अरसा हुआ – आहिस्ता आहिस्ता हम अपने आपको अपनी बनाई खोल में समेटने लगे थे । हम ऊब रहे थे । अदब की दुनिया से , ऐसा नही कहूंगा, लेकिन वहां जो कुछ देखा ,समझा और पाया वह कुछ अलग था ,हमारी परिकल्पना से । हम गलत भी हो सकते हैं चुनांचे यह कह कर पतली गली से निकल लेना चाहता हूं कि – अदब की किल्ली कांटे की समझ आनी शुरू हो चुकी थी ,गर ऐसे में यहां से न भागा तो बड़ी दुर्गति होगी , न घर का न घाट का रह पाऊंगा ( जो कि आज हूं ) मन किया धीरे से खिसक चलो।एक रात अपनी कुंडली याद आयी – कमच्छा पंडित की लिखित कुंडली की बात ही सामने आ रही थी – लड़का चंचल होगा , उत्पाती होगा ,एक जगह थिर नही रहेगा , शुक्र बलवान है , मेष राशि मे पैदा हुआ है , इसे बांध के रखना भी मुश्किल होगा । ‘

दूसरे दिन फिर याद आया एक मनीषी ने कही लिखा है – छह महीने से ज्यादा कहीं रुक गए तो आहिस्ता आहिस्ता एक साल में कलम घिस्सू क्लर्क हो जाओगे । हमारी उधेड़बुन को समर्थन मिलने लगा , उस माहौल में हो रहे तब्दीली से । इस प्रकरण पर अलग से लिख रहा हूँ । यहां संक्षेप में – दिनमान से रघुवीर सहाय जा चुके हैं , सर्वेश्वर जी अचानक, असमय अलविदा कह गए । टाइम्स में नया मैनजमेंट आ गया । वगैरह वगैरह । सोचा बच्चू दस दरिया गंज , मयूर विहार , मंडी हाउस , को लपेट कर बस्ते में रख लो और निकल लो रायसीना रोड । अदब से हट कर ‘दूसरे अदब , ‘ जिसकी पीठ पर सियासत का बोर्ड चस्पा है , उसमें ताक झांक की जाय । इसी बीच खबर मिली कि एक सड़क हादसे में बिट्टू नही रही । बेहद तकलीफ हुई । इस तकलीफ से ज्यादा हैबतनाक वह मंजर लगता कि किन हालात में हम मुद्गल परिवार को देखेंगे । क्या उसे वर्दाश्त कर पाऊंगा ? और हिम्मत ने साथ छोड़ दिया । बिट्टू मुद्गल परिवार के दो बच्चों में एक थी । एक बेटा एक बेटी । गुड्डू आज Rajiv M Shankar के नाम से बेहतर फ़िल्म बना रहा है । आज भी यह राजीव उतना ही प्यारा है जितना हम छोड़ कर हटे थे। बिट्टू ठीक राजीव के उलट स्वभाव की थी । राजीव अंतर्मुखी , चुप , खामोश , और बिट्टू उतनी ही चुलबुली , बातूनी , हंगामाखेज । भाई अवध नारायण को बिट्टू बहुत प्रिय रही । प्रसिद्ध लेखिका मृदुला गर्ग जी के लड़के से बिट्टू की शादी हुई थी । एक कार दुर्घटना में दोनों की मृत्यु हो गयी । बाद के दिनों में हम अपनी परेशानियों और दिक्कतों में इतने उलझे कि दिल्ली से ही कट गए । चलिए बिट्टू से जुड़ा एक प्रसंग सुन लें –
जहां भी हो बिट्टू , हंस लेना बेटे ।

बिट्टू ने अपने घर पर घेरा । चित्रा भाभी किचेन में थी , मुद्गल जी टाई उतार रहे थे । दफ्तर खत्म कर वापिस आये थे थकान उतारने के लिए सांझ का इंतजार था । हम ड्रॉइंग रुम में पड़े कालीन पर पसरे पड़े थे बगल में बैठी बिट्टू अचानक सवाल पर उतर आई –
– अंकल एक बात बताओ लोग पीते क्यों हैं ?
– लोग से पूछो
– तुम लोग भी तो हो
– सब का जवाब हम कैसे देंगे ?
– अपना जवाब दो
चित्रा भाभी और अवध जी दोनो इस संवाद को सुन रहे थे । चित्रा भाभी मुस्कुरा रही थी , लेकिन बिट्टू को डांट भी लगा रही थी
– बिट्टू ! अंकल को परेशान मत करो , अभी आफिस से आया है चाय तो पीने दो ।
मुद्गल जी मजा ले रहे थे – दफ्तर से आया है? , वहां भी तो मस्ती मारता है , देने दो जवाब आज तो फंसा है । हैं पूछो अंकल से अंकल जवाब देंगे ।
– बताओ अंकल क्यों पीते हो ?
हमने गला साफ किया । उठ कर बैठ गया । मुद्गल जी को देखा , वे हमें देख मुस्कुरा रहे थे ।
– क्या पूछ रही थी , बिट्टू ?
– पीते क्यों हैं ?
– सुनो गौर से , बहुत राज की बात है
– सुनो फायदा नम्बर एक – यह ड्राइंग रूम है न ?
यहां से बाथरूम कितनी दूर है ? दस कदम । अगर किसी को बाथरूम जाना होगा ,तो दस कदम चल कर जायगा । पीने वाले को यह सुविधा अलग से मिलती है कि वह दस कदन चलने की जहमत न उठाएं और ड्राइंग रूम को ही बाथरूम में तब्दील कर दे ।
मुद्गल जी हंसे – चंचल !
– केवल सूत्र बता रहा हूँ भाई साहब उदाहरण नही दे रहा हूँ ।
चित्रा भाभी मुस्कुरा रही थी । बिट्टू ने आगे बढाया –
– दूसरा ?
– हम पहले माले पर हैं न ? नीचे उतरने के लिए कितनी सीढ़ी पार करने होगी ?
– दस पंद्रह होगी , हमने गिना नही है
– पीनेवाले के लिए यह फायदा है कि वह पन्द्रह सीढ़ी को समेट कर तीन करदे और झट नीचे चला जाय । नीचे पहुंच कर बैठा भी मिल सकता है और लेटा भी ।
– और बताऊं
चित्रा भाभी हँस रही थी और मुद्गल जी दुविधा में थे , हँस भी रहे थे संजीदा भी रहे थे कि कहीं बिट्टू उदाहरण न पूछने लगे । मुद्गल जी को डर था , कहीं उनके अजीज का पर्दा न खुल जाए । चुनांचे बात दूसरी ओर मुड़ गयी पर हँसी का क्या करते यह छुपती ही कहाँ है – खैर ,खून, खांसी , खुशी , बैर , प्रीत मदपान ।
यह सब उस माहौल में जिया गया पल है , उसे कैसे बिसार सकते हैं ? जब यह ख्याल बनता है कि अब बिट्टू नही है , मुद्गल जी नही हैं , इस चित्रा भाभी को देखने की हिम्मत हमारे पास नही है । पर जब यह भान होता है कि चित्रा भाभी ने इसी सब से लड़ कर जीत कर एक नई डगर बनाई हैं और बनाती जा रही हैं तो सुखद आनंद मिलता है । भगवान को देखा नही हूं न ही मिल पाया हूं वरना उनसे कहते – भाभी जी कलम को और ताकत और हिम्मत दो ,उनको अपने लिए नही , समाज के उलझे सवालों को हल करने के लिए ।

उफ्फ ! किस्सा गाड़ी का ?
कल । सच्ची कल
जारी

Chanchal bhu

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