नितीश कुमार अबकी बार शायद अपने जीवन की आखिरी राजनीतिक पारी खेल रहे हैं और लगता है कि वह उनके लिए दिन प्रतिदिन कष्टदायक होती जा रही है ! 1972-73 के जेपी आंदोलन की ही देन है जो वह आज इस मुकाम तक पहुंचे हैं ! और 25 जून 1975 को श्रीमती इंदिरा गाँधी जी ने आपातकाल और प्रेस सेंसरशिप के खिलाफ जो भी लोग थे उनमें से एक नितीश कुमार भी एक है ! और वही नितीश कुमार भारत के गणतंत्र दिवस की 70 वी जयंती के पूर्व संध्या पर बिहार में सरकार,विधायक तथा मंत्री और अधिकारियों के खिलाफ सोशल मीडिया मे अगर कुछ आपत्तिजनक टिप्पणी करेंगे तो उनके उपर कारवाही करने की घोषणा की है !

अब यह सत्ता का नशा है या अल्पमत में होने के बावजूद जबर्दस्ती मुख्यमंत्री पद का वहन करने की झंझट से झुंझलाहट में इस तरह के उटपटांग निर्णय ले रहे हैं और अपनी असुरिक्षीत मानसिकता का परिचय दे रहे हैं !अब यह आपत्तिजनक टिप्पणी है या नहीं यह कौन तय करेगा ?आपातकाल में पुलिस इंस्पेक्टर रैंक के लोग अखबरोके दफ्तर में बैठकर उन अखबरो मे आज कौन-सी खबर छापने देना है और कौन सी नहीं छापने के निर्णय लेते थे ! और उनके अज्ञानता के कारण दर्जनो किस्सों और कहानियों से आपातकाल के बाद जो साहित्य लिखा गया है वह आज मौजूद हैं !

मुझे व्यक्तिगत रूप से भारत सरकार को उखाड़कर फेकना (डी आई आर)के अंतर्गत हिरासत में लिया था और मेरे खिलाफ जो साहित्य कोर्ट के सामने रखा गया था उसमें हर जोर जुल्म के टक्कर में संघर्ष हमारा नारा है और सिंहासन खाली करो कि जनता आती है! लिखें हुए दो बैनर और साधना नाम की मराठी पत्रिका के 1975, 25 जून के पहले के कुछ अंक कोर्ट में रखे गये थे ! जज ने कहा कि इस तरह के बैनर से सरकार उखाड़कर फेकना होता तो बहुत पहले ही सरकार उखड गई होती और साधना पत्रिका के सभी अंक आपात्काल लगने के पहले के है! जब सेंसरशिप नहीं थी ! इसलिए इन अंकों से भी सरकार उखाड़कर फेकना सिध्द नही होता है !

यह बात मैंने उदाहरण के लिए विशेष रूप से दि है हमारे देश की पुलिस और प्रशासन में कितने प्रतिभाशाली लोगों का शुमार है इसका उदाहरण के लिए दिया है !और बिहार पुलिस और प्रशासन में कितने प्रतिभा शाली लोगों की भरमार है और वह किस तरह से प्रशासन चलाते हैं और यह बात मुझसे ज्यादा नितीश कुमार जी को पता है !नितीश कुमार कभी लोहिया,जेपी,कर्पूरी ठाकुर और किशन पटनायक जैसे कुजात समाजवादी लोगों के सोहबत मे रहे हैं वह कौन-सी बात उन महानुभावों के जीवन से लिए पता नहीं ! क्योंकि वह सभी महानुभावों का मेरे भी जीवन पर प्रभाव है !

और परमतसहिष्णूता की बात इनके जीवन का सबसे महत्वपूर्ण पहलू रहे हैं और इसके लिए उन्होंने अपने जीवन भर संघर्ष किया है और जयप्रकाश नारायण जी के जीवन का सबसे महत्वपूर्ण और आखिरी पर्व तो तानाशाही के खिलाफ ही रहा है और आज नितीश कुमार की राजनीतिक हैसीयत बनाने के लिए विशेष रूप से वही दौर काम आ रहा है और वही नितीश कुमार भारत के गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर सोशल मीडिया मे सेंसरशिप की वकालत कर रहे हैं !
क्या नितिश कुमार अपना आत्मविश्वास खो गए हैं कि अब कोई आलोचना भी सह नहीं सकते ?

पिछले साल केरल की सरकार ने भी इस तरह के निर्णय की घोषणा की थी लेकिन जब उनके इस तरह के निर्णय की काफी आलोचना होने के बाद वापस ले लिया है और बिहार के पडोसी उत्तर प्रदेश में जबसे आदित्यनाथ मुख्यमंत्री बने है तबसे अघोषित आपातकाल जैसी स्थिति बनी हुई है ! मीडिया से लेकर जनआंदोलन के लोगों के साथ किस तरह से पेश आते हैं इसका ताजा उदाहरण जेपी के छात्र युवा संघर्ष वाहिनी के ओरिसा के साथियों की पहल से 26 जनवरी के दिल्ली स्थित चल रहे किसानों को समर्थन देने हेतु ओरिसा से निकल कर उत्तर प्रदेश होते हुए दिल्ली जाने के रास्ते में उत्तर प्रदेश के सीमा पर ही रोकने का काम किया लेकिन उत्तर प्रदेश के और बिहार के छात्र युवा संघर्ष वाहिनी के साथियों ने जाकर उत्तर प्रदेश पुलिस-प्रशासन से बहुत जद्दो-जहद करने के पस्चात आज ओरिसा के किसानों को दिल्ली में पहुचने मे कामयाबी हासिल हुई है और वह आज की रैली में भाग ले रहे हैं और उत्तर प्रदेश में आदित्यनाथ तानाशाह बनकर अल्पसंख्यक समुदाय और दलितों तथा पिछडी और सबसे संगीन बात महिला अत्यचार की जघन्य अपराधों की घटना के बाद भी मानवाधिकार कार्यकर्ता और मिडिया के लोगों को हिरासत में लेने से लेकर पीडित परिवार के लोगों को ही परेशान करने के एकसेबढकर एक घटनाऐ आये दिन जारी है और नितीश कुमार के आदर्श अगर आदित्यनाथ जैसे तानाशाह होंगे तो फिर बात ही अलग है !

फिर नितिश कुमार को महात्मा गाँधी,जयप्रकाश नारायण,डॉ राम मनोहर लोहिया,कर्पूरी ठाकुर,किशन पटनायक जैसे कुजात समाजवादी लोगों के नाम लेने का नैतिक अधिकार नहीं रहेगा ! वैसे भी वह नरेंद्र मोदी और अमित शाह की विशेष कृपा से ही मुख्यमंत्री पदपर आसन्न हुए हैं तो बेहतर होगा कि वह अपने आप को संघम शरणम् गच्छामि कर ले तो बेहतर होगा !

डॉ सुरेश खैरनार

Adv from Sponsors