politicsपटना में विभिन्न राजनीतिक पार्टियों द्वारा मकर संक्रांति पर आयोजित चूड़ा-दही भोज राजनीतिक जोर आजमाइश के केंद्र में रहे. पिछले कुछ वर्षों में मकर संक्रांति का भोज, इफ्तार पार्टियों की तरह राजनीतिक जोड़-घटाव के अवसर के रूप में इस्तेमाल होने लगा है. राष्ट्रीय जनता दल और वामपंथियों को छोड़ कर इस वर्ष लगभग तमाम दलों ने चूड़ा-दही या खिचड़ी-चोखा का आयोजन किया. इन तमाम भोजों में राजनीति अलग-अलग रंगों में दिखी. इन भोजों का आयोजन जदयू, भाजपा, रालोसपा और लोजपा के अलावा कुछ कांग्रेसी नेताओं ने भी किया. इनमें जदयू, भाजपा, लोजपा और रालोसपा- सत्ताधारी एनडीए गठबंधन का हिस्सा हैं.

सैद्धांतिक रूप से देखें तो एनडीए बिहार और दिल्ली दोनों की सत्ता पर काबिज है. पर व्यावहारिक रूप में नीतीश कुमार का जदयू दिल्ली की सत्ता का हिस्सेदार नहीं तो उपेंद्र कुशवाहा की रालोसपा बिहार की सत्ता का सिपहसालार नहीं है. फिर भी ये तमाम दल एनडीए के ही हिस्सा हैं. इन तमाम भोजों के आयोजनों पर गौर करने पर दिखा कि एनडीए के अंदर सबकुछ कूल-कूल नहीं है. लिहाजा यह कह सकते हैं कि चूड़ा दही के इन तमाम भोजों में एक अलग तरह की खिचड़ी का भी स्वाद दिखा, क्योंकि जब रामबिलास पासवान तिल्कुट का टुकड़ा नीतीश कुमार के मुंह में डाल रहे थे तो शायद उन्होंने तिल के कसैलेपन को जरूर महसूस किया, जिस पर पर्दा डालने के लिए उन्हें कहना पड़ा कि एनडीए पूरी ताकत और एकता के साथ 2019 का लोकसभा चुना लड़ेगा और राजद को साफ कर देगा.

पासवान जब यह बात कह रहे थे तो उसके महज 24 घंटे बाद राष्ट्रीय लोक समता पार्टी (रालोसपा) के प्रमुख उपेंद्र कुशवाहा ने अपने भोज में एक ऐसा बयान दे डाला जिससे एनडीए की एकता में छिपी अनेकता जाहिर हो ही गयी. कुशवाहा ने बक्सर के नंदन गांव की उस घटना का जिक्र छेड़ दिया, जिसमें विकास समीक्षा यात्रा के दौरान मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के काफिले पर भारी पथराव हुआ था. कुशवाहा ने कहा कि उन्हें पता चला है कि इस पथराव में खुद नीतीश कुमार के जदयू के लोग भी शामिल थे. कुशवाहा का यह बयान भाजपा और जदयू दोनों को सन्न कर देने वाला था. ऐसा इसलिए क्योंकि पथराव की घटना के आधे घंटे के बाद से ही भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष नित्यानंद राय ने टीवी चैनलों पर राजद के खिलाफ मोर्चा खोल दिया था.

वे लगातार कहे जा रहे थे कि नीतीश कुमार के काफिले पर हुई पत्थरबाजी के पीछे राजद की साजिश है. उधर जदयू के तमाम प्रवक्ताओं के अलावा नीतीश के करीबी नेता संजय झा भी कुछ ऐसा ही बयान दिये जा रहे थे. पत्थरबाजी की यह घटना मकर संक्रांति के तीन दिन पहले घटी थी. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का काफिला बक्सर के नंदनगांव से गुजर रहा था. तब सैकड़ों की भीड़, जिनमें अधिकतर युवा और महिलाएं थीं, ने काफिले पर हमला बोल दिया. खुद नीतीश कुमार इसलिए पत्थर खाने से बच गए, क्योंकि उनके अंगरक्षकों ने उनके चारों ओर मानव श्रृंखला बना दिया. खबरों में बताया गया कि नंदनगांव महादलित बहुल गांव हैं, जहां के लोगों में इस बात पर आक्रोश था कि उनके गांव की उपेक्षा की गयी. जबकि उसके ठीक बगल के गांव में जहां नीतीश का कार्यक्रम था, खूब विकास किया गया.

इस घटना के बाद का किस्सा यह है कि नीतीश कुमार ने आनन फानन में इस हमले की जांच की जिम्मेदारी पटना प्रमंडल के आयुक्त आनंद किशोर और आईजी नैयर हसनैन खान के जिम्मे सौंप दी. दूसरे ही दिन जांच के दौरान जांच अधिकारियों में से एक आनंद किशोर ने दबी जबान में कहा कि यह पता लगाया जा रहा है कि आखिर किन कारणों से नंदन गांव में विकास का काम नहीं हुआ. दूसरी तरफ राजद भी जोरदार तरीके से इस प्रकरण का माइलेज लेने के लिए कूद पड़ा. शाम छह बजे के बाद जब जदयू के प्रदेश अध्यक्ष वशिष्ठ नारायण सिंह के हॉर्डिंग रोड आवास पर कार्यकर्ता खिचड़ी-चोखा का आनंद लेने की तैयारी कर रहे थे तो विपक्षी दल राजद के नेता तेजस्वी यादव का एक टि्‌वट आ गया.

तेजस्वी ने इस टि्‌वट में सीधे नीतीश कुमार को ललकारते हुए कहा कि नंदन गांव के महादलितों पर पुलिस जुल्म कर रही है. नीतीश कुमार कान खोल कर सुन लें कि अब महादलितों पर कोई भी जुल्म हुआ तो राजद कोई भी बलिदान देने से पीछे नहीं हटेगा. राजद विधायक तेजप्रताप यादव ने कहा कि नीतीश कुमार को विकास की समीक्षा करने के बजाय इस बात की समीक्षा करनी चाहिए कि लोग उनका विरोध क्यों कर रहे हैं.

नंदनगांव की घटना दरअसल एनडीए के तमाम घटक दल और विपक्षी राजद के लिए राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप का हथियार बन गयी थी. ऐसे में उपेंद्र कुशवाहा ने जब कहा कि उन्हें पता चला है कि उस पत्थरबाजी में खुद नीतीश कुमार की पार्टी के लोग भी शामिल थे, तो यह बयान कोई मामूली बयान नहीं था. इतना ही नहीं कुशवाहा ने, एक स्थानीय अखबार से यहां तक कहा था जदयू द्वारा विरोध स्थानीय कारणों से हुआ होगा. ये बातें कुशवाहा ने भोज के दौरान ही कही थी, लेकिन रात होते-होते उन्होंने यह भी कह दिया कि उन्होंने ऐसा कोई बयान नहीं दिया.

ऐसा नहीं है कि कुशवाहा अपने घटक दल के खिलाफ  पहली बार बोले हों. जब जदयू, राजद का साथ छोड़ कर भाजपा के साथ आ गया तब से ही रालोसपा कुछ असहज होने लगी. उधर इसका बखूबी एहसास नीतीश कुमार के स्टेप से भी पता चलता है. नीतीश ने अपने मंत्रिमंडल में रामबिलास की पार्टी को शामिल किया लेकिन इस मंत्रिमंडल में रालोसपा को शामिल नहीं किया गया. उधर राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि रालोसपा की नजदीकियां राजद से बढ़ रही हैं. कुशवाहा के बारे में बताया जाता है कि वह राजद अध्यक्ष लालू प्रसाद से मिलते रहे हैं.

चूड़ा-दही भोज में राजनीति की ऐसी रंगत भले ही फिलहाल किसी परिणाम पर पहुंचती नहीं दिखे, लेकिन आने वाले दिनों में इसका असर जरूर दिख सकता है.

अशोक चौधरी ने गरमा दी राजनीति

राजद प्रमुख लालू प्रसाद के जेल में होने के कारण उनके आवास पर होने वाला चूड़ा-दही भोज इस बार नहीं हुआ. जदयू के प्रदेश अध्यक्ष वशिष्ठ नारायण सिंह ने हर साल की तरह भव्य भोज का आयोजन किया. इसमें सीएम नीतीश कुमार के ज्यादातर मंत्रियों के अलावा भाजपा कोटे के मंत्री सुशील कुमार व दीगर भाजपाई शामिल हुए. लोजपा प्रमुख अपने परिवार के तमाम नेताओं व बेटे चिराग के साथ हाजिर हुए. रामबिलास पासवान के भोज में नीतीश भी गये. लेकिन इन भोजों में एनडीए घटक दलों से कोई नहीं दिखा तो वह थी रालोसपा. रालोसपा के अध्यक्ष उपेंद्र कुशावाहा ने दूसरे दिन भोज रखा. मकर संक्रांति के भोज की एक खास बात यह भी थी कि कांग्रेस अध्यक्ष पद से बेदखल किये जा चुके अशोक चौधरी अपने दो विधायक सहयोगियों के साथ जदयू के भोज में पहुंच गये.

चौधरी नीतीश कुमार के इतने निकट जा चुके हैं कि उन पर कांग्रेसियों को भरोसा नहीं रहा, जिसकी कीमत पहले ही उन्हें काग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष के पद गंवाने के रूप में अदा करनी पड़ी है. अशोक चौधरी की राजनीति का अगला कदम क्या होगा यह तो अभी बहुत स्पष्ट नहीं है, लेकिन समझा जाता है कि अप्रैल में होने वाले राज्यसभा चुनाव के वक्त तस्वीर काफी साफ हो चुकी होगी. बताया जाता है कि कांग्रेस के कुल 24 विधायकों में से दो उनके करीब हैं. साथ ही एक या दो एमएलसी भी उनके निकट हैं. ये विधायक न सिर्फ जदयू के चूड़ा-दही भोज में अशोक चौधरी के साथ मौजूद थे बल्कि दूसरे दिन, जब अशोक चौधरी ने अपने घर पर भोज का आयोजन किया तो भी वे उनके घर देखे गये. हालांकि अशोक चौधरी ने इस भोज को किसी भी अटकलबाजी से अलग रखने की बात की और कहा कि वे हर साल अपने करीबियों को भोज पर बुलाते हैं.

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