rtiजिस सूचना के अधिकार (आरटीआई) को सुशासन का सशक्त हथियार बताया जाता है, वही अब आरटीआई कार्यकर्ताओं के लिए जानलेवा बनता जा रहा है. अप्रैल 2016 मेें मिले एक आरटीआई जवाब में बताया गया था कि ओ़डीशा में अब तक 12 आरटीआई कार्यकर्ताओं पर हमले हुए हैं. आरटीआई कार्यकतार्र्ओं पर हमले के मामले में तब ओ़डीशा का स्थान आठवां था. तब 63 मामलों के साथ महाराष्ट्र पहले स्थान पर था. लेकिन हाल के दिनों में आरटीआई कार्यकर्ताओं पर हो रहे हमलों ने इस मामले में ओ़डीशा को शीर्ष के राज्यों में शामिल कर दिया है.

अप्रैल के अंतिम सप्ताह से अब तक 5 आरटीआई कार्यकर्ताओं पर हमले किए जा चुके हैं. लेकिन किसी भी मामले में अब तक पुलिसिया कार्रवाई रंग लाती दिख नहीं रही है. ऐसा भी नहीं है कि ऐसे हमलों के कारणों से पुलिस अनभिज्ञ है. आरटीआई के जरिए सामने आए विभिन्न सरकारी व गैर सरकारी संस्थाओं के घपले-घोटाले आरटीआई कार्यकर्ताओं की जान के दुश्मन बन रहे हैं. कई विभागों में पैसों की हेराफेरी में सफेदपोशों के नाम सामने आए हैं. इसलिए अब वे ऐसी आवाजों को हमेशा के लिए शांत करने पर तुले हुए हैं. हाल के दिनों में जिन आरटीआई कार्यकर्ताओं पर हमले हुए हैं, उनमें से किसी ने वन विभाग में घोटाले का पर्दाफाश किया था, तो किसी ने निजी संस्थान द्वारा सरकारी जमीन के अतिक्रमण का खुलासा किया था.

स्थानीय कार्यकर्ताओं का संगठन ओ़डीशा सूचना अधिकार अभियान इस मामले को लेकर आवाज उठाता रहा है. इस संगठन की ओर से मुख्यमंत्री नवीन पटनायक को भी चिट्ठी लिखकर इस मामले से अवगत कराया गया है. लेकिन अब तक कोई ठोस कार्रवाई होती दिख नहीं रही है. ओ़डीशा सूचना अधिकार अभियान के कोर बोर्ड मेंबर और आरटीआई कार्यकर्ता श्रीकांत पकल का कहना है कि आरटीआई कार्यकर्ताओं पर हो रहे हमले दुर्भाग्यपूर्ण हैं. सूचना का अधिकार कानून हमें संविधान की तरफ से मिला है और हम इसके जरिए भ्रष्टाचार के मामले उजागर करते रहेंगे.

आरटीआई कार्यकर्ताओं पर हाल में हुए हमले

सुभाष महापात्रा- 24 अप्रैल को तब इस युवा आरटीआई कार्यकर्ता पर हमला हुआ, जब वे शाम में अपने घर लौट रहे थे. हमला करने वाले बाइकर्स ने बंदुक की नोक पर इन्हें धमकी भी दी कि अगर ये कलिंगा इंस्टीच्युट ऑफ इंडस्ट्रीयल टेक्नोलॉजी (केआईआईटी) के अच्युत सामंत के खिलाफ अपनी मुहिम जारी रखते हैं, तो इन्हें जान से मार दिया जाएगा. इस घटना के बाद सुभाष महापात्रा ने खांडिगरी थाने में अच्युत सामंत के खिलाफ केस दर्ज कराया. हालांकि अब तक उस केस पर पुलिस कार्रवाई शुरू नहीं हुई है. गौरतलब है कि सुभाष महापात्रा की आरटीआई से ही खुलासा हुआ था कि पटिया, भुवनेश्वर स्थित केआईआईटी ने वन विभाग की 18 एकड़ जमीन पर अवैध कब्जा कर रखा है. इस खुलासे के बाद नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने ओ़डीशा सरकार को केआईआईटी से जमीन वापस लेने का आदेश दिया था.

प्रदीप प्रधान- युवा आरटीआई कार्यकर्ता प्रदीप प्रधान ओडीशा सूचना अधिकार अभियान के राज्य संयोजक भी हैं. इनके आरटीआई के माध्यम से कई सरकारी योजनाओं में अनियमितताएं उजागर हुई हैं. यही कारण है कि कुछ लोग इनके पीछे पड़े हुए हैं. बीते 3 मई को भुवनेश्वर स्थित इनके घर के ठीक सामने कुछ लोग इनकी बहन के शरीर पर पेट्रोल फेंक कर भाग गए. घटनास्थल से मात्र 50 मीटर की दूरी पर मैत्री विहार पुलिस पोस्ट है, लेकिन अपराधी पुलिस की पकड़ में नहीं आ सके. घटना के बाद प्रदीप प्रधान ने एफआईआर दर्ज कराया. अब तक अपराधी पकड़ नहीं जा सके हैं. हालांकि प्रशासन की तरफ से प्रदीप प्रधान के परिवार को पुलिस प्रोटेक्शन मुहैया कराया गया है.

शंकर पानीग्रही- इनके द्वारा मांगे गए आरटीआई जवाब से ओ़डीशा सरकार की कई सोशल वेलफेयर स्कीम्स में सरकारी पैसों की हेराफेरी का खुलासा हुआ था. शंकर पानीग्रही आरटीआई के जरिए भ्रष्टाचार के मामले उजागर करने के साथ-साथ नौजवानों को भी सूचना के अधिकार के उपयोग की ट्रेनिंग देते हैं. वे ओ़डीशा सूचना अधिकार अभियान के सक्रिय कार्यकर्ता भी हैं. 10 मई को रात 08:02 बजे उन्हें एक अज्ञात नंबर से कॉल आया. कॉल करने वाले ने बिना कुछ पूछे भद्दी गालियां देनी शुरू कर दी. उसने शंकर को जान से मारने और पत्नी के रेप की भी धमकी दी. शंकर ने उस कॉल को रिकॉर्ड कर लिया और उसी के आधार पर 12 मई को बोलनगीर पुलिस स्टेशन में केस दर्ज कराया. कार्रवाई जारी है, लेकिन अब तक अपराधी पकड़े नहीं जा चुके हैं.

केशब महाकुड़- दिव्यांग होने के बावजूद केशव महाकुड़ की भ्रष्टाचार से लड़ने की प्रतिबद्धता में कोई कमी नहीं है. पिछले 12 मई को वे डीएफओ नयागढ़ से संबंधित वन विभाग के एक भ्रष्टाचार के मामले की शिकायत करने भुवनेश्वर गए थे. वहां उन्होंने वन पर्यावरण मंत्री विजय राउत्रे से मिलकर उन्हें भ्रष्टाचार के मामले से अवगत कराया. भ्रष्टाचार के इस मामले को उजागर करने को लेकर मंत्री जी ने उनकी सराहना भी की. केशव जब वहां से लौट रहे थे, तभी रास्ते में कुछ लोगों ने उनका ऑटो रोका और बुरी तरह से उनकी पिटाई की. केशव किसी भी तरह से पुलिस स्टेशन पहुंचे और एफआईआर दर्ज कराई. हालांकि अब तक उनके कंप्लेन पर कोई कार्रवाई नहीं हुई है. पिछले साल भी केशव पर अज्ञात लोगों ने हमला किया था, जिसमें वे बुरी तरह से जख्मी हो गए थे. तब उन्हें पूरा एक महीना हॉस्पिटल में रहना पड़ा था. गौरतलब है कि केशव ने वन विभाग से जुड़े करोड़ों रुपए के भ्रष्टाचार के एक मामले को लेकर डीएफओ नयागढ़ के कार्यालय में आरटीआई डाला था. इस भ्रष्टाचार के मामले में स्थानीय बीजद नेता की भी सहभागिता सामने आई थी. इस मामले के सामने आने के बाद से ही केशव पर हमले होने लगे. केशव का ये मामला राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग में भी दर्ज हुआ है.

प्रियव्रत गड़नाईक- अवैध पत्थर खनन और उससे अवैध वसूली को लेकर प्रियव्रत गड़नाईक ने आरटीआई दाखिल की थी, लेकिन लोक सूचना अधिकारी ने उन्हें जवाब देने से मना कर दिया. इसके बाद उन्होंने ओड़ापाड़ा तहसील में पिटीशन दायर किया. पिछले साल 16 जून को जब वे ओड़ापाड़ा तहसील से अपने पिटीशन की पहली सुनवाई के बाद लौट रहे थे, तभी एनएच-55 पर ढेंकानाल जिले में 6 अज्ञात लोगों ने उनपर हमला कर दिया और उन्हें पास की नदी में धक्का दे दिया. प्रियव्रत के हाथ और पैर की हडि्‌डयां टूट गईं. इसके बाद लंबे समय तक उन्हें बेडरेस्ट में रहना पड़ा. हमले के बाद उन्होंने पुलिस में शिकायत दर्ज कराई थी. आरोपी पकड़े भी गए, लेकिन पुलिस ने कोर्ट में केस को मजबूती से नहीं रखा और आरोपी बेल पर रिहा हो गए. प्रियव्रत अब भी इंसाफ के लिए लड़ रहे हैं.

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