armyभारतीय सेना में नेपाल के नागरिकों की बहाली पर पाबंदी के बावजूद चोर-दरवाजे से उनकी भर्ती हो रही है. नेपाली नागरिकों को भारत का नागरिक होने का फर्जी प्रमाणपत्र दिया जाता है और उन्हें भारतीय गोरखा बता कर सेना में भर्ती करा दिया जाता है. ‘चौथी दुनिया’ ने अर्सा पहले यह बताया था कि नेपाली माओवादियों को भारतीय सेना में भर्ती कराया जा रहा है. इसके बाद ही सेना में नेपाली नागरिकों की भर्ती पर पाबंदी लगी. लेकिन इस पाबंदी के बाद नेपालियों को भारतीय गोरखा बता कर चोरी-छिपे भर्ती कराया जाने लगा. उत्तर प्रदेश की एंटी टेररिस्ट स्न्वायड और स्पेशल टास्क फोर्स ने इस मामले में कई सैन्यकर्मियों, दलालों और फर्जी तरीके से भर्ती हुए नेपालियों को पकड़ा और गोरखधंधे को उजागर किया. फिर भी भ्रष्टाचार के दरवाजे से नेपालियों को भारतीय सेना में भर्ती कराने का धंधा जारी है.

नेपाल में राजशाही के खात्मे के बाद सत्तारूढ़ हुई सरकार ने वादे के मुताबिक माओवादियों को जब नेपाल की सेना में भर्ती नहीं किया, तो उसके बाद से ही भारतीय सेना में नेपाली माओवादियों को चोर रास्ते से भर्ती कराने का सिलसिला शुरू हुआ. गोरखा रेजीमेंट की विभिन्न बटालियनों में नेपाली माओवादियों की बाकायदा पोस्टिंग हो गई. सेना को इसकी भनक लगी तो भर्ती की प्रक्रिया में थोड़ा रद्दोबदल किया गया. लेकिन कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई. एटीएस और एसटीएफ की सक्रियता के बावजूद भारतीय सेना में नेपाली माओवादियों की इंट्री अब भी जारी है. सेना के सामने मुश्किल यह भी है कि गोरखाओं के नाम पर जिन माओवादियों की सेना में भर्ती कर ली गई, उन्हें निकाला कैसे जाए. हालांकि ‘चौथी दुनिया’ को कई नेपाली माओवादियों के नाम भी मिले जिनकी लखनऊ, वाराणसी और कुछ अन्य भर्ती केंद्रों पर बहाली हुई और उन्हें ट्रेनिंग के बाद बाकायदा सेना में शामिल कर लिया गया.

इन माओवादियों की भर्ती फर्जी सर्टिफिकेट्स के आधार पर हुई और आप यह जानकर हैरान होंगे कि लखनऊ और आसपास के स्कूलों ने उन माओवादियों को फर्जी सर्टिफिकेट प्रदान किए. नेपाली माओवादियों को फर्जी दस्तावेजों के आधार पर भारतीय नागरिक साबित कराया गया या उन्हें जिला प्रशासन की तरफ से डोमिसाइल प्रमाण पत्र देकर उन्हें सेना में भर्ती किया गया. फर्जी दस्तावेजों के आधार पर हो रही भर्ती के बारे में संदेह होने पर गोरखों की भर्ती के लिए शैक्षणिक योग्यता आठवीं पास से दसवीं पास कर दी गई. लेकिन इस फेरबदल के पहले जिन गोरखों की नियुक्तियां फर्जी प्रमाण पत्रों पर हो गईं, उनका क्या किया जाएगा? दसवीं का फर्जी प्रमाणपत्र बनवाने में मुश्किलें जरूर आ रही हैं, लेकिन स्कूलों से आठवीं पास का फर्जी प्रमाण पत्र हासिल कर जो धड़ाधड़ नियुक्तियां कराई गईं, उनका क्या होगा? इस सवाल का सेना के पास कोई जवाब नहीं है.

नेपाल का माओवादी कमांडर करा रहा है भर्तियां
नेपाल में हुए माओवादी हथियारबंद ऑपरेशंस में अग्रणी रहे ‘यंग कम्युनिस्ट लीग’ का कमांडर रोम बहादुर खत्री भारतीय सेना में नेपाली माओवादियों को भर्ती कराने में सबसे अधिक सक्रिय रहा है. नेपाल में सत्ता मिलने के बाद बड़ी तादाद में हथियारबंद माओवादियों ने समर्पण किया था. उन्हें सेना की बैरकों में रखा गया था. उन माओवादियों को आत्मसमर्पण के समय आश्वासन दिया गया था कि उन्हें नेपाल की नियमित सेना में शामिल कर लिया जाएगा. लेकिन सेना में इसका भारी विरोध हुआ. अपेक्षित भर्ती नहीं होने पर माओवादियों में नाराजगी फैली और उनके फिर से हथियार उठा लेने की आशंका बनने लगी. उन माओवादियों को भारतीय सेना में भर्ती कराने का बीड़ा उठाया नेपाली माओवादी संगठन ‘यंग कम्युनिस्ट लीग’ के नेता रोम बहादुर खत्री जैसे कट्‌टर माओवादी कमांडरों ने.

उसने भारतीय सेना की मध्य कमान के अधिकारियों से अपने सम्बन्ध बनाए. भारत का नेपाल से लगा विशाल सीमा क्षेत्र मध्य कमान के दायरे में ही आता है. नेपाल का उत्तर-पूर्व का सीमाई हिस्सा पूर्वी कमान के क्षेत्र में है. रोम बहादुर खत्री ने मध्य कमान मुख्यालय लखनऊ के साथ-साथ वाराणसी, बरेली, बाराबंकी, फैजाबाद, गोरखपुर के सेना भर्ती केंद्रों पर भी अपनी पकड़ मजबूत की. उसने सेना के अफसरों समेत फौजी भर्ती के धंधे में लगे दलालों और स्थानीय स्कूलों को अपने प्रभाव क्षेत्र में लिया जिनसे फर्जी प्रमाणपत्र लिए जा सकें. लखनऊ में खत्री को कई ऐसे लोग मिल गए, जो सेना भर्ती में दलाली करते थे और फर्जी प्रमाणपत्र वगैरह बनाने का धंधा करते थे.

इस गिरोहबंदी ने भारतीय सेना में नेपाली माओवादियों की खूब भर्तियां कराई. नेपाल से आने वाले माओवादियों को आठवीं क्लास पास का प्रमाणपत्र देने में लखनऊ के कई स्कूल आगे रहे और राष्ट्रद्रोह के एवज में पैसे कमाते रहे. इनमें बालागंज के कैम्पबेल रोड स्थित स्कूल, आनंद नगर स्थित एक स्कूल, उदयगंज स्थित एक स्कूल, माल में रहिमाबाद रोड स्थित एक स्कूल, इटौंजा रोड स्थित एक स्कूल अव्वल हैं. ‘चौथी दुनिया’ के पास इन स्कूलों के नाम भी हैं. खुफिया एजेंसियों के आग्रह पर अभी उन स्कूलों का नाम नहीं खोला जा रहा है. ऐसे कई स्कूल लखनऊ के बाहर के भी हैं, जिन्होंने नेपाली युवकों को अपना छात्र बताया और आठवीं क्लास पास का प्रमाणपत्र देकर उनकी वैधता पर मुहर लगा कर राष्ट्र के साथ द्रोह किया. लखनऊ, गोरखपुर, गाजीपुर, वाराणसी जैसे कई जिलों की प्रशासनिक इकाइयां भी राष्ट्रद्रोह में शामिल हैं, जिन्होंने बाहरी नेपालियों को स्थाई निवास प्रमाणपत्र प्रदान किए और इस आधार पर नेपाली माओवादियों ने सेना में नौकरी पा ली.

डोमिसाइल सर्टिफिकेट देने वाली प्रशासनिक इकाइयों ने पता का सत्यापन (ऐड्रेस वेरिफिकेशन) कराने की भी जरूरत नहीं समझी. बलराम गुरुंग नाम के निपट अनपढ़ नेपाली ने स्थानीय स्कूल से आठवीं पास का फर्जी प्रमाणपत्र हासिल किया और अपना पता 28/बी, आवास विकास कॉलोनी, माल एवेन्यु लिखा दिया. बलराम गुरुंग मई 2010 में सेना में भर्ती होकर गोरखा रेजीमेंट में तैनाती पर चला गया. उसके आधिकारिक दस्तावेजों में बाकायदा माल एवेन्यु का पता दर्ज है. जब इस एड्रेस की छानबीन की गई, तो पता चला कि वह घर सेना के ही एक कर्नल साहब का है. कर्नल साहब अब सेना से रिटायर हो चुके हैं. उनका नाम कर्नल अजित सिंह है. जब कर्नल साहब से सम्पर्क साधा गया, तो उन्होंने कहा, ‘मुझे क्या पता कि किसने मेरे घर का एड्रेस लिखा दिया! किसी ने मुझसे पूछताछ करने की जरूरत भी नहीं समझी. मैं किसी बलराम गुरुंग को जानता भी नहीं.’

माओवादी कमांडर के दो बेटे भी भर्ती हैं भारतीय सेना में
माओवादी गुरिल्ला कमांडर व ‘यंग कम्युनिस्ट लीग’ के नेता रोम बहादुर खत्री ने भारतीय सेना में जिन माओवादियों को भर्ती कराया, वे खत्री तक सेना की सूचनाएं पहुंचाते हैं. उसी माओवादी नेता रोम बहादुर खत्री ने अपने दो बेटों संतोष बहादुर खत्री और भोजराज बहादुर खत्री को भी भारतीय सेना में भर्ती करा दिया है. संतोष बहादुर खत्री 3-9 गोरखा रेजीमेंट में भर्ती है और भोजराज बहादुर खत्री 17वीं जैक राइफल्स में भर्ती है. विचित्र और सनसनीखेज तथ्य यह है कि रोम बहादुर खत्री का एक बेटा भोजराज बहादुर खत्री पहले नेपाली सेना में था. तीन साल तक नेपाल सेना में रहते हुए वह माओवादियों के लिए मुखबिरी करता था. भोजराज की मुखबिरी पर माओवादियों ने नेपाल सेना की कई युनिटों पर हमले किए. ऐसे ही एक हमले में माओवादियों ने नेपाली सैनिकों को मारा, हथियार लूटे, लेकिन भोजराज को वहां से भगा लिया गया. नेपाल सेना से भागा हुआ माओवादी बाकायदा भारतीय सेना के महत्वपूर्ण गोरखा रेजीमेंट में नौकरी कर रहा है. माओवादी कमांडर खत्री ने अपने भतीजे सुरेश बहादुर खत्री को भी भारतीय सेना की नौकरी में लगवाया. वह भी एक कर्नल साहब के जरिए.

माओवादी कमांडर के गांव के ही तीन और युवकों के बारे में जान लीजिए. दीपक खत्री फर्जी दस्तावेजों के जरिए सेना में भर्ती हो चुका है. वह 3-9 गोरखा बटालियन में तैनात है. भर्ती की प्रक्रिया इतनी अंधी है कि दीपक खत्री के दाहिने हाथ की वह उंगली कटी हुई है, जिससे राइफल का ट्रिगर दबाया जाता है. ऐसे सिपाही से सेना क्या काम लेती होगी? और वह मुखबिरी के सिवाय क्या करता होगा? दीपक का भाई रमेश खत्री भी 4-9 गोरखा बटालियन में भर्ती है. यहां फिर फर्जी एड्रेस का प्रसंग सामने आया. रमेश खत्री के सैन्य दस्तावेजों में 8/5 विक्रमादित्य मार्ग का पता दर्ज है. निश्चित तौर पर इसी एड्रेस के आधार पर उसने डोमिसाइल सर्टिफिकेट हासिल किया होगा. उस एड्रेस की भी ‘चौथी दुनिया’ ने छानबीन की. वह भी फर्जी पाया गया. यह पता भी कर्नल अजित सिंह के दूसरे घर का है. इस पर भी कर्नल की वही प्रतिक्रिया थी, जो ऊपर दी जा चुकी है. जैसा पहले बताया कि दीपक खत्री और रमेश खत्री भी माओवादी कमांडर रोम बहादुर खत्री के गांव बरदिया तारातल का रहने वाला है. लिहाजा, उनके माओवादी कनेक्शन आसानी से समझे जा सकते हैं.

भारतीय सेना में भर्ती के जरिए माओवादियों की जो भारी घुसपैठ हो चुकी है, उससे निपटने का रास्ता क्या हो, इस पर सेना ने अब तक कोई रणनीति नहीं बनाई है. भारत में करीब एक लाख से अधिक गोरखा सैनिक हैं. देश में गोरखा रेजीमेंट की 39 बटालियनें हैं. नेपाल के माओवादियों की भारतीय सेना में हो रही या हो चुकी भर्तियां भविष्य में हमारे सामने भीषण समस्याएं खड़ी कर सकती हैं. नेपाल से लगने वाली लंबी सीमा कभी भी आफत का सबब बन सकती है. खुफिया एजेंसियां यह बता चुकी हैं कि बिहार और नेपाल की सीमा पर माओवादियों द्वारा भारत विरोधी पोस्टर लगातार बांटे जा रहे हैं. नेपाल के माओवादी भारत-नेपाल सीमा की शिनाख्त कराने वाले पुराने सीमा स्तम्भ हटा रहे हैं. इससे सीमा की पहचान समाप्त हो रही है. ऐसे करीब साढ़े पांच सौ स्तम्भ गायब कर दिए हैं. आधिकारिक तथ्य है कि भारत नेपाल की करीब 18 सौ किलोमीटर सीमा पर तकरीबन साढ़े तीन हजार स्तम्भ लगाए गए थे, लेकिन इनमें से अधिकांश का आज कोई अता-पता नहीं है. भारतीय सेना में नेपाल के गोरखा समुदाय के ही 50 हजार से अधिक लोग भर्ती हैं. ये हर साल सात-आठ सौ करोड़ रुपए अपने परिवारों के लिए नेपाल भेजते हैं. एक लाख से अधिक नेपाली गोरखा भारतीय सेना से रिटायर होने के बाद नेपाल में रह रहे हैं. इन्हें भी 500 करोड़ से अधिक की राशि सालाना पेंशन मिलती है.

लखनऊ छावनी में एमबी क्लब था गिरोहबाज़ों का अड्डा
नेपालियों को फर्जी दस्तावेज दिलवाने और उन्हें सेना में भर्ती कराने का धंधा लखनऊ में मध्य कमान मुख्यालय परिसर स्थित मोहम्मद बाग क्लब से चल रहा था. एमबी क्लब के मुलाजिम संदीप थापा की गिरफ्तारी के बाद यह मामला उजागर हुआ. फिर संदीप थापा का साथी मिलन थापा, नेपाल मिलिट्री इंटेलीजेंस का बर्खास्त कर्मचारी प्रकाश थापा और माया कम्प्यूटर सेंटर के संचालक अनिल श्रीवास्तव को भी गिरफ्तार किया गया. एटीएस के सामने इन लोगों ने कबूल किया कि 10 लाख रुपए लेकर वे नेपालियों को सेना में भर्ती करवाते थे. यूपी एटीएस ने वाराणसी छावनी से दिलीप गिरि नामक नेपाली युवक को गिरफ्तार किया.दिलीप गिरि10 लाख रुपए देकर फर्जी दस्तावेजों के जरिए सेना में भर्ती हुआ था. एसटीएफ को सेना में भर्ती हुए दो अन्य नेपाली युवकों के बारे में भी जानकारी मिली. एटीएस ने तब आधिकारिक तौर पर यह माना कि कई नेपाली नागरिक फर्जी नाम और पता दिखा कर सेना में भर्ती हो चुके हैं. एटीएस को जानकारी मिली थी कि वाराणसी के गोरखा ट्रेनिंग सेंटर से तीन नेपाली नागरिक बाकायदा सैनिक के रूप में गोरखा राइफल्स में तैनात हो चुके थे. दिलीप गिरि उन्हीं तीन युवकों में से एक था.

रुपनदेई नेपाल के रहने वाले दिलीप ने एटीएस को बताया कि उसका असली नाम विष्णु लाल भट्‌टराई उर्फ जीवन छेत्री है. पकड़े जाने के पहले वह गोरखा रेजीमेंट में जलपाईगुड़ी में तैनात था. दिलीप गिरि की गिरफ्तारी के बाद उसके दो अन्य साथी शिवांश बलियान और मनोज कुमार बस्नेत सेना से छुट्‌टी लेकर फरार हो गए. एटीएस ने सेना में नेपालियों को भर्ती कराने वाले दलाल चंद्रबहादुर छेत्री को भी वाराणसी से गिरफ्तार किया. चंद्र बहादुर नेपाल के बागलोन का रहने वाला है. वह भी पहले गोरखा रेजीमेंट में सिपाही था. चंद्र बहादुर के पास से बड़ी संख्या में फर्जी कागजात, डायरियां और दस्तावेज बरामद हुए. चंद्र बहादुर को 1991 में सेना से बर्खास्त कर दिया गया था. बर्खास्तगी के बाद वह रेजीमेंट के पास ही रहने लगा और भर्ती का धंधा करने लगा. एटीएस ने ऐसे 46 नेपालियों की शिनाख्त की, जिन्हें भारतीय गोरखा बता कर सेना में भर्ती कराया गया. इनमें 29 नेपालियों की शिनाख्त एटीएस ने और 17 की शिनाख्त एसटीएफ ने की.

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