नई दिल्ली (ब्यूरो, चौथी दुनिया)। नरेंद्र मोदी ने अपने प्रधानमंत्री शपथ समारोह में सार्क देशों को आमंत्रित करके संकेत दिए थे कि वो पुराने रिश्तों को नए तरीकों से गढ़ेंगे। कई मौकों पर प्रधानमंत्री ने ये साबित भी किया कि वो रिश्तों की डोर को अपने हिसाब से गढ़ रहे हैं जिससे दोनों तरफ फायदा हैं। लेकिन ऐसे मौके ज्यादा आए हैं जब भारत को नुकसान उठाना पड़ा है।

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अब भारत के अमेरिका साथ रिश्तों की चर्चा करते हैं। प्रेसिडेंट ट्रंप और पीएम मोदी के बीच अच्छे संबंधों की बातें कही जाती हैं। लेकिन हाल ही में ट्रंप ने जो बाइ अमेरिकन और हाइ अमेरिकन का नारा दिया। उससे सबसे ज्यादा नुकसान यूएस में रहने वाले भारतीय कामगारों को होगा। वहां भी लाखों लोगों की नौकरियों पर मुश्किलों के बादल मंडराने लगे हैं।

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अमेरिका या ऑस्ट्रेलिया भारत को बड़ा बाजार मानते हैं वो यहां की नीतियों का अपनी सहूलियत से इस्तेमाल कर रहे हैं और हम सिर्फ आदर और सत्कार किए जा रहे हैं। भारत का आम आदमी संबंधों की पेचिंदा बातें नहीं समझता है। उसे सिर्फ नौकरी और सुकुन चाहिए। मोटी बात ये है कि अगर सरकार दूर देशों में बैठे भारतीय लोगों को ये उपलब्ध नहीं करा पाएगी। तो ये विषय सोचने का है।

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