banner1भारतीयों ने शून्य और दशमलव की खोज की थी, जो गणित के सबसे उपयोगी सिद्धांतों में माने जाते हैं. चीनियों ने ठेला गाड़ी और प्रिंटिंग प्रेस का आविष्कार किया, जिससे श्रमिकों को काफी आसानी हुई. भारतीय लोग दार्शनिक होते हैं और चीन के लोग प्रैक्टिकल. भारतीय लोग आसमान की तरफ़ देखते हैं और ईश्‍वर का ध्यान लगाते हैं, लेकिन उनके आसपास के इलाकों में गंदगी फैली रहती है. संभ्रांत परिवार के लोग आसपास की सफाई नहीं करते हैं. यह काम नीची जातियों के लोगों का माना जाता है और इसे तुच्छ समझा जाता है. इसलिए कोई आश्‍चर्य की बात नहीं है कि भारत में गंदगी की परेशानी है.
अगर हम वाकई में स्वच्छ भारत बनाना चाहते हैं, जैसी कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की इच्छा है, तो स़िर्फ गांधी जी के जन्मदिन के अवसर पर झाड़ू उठाने के अलावा भी हमें सफाई पर ध्यान देना होगा. सफाई अभियान के लिए स़िर्फ झाड़ू के साथ शुरुआत करना पर्याप्त तरीका नहीं है. अगर आपने कभी किसी कमरे की सफाई की होगी, तो यह तथ्य आपको आसानी से समझ में आ जाएगा. जब भी आप किसी भी जगह की सफाई करते हैं, तो धूल कुछ देर के लिए तो हट जाती है, लेकिन फिर थोड़ी देर बाद उसी जगह पर वापस आ जाती है. हम धूल को उसकी जगह से बस हटा सकते हैं, हमेशा के लिए समाप्त नहीं कर सकते. अगर हमें इस गंदगी को पूरी तरह से हटाना है, तो और अच्छी मशीनों का इस्तेमाल करना होगा. झाड़ू इस बात का प्रतीक है कि इलीट क्लास को सफाई करना या तो आता नहीं है या वे इसकी चिंता ही नहीं करते.
शहरी इलाकों में गंदगी राष्ट्रीय इमरजेंसी की अवस्था तक पहुंच गई है. छुट्टी के दिन सरकारी अधिकारियों द्वारा प्रधानमंत्री की संतुष्टि के लिए मुस्कराते हुए झाड़ू उठाना ही काफी नहीं है. यह एक दैनिक संघर्ष है, जिसमें प्रत्येक नागरिक को शामिल होना होगा. इस कार्य में एक और वर्ग है, जिसे शामिल किया जा सकता है, वे हैं भिखारी. सभी भिखारी ग़रीबी रेखा के नीचे नहीं होते. भीख मांगने को भी इनमें से कईयों ने अच्छा-खासा धंधा बना लिया है. भीख मांगना एक धंधा है, जिसमें ज़्यादातर छोटे बच्चे शामिल हैं. इन भिखारियों को एक यूनिफॉर्म और कुछ पैसे देकर शहर की सफाई में लगाना होगा और इन्हें यह समझाना होगा कि भीख मांगना स्थायी काम नहीं है.

समाज का एक और वर्ग है, जो सफाई के बारे में बहुत बेहतर तरीके से समझता है और वे हैं महिलाएं. घर को साफ़ रखने की ज़िम्मेदारी उनके ही कंधों पर होती है. घर की सफाई के दौरान सफाईकर्मियों को सुपरवाइज करने की ज़िम्मेदारी भी उन्हीं के कंधों पर है. महिलाएं सफाई के बारे में पुरुषों से ज़्यादा ध्यान देती हैं और जानती भी हैं. उनके उपायों पर ध्यान देने की ज़रूरत है और हम देखेंगे कि सफाई के मामले में कितनी ज़्यादा प्रगति हो रही है.

समाज का एक और वर्ग है, जो सफाई के बारे में बहुत बेहतर तरीके से समझता है और वे हैं महिलाएं. घर को साफ़ रखने की ज़िम्मेदारी उनके ही कंधों पर होती है. घर की सफाई के दौरान सफाईकर्मियों को सुपरवाइज करने की ज़िम्मेदारी भी उन्हीं के कंधों पर है. महिलाएं सफाई के बारे में पुरुषों से ज़्यादा ध्यान देती हैं और जानती भी हैं. उनके उपायों पर ध्यान देने की ज़रूरत है और हम देखेंगे कि सफाई के मामले में कितनी ज़्यादा प्रगति हो रही है. हर गली में सफाई के लिए एक कमेटी होनी चाहिए, जिसमें महिलाएं भी हों, जो गलियों की सफाई का ख्यााल रखें. महिलाओं को यह काम करने के लिए इंसेंटिव भी दिया जाना चाहिए.
इस पूरे सफाई कार्यक्रम को यहीं नहीं बंद किया जाना चाहिए्. मैं कई विश्‍वविद्यालयों में भी गया हूं, जहां घूमने के दौरान मैंने पाया कि गंदगी चारों तरफ़ बिखरी रहती थी. इस दौरान वीसी और प्रोफेसर स़िर्फ मेरी चाय या नाश्ते का ही ख्याल रखते थे. शायद गंदगी की तरफ़ उनका ध्यान नहीं जाता था. वे तब तक उसकी तरफ़ ध्यान नहीं देते थे, जब तक कि मैं उंगली नहीं उठाता था. इसके बाद वे अपने सहकर्मियों पर चिल्लाते थे और उनके सहकर्मी चपरासियों पर. चपरासी आपस में कुछ बोलते थे. मैं जानता था कि इसमें कोई बदलाव आने वाला नहीं है, क्योंकि बड़े लोग यह मानते ही नहीं हैं कि सफाई के काम की ज़िम्मेदारी उनकी भी है. यहां तक कि वे इस बात का नोटिस भी नहीं लिया करते थे. यह कल्चरल ट्रैप है.
नई पीढ़ी को अपने से पहले वाली पीढ़ी से ज़्यादा बेहतर करना होगा. स्कूलों एवं कॉलेजों के परिसरों और उनके आसपास की सफाई की ज़िम्मेदारी युवाओं को अपने कंधों पर ही उठानी होगी. इसमें एक विशेष बात यह है कि हमें इसके लिए सफाई कर्मियों पर ही निर्भर नहीं रहना होगा. दरअसल, लोग गंदगी बर्दाश्त करने के आदी हो चुके हैं. हमें उनकी इस आदत के लिए उनके मन में शर्म पैदा करनी होगी. लोगों को धार्मिक रूप से स्वच्छ रहने की बजाय वास्तविक सफाई पर ध्यान देना सिखाना होगा. धार्मिक सफाई रखने के कारण ही गंगा जैसी नदी प्रदूषित हो गई है. गंदगी कई मायनों में अच्छी भी है. शहर और गांव के लोगों को सफाई करके इस गंदगी के जरिये ऊर्जा पैदा करनी चाहिए. इसमें कोई रॉकेट साइंस नहीं है. इसे संभव बनाने के लिए लोगों को यह बताना होगा कि कचरे में से हमें कौन-सी वस्तुएं अलग करनी होंगी, जिनसे ऊर्जा पैदा की जा सके. अगर ऐसा हुआ, तो भारत का विकास मार्ग वाकई प्रशस्त होगा. भारत इस बात में सक्षम है कि वह कचरे को रिसाइकिल और ट्रीट करके उससे बिजली बना सके. अगर ऐसा हुआ, तो प्रत्येक दिन गांधी जयंती होगा.

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