिवपाल का यह धक्का सुलह के प्रयासों को धक्का था. 

गठबंधन नहीं करेगी सपा : मुलायम

समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव ने सपा के रजत जयंती समारोह के पांच दिन बाद ही 10 नवम्बर को प्रेस कॉन्फ्रेंस करके यह बिल्कुल स्पष्ट कर दिया कि समाजवादी पार्टी आने वाले विधानसभा चुनावों में कोई गठबंधन नहीं करेगी. मुलायम ने कहा कि किसी भी दल के लिए सिर्फ सपा में विलय का रास्ता ही खुला है. सपा मुखिया ने यह ऐलान किया कि उत्तर प्रदेश राज्य विधानसभा के चुनाव में उनकी पार्टी किसी भी दल के साथ गठबंधन नही करेगी. मुलायम बोले कि पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी में पहले लिए गए फैसले पर पार्टी आज भी अडिग है. महागठबंधन से अलग होने के फैसले में सपा के राष्ट्रीय महासचिव प्रो. रामगोपाल यादव की अहम भूमिका रही थी. लिहाजा, यह माना जाने लगा है कि रामगोपाल की पार्टी में शीघ्र ही वापसी होगी, जिन्हें अभी हाल ही पार्टी से निष्कासित कर दिया गया था. उधर, अखिलेश के जो समर्थक शिवपाल द्वारा पार्टी से निकाले गए थे, उनकी भी वापसी की पहल हो रही है, क्योंकि शिवपाल की मंत्रिमंडल में वापसी भी तभी होगी, जब अखिलेश समर्थकों की पार्टी में वापसी होगी. 

पीके से मुलाक़ात के मायने और कांग्रेस का संशय

कांग्रेस के योजनाकार प्रशांत किशोर ने विकास यात्रा और रजत जयंती समारोह के दरम्यान मुख्यमंत्री अखिलेश यादव से मिलने की कोशिश की थी, लेकिन उस समय मुलाकात नहीं हो पाई. जबकि प्रशांत किशोर की सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव से मुलाकात हो चुकी थी. प्रशांत किशोर और अखिलेश की मुलाकात के बाद गठबंधन और कांग्रेस की रणनीतियों को लेकर चर्चा ने रफ्तार पकड़ी. प्रशांत और अखिलेश की बातचीत करीब तीन घंटे चली. बातचीत का प्रसंग जाहिर तो नहीं हुआ, लेकिन इतना जरूर पता चला कि कांग्रेस के साथ किसी बृहत्तर समीकरण के निर्माण को लेकर दोनों में बातचीत हुई. हालांकि कांग्रेस इस मुलाकात को प्रशांत किशोर की निजी मुलाकात बताती है.

बहरहाल, विधानसभा चुनाव के पहले महागठबंधन के प्रयास के रास्ते में कई अड़चनें हैं. सीटों के बंटवारे को लेकर आम सहमति कायम होना मुश्किल है. सपा कहती है कि बिहार चुनाव में जदयू और कांग्रेस ने मिलकर सीटों का बंटवारा कर लिया था और सपा को अंगूठा दिखा दिया था. इसी वजह से सपा महागठबंधन से अलग हो गई थी. लेकिन यूपी चुनाव में वह ऐसा नहीं होने देगी. सपा अपने सहयोगी दलों के लिए ज्यादा से ज्यादा 125 सीटें ही छोड़ेगी. कांग्रेस, रालोद, जदयू व साथ आने वाले अन्य दलों को भी इसी में बंटवारा करना होगा. कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता ने कहा कि इस संभावित बंटवारे में कांग्रेस को कम सीटें मिल पाएंगी, जो कांग्रेस को मंजूर नहीं होगी. कांग्रेस का कहना है कि कम से कम 125 सीट मिलने पर ही वह महागठबंधन को लेकर बात कर सकती है. 

अखिलेश ने पक्का करा लिया अपना चुनावी चेहरा

अखिलेश यादव ने यह पक्का कर लिया कि 2017 के विधानसभा चुनाव में मुख्यमंत्री का चेहरा वही होंगे. समाजवादी पार्टी की रजत जयंती के पहले अखिलेश यादव की विकास यात्रा इस बात की सनद है. अखिलेश को सपा के प्रदेश अध्यक्ष पद से हटाकर और चुनाव के बाद संसदीय बोर्ड द्वारा विधानमंडल दल का नेता चुने जाने की बात कह कर मुलायम ने जो पानी फेरने की कोशिश की थी, अखिलेश ने अपने विद्रोही तेवर से उसे अपने पक्ष में कर लिया.

परिस्थितियां इस तरह बदलीं कि जिस विकास यात्रा को पार्टी से विद्रोह की संकेत यात्रा बताया जा रहा था, उस कार्यक्रम को पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष हरी झंडी दिखा रहे थे. उनके बगल में सपा के प्रदेश अध्यक्ष शिवपाल यादव भी खड़े थे. पार्टी विरोधी गतिविधियों के आरोप में जिन अखिलेश-समर्थक नेताओं को निष्कासित कर दिया गया था, वे सारे नेता बाकायदा विकास-यात्रा मंच पर मौजूद रहे. मुलायम और शिवपाल समेत सारे नेता युवाओं का ही आह्वान करते दिखे.

छात्रसभा के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष व सरधना से सपा प्रत्याशी रहे अतुल प्रधान विकास यात्रा में सक्रिय दिखे, जिन्हें शिवपाल यादव ने प्रदेश अध्यक्ष बनते ही निष्कासित कर किसी दूसरे को प्रत्याशी घोषित कर दिया था. लोहिया वाहिनी के मुहम्मद एहबाद, युवजन सभा के ब्रजेश यादव, छात्रसभा के दिग्विजय और मुलायम सिंह यादव यूथ ब्रिगेड के प्रदीप तिवारी भी समारोह में मौजूद थे, जिन्हें शिवपाल ने निष्कासित कर दिया था. शिवपाल ने यह फरमान भी जारी किया था कि निष्कासित लोग पार्टी के किसी भी समारोह में शरीक न हों. लेकिन अखिलेश की विकास रथयात्रा उन सारे निष्कासित नेताओं के कंधे पर चली जो अखिलेश-समर्थक होने के कारण शिवपाल के शिकार बने.

अखिलेश ने अपने संबोधन में कहा भी कि यह विकास-यात्रा ही हमारी सरकार बनवाएगी. अखिलेश ने कहा कि यूपी को विकास के पथ पर ले जाने और जनता की भलाई के लिए पिछले साढ़े चार साल में सरकार ने कई ऐतिहासिक काम किए हैं. इन्हीं की बदौलत प्रदेश में एक बार फिर सपा की सरकार बनेगी. आगरा-लखनऊ एक्सप्रेस वे, लखनऊ मेट्रो, समाजवादी पेंशन, लैपटॉप वितरण सहित कई योजनाएं चलाई गईं, जिसका सीधा लाभ जनता को मिला है. मुख्यमंत्री ने कहा कि सपा की सरकार ने शहरों को गांवों से जोड़ने का काम किया है. जिला मुख्यालयों को भी गांवों से जोड़ने का काम किया गया है. जनता को बिजली मुहैया कराई जा रही है. समाजवादी पेंशन योजना के तहत 55 लाख लोग लाभान्वित हो रहे हैं.

अखिलेश की विकास यात्रा को उनकी पत्नी सांसद डिम्पल यादव ने भी संबोधित किया. काबीना मंत्री व अखिलेश समर्थक राजेंद्र चौधरी का दावा है कि अखिलेश यादव की ‘विजय की ओर विकास रथ यात्रा’ ने अपने प्रथम चरण में ही राजनीतिक इतिहास का नया अध्याय रच दिया. चौधरी ने अतिरंजना में विकास यात्रा की तुलना नेहरू और जेपी की रैलियों से कर दी. अखिलेश की विकास रथयात्रा में रथ के अलावा सैकड़ों गाड़ियों का काफिला और पैदल चल रहे कार्यकर्ताओं और आम लोगों की भीड़ का साथ मिला, जिसने सड़क पर अखिलेश की शक्ति दिखाई लेकिन आम नागरिकों के दैनंदिन कार्य में दिक्कतें पेश की.

लब्बोलुबाव यही रहा कि विकास यात्रा हो या रजत जयंती समारोह, उत्तर प्रदेश के राजनीतिक पटल पर अखिलेश ही उभर कर सामने आए. सपा के रजत जयंती समारोह में देश के तमाम बड़े नेताओं ने अखिलेश का हाथ उठाकर उन्हें भविष्य में पार्टी का चेहरा और आने वाले चुनाव में सीएम पद का उम्मीदवार बताने की सनद दी. लालू यादव से लेकर एचडी देवेगौड़ा, शरद यादव, चौधरी अजित सिंह व अन्य बड़े नेताओं ने अखिलेश के उत्तराधिकार को मान्यता दे दी. रजत जयंती समारोह में मौजूद सपा कार्यकर्ता भी अखिलेश के समर्थन में नारे लगा कर अपना पक्ष स्पष्ट कर रहे थे.

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