dhan-jalate-kisan-3सूबे के किसान इन दिनों अपनी किस्मत को कम और धान पर हो रही राजनीति को ज़्यादा कोस रहे हैं. यह पहली बार नहीं है, जब किसान रात-दिन की मेहनत से उपजाई हुई धान की फसल औने-पौने दामों पर बेचने के लिए मजबूर हो गए हैं. सरकारी वादे कुछ थे और ज़मीन पर कुुछ और हो रहा है. हद तो तब हो गई, जब पूर्व सांसद जगदानंद सिंह ने भी कह दिया कि उन्हें अपनी धान की फसल औने-पौने दामों पर बेच देनी पड़ी.

सरकार की लेटलतीफी और धान खरीद माफिया के चंगुल में फंसकर किसान खून के आंसू रो रहे हैं और सत्ता पक्ष एवं विपक्ष के नेता उनके आंसू पोछने के बजाय केवल एक-दूसरे पर आरोप लगाकर राजनीति करने में व्यस्त हैं. बिहार में धान का कटोरा नाम से मशहूर शाहाबाद, खासकर रोहतास के किसानों की बेबसी अब राजनीतिक आंच पर रोटी की तरह सिंकने लगी है. खलिहान में पड़ी फसल की रखवाली के लिए किसान ठिठुरते हुए रतजगा कर रहे हैं, वहीं सड़क पर उतरा विपक्ष इस बहाने सरकार को घेरने की राजनीति कर रहा है.

सरकार के वादे कोरे कागज के पन्नों की तरह प्रतिदिन एक-एक कर पलटते जा रहे हैं और किसान अब बिचौलियों के इंतजार में अपनी आंख बिछाए बैठे हैं. इस वर्ष प्रति हेक्टेयर रिकॉर्ड उत्पादन के साथ रोहतास के किसानों ने दो लाख हेक्टेयर से ज़्यादा ज़मीन पर फसल उपजाई थी, जिसकी सही क़ीमत की बात कौन करे, अब एक हज़ार रुपये प्रति क्विंटल पर भी आफत आ पड़ी है.

दूसरी दिक्कत यह है कि इस फसल की खरीदारी करे भी तो कौन? सरकार ने जो मापदंड निर्धारित कर रखे हैं, उनके आधार पर पैक्स भी किसानों से धान खरीदने में घबराने लगा है. सरकारी खरीद केंद्रों पर अभी तक खरीदारी का काम शुरू न होना राज्य सरकार की नकारात्मक मानसिकता की एक बानगी है, जिसे दूसरे शब्दों में फंड की अनुपलब्धता की बेबसी भी कहा जा सकता है. हालांकि, रोहतास के डीएम अनिमेष पराशर ने आने के साथ ही जिस तरह से कई दौर की मैराथन बैठकों में यह संकेत दिया था कि हर हाल में धान खरीदारी में पारदर्शिता बरती जाए, वह तो तब संभव था, जब खरीदारी शुरू हो पाती.

उधर भाजपा ने धान खरीदारी के सवाल पर दिनारा विधानसभा क्षेत्र के पूर्व प्रत्याशी राजेंद्र सिंह के माध्यम से दिनारा से एक आंदोलन की शुरुआत की, जिसके मंच पर सांसद अश्विनी चौबे एवं पूर्व मंत्री रामधनी सिंह सहित कई दिग्गजों ने एक बड़े आंदोलन का खाका खींचा. ज़िला मुख्यालय में समाहरणालय के सामने धान जलाकर किए गए प्रदर्शन और धरने के माध्यम से विपक्ष ने यह जताने का प्रयास ज़रूर किया कि वह किसानों के बहते आंसू पोछने के लिए उठ खड़ा हुआ है, लेकिन यह भी एक सामयिक घटना की तरह है.

आ़खिर विभिन्न राजनीतिक दल एवं उनके नुमाइंदे फसल पकने के साथ सरकार पर दबाव बनाने का काम क्यों नहीं करते? किसानों के हाथों से बिचौलियों के हाथों में फसल पहुंचने के बाद क्यों उनके आंसू निकलते हैं और वे सड़क पर उतर कर धरना-प्रदर्शन शुरू कर देते हैं? यही रोना यहां के मूल किसानों का है, जो फिलहाल प्रति एकड़ तीस क्विंटल से ज़्यादा धान का रिकॉर्ड उत्पादन करके खलियान में अपनी फसल की रखवाली कर रहे हैं. प्रति क्विंटल तीन सौ रुपये बोनस की बात कौन करे, अब निर्धारित समर्थन मूल्य पर भी आफत है, जिसके लिए किसान पल-पल तिल-तिल कर मर रहे हैं.

यह अलग बात है कि अब तक रोहतास में किसानों द्वारा आत्महत्या किए जाने की कोई खबर नहीं मिलीं, लेकिन खलिहानों में फसल की रखवाली करते समय कड़ाके की ठंड से मौत होने की आधा दर्जन ़खबरें तो रोहतास प्रशासन के पास भी हैं, जो इस बात का प्रमाण है कि अपनी फसल को गले लगाए बैठे किसान उसी के साथ शहीद हो जाना बेहतर मानते हैं. किसी तरह से कर्ज लेकर रबी की फसल की बुआई, फिर पटवन और खाद छिड़काव की चिंता के साथ टूट चुके रोहतास के किसानों को अपनी धान की फसल के लिए प्रति क्विंटल आठ सौ रुपये की क़ीमत भी नसीब नहीं है, जबकि सरकारी दावे सोलह सौ रुपये से ज़्यादा देने की डींग मार चुके हैं. 15 दिसंबर तक गेहूं बुआई का निर्धारित मानक समय निकल गया.

धान की फसल खलिहानों में पड़ी है. पैक्स की खरीदारी सीमित तौर पर हुई है. राज्य खाद्य निगम ने अब तक एक छंटाक भर खरीदारी नहीं की. ये हालात रोहतास में मौजूद सैकड़ों चावल मिलें बंद होने के संकेत दे रहे हैं. चावल मिल मालिक विनोद पांडेय के अनुसार, बाहर चावल की सही क़ीमत न मिलने के कारण धान खरीदने की हिम्मत नहीं हो पा रही. अब तक दूसरे राज्यों का एक भी बड़ा खरीदार यहां नहीं पहुंचा. राज्य सरकार खरीदारी के मामले में सुस्त है और केंद्र सरकार की तऱफ से भी अब तक कोई ठोस निर्देश नहीं मिले. यह स्थिति स्थानीय किसानों के चेहरे पर चिंता की लकीरें और गहरी करती है.

किसान महासंघ के संयोजक रामा शंकर सरकार कहते हैं कि बिहार सरकार शुरू से धान खरीद के नाम पर नौटंकी करती रही है. नीतीश के इतने वर्षों के कार्यकाल में एक वर्ष भी पाक-सा़फ धान खरीदारी नहीं हुई. किसानों को धान का समर्थन मूल्य तो मिला नहीं, बोनस की बात कौन करे? रामा शंकर ने कहा कि राज्य खाद्य निगम किसानों को लूटने वाली एजेंसी के रूप में सामने आया है, इस पर प्रतिबंध लगना चाहिए. रालोसपा विधायक ललन पासवान ने मुख्यमंत्री को पत्र लिखकर रोहतास में धान खरीदारी न होने पर गहरा आक्रोश व्यक्त किया है.

उन्होंने कहा कि अगर सरकार ने समय रहते उचित क़दम न उठाए, तो किसान धान की बोरियों के साथ एनएच और रेलवे ट्रैक जाम करेंगे. ज़रूरत पड़ी, तो चौक-चौराहों पर फसल जलाकर विरोध प्रदर्शन भी किया जाएगा. रोहतास में निर्धारित ढाई लाख मीट्रिक टन खरीदारी का लक्ष्य दस प्रतिशत भी पूरा नहीं हुआ. 50 प्रतिशत धान बिचौलियों के हाथों में जा चुका है.

भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष मंगल पांडेय कहते हैं कि राज्य में धान खरीद के नाम पर करोड़ों रुपये की लूट का ब्लूप्रिंट फिर तैयार है. पिछले तीन वर्षों में धान खरीद में गड़बड़ी और क़रीब 50 करोड़ रुपये की हेराफेरी का मामला सामने आ चुका है. 31 मार्च तक 30 लाख मीट्रिक टन धान खरीद का लक्ष्य है, लेकिन अब तक 15 हज़ार मीट्रिक टन धान की भी खरीद नहीं हुई. ऐसी स्थिति में तीन माह के भीतर 30 लाख मीट्रिक टन धान खरीद का लक्ष्य पूरा हो पाना असंभव है.

ऐसे में, उस 600 करोड़ रुपये का क्या हश्र होगा, जो ज़िलों एवं पैक्स को भेजा गया है? पैक्स एवं व्यापार मंडलों को 27 लाख मीट्रिक टन और राज्य खाद्य निगम को तीन लाख मीट्रिक टन धान खरीद का लक्ष्य दिया गया है. जब धान खरीद का लक्ष्य पूरा नहीं होगा, तो धनराशि का भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ना तय है. पिछले तीन वर्षों में क़रीब 1,100 पैक्स संस्थाओं के नाम कागज पर धान खरीद और पैसों की हेराफेरी में उजागर हुए हैं, जिसकी प्राथमिकी दर्ज कराने की तैयारी है. ज़ाहिर है कि ऐसी ब्लैकलिस्टेड पैक्स संस्थाओं के ज़रिये धान खरीद नहीं होगी, तो लक्ष्य कैसे पूरा होगा? पांडेय ने कहा कि भाजपा धान खरीद और किसानों को बोनस के भुगतान की मांग को लेकर गांव-गांव आंदोलन तेज करेगी. इसी क्रम में प्रदेश के सभी प्रखंड मुख्यालयों में धरना दिया गया.

पूर्व उपमुख्यमंत्री सुशील मोदी कहते हैं कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को राजद नेता डॉ. रघुवंश प्रसाद सिंह द्वारा उठाए गए सवालों का जवाब देना चाहिए. डॉ. सिंह का सा़फ कहना है कि सरकार ने बिहार को सूखाग्रस्त घोषित नहीं किया, जिसके चलते राज्य को केंद्रीय सहायता से वंचित होना पड़ा. राज्य के अधिकारियों की कार्यशैली संतोषप्रद नहीं है. नीतीश सरकार हर मोर्चे पर पूरी तरह नाकाम है. डॉ. सिंह ने सरकार के कामकाज पर सवाल उठाते हुए कहा कि सरकार की उपलब्धियों की उत्तर पुस्तिका का हर पन्ना खाली है. ऐसे में वह सरकार को पासिंग मार्क्स भी नहीं दे सकते.

चार दिनों पहले लगातार बढ़ते अपराधों के मद्देनज़र मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से जवाब मांगने वाले डॉ. सिंह ने एक बार फिर राज्य सरकार को सवालों के घेरे में खड़ा कर दिया है. सुशील मोदी ने कहा कि अगर नीतीश कुमार में साहस है, तो वह इन तमाम सवालों का जवाब दें. डॉ. सिंह का आरोप है कि राज्य सरकार ने सूखाग्रस्त क्षेत्र घोषित कर केंद्र को रिपोर्ट नहीं दी, इसलिए बिहार केंद्रीय सहायता पाने से वंचित रह गया.

इन आरोपों के जवाब में जदयू के मुख्य प्रवक्ता संजय सिंह कहते हैं कि भाजपा नेता सुशील मोदी अपने दिमाग़ पर ज़ोर डालकर लोकसभा चुनाव के दौरान बिहार के किसानों से किए गए वादे याद करें. नरेंद्र मोदी ने फसल की लागत से डेढ़ गुना ज़्यादा समर्थन मूल्य देने का वादा किया था, लेकिन बढ़ाए मात्र 50 रुपये. सुशील मोदी की सिफारिश पर राधा मोहन सिंह कृषि मंत्री बनाए गए.

राज्य सरकार की तऱफ से कहा गया कि बिहार सूखाग्रस्त है, लेकिन केंद्रीय टीम जांच करने नहीं आई. आ़िखर क्यों? क्या यह बिहार के साथ धोखा नहीं है? सुशील मोदी को शायद पता नहीं है कि बिहार सुखाड़ और बाढ़ जैसी दोहरी आपदा झेलता है, लेकिन केंद्र से कोई सहायता नहीं मिली. बिहार के हिस्से की रकम महाराष्ट्र को दे दी गई, क्योंकि वहां भाजपा की सरकार है. बहरहाल, इन्हीं आरोपों-प्रत्यारोपों के दौर के बीच धान औने-पौने दामों में बिक रहा है और किसान असहाय से सरकार की ओर निहार रहे हैं.

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