साथियों ॠषी गंगा पन बिजलीके उध्व्स्त होने के साथ और भी काफी बडी हिमालय के ग्लेशियर पिघलने से जो हादसा हुआ अभितक उसमे मरने वाले लोगों का और पूरे नुकसान का आकलन नहीं हो पाया है !

कमअधिक प्रमाणमे संपूर्ण भारत में पर्याप्त मात्रा में सुरज की रोशनीकी उपलब्धी होने के बावजूद अबतक की सबसे सस्ती और पर्यावरण का कुछ भी नुकसान न करने वाली सुरज के रोशनी से बिजली अपने अपने घरों की छतोपर लगा कर आप अपनी खुद की आवश्यकता पुरी करने के अलावा अतिरिक्त भी बिजली सरकार को बेच सकते हैं और वैसे भी बिजली की दरें दिन प्रतिदिन बढते हुए आप बिजली बिल से परेशान हो रहे होंगे ! जबकि आप 25 से पचास लाख का मकान बना सकते हो तो दो-तीन लाख का अतिरिक्त खर्च सोलर बिजली के लिए नहीं खर्च कर सकते ?

यह हमारे खुद के घर के अनुभव के आधार पर मैं उदाहरण के लिए ! हम लोगों ने गत तीन साल से अपने छत पर तीन लाख खर्च कर के सोलर पैनल लगा कर तीन साल मे एक रूपये का भी बिजली विभाग को बिल नहीं दिया है उल्टा कुछ युनिट अतिरिक्त जमा कर रहे हैं और अब तक हमारे तीन लाख खर्च वसूल भी हो गये हैं और हमने रखरखाव के नाम पर उन पैनलों पर एक रूपये का भी खर्च नहीं किया है और कोई अन्य तकनीकी दिक्कतों का सामना भी नहीं किया है और आज मैंने इस महीने का बिजली बिल का फोटो देखकर लगा कि हमें तो झिरो रूपये का भी खर्च नहीं आया उलटी तीन हजार रुपये की बिजली जमा हो गई है !

आने वाले समय में फाॅसिल फ्यूल समाप्त होने के कगार पर पूरा विश्व आ चुका है ! और अभी से हम पर्यायों का काम शुरू नहीं करेंगे तो क्या प्यास लगने के बाद कुआँ खोदेंगे ?


20 फरवरी के दिन यानी कल हमारे भागलपुर के गंगामुक्ति के साथियों ने हिमालय दिवस मनाया ! बहुत ही अच्छी पहल है ! क्योंकी हमारी ज्यादातर नदियो का उगमस्थल हिमालय से होने के कारण और हमारे देश की आबो-हवा से लेकर पर्यावरण का दारोमदार काफी कुछ हिमालय पर निर्भर होने के कारण हिमालय बचाओ अभियान बहुत ही महत्वपूर्ण है ! और मुझे याद आ रहा है कि सुंदरलाल बहुगुणा 1990 के भूकंप के बाद एक साईकिल यात्रा लेकर गंगा सागर तक आये थे और कोलकाता हमारे साथ ठहरे थे ! और मुझे आग्रह कर रहे थे कि आप चिपको आंदोलन को बल देने के लिए हमे सहयोग कीजिए तो मैंने उनसे कहा कि चिपको आंदोलन,गंगामुक्ति आंदोलन अलग अलग आंदोलन करने की जगह हम सबने हिमालय बचाओ आंदोलन की शुरुआत करने की जरूरत है और वह अगर होता है तो मै अवश्य शामिल होने के लिए तैयार हूँ !

उसी तरह 1993-94 मे नेपाल हुरोन (हुमन राईट ऑर्गनाइजेशन ऑफ नेपाल) के कार्यक्रम के लिए नेपाल जाने का अवसर मिला था ! और श्री गिरिजा प्रसाद कोईराला प्रधानमंत्री पदपर थे तो उन्होंने अपने आवास पर हमे चाय पर बुलाया था ! और यह बात मैंने उनसे भी कहीं थी कि आप पहल कीजिए क्योंकी आप हिमालय किंग्डम के प्रधानमंत्री हो ! और यह बात सुनकर वह बोले थे कि मै जल्द ही चीन की यात्रा के लिए जा रहा हूँ और मैं चीन के राष्ट्रीपती और प्रधानमंत्री से भी इस विषयपर बात करूगा ! लेकिन राजनीति के उठा पटक मे इन सब के लिए कहा समय मिलता है ?
हमारे देश के सभी दलों के लोगों को भी हमारे पर्यावरण संरक्षण के लिए जागरूकता लगभग नहीं के बराबर है क्योंकि संसदीय लोकतंत्र के लिए जिस तरह से पैसे की बर्बादी और कुछ भी कर के सत्ता में बने रहने की कवायद करने के लिए उद्योगपति से लेकर विदेशी निवेश के लिए जोडतोड करने मे ही सभी दलों के लोगों को फुर्सत नहीं है कि वह पर्यावरण जैसे महत्वपूर्ण विषयों पर फैसला लेने के लिए तो दूर की बात है सोचने के लिए भी समय नहीं है ! उल्टा वर्तमान पर्यावरण संरक्षण मंत्रालय का काम देखनेवाले मंत्री महोदय को जंगल और जमीन के संदर्भ मे इतना पर्यावरण विरोधी बोलते हुए देखा तो मुझे लगा कि यह आदमी को पर्यावरण संरक्षण की जगह विनाश के लिए विशेष रूप से रखा गया है !
हालाँकि पन बिजलीके लागत और लाभ का गणित बहुत ही घाटे का सौदा है और अमेरिका जैसे देश में गत कुछ वर्षों से पन बिजलीके लिये एक भी नया बांध बनाने काम नहीं कर रहे हैं और उल्टा कुछ पुराने बांध तोड़े गए हैं और एक हम है कि वर्तमान में निर्माणाधीन बांधोंकी संख्या तीन हजार से भी ज्यादा है और अकेले हिमालय के क्षेत्र में पाचसौ के आस-पास योजना बनाने वाले हैं !

और हिमालय के बारे में बात साफ है कि यह पहाड़ दुनिया का सबसे तरुण पहाड़ के साथ इसमे कुछ हलचल होते रहती है और वह भी मट्टी का ढेर जैसे स्थितियों में होने के कारण हिमालय को तथाकथित परियोजनाओं के लिए ब्लॉस्ट करने से लेकर बडे बडे मशीन के माध्यम से रोड चौडे करने जैसे हरकतों से और कमजोर करने का काम कर रहे हैं और हर साल कोई ना कोई हादसा होते हुए भी सरकार बाज नहीं आ रही है ! इससे उस क्षेत्र के लोगों के जीवन के साथ खिलवाड़ करने की बात लगातार जारी है और अब लोगों ने खुद अपने आप को इस तरह के योजनाओके खिलाफ लामबन्दी करने की जरूरत है !

विश्व के बांधोंके विशेषज्ञ अब इस नतीजेपर आ चूके है कि अब बडे बांध तकनीकी रूप से और आर्थिक रूप से लाभान्वित नहीं है यह सिद्ध हो चुकाहै उसके बावजूद भारत में बांध बनाने के काम बदस्तूर जारी है क्योंकि आर्थिक रूप से कमीशनखोरी की आदतों से फिर वह सरकार किसी भी दल की हो जबरदस्त अफरा तफरी करने के लिए आउटडेटेड तकनीक फिर वह बांधों की हो या कलकारखाने या कृषी क्षेत्र हो मुनाफाखोरी जैसी राष्ट्रीय संपत्ति का नुकसान करने वाले निर्णय लागु करने की जिद से बढकर राष्ट्र-द्रोही कृत्य करने वाले सत्ता पक्ष के लोग ऐसे गलत निर्णयोंका विरोधियों कोही राष्ट्र-द्रोही बोलनेवाले उल्टा चोर कोतवाल को डांटे वाले कहावत जैसे कर रहे हैं !

दुनिया कि सबसे आऊटडेटेड टेकनालॉजी को कलकारखाने से लेकर बांधों तक और सबमरिन से लेकर राफेल जैसे सौदा इसका परिणाम है ! लेकिन संसद में तथाकथित बहुमत के आधार पर भारत में यह सब कुछ करने के लिए वर्तमान सरकार को खुली छूट मिली हुई है ! और देश के पर्यावरण से लेकर देश की सुरक्षा के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं और वह भी राष्ट्रवाद के आडमे !
ग्लोबल वार्मिंग का संकट दिन-प्रतिदिन बढानेका काम बदस्तूर जारी है और दूसरी तरफ बीजेपी उसपर काम करने वाले लोगों को देशद्रोह के आरोप में गिरफ्तार करने जैसे गैरजिम्मेदारी के काम कर रहे हैं ! और विश्व मे अपने आप को हास्यास्पद सिद्ध करने पर तुले हुए हैं !

और प्रोफेसर अगरवाल की प्रधानमंत्री के नाम की आखिरी चिठ्ठी मैंने इस पोस्ट के साथ जानबूझकर देना ठीक समझा कि किसी भी राजनीतिक दल के नहीं रहते हुए और आई आईटी जैसे महत्वपूर्ण संस्थाओं मे संपूर्ण जीवन संशोधन कर के नदी,पहाड़ और पर्यावरण के लिए विशेष रूप से अध्ययन किया था ! और अंतिम समय सिर्फ गंगा को समर्पित कर दिया था ! और वह अपने नाम के आगे गंगापुत्र लगाने लगे थे ! और वर्तमान प्रधानमंत्री उनको अपने बडे भाई से भी ज्यादा करीब हूँ करके दावा करते थे ! और खुद बनारस चुनाव के लिए आये तो मुझे माँ गंगा ने पुकारा करके मै यहाँ आया हूँ ! जैसे वक्तव्य देते रहे लेकिन इन्ही हिमालय मे बनने वाले विभिन्न परियोजनाओं को रोकने के लिए विशेष रूप से प्रोफेसर अगरवाल के 111 दिन के अनशन को अनदेखा करने वाले भी यही माँ गंगा ने पुकारा करके मै यहाँ आया हूँ बोलनेवाले प्रधानमंत्री ने अपने भाई गंगापुत्र प्रोफेसर अगरवाल की प्रधानमंत्री के नाम की तीन-तीन चिठ्ठीयोको जवाब देने के लिए प्रधानमंत्रीजी को समय नहीं मिला ! और अंततः प्रोफेसर अगरवाल की उसी अनशन मे 11 अक्तूबर 2018 के दिन देहरादून के एम्स मे मृत्यु हो गई !

प्रोफ़ेसर अगरवाल टेकनालॉजी के अथॉरिटी थे आई आईटी जैसे महत्वपूर्ण संस्थाओं मे संपूर्ण जीवन संशोधन कर के नदी और पर्यावरण संरक्षण के लिए विशेष रूप से अपने आप को खपाने के कार्य करने वाले देश की पर्यावरण संरक्षण की एक्सपर्ट कमेटीयो के सदस्य के तौर पर अपने अनुभव और ज्ञान का उपयोग किया है और यूपीए के सरकार के समय उनके सूचना के कारण हिमालय के 118 किलोमीटर के क्षेत्र को इकोसेंसिटिव जोन का एलान कराने और चार पनबिजली परियोजनाओं को करोड़ों रुपये खर्च होने के बावजूद रद्द (श्री मनमोहन सिंह के प्रधानमंत्री के समय!) करानेवाले प्रोफेसर अगरवाल को वर्तमान प्रधानमंत्री अपने भाई कहकर खुद को माँ गंगा ने पुकारा करके मै यहाँ आया हूँ बोलनेवाले प्रधानमंत्री ने उनके किसी भी खत का जवाब तक नहीं दिया ! और अंततः प्रोफेसर अगरवाल की उसी अनशन मे 111 दिन के अनशन मे मृत्यु हो गई है ! और उसके पस्चात ग्लेशियर का पानी पिघल कर हुआ हादसे में कितनी जाने गई है और कितना नुकसान हुआ है वह अभीभी पता नहीं चला है !

क्या सरकार की संवेदनशीलता किसान-मजदूर के और देश के नागरिकता कानून से लेकर देश की महत्वपूर्ण पर्यावरण संरक्षण के लिए मर गई है ? और अगर सरकार नाम की व्यवस्था आखिर किस बात के लिए है ? यह सबसे अहम बात उभर कर सामने आ रही है ! सामान्य जनता से वोट लेकर देश की सत्ता में आने के बाद जन विरोधी काम करने वाले सरकार को क्या नैतिक अधिकार है एक क्षण के लिए भी सत्ता में बने रहने का ? और देश की जनता के पसीने से इकट्ठा कर के पैसों की बर्बादी और हिमालय जैसे सबसे संवेदनशील और सबसे तरुण पहाड़ के साथ छेड़छाड़ कहाँ तक ठीक है ? क्या केदारनाथ और 1990 को हुआ विनाशकारी भूकंप और बादल फटनेसे आई हुई बाढ भुल गये ? और बीच-बीच में भूस्खलन के कारण गाँव के गाँव गायब होने की घटनाओ के बावजूद सरकार तथाकथित विकास के नाम पर कर रहे छेडछाड को अविलंब रोकने की जरूरत है !

प्रोफेसर जीडी अग्रवाल की पीएम मोदी को लिखी पूरी चिट्ठी

सेवा में,

श्री नरेंद्र भाई मोदीजी, आदरणीय प्रधानमंत्री, भारत सरकार, नई दिल्ली

आदरणीय प्रधानमंत्री,

गंगाजी से संबंधित मामलों का उल्लेख करते हुए मैंने अतीत में आपको कुछ पत्र लिखे थे, लेकिन आपकी तरफ से अब तक मुझे इस संबंध कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली है. मुझे काफी भरोसा था कि प्रधानमंत्री बनने के बाद आप गंगाजी के बारे गंभीरता से सोचेंगे. क्योंकि आपने 2014 चुनावों के दौरान बनारस में स्वयं कहा था कि आप वहां इसलिए आए हैं क्योंकि आपको मां गंगाजी ने बुलाया है- उस पल मुझे विश्वास हो गया कि शायद गंगाजी के लिए कुछ सार्थक करेंगे. इस विश्वास के चलते मैं पिछले साढ़े चार साल से शांति से इंतजार कर रहा था.

शायद आपको मालूम होगा कि मैं पहले भी कई बार गंगाजी के हित में कार्यों को लेकर अनशन कर चुका हूं. इससे पहले मेरे आग्रह के आधार को स्वीकार करते हुए पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह जी ने लोहारी नागपाला जैसे बड़े प्रोजेक्ट (जो कि 90 फीसदी पूरा हो चुका था) पर चल रही सभी तरह की गतिविधीयों को न सिर्फ बंद करने का निर्णय लिया बल्कि उसे रद्द भी कर दिया था. इस कारण सरकार को हजारों करोड़ का घाटा भी सहना पड़ा, फिर भी मनमोहन सिंह जी आगे बढ़े और गंगाजी के हित में यह सब किया.

इसके अतिरिक्त तत्कालीन सरकार ने आगे बढ़ते हुए गंगोत्री से लेकर उत्तरकाशी तक भगीरथी जी की धारा को ईको सेंसिटिव जोन घोषित किया. ताकि गंगाजी को नुकसान पहुंचा सकने वाली गतिविधियां फिर कभी न हों.

मुझे आपसे उम्मीद थी कि आप गंगाजी के लिए दो कदम आगे बढ़ते हुए विशेष प्रयास करेंगे, क्योंकि आपने आगे आते हुए गंगा पर अलग से मंत्रालय बनाया था. लेकिन पिछले चार वर्षों में आपकी सरकार द्वारा किए गए सभी कार्य गंगाजी के लिए तो लाभकारी नहीं रहे, लेकिन उनके स्थान पर केवल कॉरपोरेट क्षेत्र और व्यावसायिक घरानों का लाभ देखने को मिला. अब तक आपने केवल गंगाजी से लाभ अर्जित करने के मुद्दे पर सोचा है. गंगाजी के संबंध में आपकी सभी परियोजनाओं से धारणा बनती है कि आप गंगाजी को कुछ भी नहीं दे रहे हैं. यहां तक कि महज बयान को तौर पर आप कह सकते हैं कि गंगाजी से कुछ लेना नहीं है लेकिन उन्हें हमारी तरफ से कुछ देना है.

3.08.2018 को केंद्रीय मंत्री साधवी उमा भारती जी मुझसे मिलने आईं थी. उन्होंने फोन पर नितिन गडकरी जी से मेरी बात कराई, लेकिन प्रतिक्रिया की उम्मीद आपसे है. इसीलिए मैंने सुश्री उमा भारती जी को कोई जवाब नहीं दिया. मेरा यह अनुरोध है कि आप निम्मलिखित चार वांछित आवश्यकताओं को स्वीकार करें जो मेरे 13 जून 2018 को आपको लिखे गए पत्र में सूचीबद्ध है. यदि आप असफल रहे तो मैं अनशन जारी रखते हुए अपना जीवन त्याग दूंगा. मुझे अपना जीवन त्यागने में कोई हिचक नहीं होगी, क्योंकि गंगाजी का मुद्दा मेरे लिए बहुत महत्वपूर्ण और अत्यंत प्रथमिकता वाला है.

मैं आईआईटी में प्रोफेसर, केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड का सदस्य होने साथ गंगाजी पर बने सरकारी संगठनों का सदस्य रहा हूं. इन संस्थाओं का हिस्सा होने के चलते इतने सालों से अर्जित अपने अनुभव के आधार पर मैं कह सकता हूं कि आपकी सरकार के चार सालों में गंगाजी को बचाने की दिशा में किए गए एक भी कार्य को फलदायक नहीं कहा जा सकता है.

मेरा आपसे अनुरोध है, मैं दोहराता हूं, कि निम्नलिखित आवश्यक कार्यों को स्वीकार किया जाए और क्रियान्वित किया जाए. मैं यह चिट्ठी उमाजी के जरिए भेज रहा हूं.

आवश्यक कार्यों के लिए मेरे चार अनुरोध इस प्रकार हैं:

1. साल 2012 में हुए गंगा महासभा द्वारा तैयार किया गया मसौदा विधेयक तत्काल संसद में लाया जाए और पास कराया जाए (इस मसौदे को तैयार करने वाली कमेटी में मै, एडवोकेट एमसी मेहता और डॉ परितोष त्यागी शामिल थे).

यदि ये नहीं हो पाए तो इस मसौदा विधेयक के चैप्टर 1 (अनुच्छेद 1 से अनुच्छेद 9) पर अध्याधेश लाकर तत्काल राष्ट्रपति से मंजूरी दिलाते हुए लागू किया जाए.

2. उपर्युक्त कार्य के हिस्से के रूप में अलकनंदा, धौलीगंगा, नंदाकिनी, पिंडर और मंदाकिनी पर निर्माणाधीन सभी पनबिजली परियोजनाओं को रद्द किया जाए. इसके साथ ही गंगाजी और उनके पोषित करने वाली सभी धाराओं पर बनने वाले सभी प्रस्तावित पनबिजली परियोजनाओं को भी रद्द किया जाए.

3. मसौदा विधेयक के अनुच्छेद 4(D)-1 वनों की कटाई, 4 (F) जीवित प्रजातियों की हत्या/प्रसंस्करण और 4(G) सभी तरह की खनन गतिविधियों को पूरी तरह से रोका जाए और लागू किया जाए. इसे हरिद्वार कुम्भ क्षेत्र में विशेषकर लागू किया जाए.

4. जून 2019 तक गंगा भक्त परिषद का गठन किया जाए जिसमें आपके द्वारा नामित 20 सदस्य हों, जो गंगाजी के पानी में शपथ ले कि वे गंगाजी और केवल गंगाजी के अनुकूल हितों को लाभ पहुंचाने के हित में ही कार्य करेंगे और गंगाजी से संबंधित सभी कार्यों के संबंध में, इस परिषद की राय निर्णायक के रूप में ली जाएगी.

चूंकि मुझे 13 जून 2018 को आपको भेजे गए पत्र का उत्तर नहीं मिला, इसलिए मैं 22 जून 2018 से अपना अनशन शुरू किया है जैसा कि मैने इस पत्र में लिखा है. इस प्रकाश में यह पत्र आपकी जल्द से जल्द उचित कार्रवाई की उम्मीद के साथ आपका धन्यवाद.

आपका

स्वामी ज्ञान स्वरूप सानंद

(पूर्व में प्रो. जी.डी.)

डॉ सुरेश खैरनार 21,फरवरी 2021 , नागपुर

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