साथियों यह साल विश्व के इतिहास में फॅशिस्मो नाम का एक काला अध्याय शुरू होने का सौ साल होने का है ! जो फासीस्ट के नाम से जाना जाता है ! 30 अक्टूबर 1922 के दिन बेनिटो मुसोलीनी को इटली के राजा व्हीक्टर इमॅन्यूअल ने इटली के नये प्रधानमंत्री की शपथ दिलाई थी ! हालांकि 1921 के चुनावों में फॅशिस्मो पार्टी के सिर्फ 33 सदस्य पार्लमेंटमे (जिसे इटली में चेंबर बोला जाता है!) चुनाव जितकर गये थे ! और इटली के पार्लमेंटकी कुल सदस्य संख्या 535 थी ! मतलब सिर्फ 6.16 प्रतिशत ! लेकिन बेनिटो मुसोलीनी ने संपूर्ण इटली में इस हार के बाद अपने फॅशिस्मो पार्टी और उसके अन्य संबंधित विभागों के तरफसे आंदोलन शुरू कर दिया ! और इटली के चारों तरफ से रोम के तरफ हमला करने के इरादे से मार्च शुरू कर दिया ! और इस परिस्थिति को देखते हुए घबराहट में ! तत्कालीन प्रधानमंत्री फॅक्टा को राजा इम्यानूअलने इस्तीफा देने के लिए कह कर ! बेनिटो मुसोलीनी को इटली के नये प्रधानमंत्री की जिम्मेदारी सौपने का निमंत्रण दिया ! संसद में 33 सदस्य वाला आदमी अपने मिलिशिया, बलाला और अन्य संघठनो के वजह से ! इटली का सर्वेसर्वा बना ! उस समय बेनिटो मुसोलीनी की उम्र 39 साल की थी ! और 1945 तक तेईस साल, इटली का तानाशाह बना रहने की एकमात्र वजह, उसने अधिकारिक तौर पर पार्टी की घोषणा भले 23 मार्च 1919 के दिन मिलान शहर में 40-45 लोगों की बैठक में घोषणा की थी ! लेकिन उसके 5 से पंद्रह साल के बच्चे – बच्चीयो का बलाला नाम का संघठन जिसमें पचास हजार से अधिक बच्चों के शामिल होने की बात है वैसे ही 15-18 उम्र के युवा वर्ग के फॅशिस्मो नाम के संगठन में 90,000 हजार युवा शामिल थे और इसके अलावा तीस लाख से अधिक पार्टीके सदस्य जिसमें प्रथम विश्व युद्ध के सैनिकों का काफी बड़ी संख्या में समावेश था ! और बलाला हो या मिलिशिया या फॅशिस्मो पार्टी के सदस्यों को बेनिटो मुसोलीनी के प्रति वफादार रहने की शपथ दिलाई थी ! इस तरह से तत्कालीन इटली में बेनिटो मुसोलीनी के तुलना में ताकत किसी और संघठन या राजनीतिक दलों की नही थी ! और इस तरह अपने सभी संघठनो को युद्ध के दौरान जैसे सैनिकों को एक युद्धाभ्यास के बाद युद्ध के दौरान पूरी योजना के अनुसार तैनात किया जाता है ! बिल्कुल उसी तरह से उसने अपने सभी संस्थाओं और संगठनो को रोम के तरफ मार्च करने का हुक्म दिया ! और उसने 30 अक्टूबर से इटली की सत्ता पर योजना बद्ध तरिकेसे कब्जा करने के बाद ! सबसे पहले मिडिया के दफ्तरों में अपने मिलिशिया के लोगों को भेजा ! ताकि दुसरे दिन अखबारों में प्रकाशित होने वाली खबरों में अपने खिलाफ कुछ भी नहीं छपेगा ! इसकी पूरी सावधानी बरतने के निर्देश दिए थे !
दुसरा काम इटली के मजदूर संघों को बर्खास्त कर दिया ! और सिर्फ अपने फॅशिस्मो के मजदूर संघों को कारखाने के मालिकों के साथ मिलकर काम करने के निर्देश दिये ! और अब इटली में कीसी भी कारखाने में उत्पादन रूकेगा नही ! तो फिर पुंजीपती वर्ग भला ऐसे दल के नेता को सर आंखों पर नही उठायेंगे ?

इसी तरह से संसद (चेंबर) में विरोधी दलों की आवाज संसद के बाहर भी नहीं निकलने दिया ! और आगे चलकर तो उसका एकमात्र दल देश की संसद में दिखावे के लिए बनाए रखने की परंपरा शुरू की ! इस तरह इटली के छातीपर बेनिटो मुसोलीनी नाम का तानाशाह तेईस साल मुंग दलते रहा ! दुसरे महायुद्ध मे जब इटली के लोगों की हालत खस्ता हुईं ! और लोगों ने खुद बगावत से बेनिटो मुसोलीनी को इटली के गद्दी से हटाकर एक पेड़ पर, फांसी लगाकर कुछ दिनों तक उसके शव को उल्टा टांगकर रखा ! ताकि लोगों को पता चले कि, इस जल्लाद ने राष्ट्रीयता और देशभक्ति जैसे लफ्फाजी करके, पुंजीपतीयो के साथ मिलकर, आम इटालियन लोगों के साथ सिर्फ और सिर्फ लोखलुभावन नारे फेकता रहा ! और यह बड़बोलेपन की बात ! और असलियत का पता लगने के बाद ! लोगों ने मिलकर उसे इस तरह की सजा दी थी !
और लगभग यही हाल पडोसी देश जर्मनी के तानाशाह अडाल्फ हिटलर को अपने पापों का घडा भर आया है तो! उसने मुसोलीनी के शव की हालत देखने के बाद, 30 एप्रिल 1945 के दिन अपने आप को, और अपनी सहेली को गोली मारकर आत्महत्या कर ली ! और अपने साथ पांच लिटर पेट्रोल, अपने शरीर का नामोनिशान तक नहीं रहना चाहिए ! इस लिए जलाने के आदेश दे रखे थे !


कुल मिलाकर पच्चीस साल युरोपीय देशों के दोनों तानाशाह, प्रथम विश्व युद्ध के दौरान दोनों कार्पोलर के पदोपर युद्ध में शामिल थे ! और उसके बाद इटली और जर्मनी की स्थिति को लेकर दोनों ने अपने – अपने तरीके से उग्र राष्ट्रवाद का राग को आलापने, और उसके लिए एनिमी कन्सेप्ट काॅइन करके, हिटलर ने 65 लाख से अधिक यहुदीयोका वंशसंहार करने का पोग्राम किया !


सबसे हैरानी की बात सोलहवीं शताब्दी में जिस योरपीय भुमीपर ! तथाकथित रेनेसाँ जैसे सांस्कृतिक क्रांति होने का दावा किया गया ! उसी योरपीय देशों में इन चार सौ सालों में सौ से अधिक युद्ध हुए हैं ! लेकिन 1939-45 के दुसरे महायुद्ध मे शायद ही विश्व का कोई हिस्सा होगा जो अछूता रहा होगा ! असलमे हिटलर की नाझी पार्टी अॅटन ड्रेक्सलर ने स्थापित की थी ! जिसे हिटलर ने कब्जा कर लिया था !

उसी तरह मुसोलीनी के राजनीतिक जीवन की शुरुआत समाजवादी पार्टी से शुरू हुई थी ! लेकिन प्रथम विश्वयुद्ध ने इटली के अर्थतंत्र रसातल में चले जाने की वजह से, और लोगों में विलक्षण निराशा फैलने की वजह से मुसोलीनी ने उग्र राष्ट्रवादी भावना को हवा देने के, साथ-साथ प्राचीन रोमन साम्राज्य के पुनर्स्थापना का सपना लेकर आने से ! मध्य वर्गका सबसे बड़ा सपोर्ट मिला ! और बेरोजगार सैनिकों के साथ बेरोजगार मजदूरों का साथ मिला ! और हिटलर जिस तरह से जर्मनराष्ट्रवाद के नारे के साथ, आक्रमकतासे आगे बढ़ रहा था ! उसके भी पहले बेनिटो मुसोलीनी इटली में आगे बढ़ रहा था ! और दोनों के आक्रमक राष्ट्रवादी और इटली के पूराने रोमन साम्राज्य के जैसा ही, हिटलर ने जर्मन रेस ही आर्य है ! वही विश्व पर राज करने लायक है ! और दुसरे रेस के सभी लोग ‘उंटरमेन्शेन'(अस्पृश्य) मतलब निच रेस के, यहुदीयोके और स्लाव वंश के लोगों को मारने के आकड़ों को देखते हुए लगता है कि ! संपूर्ण जर्मनी की जनता हिटलर के इस कृति में शामिल थी !


और यही बात मुझे बार – बार बेचैन करते रहती है ! कि मास युफेरिया कैसे होता है ! जिसका अनुभव वर्तमान भारत में संघ परिवार के द्वारा 1925 से शैने – शैने फैलाने की वजह से ! भागलपुर, गुजरात, मुंबई, मुजफ्फरनगरके दंगे ! और अब धर्मसंसदो की झड़ी लगाकर ! बिल्कुल हिटलर या मुसोलीनी के यूटूब अगर कोई व्यक्ति देखेंगे तो ! माँब लिंचिग से लेकर चर्चों के उपर चल रहे हमलों से ! पहले बाबरी मस्जिद विध्वंस के प्रसंग, तथा दलितों के उपर होने वाले हमलों को देखते हुए लगता है कि ! सौ साल पहले शुरूआत किया गया, फॅशिस्मो और नाझी जर्मनी की काँकटेल मतलब ! वर्तमान समय में भारत के तथाकथित हिंदुत्ववादी संघटनोके द्वारा चलाए जा रहे, द्वेषपूर्ण प्रचार – प्रसार ! और सबसे महत्वपूर्ण बात वर्तमान सरकारों की ओर से, अप्रत्यक्ष रूप से समर्थन प्राप्त हुआ है ! अन्यथा पहली तथाकथित धर्मसंसद के बाद यह सब बंद करने की कोशिश की जगह ! अब प्रयागराज में आयोजित करने की घोषणा और उसमे सबसे मुख्य मुद्दा भारत की जगह हिंदुराष्ट्र कि घोषणा !


भारतीय संविधान की धज्जियाँ उडाने का काम शुरू किया जा रहा है ! जिसे हर हाल में रोका नहीं गया तो सौ साल पहले के इटली और जर्मनी की राहपर चले जाते हुए देखने से ! बेहतर होगा महात्मा गाँधी के सत्याग्रह आंदोलन के द्वारा इस फासीस्ट कदम को रोकने के लिए अपने जी – जान से कोशिश करना ही, महात्मा गाँधी जी की 74 वे पुण्यस्मरण और 153 वी जयंती और हमारे देश के 75 वे स्वतंत्रता वर्ष का सही सम्मान होगा !
डॉ सुरेश खैरनार 4 फरवरी 2022, नागपुर

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