aaउत्तर प्रदेश का राज्यसभा चुनाव विवाद, अंतर्द्वंद्व एवं अमर्यादित राजनीति का उत्पाद साबित हुआ. सबसे अधिक सीटें जीतने में सक्षम समाजवादी पार्टी में पीठ में छुरा भोंक कर पद पाने की मंशा का वर्चस्व रहा, तो महज दो सीटें जीतने की हैसियत रखने वाली बहुजन समाज पार्टी में एक-दूसरे पर कीचड़ फेंकने का ऐसा उपक्रम चला, जिसे चलताऊ बोलचाल की भाषा में थुक्कम-फजीहत कहते हैं. एक सीट जीतने वाली भाजपा चुप्पी साधे किनारे पड़ी रही, यहां तक कि आख़िर तक वह अपना प्रत्याशी भी तय नहीं कर पा रही थी. कांग्रेस तो माशा अल्लाह! राहुल गांधी की जी-हुजूरी और सपा की चापलूसी का समानांतर कार्यक्रम चलाते रहने वाले, लोकसभा चुनाव हारने वाले पीएल पुनिया राज्यसभा पहुंच गए, बाकी नेता मुंह ताकते रह गए.
समाजवादी पार्टी ने अपने प्रतिबद्ध नेताओं से ही बेजा राजनीति की. तुष्टिकरण और चाटुकारिता की राजनीति को अहमियत दी गई. ग़ौरतलब है कि लोकसभा चुनाव में लखनऊ का प्रत्याशी घोषित होने के बाद पुरजोर प्रचार अभियान चलाने वाले साफ़ छवि के नेता डॉ. अशोक वाजपेयी को अचानक आख़िरी दौर में ड्रॉप कर दिया गया और उनकी जगह अभिषेक मिश्रा को उम्मीदवार बनाकर मैदान में उतारा गया था. भेद खुला कि राजनाथ सिंह का रास्ता साफ़ करने के लिए सपा ने ताकतवर प्रत्याशी डॉ. वाजपेयी को मैदान से हटाया था. डॉ. वाजपेयी जैसे प्रतिबद्ध नेता को राज्यसभा के लिए मा़ैका न दिया जाना खुद सपाइयों की समझ में नहीं आ रहा है. एक सपा नेता ने कहा कि कुछ नेताओं ने पूरी पार्टी अपनी जेब में रख ली है. लोकसभा चुनाव हारने वाले कुंअर रेवती रमण सिंह को राज्यसभा में मा़ैका न दिया जाना सपा नेतृत्व का आश्‍चर्यजनक और आत्मघाती फैसला है. मुख्यमंत्री अखिलेश यादव रेवती रमण के पुत्र उज्ज्वल रमण सिंह से मंत्री पद छीनकर पहले ही भूमिहार समुदाय को झटका दे चुके थे. रेवती रमण को राज्यसभा का टिकट न देने को भूमिहार समुदाय अपमानजनक कार्रवाई मान रहा है.
आजम-तुष्टिकरण में आजम खां की पत्नी तंजीम फातिमा को राज्यसभा का टिकट दिया जाना पार्टी के जेबी संस्था होने का संदेश देने वाला साबित हुआ. मुस्लिम समुदाय के लोग ही कहते हैं कि पार्टी के आजम की चाटुकारिता में लगे रहने से हमारा कोई भला नहीं हो रहा. सपा कुछ खास कारणों से एक खास परिवार को फ़ायदा पहुंचा रही है. आजम ना-ना करते रहे और सपा के शीर्ष नेता उनकी पत्नी को राज्यसभा पहुंचाने के लिए आजम की मक्खनबाजी करते रहे. सपा की यह विचित्र राजनीति किसी को समझ में नहीं आई कि आख़िर आजम की इतनी खुशामद क्यों? तंजीम फातिमा को टिकट दिए जाने के बाद आजम ने उनसे बाकायदा पत्र लिखाकर मीडिया में जारी कराया कि वह राज्यसभा का टिकट वापस लौटा रही हैं, लेकिन आजम ने फिर पलटी मारी और जब पर्चा दाखिल करने का समय आया, तो तंजीम भी पर्चा भरने पहुंच गईं. पर्चा दाखिल करते समय आजम उनके साथ मौजूद नहीं थे. आजम खां के इस रवैये की कई नेता और राज्य सरकार के मंत्री चर्चा करते नज़र आए कि आजम का ड्रामा भी बहुत सुनियोजित होता है. पहले टिकट लौटाने का ड्रामा किया, अब नामांकन के समय मौजूद न रहकर भी ड्रामा कर रहे हैं.
दरअसल, आजम ने सारी नौटंकी अमर सिंह की सपा में वापसी रोकने के लिए की. इसमें प्रो. राम गोपाल यादव और अखिलेश यादव ने उनका साथ दिया और पुरस्कार में वह अपनी पत्नी के लिए राज्यसभा का टिकट पा गए. इसके बावजूद यह कोशिश हुई कि सपा के अतिरिक्त वोटों के समर्थन से अमर सिंह को राज्यसभा में जगह मिल जाए, लेकिन इस पर भी पानी फेरते हुए कांग्रेस प्रत्याशी पीएल पुनिया को समर्थन दे दिया गया. राज्यसभा को लेकर राहुल गांधी का पुनिया-प्रयोग कांग्रेस में भीषण विरोध और अंतर्कलह का कारण बन गया है. पार्टी के कई विधायक एवं नेता राहुल गांधी के निर्णय को तुगलकी फरमान बताकर इसे पार्टी को कमज़ोर करने का क़दम बता रहे हैं. पुनिया को पहले भी अनुसूचित जाति-जनजाति आयोग का अध्यक्ष बनाया जा चुका है. इसके बावजूद वह अपनी सीट बचाने में नाकाम रहे. अब उन्हें राज्यसभा की सीट दिए जाने को कतार में खड़े पार्टी के अन्य प्रतिबद्ध नेताओं की स्पष्ट उपेक्षा माना जा रहा है. प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष निर्मल खत्री के लिए यह झटका देने वाला फैसला साबित हुआ. कांग्रेस सरकार में इस्पात मंत्री रहे बेनी प्रसाद वर्मा भी इस फैसले से नाखुश हैं, क्योंकि लोकसभा चुनाव हारने के बाद वह भी राज्यसभा की आस लगाए बैठे थे.
दूसरी तरफ़ बहुजन समाज पार्टी भी राज्यसभा के टिकट बंटवारे को लेकर नुक्कड़ छाप साबित हुई. अपने मुख्यमंत्रित्व काल में भ्रष्टाचार और आतंक का साम्राज्य स्थापित करने वाली मायावती के डर से डॉ. अखिलेश दास बसपा में शामिल हो गए थे. डॉ. दास को उत्तर प्रदेश में फैला अपना व्यापार-साम्राज्य बचाने की चिंता थी. लिहाजा वह कांग्रेस में अपना प्रभावशाली स्थान छोड़कर बसपा में शामिल हुए और तब मायावती ने उनका खूब फ़ायदा उठाया. वही मायावती खुद को दूध की धुली दिखाने की कोशिश करते हुए डॉ. अखिलेश दास द्वारा राज्यसभा टिकट के लिए सौ करोड़ रुपये का ऑफर दिए जाने को ठुकराने की बात करने लगीं. जबकि डॉ. दास पार्टी के पद और सदस्यता से इस्तीफ़ा देकर चुप बैठ गए थे. लेकिन, मायावती को इस्तीफ़ा पसंद नहीं, उन्हें केवल निष्कासन पसंद है. लिहाजा अगले ही दिन वह प्रेस कॉन्फ्रेंस करने बैठ गईं और डॉ. अखिलेश दास के ख़िलाफ़ मर्यादा के बाहर जाकर बयान देने लगीं. इसके बाद ही डॉ. दास ने टिकट के एवज में मायावती द्वारा रिश्‍वत लेने की बात कही. उन्होंने कहा कि बसपा प्रमुख बिना पैसा लिए किसी को टिकट नहीं देती हैं. वह विधानसभा चुनाव के लिए टिकट के एवज में एक करोड़ रुपये लेती हैं. डॉ. दास ने कहा कि डेढ़ महीने पहले मायावती ने बसपा के सभी सांसदों एवं विधायकों से दस-दस लाख रुपये लिए थे. मायावती को नमस्ते करने से लेकर उनसे टिकट पाने तक पैसे लगते हैं. बहरहाल, डॉ. अखिलेश दास और ब्रजेश पाठक को राज्यसभा का टिकट न दिया जाना बसपा के लिए ऩुकसानदेह साबित होने वाला है.


मायावती और दास पर एफआईआर की मांग
बहुजन समाज पार्टी की अध्यक्ष मायावती और राज्यसभा सदस्य डॉ. अखिलेश दास द्वारा लगाए गए आरोप-प्रत्यारोप की शिकायत अब चुनाव आयोग तक पहुंच गई है. सामाजिक कार्यकर्ता डॉ. नूतन ठाकुर ने मुख्य निर्वाचन आयुक्त एवं दो अन्य निर्वाचन आयुक्तों को इस संबंध में ईमेल द्वारा शिकायत भेजकर इन आरोपों की जांच और तदनुसार कठोर विधिक कार्रवाई करने का निवेदन किया है. नूतन ठाकुर ने कहा कि आईएनसी बनाम इंस्टीट्यूट ऑफ़ सोशल वेलफेयर सहित तमाम निर्णयों में सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट कर दिया है कि आयोग को किसी राजनीतिक दल द्वारा देश के स्थापित क़ानून को तोड़ने की दशा में उसे अपंजीकृत करने का अधिकार और दायित्व है, जैसा कि ताजा मामले में बसपा पर डॉ. दास ने आरोपित किया है. यह आरोप-प्रत्यारोप आईपीसी की धारा 171-ई (रिश्‍वत-एक साल की सजा) और 17-एफ (निर्वाचन में असम्यक असर डालना-एक साल की सजा) के तहत अपराध है. लिहाजा, नूतन ठाकुर ने इस मामले में मायावती एवं डॉ. दास से पूछताछ करके बसपा और उक्त दोनों नेताओं को दोषी पाए जाने की स्थिति तक उनके ख़िलाफ़ आपराधिक तथा निर्वाचन विधि के तहत कार्रवाई की मांग की है.

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