साथियों फेसबुक पर शुरू से ही, मेरे जन्मदिन की तारिख 1 जून 1952 लिखि गई है ! और ज्यादा तर लोग उसी दिन मुझे शुभकामनाएं देते हैं ! लेकिन यह एक जून हमारे क्लास में आधे बच्चों का जन्म दिन मास्टरजी की कलम से लिखा गया है ! क्योंकि पहले ज्यादा तर मां-बाप अपने बच्चों को स्कूल लेजाने के समय, अपने बच्चों के जन्मदिन ठीक से याद नहीं रखने की वजह से ! सब कुछ मास्टरजी के हवाले करते थे ! और उस समय नहीं किसी सर्टिफिकेट या आधार कार्ड का इस्तेमाल शुरू नहीं हुआ था ! तो मास्टरमोशाय के कलम से जो भी तारिख लिखि गई वहीं सभी बच्चों का जन्म दिन माना जाता है !
तथाकथित आधार, वह तो हमारे देश के हर आदमी – औरत के उपर नजर रखने के लिए शुरू किया हुआ, मोसाद ने इजाद किया हुआ ! खुफिया एजेंसी की खुफियागिरी करने के लिए किया गया कारनामा है !
लेकिन मेरी माँ जो अब इस दुनिया में नहीं रही ! लेकिन वह इस दुनिया से जाने के पहले, हमारे पास कलकत्ता के निवास में कुछ दिन रहीं थीं (1995-96 !) तो उस समय क्रिसमस का उत्सव था ! और कलकत्ता का मशहूर सेंट कैथेड्राल चर्च, हमारे फोर्ट विल्यम के घर से, चल के जाने के फासले पर था ! तो हम सभी पैदल ही 25 दिसंबर की रात को खाने के बाद टहलते हुए ! व्हिक्टोरिया मेमोरियल से होते-होते, रस्ते के परली तरफ के, बिडला तारा मंडल के बगल के, सेंट कैथेड्राल चर्च में रात को बारह के पहले पहुंचे थे !


और वहाँ पर की सजावट, और झुले में एक बालक की मूर्ति को भगवान श्रीकृष्ण के जन्मदिन के जैसे ही ! झुलाते हुए, देखकर मां ने पुछा की “यह क्या है ?” तो मैंने कहा कि “आजसे दो हजार वर्ष पहले येशू ख्रिस्त का आज की तारीख को रात, मतलब 25 दिसंबर को जन्म हुआ था !” “तो माँ ने कहा कि तू भी, आज ही के दिन, और रात को इसी समय, पैदा हुआ था !”
तो मैंने कहा कि “स्कूल में दाखिला में तो मेरा जन्म दिन एक जून 1952 लिखा है !” तो वह बोली की तू बहुत ही छोटा, और शरारती था ! तो एक डेढ साल पहले ही ! तेरे पिताजी तुझे हाथ पकडकर सिधे स्कूल ले गए ! और उन्होंने मास्टरजी को कहा कि ” यह बहुत शैतानी करता है ! इसे आप स्कूल में दाखिला कर लिजिए ! ” तो मास्टरजी ने अपने हिसाब से स्कूल में एडजस्ट करने के लिए ! अन्य बच्चों की तरह, मेरी भी जन्मतिथि एक जून 1952 लिख दी ! हालांकि मै मेरे क्लास में मै सब से छोटा लडका था ! यह बात मुझे मां ने कहा, तब याद आया ! कि सब लडके – लडकियां मुझसे बडे-बडे क्यो थे ? मेरे उस पहले स्कूल का नाम था ‘जीवन शिक्षण शाळा’


जिसमें मैं मेरी क्लास में सब से छोटा होने की वजह से, लगभग हर शिक्षक का बहुत ही लाडला बनने की वजह से, मुझे मेरी हैसियत से अधिक लाड – प्यार और सम्मान की वजह से, गांधी जयंती हो या तिलक, फुले, डॉ. बाबा साहब, कर्मवीर भाऊराव पाटील, शिरीष कुमार, साने गुरुजी, आचार्य विनोबा, जवाहर लाल नेहरू, बयालीस के हिरो जयप्रकाश – लोहिया तथा पटवर्धन बंधू तथा सयाजी महाराज, बाबू गेनू, अहिल्या बाई होलकर, सरदार पटेल, भगतसिंह, सुखदेव तथा राजगुरु, नाना पाटिल, और अन्य मशहूर लोगों पर स्कूल के कार्यक्रम में, टेबल पर खड़ा करते हुए बोलने के लिए प्रोत्साहित करते थे ! और सुबह की प्रार्थना के बाद संपूर्ण एसेंब्लि को उस दिन के अखबारों के खबरें या कोई कहानी सुनाने के लिए कहते थे !


क्योंकि यह सब पढने का चस्का मुझे अक्षरज्ञान से परिचय हुआ तभी से शुरू हुआ ! जो अभि भी सिलसिला जारी है ! 7 वी फायनल की परीक्षा के बाद शायद 1964-65 में, हमारे गाँव में आठवीं कक्षा के लिए पढ़ने की सुविधा नहीं होने की वजह से, हमारे बगल के तालुका शिंदखेडा मे, मेरी छोटी बुआ के पास, आगे की पढ़ाई के लिए भेज दिया गया ! 19 64-65 के समय !
और शिंदखेडा के ‘न्यू इंग्लिश स्कूल’ मे दाखिला किया गया ! और उस स्कूल में बी. बी. पाटील नामके भूगोल विषय के एक बहुत ही प्यारे शिक्षक थे! जिन्होंने मुझे संघ की शाखा में शामिल होने के लिए प्रेरित किया ! और मै रोज श्याम शाखा में जाने लगा ! तो मेरे कुछ मुस्लिम मित्रों ने भी उस शाखा में आने की इच्छा जताई ! तो मैंने शाखा चालक को कहा, तो उसने वरिष्ठ अधिकारी को पुछकर बताता हूँ ! ऐसा कहा, लेकिन काफी समय हो गया, और मुस्लिम मित्र मुझे रोज पुछते थे ! तो मैंने शाखा चालक को फिर से पुछा, तो उसने कहा कि, अभी दशहरा आ रहा है ! तो वह संघ के स्थापना दिवस है ! और इस बार अपने यहाँ, उसके लिए मुख्य अतिथि, खान्देश के संघ प्रमुख श्री. नाना ढोबळ आ रहे हैं ! उनसे पूछकर बताया जायेगा !
तो दशहरे के दिन नाना ढोबळ आए! और उन्होंने संघ शक्ति बढ़ाने के लिए बहुत ही जोशीला भाषण दिया ! और उनके भाषण के बाद सवाल – जवाब का कार्यक्रम था ! तो मैने सबसे पहले हाथ उठाया, और उन्हें पुछा, की “आपने अपने भाषण में, संघ शक्ति बढ़ाने के लिए बहुत ही अच्छा भाषण दिया है ! तो मैं गत कुछ दिनों से कुछ नए स्वयंसेवक लाने की कोशिश कर रहा हूँ ! लेकिन मुझे स्थानीय पदाधिकारी इजाजत नहीं दे रहे हैं ! तो आपको मेरा विनम्र निवेदन है ! कि उन्हें संघ की शाखा में आने दिया जाए ! ”


तो उसी समय मंच पर बैठे स्थानीय पदाधिकारी ने उनके कानों में कुछ कहा ! तो उन्होंने मुझे, निचे बैठने के लिए कहा! तो मैंने मेरे सवाल के जवाब का क्या उत्तर है ? यह पुछा ! तो उन्होंने कहा कि संघ के अनुशासन में वरिष्ठों ने कहा तो मानना चाहिए ! तो मैंने कहा कि ” यह सवाल जवाब का समय चल रहा है ! और आप को मेरे सवाल का जवाब देना होगा, तभी मै बैठूंगा ! तो वह आगबबूला होकर बोले,” कि तुम इस सभा से बाहर निकल जाओ! “तो मैंने उनके मुंह पर ही जवाब दिया कि” मैं सिर्फ इस सभागार से ही नही, ऐसे संगठन से ही चला जाता हूँ ! कि जहाँ पर सवालो के जवाब नही दिया जाता हो !


इस तरह से मेरा संघ के साथ संबंध खत्म हुआ ! फिर मुझे किसिने बताया कि यहाँ पर हरिजन छात्रावास में भी एक शाखा चलती है ! लेकिन इसके झंडे का रंग तिरंगा है ! और उसमें यंत्र का चक्र, और कुदाल – फावडा है ! हम श्याम के समय हरिजन छात्रावास के आंगन में गए ! तो देखा कि, वहाँ पर लडके लडकियां तथा सभी जाति धर्म के लड़के शामिल थे ! शाखा चालक श्री. प्रभाकर पाटील थे! तो उन्होंने मुझे देखते ही पुछा की “तुम संघ की शाखा में जाते हो ना ?” मैन कहा कि “जाता था ! लेकिन उन्होंने मुझे निकाल दिया है !” तो उन्होंने कहा कि “क्यों निकाल दिया ?” तो मैंने कहा कि “मुस्लिम मित्रों को शाखा में शामिल करने को लेकर, उन्होंने मुस्लिम मित्रों को तो लिया ही नहीं ! उल्टा मुझे संघ से निकाल दिया !” तो उन्होंने कहा कि “तुम अपने मुस्लिम मित्रों को भी लेकर आओ ! यहां पर सभी धर्मों के और जाति तथा लडकियां तक आती है !” इस तरह से मेरा राष्ट्र सेवा दल के साथ नाता शुरू हुआ ! 1965-66 जो आज 59 सालों के पश्चात भी कायम है !
भारत जैसे बहु सांस्कृतिक देश में किसी भी एक संस्कृति या धर्म को थोपना, हमारे देश की डेमोग्राफी को देखते हुए, अव्यवहारिक, और देश की एकता और अखंडता को लेकर, खतरा पैदा करने की बात है ! यहां पर सभी की संस्कृति तथा भाषा, खानपान, वेशभूषा का सम्मान करते हुए, एक दूसरे के साथ प्रेम और मिलजुलकर रहकर ही, हमारे देश में शांति सद्भावना कायम रह सकती है ! किसी भी एक धर्म या जाति तथा भाषा, खानपान तथा वेशभूषा को एक दूसरे पर थोपना मतलब हमारे देश की एकता और अखंडता के साथ खिलवाड़ करना होगा !


इस तरह आजसे तिस पैतिस साल पहले, कलकत्ता के सेंट कैथेड्राल में रात के बारह बजे के बाद, मुझे मां से पहली बार मेरे जन्मदिन की बात पता चली ! तो मेरे शरीर पर रोमांच खड़े हो गए ! और मुझे मन – ही – मन में आया कि, येशू ख्रिस्त और मेरा जन्मदिन और समय भी लगभग एक है !
लेकिन यह बात मैंने बहुत समय तक किसी को बताई नही ! क्योंकि मुझे थोडा सा शक था ! इसलिए जब मां कलकत्ता में, बहुत होमसिक हो गई ! तो उसे छोडने के लिए गांव गया ! और सबसे पहले ग्रामपंचायत का जन्म-मृत्यु का रजिस्ट्रेशन का रेकॉर्ड देखने को गया ! तो उन्होंने कहा कि “कुछ अंतराल के बाद हमें यह रेकॉर्ड तहसीलदार के कार्यालय में जमा करना पड़ता है ! तो आप साक्री में तहसीलदार के ऑफिस में जाकर पता किजिए! ”


तो मैं हमारे तालुका साक्री के तसिल ऑफिस चला गया ! तो साक्री के राष्ट्र सेवा दल के, हमारे विधायक मित्र नानासाहेब ठाकरे खुद मुझे तहसीलदार से परिचित कराने के बाद बोले,” कि डॉक्टर खैरनार हमारे राष्ट्र सेवा दल के सदस्यों में से एक है ! तो इन्हें जो भी मदद चाहिए किजिए ! तो तहसीलदार ने मेरे लिए रेकॉर्ड रुम जो धुलभरी, और कई दिनों के पश्चात खोली गई ! और रेकॉर्ड इनचार्ज को हिदायतें देते हुए कहा कि इनका जन्म का रेकॉर्ड आज किसी भी हालत में ढूंढ दिजिए ! क्योंकि इन्हें कल कलकत्ता वापस जाना हैं !
तो मैंने और मेरे एक बालू भामरे नामके बचपन के मित्र, और वह रेकॉर्ड अफसर ने उन धुलभरी फाईलों को पांच – छह घंटे उलट – पलट करने के बाद देखा कि, 1950, 51, 52, 54, 55, 56, 57, 58, 59, 60 मतलब साठ के दशक के शुरुआती दौर में, मालपूर गांव की दस साल की जन्म-मृत्यु के रेकॉर्ड में मेरा जन्म का उल्लेख कही नही निकला ! और बराबर 1953 का रेकॉर्ड गायब था !
तो मैंने इतनी जद्दोजहद के बाद मां की बात सही है ! इस नतीजे पर पहुंचा ! और “तू येसू के दिन नाताळ मे पैदा हुआ !” यह उसकी बात मैंने अपने मन में ठान ली ! की एक मां इतनी प्रसव पीड़ा से मुझे घर के घर में ही जन्म देते हुए, भला गलती कैसे कर सकती है ? इस तरह मैं भी अब इस नतीजे पर पहुंचा हूँ ! कि मेरे स्कूल लिविंग सर्टिफ़िकेट पर भलेही एक जून 1952 लिखा है ! लेकिन अपनी जन्मदात्री मां के कहने पर देर से ही सही लेकिन मेरे जन्मदिन की तारीख और समय का पता तो चला ! जो 25 दिसंबर 1953 है !
तो साथियों आपकी शुभकामनाएं अबतक इकहत्तर सालों से, एक जून को मिलती रहती है ! लेकिन अब सत्तर वे जन्मदिन पर मैंने ठान लिया है ! कि अब मेरा जन्मदिन 25 दिसंबर 1953 है ! यह पिछले कुछ दिनों से मनमें बार – बार उधेडबुन में आता- जाता रहा है !


क्योंकि वैसे भी मै देख रहा हूँ, कि बहुत सारे मराठी भाषी मित्रों के जन्मदिन एक जून को देखते रहता था ! और मुझे मेरा जन्मदिन कभी भी एक जून लगा नही था ! अनमने भाव से चुपचाप शुभकामनाएं स्विकार कर लेता था ! आज पहली बार खुलकर स्विकार कर रहा हूँ ! कि मैं आज अपने जीवन के सत्तर साल की यात्रा पूरी कर के 71 वे वर्ष की तरफ मुखातिब हो रहा हूँ ! पता नहीं आगे की जिंदगी कितनी है ? क्योंकि काफी हमउम्र मित्र एकेक विदा हो रहै है ! और मुझे भी आजसे छ साल पहले तीन स्टेंट लगे हैं ! भागलपुर दंगे के बाद से बीपी और शुगर की बिमारी साथ-साथ चल रही है !


सबसे ज्यादा मित्र 2023 में और कोरोना के समय में छोडकर चले गए हैं ! लेकिन मैंने होश सम्हाला तबसे, जाति-धर्म निरपेक्ष तथा समतामूलक समाज, जिसमें लिंगभेद के लिए कोई स्थान नहीं रहेगा ! ऐसे समाज की निर्मिति के लिए चल रहा, प्रयास जारी रहेगा ! और इस मार्ग में आनेवाली बाधाओं को हमारे देश के संविधान के अनुसार दूर करने की कसम खाता हूँ !
और वर्तमान सरकार ने अपनी टूच्ची राजनीतिक रोटी सेंकने के लिए ! सभी तरह के अल्पसंख्यक समुदायों को बुरी तरह से भय की ग्रंथि का शिकार बनाकर रखा है ! उन्हें भयग्रस्त मनस्थिति से निकालने की, मै अपनी संविधानिक और नैतिक जिम्मेदारी मानता हूँ ! और वैसे ही हमारे देश की आधी आबादी महिलाओं की, तथा दलित और पिछड़े वर्ग के लोगों को हजारों सालों से मनुस्मृति के हिसाब से अत्यंत उपेक्षित रुप से रखा गया है ! उन्हें सही मायने में बराबरी में लाने के लिए समाज-सुधारक जो हमारे पूर्वज रहे हैं! उनके अधुरे कार्य को आगे बढ़ाने के लिए किसी भी प्रकार की कोर – कसर बाकी नहीं रखुंगा ! और सांप्रदायिक तथा जातीय और पुंजिपतियो के दलालों के असली रूप को उजागर करने का प्रयास यथावत जारी रखने की कसम खाता हूँ !

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