nehruपंडित जवाहरलाल नेहरू स्वतंत्रता आंदोलन में अग्रणी भूमिका निभाने वालों में पहली पंक्ति के नेता थे. उन्होंने असहयोग आंदोलन में सक्रिय रूप से भाग लिया. नेहरू 1924 में इलाहाबाद नगर निगम के अध्यक्ष बने और शहर के मुख्य कार्यकारी अधिकारी के रूप में सेवा की. 1929 में उन्होंने कांग्रेस के लाहौर अधिवेशन की अध्यक्षता की और आजादी की मांग का प्रस्ताव पारित किया. 1936, 1937 और 1946 में वे कांग्रेस के अध्यक्ष चुने गए. आजादी के बाद वे भारत के प्रथम प्रधानमंत्री बने. पंडित नेहरू गुट निरपेक्ष आंदोलन के मुख्य शिल्पकारों में से एक थे. उन्हें आधुनिक भारत के निर्माता के रूप में देखा जाता है. वे बच्चों से अत्यधिक प्रेम करते थे और बच्चे उन्हें प्यार से चाचा नेहरू बुलाते थे.

जवाहरलाल नेहरू का जन्म 14 नवंबर 1889 को हुआ था. उनके पिता मोतीलाल नेहरू इलाहाबाद के एक विख्यात वकील थे. उनकी माता का नाम स्वरुप रानी था. नेहरू अपने पिता के इकलौते पुत्र थे. नेहरू के अलावा मोतीलाल नेहरू की तीन पुत्रियां भी थीं. नेहरू कश्मीरी वंश के सारस्वत ब्राह्मण थे. जवाहर लाल नेहरू ने अपनी पढ़ाई हैरो से की और कैंब्रिज के ट्रिनिटी कॉलेज से लॉ की डिग्री पूरी की. इंग्लैंड में उन्होंने सात साल व्यतीत किए. जवाहरलाल नेहरू 1912 में भारत लौट आए और वकालत की शुरुआत की. 1916 में कमला नेहरू से उनका विवाह हुआ. 1917 में नेहरू होमरूल लीग में शामिल हो गए. राजनीति में उनकी असली दीक्षा दो साल बाद 1919 में हुई, जब वे महात्मा गांधी के संपर्क में आए. उस समय महात्मा गांधी ने रॉलेट अधिनियम के खिलाफ एक अभियान शुरू किया था. नेहरू महात्मा गांधी के शांतिपूर्ण सविनय अवज्ञा आंदोलन के प्रति खासे आकर्षित हुए. नेहरू परिवार ने महात्मा गांधी द्वारा दी गई दीक्षाओं के हिसाब से अपने आप को ढाल लिया. जवाहरलाल और मोतीलाल नेहरू ने पश्चिमी कपड़ों और महंगी संपत्ति का त्याग कर दिया. वे खादी कुर्ता और गांधी टोपी पहनने लगे. नेहरू ने 1920-1922 में असहयोग आंदोलन में सक्रिय रूप से हिस्सा लिया. इसी दौरान पहली बार वे गिरफ्तार किए गए और कुछ महीनों के बाद उन्हें रिहा कर दिया गया.

जवाहरलाल नेहरू 1924 में इलाहाबाद नगर निगम के अध्यक्ष चुने गए और उन्होंने शहर के मुख्य कार्यकारी अधिकारी के रूप में दो वर्ष तक सेवा की. यह प्रशासनिक अनुभव बाद में उनके लिए फायदेमंद साबित हुआ जब वे देश के प्रधानमंत्री बने. उन्होंने अपने कार्यकाल का इस्तेमाल सार्वजनिक शिक्षा, स्वास्थ्य सेवा और साफ-सफाई के विस्तार के लिए किया. 1926 में उन्होंने ब्रिटिश अधिकारियों की ओर से सहयोग न मिलने के कारण इस्तीफा दे दिया. 1926 से 1928 तक नेहरू ने अखिल भारतीय कांग्रेस समिति के महासचिव के रूप में कार्य किया. 1928-29 में मोतीलाल नेहरू की अध्यक्षता में हुए कांग्रेस के वार्षिक सत्र में जवाहरलाल नेहरू और सुभाष चन्द्र बोस ने पूरी राजनीतिक स्वतंत्रता की मांग का समर्थन किया, जबकि मोतीलाल नेहरू और अन्य नेता ब्रिटिश साम्राज्य के भीतर ही प्रभुत्व सम्पन्न राज्य चाहते थे. इस मुद्दे के हल के लिए, गांधी ने बीच का रास्ता निकाला और कहा कि ब्रिटेन को भारत के राज्य का दर्जा देने के लिए दो साल का समय दिया जाएगा. यदि ऐसा नहीं हुआ तो कांग्रेस पूर्ण राजनैतिक स्वतंत्रता के लिए एक राष्ट्रीय आंदोलन शुरू करेगी. नेहरू और बोस ने मांग की कि इस समय को कम कर के एक साल कर दिया जाए. दिसम्बर 1929 में लाहौर में आयोजित कांग्रेस के वार्षिक अधिवेशन में जवाहरलाल नेहरू कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष चुने गए. इसी सत्र के दौरान एक प्रस्ताव भी पारित किया गया जिसमें ‘पूर्ण स्वराज्य’ की मांग की गई. 26 जनवरी 1930 को लाहौर में जवाहरलाल नेहरू ने स्वतंत्र भारत का झंडा फहराया. गांधी जी ने भी 1930 में सविनय अवज्ञा आंदोलन का आह्वान किया. यह आंदोलन काफी सफल रहा और इसने ब्रिटिश सरकार को प्रमुख राजनैतिक सुधारों की आवश्यकता को स्वीकार करने के लिए मजबूर कर दिया.

ब्रिटिश सरकार की तरफ से जब 1935 का अधिनियम सामने आया, तब कांग्रेस पार्टी ने चुनाव लड़ने का फैसला किया. हालांकि नेहरू चुनाव के बाहर रहे लेकिन ज़ोर-शोर से पार्टी के लिए राष्ट्रव्यापी अभियान चलाया. कांग्रेस ने लगभग हर प्रांत में सरकारों का गठन किया और केन्द्रीय असेंबली में सबसे ज्यादा सीटों पर जीत हासिल की. नेहरू 1936, 1937 और 1946 में कांग्रेस के अध्यक्ष पद के लिए चुने गए और राष्ट्रवादी आंदोलन में गांधी जी के बाद दूसरे नंबर के नेता बन गए. 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान गिरफ्तारी के बाद 1945 में उन्हें रिहा किया गया. 1947 में भारत और पाकिस्तान के विभाजन और आजादी के मुद्दे पर अंग्रेजी सरकार के साथ हुई वार्ताओं में नेहरू ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. देश आजाद होने के बाद जब वे प्रधानमंत्री बने तब कई समस्याएं सुरसा की भांति मुंह फैलाए खड़ी थीं. पाकिस्तान के साथ नई सीमा पर बड़े पैमाने पर पलायन और दंगे, भारतीय संघ में 500 के करीब रियासतों के एकीकरण, नए संविधान के निर्माण और संसदीय लोकतंत्र के लिए राजनैतिक और प्रशासनिक ढांचे की स्थापना जैसी विकट चुनौतियों का सामना उन्होंने प्रभावी ढंग से किया. नेहरू ने आज के भारत के लिए मजबूत नींव रखने में उस समय महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. योजना आयोग का गठन भारत की विकास यात्रा में मिल का पत्थर साबित हुआ. उन्होंने विज्ञान और प्रौद्योगिकी के विकास को प्रोत्साहित किया और लगातार तीन पंचवर्षीय योजनाओं का शुभारंभ किया. उनकी नीतियों के कारण देश में कृषि और उद्योग का एक नया युग शुरू हुआ.

नेहरू ने भारत को वैश्विक मंच पर मजबूती के साथ खड़ा किया. उन्होंने टिटो और नासिर के साथ मिलकर एशिया और अफ्रीका में उपनिवेशवाद के खात्मे के लिए एक गुट निरपेक्ष आंदोलन की रचना की. कोरियाई युद्ध का अंत करने, स्वेज नहर विवाद सुलझाने और कांगो समझौते के लिए भारत की सेवाओं और अंतरराष्ट्रीय पुलिस व्यवस्था की पेशकश को मूर्तरूप देने जैसी कई अंतरराष्ट्रीय समस्याओं के समाधान में वे मध्यस्थ की भूमिका में रहे. पश्चिम बर्लिन, ऑस्ट्रिया और लाओस जैसे कई अन्य मुद्दों के समाधान के लिए पर्दे के पीछे रह कर किया गया उनका काम भी महत्वपूर्ण है. नेहरू पाकिस्तान और चीन के साथ भारत के सम्बन्धों में सुधार नहीं कर पाए. पाकिस्तान के साथ एक समझौते तक पहुंचने में कश्मीर मुद्दा और चीन के साथ मित्रता में सीमा विवाद रास्ते के पत्थर साबित हुए. 1962 में चीन ने भारत पर आक्रमण कर दिया जिसका पूर्वानुमान करने में नेहरू विफल रहे. यह उनके लिए एक बड़ा झटका था. कई लोगों का मानना है कि चीन के हाथों मिली हार के सदमे ने ही नेहरू को मौत के मेुह में ढकेल दिया. 27 मई 1964 को दिल का दौरा पड़ने के कारण आधुनिक भारत का ये निर्माता हमेशा के लिए सो गया.

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