मुख्यमंत्री रघुवर दास के लिए भी यह उपचुनाव प्रतिष्ठा का विषय है, क्योंकि अगलेे साल ही झारखंड में विधानसभा चुनाव है. रघुवर दास के शासनकाल में तीन उपचुनाव हुए, तीनों उपचुनाव भाजपा हार गयी. आजसू के लिए भी यह उपचुनाव करो या मरो वाली है. गोमिया विधानसभा सीट अगर आजसू हार भी जाती है तो पार्टी की सेहत पर कोई असर नहीं पड़ेगा, पर अगर सिल्ली चुनाव जीतने में आजसू विफल रही तो आजसू के लिए आगामी विधानसभा चुनाव कांटों से भरा होगा.

BJPझारखंड में हाल में संपन्न नगर निकाय चुनाव से सबक लेते हुए सभी विपक्षी दल एकजुट हो गए. विपक्षी दलों ने मतभेद भुलाकर महागठबंधन को मजबूत बनाने का मन बना लिया है. इसीलिए दो विधानसभा सीटों पर हो रहे उपचुनाव में साझा प्रत्याशी उतार कर यह संकेत दे दिया है कि आने वाला लोकसभा और विधानसभा चुनाव काफी दिलचस्प होगा.  सभी विपक्षी दलों को यह अहसास हो गया है कि विपक्ष अलग-अलग रहकर भाजपा से मुकाबला नहीं कर सकता है.

इस चुनाव में भाजपा प्रत्याशियों की मिली जीत से यह साफ हो गया कि विपक्ष के पास अब एकता ही अंतिम हथियार है. वहीं भाजपा की लाख कोशिशों के बाद भी एनडीए के घटक आजसू ने दोनों सीटों पर प्रत्याशी उतार दिए. वहीं भाजपा ने गठबंधन धर्म की दुहाई देते हुए सिल्ली विधानसभा सीट आजूस सुप्रीमो सुदेश महतो के लिए छोड़ दिया. इसके पीछे भाजपा यह तर्क दे रही है कि पिछले विधानसभा चुनाव में माधव लाल सिंह दूसरे स्थान पर रहे थे और कम मतों के अंतर से हारे थे.

इसलिए इस सीट पर भाजपा की दावेदारी बनती है, पर आजसू ने भाजपा की सभी दलीलें खारिज करते हुए झारखंड प्रशासनिक सेवा से वीआरएस लेने वाले अधिकारी लंबोदर महतो को मैदान में उतारा है. लंबोदर महतो आजसू कोटे से ही मंत्री बने चंद्रप्रकाश चौधरी के आप्त सचिव रहे थे और आजसू के राजनीतिक गतिविधियों में अर्से से सक्रिय थे. चन्द्रप्रकाश चौधरी के आप्त सचिव रहने का लाभ भी लंबोदर महतो को मिला और कई योजनाओं को गोमिया विधानसभा क्षेत्र में लेकर गए, खासकर पेयजल एवं सिंचाई से जुड़ी योजना. इसका लाभ भी आजसू पार्टी को मिल सकता है. झारखंड मुक्ति मोर्चा ने दोनों सीटों पर उम्मीदवार दिए हैं. दोनों सीट झामुमो की झोली में थे और दोनों विधायकों की सदस्यता रद्द होने के कारण यह उपचुनाव हो रहा है.

गोमिया विधायक को जहां कोयले की अवैध तस्करी में दोषी मानते हुए न्यायालय ने सजा सुनाई, वहीं सिल्ली के झामुमो विधायक अमित महतो पर एक अधिकारी के साथ मारपीट के आरोप में दो वर्ष की सजा सुनाई गई है. दोनों मामलों में न्यायालय ने त्वरित कार्रवाई करते हुए दोषी करार दिया. झामुमो को अपनी जमीन बचाने की चिंता है. रणनीति के तहत झामुमो ने पूर्व विधायकों की पत्नी को मैदान में उतारा है, ताकि सहानुभूति वोट बटोरा जा सके. मुख्यमंत्री रघुवर दास के लिए भी यह उपचुनाव प्रतिष्ठा का विषय है, क्योंकि अगलेे साल ही झारखंड में विधानसभा चुनाव है. रघुवर दास के शासनकाल में तीन उपचुनाव हुए, तीनों उपचुनाव भाजपा हार गयी. आजसू के लिए भी यह उपचुनाव करो या मरो वाली है.

गोमिया विधानसभा सीट अगर आजसू हार भी जाती है तो पार्टी की सेहत पर कोई असर नहीं पड़ेगा, पर अगर सिल्ली चुनाव जीतने में आजसू विफल रही तो आजसू के लिए आगामी विधानसभा चुनाव कांटों से भरा होगा. सिल्ली से पार्टी सुप्रीमो सुदेश महतो खुद चुनाव लड़ रहे हैं. झारखंड गठन के बाद से सुदेश महतो ने इस क्षेत्र का लगातार प्रतिनिधित्व किया था, पर पिछले विधानसभा चुनाव में झामुमो के अमित महतो ने भारी अंतर से हराया था. इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है कि सुदेश महतो की प्रतिष्ठा दांव पर लगी हुई है.

यह चुनाव एनडीए एवं महागठबंधन दोनों के लिए इसलिए महत्वपूर्ण है कि इस उपचुनाव का परिणाम ही भविष्य के चुनाव की दशा-दिशा तय करेगी. भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष लक्ष्मण गिलुवा का मानना है कि भाजपा ने आजसू के साथ गठबंधन धर्म निभाया है. सिल्ली में प्रत्याशी नहीं दिया, लेकिन गोमिया में पार्टी पूरे दम-खम के साथ उतरी है. आजसू के साथ गोमिया में दोस्ताना संघर्ष होने की आशा है, पर भाजपा को यह सीट जीतने के लिए एड़ी-चोटी एक करना पड़ सकता है. भाजपा के भीतर ही यहां असंतोष है, इस सीट से माधव लाल सिंह की उम्मीदवारी की घोषणा होते ही विरोध के स्वर उभरने लगे.

इस सीट पर पूर्व विधायक छत्रराम महतो, गुणानंद महतो और लक्ष्मण नायक प्रबल दावेदार थे. मुख्यमंत्री रघुवर दास को इस मसले पर आगे आना पड़ा और नाराज हुए पार्टी नेताओं के साथ बैठक कर विक्षुब्ध नेताओं को यह समझाने का प्रयास किया कि यह प्रतिष्ठा की लड़ाई है. इस चुनाव को हमें हर हाल में जीतना है, सभी अपनी ताकत लगाएं और पार्टी की प्रतिष्ठा को बचाए रखें. मुख्यमंत्री ने कहा कि टिकट किसी एक को ही मिल सकता है, लेकिन जीत व्यक्ति की नहीं पार्टी की होती है.

वैसे विक्षुब्धों ने मुख्यमंत्री रघुवर दास को यह आश्वस्त तो किया कि वे ईमानदारी के साथ चुनाव कार्य में लगेंगे और पार्टी को जीत दिलाएंगे. पूर्व विधायक छत्रराम महतो का कहना है कि गोमिया से लड़ने के लिए हमने दावेदारी पेश की थी, लेकिन अब हम पार्टी को जिताने में जुटेंगे. कुर्मी बहुल क्षेत्र होने के कारण भाजपा को यहां झटका लग सकता है. कुर्मी वर्षों से अनुसूचित जनजाति में शामिल करने की मांग कर रहे हैं. ऐसे में कुर्मी भाजपा से छिटक सकते हैं. इधर आजसू द्वारा महतो प्रत्याशी मैदान में उतार देने से भाजपा को इसका सीधा नुकसान होगा. इन दोनों की लड़ाई में फायदा झामुमो को हो सकता है.

झामुमो को यहां बाहरी-भीतरी वाले मुद्दे का लाभ तो मिलेगा ही, साथ ही निवर्तमान विधायक की पत्नी बबीता देवी के मैदान में आने से सहानुभूति वोट भी झामुमो को मिलना तय है. गोमिया में त्रिकोणीय मुकाबला होना तय है. भाजपा से माधवलाल सिंह, आजसू से लंबोदर महतो एवं झामुमो से बबीता महतो चुनाव मैदान में हैं. 28 मई को मतदान एवं 31 मई को इस चुनाव का परिणाम आएगा. सभी दलों की प्रतिष्ठा दांव पर है, इसलिए सभी पार्टियों ने पूरा जोर लगा दिया है. कोई कोर कसर न रह जाए, इसकी भी मॉनिटरिंग पार्टी के वरीय नेता कर रहे हैं. गोमिया में झामुमो को योगेन्द्र महतो ने भाजपा के माधव लाल सिंह को 37 हजार 514 वोटों से पराजित किया था, वहीं सिल्ली में भी झामुमो के अमित महतो ने आजसू सुप्रीमो सुदेश महतो को 29 हजार 740 वोटों से शिकस्त दी थी.

मुख्यमंत्री रघुवर दास ने अपने सभी मंत्रियों को गोमिया में कैम्प करने को कहा है. साथ ही महतो जाति के विधायक सहित उस क्षेत्र के भी विधायकों को मतदाताओं को लुभाने की जिम्मेदारी है. संथाल परगना के लिट्टीपाड़ा उपचुनाव में मुख्यमंत्री ने अपनी पूरी ताकत झोंक दी थी, कुछ योजनाओं का शिलान्यास भी पड़ोसी जिले में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के द्वारा कराया गया, ताकि इसका लाभ भाजपा को मिल सके, पर तमाम कोशिशों के बाद भी भाजपा को झामुमो ने भारी मतों से शिकस्त दी थी, जबकि एक माह तक भाजपा के सभी मंत्री लिट्टीपाड़ा में कैम्प किये हुए थे. दरअसल भाजपा के भीतर ही जमकर गुटबाजी है.

कार्यकर्ताओं की उपेक्षा भी गुटबाजी का एक कारण है. आदिवासी समुदाय के साथ-साथ महतो मतदाताओं की नाराजगी भी भाजपा को भारी पड़ रही है. वैसे मुख्यमंत्री रघुवर दास का दावा है कि जनता विकास के साथ है और जनता इस बार विपक्षी दलों को सबक सिखाकर रहेगी. झामुमो ने केवल झारखंड को लूटने का काम किया है. हमने जितना काम साढ़े तीन साल में किया, वह चौदह वर्ष में कोई सरकार ने नहीं किया था.

इधर झामुमो के कार्यकारी अध्यक्ष हेमंत सोरेन ने कहा कि मुख्यमंत्री जीरो टॉलरेंस की बातें करते हैं, पर खुद उनका कुनबा भ्रष्टाचार में लिप्त है. सोरेन ने कहा कि आगामी लोकसभा एवं विधानसभा चुनाव महागठबंधन के तहत ही लड़ा जाएगा. मुख्यमंत्री दास पर आरोप लगाते हुए कहा कि चुनाव की अधिसूचना जारी होने के बाद मुख्यमंत्री ने स्थानीय नियोजन नीति लाई, जो पूरी तरह गलत है. मतदाता भी मुख्यमंत्री दास के इस बहकावे में नहीं आने वाले हैं.

वैसे सिल्ली और गोमिया उपचुनाव में दिग्गजों के मैदान में उतरने से खेल रोमांचक हो गया है. सिल्ली में आजसू सुप्रीमो सुदेश महतो का सीधा मुकाबला विपक्ष के साझा प्रत्याशी सीमा महतो से है. वहीं गोमिया में त्रिकोणीय मुकाबला होना तय है. यहां भाजपा के माधव लाल सिंह, झामुमो की बबीता महतो एवं आजसू के लंबोदर महतो के बीच मुकाबला है. सबके अपने-अपने वोट बैंक हैं. किसी को जातीय समीकरण पर भरोसा है तो कोई परम्परागत वोट बैंक के साथ जीत की फसल काटने की जुगत में है.

एक-दूसरे के वोट बैंक में सेंधमारी की रणनीति भी बन रही है. इधर सिल्ली में पूर्व उपमुख्यमंत्री एवं आजसू सुप्रीमो सुदेश महतो के रहने के कारण इस चुनावी घमासान पर सबकी नजर है. आजसू नेता सुदेश महतो ने इस बार पूरा मैनेजमेंट अपने हाथों में ले रखा है. वे लगातार सिल्ली में कैंप कर रहे हैं. आजसू से दूर हुए वोटरों को समेटने में लगे हैं. जबकि झामुमो से पिछली चुनाव में बाजी मारने वाले अमित महतो भी अपनी पत्नी के लिए क्षेत्र में पूरा जोर लगा रहे हैं. इस चुनाव में सभी पार्टियां पानी की तरह पैसे बहा रही हैं.

अब देखना है कि ऊंट किस करवट बैठता है, वैसे यह तय है कि इस उपचुनाव के परिणाम का असर आम चुनाव पर पड़ेगा.

उपचुनाव में झामुमो का समर्थन करेगा आदिवासी जन परिषद

आदिवासी जन परिषद ने सिल्ली व गोमिया उपचुनाव में झामुमो के समर्थन की घोषणा की है. प्रेमशाही मुंडा ने कहा कि राज्य की सामाजिक व राजनीतिक परिस्थितियां आदिवासियों व मूलवासियों के हित में नहीं है और इसके लिए भारतीय जनता पार्टी व आजसू पार्टी जिम्मेदार है. इसलिए ऐसी ताकतों को परास्त करने के लिए सिल्ली व गोमिया उप चुनाव में झामुमो को समर्थन दिया जाएगा. उन्होंने कहा कि ग्राम सभा को पेसा कानून के तहत शक्तियां नहीं दी जा रही हैं.

सीएनटी-एसपीटी एक्ट में संशोधन का प्रयास किया गया. स्थानीयता नीति, भूमि अधिग्रहण बिल 2017, जेपीएससी की परीक्षाओं में आरक्षण रोस्टर का पालन न होना, सभी विभागों में भ्रष्टाचार, आदिवासियों को धर्म कोड नहीं देना और टीएसपी के पैसों को दूसरे मदों में खर्च करना आदि आदिवासी-मूलवासियों के लिए अहितकर है. तमाड़, बुंडू व अड़की क्षेत्र में एक भी पुल-पुलिया, सड़क सही ढंग से नहीं बना है. उन्होंने तमाड़ के परासी गोल्ड ब्लॉक खनन लीज को रद्द करने व कांके क्षेत्र में माफिया तत्वों द्वारा आदिवासी जमीन हड़पना बंद करने की मांग की.

नियोजन नीति के फैसलेे पर झामुमो की आपत्ति

झामुमो ने सिल्ली और गोमिया उपचुनाव के दौरान राज्य के गैर अनुसूचित जिलों में भी अगले 10 वर्षों के लिए स्थानीय लोगों के लिए तृतीय और चतुर्थ वर्ग की नौकरियों को आरक्षित करने के कैबिनेट के फैसले पर एतराज जताया है. झामुमो ने मुख्य निर्वाचन आयुक्त, दिल्ली को पत्र लिखकर शिकायत की है कि यह आदर्श आचार संहिता का उल्लंघन है. पार्टी महासचिव सुप्रियो भट्टाचार्य द्वारा लिखे गए पत्र में कहा गया है कि स्थानीयता की परिभाषा को भ्रमित करने का प्रयास किया गया है.

राज्य सरकार ने गैर अनुसूचित जिलों में स्थानीय लोगों को नौकरी देने का फैसला किया है. इससे राज्य भर के खतियानी रैयत में आक्रोश है. पत्र में कहा गया है कि भ्रामक निर्णय लेकर उपचुनाव को प्रभावित करने का प्रयास किया गया है. स्थानीय मतदाताओं को नियोजन का प्रलोभन देकर सत्ताधारी दल के प्रत्याशी को मदद करने की कोशिश की गई है.

शिकायत पत्र में कहा गया है कि सरकार भाजपा और सहयोगी पार्टी आजसू के उम्मीदवार की जीत सुनिश्चित करने के लिए प्रशासनिक हस्तक्षेप, प्रलोभन और घोषणाओं से मतदाताओं को प्रभावित करने का कुचक्र चलाया जा रहा है. आयोग से भट्टाचार्य ने कहा है कि सूचना के मुताबिक प्रधानमंत्री बोकारो जिला से सटे धनबाद जिले में कई परियोजनाओं और नियुक्तियों की घोषणा करने 25 मई को झारखंड आ रहे हैं. इससे पूर्व लिट्टिपाड़ा उपचुनाव में मतदाताओं को प्रलोभन देकर स्मार्ट फोन और नियुक्ति पत्र बांटा गया था.

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