देश में एक बार फिर जनता परिवार के एकजुट होने के प्रयासों की चर्चा जोरों पर है. भारतीय राजनीति में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा के उभार और कांग्रेस में लगातार बढ़ती उदासीनता के चलते यह प्रासंगिक और ज़रूरी भी है. वजह यह है कि आज देश एक सशक्त विपक्ष का अभाव झेलने को विवश है. और, सशक्त विपक्ष का अभाव हमेशा निरंकुशता को ही बढ़ावा देता है. जनता परिवार क्या चाहता है, उसकी क्या प्राथमिकताएं हैं, यही बता रही है इस बार की आमुख कथा.
Page-1बीता 6 नवंबर गुरु पर्व का दिन था और इसी दिन समाजवादी नेता, उत्तर प्रदेश के कई बार मुख्यमंत्री और केंद्र सरकार में मंत्री रहे मुलायम सिंह यादव ने अपने घर पर अपने परिवार के लोगों की बैठक बुलाई. मुलायम सिंह के परिवार का मतलब जनता परिवार से है. एक समय जनता परिवार ने देश में राज किया. चार प्रधानमंत्री दिए, श्री विश्‍वनाथ प्रताप सिंह, श्री चंद्रशेखर, श्री एचडी देवेगौड़ा और श्री इंद्र कुमार गुजराल. कई राज्यों में सालों साल जनता परिवार के लोगों की सरकार रही, लेकिन एक रोग घुन की तरह जनता परिवार में लग गया. आपस में विचारों को सामने रख, विचारों की ढाल बना व्यक्तिगत महत्वाकांक्षाओं का एक ऐसा घुन, जिसने आपस में सबको तोड़ दिया. टूटते-टूटते अब सब अंतिम रूप में टूटने का ख़तरा देखने लगेे. लगभग तीन घंटे चली बैठक में, जिसमें स्वयं श्री मुलायम सिंह यादव, देश के भूतपूर्व प्रधानमंत्री श्री देवेगौड़ा, बिहार के दो भूतपूर्व मुख्यमंत्री श्री नीतीश कुमार एवं श्री लालू प्रसाद यादव, श्री राम गोपाल यादव, श्री शिवपाल यादव, हरियाणा के भूतपूर्व मुख्यमंत्री ओम प्रकाश चौटाला के पौत्र एवं सांसद दुष्यंत चौटाला तथा केंद्र में मंत्री रहे और समाजवादी जनता पार्टी के अध्यक्ष श्री कमल मोरारका शामिल थे. इस बैठक में जनता दल (यू) के अध्यक्ष श्री शरद यादव एवं महामंत्री श्री केसी त्यागी भी शामिल थे. तीन घंटे चली बातचीत में बिना किसी बहस के सबने लगभग एक ही दृष्टिकोण से बातें रखीं और वे बातें थीं कि हमें एकता की दिशा में बढ़ना चाहिए.
इस बैठक में किसने क्या कहा और क्यों कहा, इसके बारे में जानने से पहले यह जानते हैं कि आख़िर यह बात शुरू कहां से हुई. दरअसल, जब लोकसभा के चुनाव हो रहे थे, तब दो लोगों के दिमाग में एक साथ यह बात आई. इनमें पहले बिहार के तत्कालीन मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और दूसरे समाजवादी जनता पार्टी के अध्यक्ष कमल मोरारका थे. इन दोनों ने अलग-अलग जनता परिवार के एक होने की संभावनाएं तलाशनी शुरू कीं. बहुत जल्दी दोनों को यह पता चल गया कि दोनों एक ही दिशा में बात कर रहे हैं. नीतीश कुमार लोकसभा चुनाव की प्रक्रिया के दौरान इस बात के लिए लालायित थे कि नवीन पटनायक एवं ममता बनर्जी के साथ मिलकर एक व्यापक मोर्चा बनाया जाए, लेकिन उस समय नवीन पटनायक एवं ममता बनर्जी व्यापक मोर्चे पर अनुकूल उत्तर देने से चूक गए और तब नीतीश कुमार को लगा कि सबसे पहले जनता परिवार को इकट्ठा करना चाहिए और जनता परिवार इकट्ठा हो जाता है, तो हम लोकसभा में भारतीय जनता पार्टी का अच्छी तरह मुक़ाबला कर सकते हैं. उस सारी प्रक्रिया के दौरान कांग्रेस अपनी बुद्धिमानी की पराकाष्ठा पर थी और वह अपने वक्तव्यों, अपने प्रचार के तरीके और उम्मीदवारों के ग़लत चुनाव की वजह से भारतीय जनता पार्टी या मौजूदा प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी को एक तरह से वॉक ओवर देती चली आ रही थी. नीतीश कुमार चाहते थे कि उनकी बात मुलायम सिंह यादव या अखिलेश यादव से हो, ताकि जनता परिवार को एक करने की मुहिम आगे बढ़ाई जा सके, पर सभी अपने-अपने राज्यों में बुरी तरह से व्यस्त थे. भूतपूर्व प्रधानमंत्री श्री एचडी देवेगौड़ा उस समय चाहते थे कि सभी मिलकर चुनाव लड़ें, लेकिन एक मोर्चे का गठन नहीं हो पाया और उसका परिणाम लगभग सभी ने देख लिया. मुलायम सिंह चार पर सिमट गए, लालू यादव भी चार पर सिमट गए, नीतीश कुमार को दो सीटें मिलीं, देवेगौड़ा जी को भी दो सीटें मिलीं औैर तब इन सबके समझ में आने लगा कि अगर हम एक नहीं होते हैं, तो हमें एक-एक करके नरेंद्र मोदी का भोजन बनना पड़ेगा.
हरियाणा का चुनाव सामने था. ओम प्रकाश चौटाला ने पहल कर 14 सितंबर को अपने घर पर एक बैठक बुलाई, जिसमें उन्होंने मुलायम सिंह यादव, शिवपाल यादव, शरद यादव, नीतीश कुमार, केसी त्यागी, एचडी देवेगौड़ा और कमल मोरारका को आमंत्रित किया. ये सब लोग ओम प्रकाश चौटाला के घर पर मिले. जहां ओम प्रकाश चौटाला और उनके पुत्र अभय चौटाला मौजूद थे. इस बैठक में यह तय हुआ कि हमें एक होने की दिशा में आगे बढ़ना चाहिए और हरियाणा में ओम प्रकाश चौटाला की मदद करनी चाहिए. इस ़फैसले के परिणामस्वरूप नीतीश कुमार, मुलायम सिंह के भाई शिवपाल यादव, केसी त्यागी और शरद यादव चुनाव प्रचार में सभाएं करने के लिए तैयार हो गए. ओम प्रकाश चौटाला को चुनाव के बीच में ही अदालत के आदेश पर जेल वापस जाना पड़ा. हरियाणा का चुनाव ओम प्रकाश चौटाला की पार्टी बुरी तरह हारी और जब उस हार का विश्‍लेषण सब लोगों ने किया, तब उन्हें समझ में आया कि अगर वे सब ईमानदारी से एक नहीं होते हैं, तो सभी को हरियाणा की गति को प्राप्त होना पड़ सकता है.

शिवपाल यादव ने मुलायम सिंह यादव को सारे राजनीतिक अंतर्विरोधों को समझाया और मुलायम सिंह यादव अपने घर पर सबको आमंत्रित कर बैठक के लिए तैयार हो गए. स्वयं मुलायम सिंह यादव के कहने पर शिवपाल यादव ने सबको फोन भी किया और लिखित आमंत्रण भी भेजा. एक-दूसरे के संपर्क में ये सारे नेता थे, लेकिन कोई भी आपस में खुली बातचीत नहीं कर रहा था.

लालू यादव के हृदय का ऑपरेशन मुंबई में हुआ था और वह स्वास्थ्य लाभ कर रहे थे. स्वास्थ्य लाभ के बाद वह दिल्ली लौट आए. नीतीश कुमार लगातार इस बात की कोशिश कर रहे थे कि जनता परिवार के सभी लोगों को जल्दी से जल्दी बैठना चाहिए और इसमें उनका साथ एचडी देवेगौड़ा पूरी तरह से दे रहे थे. पहले यह तय हुआ कि 6 नवंबर को यानी गुरु पर्व के दिन दोपहर के भोजन पर सभी लोग दिल्ली में लालू यादव के घर पर मिलें. लालू यादव के घर पर इसलिए, क्योंकि उनके हृदय का ऑपरेशन हुआ था, वह स्वास्थ्य लाभ कर रहे थे और कहीं जा नहीं सकते थे. नीतीश कुमार के इस प्रस्ताव के ऊपर लालू यादव ने एक दूरगामी फैसला लिया और उनकी सलाह के आधार पर श्री मुलायम सिंह यादव के दिल्ली स्थित घर में इस बैठक का होना निश्‍चित हुआ.
इस सारे आयोजन में सबसे मुख्य भूमिका शिवपाल यादव की थी और दूसरी भूमिका केसी त्यागी की थी. शिवपाल यादव ने मुलायम सिंह यादव को सारे राजनीतिक अंतर्विरोधों को समझाया और मुलायम सिंह यादव अपने घर पर सबको आमंत्रित कर बैठक के लिए तैयार हो गए. स्वयं मुलायम सिंह यादव के कहने पर शिवपाल यादव ने सबको फोन भी किया और लिखित आमंत्रण भी भेजा. एक-दूसरे के संपर्क में ये सारे नेता थे, लेकिन कोई भी आपस में खुली बातचीत नहीं कर रहा था. इसमें लालू यादव का यह कहना था कि हमें तत्काल बैठकर क्या-क्या हो सकता है और क्या करना चाहिए, इस पर खुले मन से बात करनी चाहिए.
जब 6 नवंबर को बैठक शुरू हुई, तो सबसे पहले मुलायम सिंह यादव ने नीतीश कुमार से कहा कि वह बताएं कि उनके दिमाग में क्या है. नीतीश कुमार ने बहुत साफ़ अंदाज में कहा कि क्या हमारे पास एक होने के अलावा कोई रास्ता बचता है. नीतीश कुमार का कहना था कि हमें एक पार्टी की दिशा में आगे बढ़ना चाहिए और जब हम एक पार्टी बनाएंगे, तभी देश को संदेश दे पाएंगे. नीतीश कुमार का यह भी कहना था कि कांग्रेस पार्टी अपना विपक्ष का रोल भूल चुकी है और अपने लिए कोई भूमिका तय नहीं कर पा रही है. दूसरी तरफ़ वैचारिक विरोध के अभाव में नरेंद्र मोदी सारे देश में एक भ्रम का वातावरण पैदा कर लोगों को मुख्य मुद्दों से भटकाते जा रहे हैं. नीतीश कुमार के पहले भाषण में यह स्पष्ट था कि अगर सब एक नहीं होंगे, तो सभी अपने यहां सिमट जाएंगे. नीतीश कुमार की इस बात ने बैठक का एजेंडा तय कर दिया.
इसके बाद बैठक में लालू यादव, देवेगौड़ा, शरद यादव, दुष्यंत चौटाला और कमल मोरारका बोले. सभी ने एक स्वर से मुलायम सिंह यादव से आग्रह किया कि वह आगे बढ़ें और सब लोगों को आपस में इकट्ठा करने में सबसे वरिष्ठ नेता होने के नाते अपना ऐतिहासिक रोल निभाएं. श्री देवेगौड़ा का भाषण बहुत ही तार्किक और राजनीतिक सच्चाइयों को लिए हुए था. यह फैसला हुआ कि लोकसभा और राज्यसभा में सब एक-दूसरे से मिलकर मुद्दे उठाएंगे और एक साथ एकता दिखाकर सरकार को आईना भी दिखाएंगे. सवाल चाहे काले धन का हो, सवाल चाहे किसानों की ज़मीन के अधिग्रहण का हो, सवाल चाहे बेरोज़गारी का हो या सवाल महंगाई और भ्रष्टाचार का हो, सब पर सब लोग लगातार संपर्क में रहेंगे और लोकसभा एवं राज्यसभा में एक सख्त आवाज़ बुलंद करेंगे. सबने यह माना कि उनके चालीस से ज़्यादा सांसद राज्यसभा एवं लोकसभा में हो जाते हैं और अगर वे चालीस सांसद एक साथ लोकसभा एवं राज्यसभा में बहस करते हैं, तो फिर भारतीय जनता पार्टी द्वारा पैदा की गई भ्रामक तस्वीर का मुकाबला किया जा सकता है.
इस बैठक की सबसे बड़ी खासियत यह रही कि किसी ने किसी का विरोध नहीं किया और बैठक के बाद बाहर आने के बाद भी सभी ने एक स्वर से एक बात कही. जिस जनता परिवार में पहले मैं बड़ा यातू बड़ा की बहस चलती थी और यह बीमारी तोड़ देती थी, वहां सबने एक स्वर से मुलायम सिंह यादव के सिर पर यह ज़िम्मेदारी सौंप दी कि वह सबको एक साथ लेकर आगे बढ़ें. पहले यह तय हुआ कि प्रेस को केसी त्यागी ब्रीफ करेंगे, पर शरद यादव ने कहा, नहीं, नीतीश कुमार को प्रेस को ब्रीफ करना चाहिए. नीतीश कुमार ने प्रेस को ब्रीफ करते हुए साफ़ कहा कि आज हम पहली बार मिले, लेकिन हम एक पार्टी की दिशा में आगे बढ़ रहे हैं. नीतीश कुमार ने बैठक की मुख्य बातों की जानकारी पत्रकारों को दी. इसने कम से कम यह बताया और शायद पिछले बीस सालों में पहली बार बताया कि जनता परिवार के पुराने लोग आपस में ईमानदारी से बातचीत करने का फैसला कर चुके हैं.
इस बैठक में जनता परिवार के दो लोग शामिल नहीं थे. पहले अजित सिंह और दूसरे मुफ्ती मोहम्मद सईद. दरअसल, इन दोनों को इस बैठक में आमंत्रित नहीं किया गया था, क्योंकि राजनीतिक भ्रम पैदा होते रहते हैं. हो सकता है कि अगली बैठक में अगर सब कुछ ठीक चलता रहा और मुलायम सिंह यादव के हाथ में इनिशिएटिव रहा, तो इन दोनों लोगों से भी बातचीत करके इनके शामिल होने का कोई रास्ता संभवत: निकल पाए.
देवेगौड़ा जी का मानना है कि जब हम एक हो जाएंगे, तो ममता बनर्जी, जयललिता और नवीन पटनायक के सांसदों को मिलाकर हम लोग सौ के आसपास हो जाते हैं. यानी जनता परिवार की अगुवाई में बनने वाले एक नए फ्रंट में लगभग सौ सांसदों का ग्रुप जनता के सवालों को उठाने की कोशिश कर सकता है. इन लोगों का यह भी मानना था कि लगभग 31 प्रतिशत वोट पर एक व्यक्ति प्रधानमंत्री बना है और लगभग 70 प्रतिशत वोट उसके पक्ष में नहीं है. इन्हें यह भी लगा कि नरेंद्र मोदी धीरे-धीरे मुद्दों को बदल रहे हैं, पर यह राजनीतिक विश्‍लेषण का विषय हो सकता है. इसमें सबसे महत्वपूर्ण बिंदु दूसरा है. वह बिंदु है, देश में विपक्ष के खाली स्थान को भरने का दृढ़ संकल्प.

देवेगौड़ा जी का मानना है कि जब हम एक हो जाएंगे, तो ममता बनर्जी, जयललिता और नवीन पटनायक के सांसदों को मिलाकर हम लोग सौ के आसपास हो जाते हैं. यानी जनता परिवार की अगुवाई में बनने वाले एक नए फ्रंट में लगभग सौ सांसदों का ग्रुप जनता के सवालों को उठाने की कोशिश कर सकता है.

लोकतंत्र में हमेशा विपक्ष का उतना ही महत्व रहा है, जितना सत्ता पक्ष का. और, यह कई मौक़ों पर देखा गया है कि अगर विपक्ष अपना सही रोल अदा करे, लोगों के मुद्दे उठाए, तो सरकारों को सही ़फैसले लेने के लिए मजबूर किया जा सकता है. अगर विपक्ष रहे ही नहीं, तो सरकार निरंकुश तरीके से अतार्किक फैसले ले सकती है. इसलिए जनता परिवार की एकजुटता को सूक्ष्म निगाहों से देखें, तो यह देश की जनता को संगठित करने की ईमानदार कोशिश हो सकती है. दरअसल, पिछले दस सालों में लोगों की तकलीफों का मजाक उड़ा और जिस तरह से गांव-गांव में भ्रष्टाचार फैल गया, उसने जनता को कांग्रेस के ख़िलाफ़ विद्रोह करने पर मजबूर किया. जनता के हित के लिए बनी योजनाओं, जिनमें मनरेगा जैसी योजनाएं शामिल हैं, ने पंचायतों को भ्रष्टाचार के भाईचारे में शामिल कर दिया. भ्रष्टाचार के इस भाईचारे के खेल में ग्राम पंचायत के ख़िलाफ़ गांव का विद्रोह हो गया और किसी भी विकल्प के अभाव में लोगों ने एक पार्टी को नहीं, बल्कि एक व्यक्ति को वोट दे दिया और उस व्यक्ति का नाम नरेंद्र मोदी था. नरेंद्र मोदी की भाषा, प्रचार, देश भर में घूमना और यह कहना कि मैं सारी परेशानियों से मुक्ति दिला दूंगा, लोगों को भा गया. और, शायद यही जनता परिवार को लगा होगा कि अगर हम एकजुट होते और सारे देश में चुनाव लड़ते, तो जनता हमें भी समर्थन दे सकती थी, क्योंकि इस परिवार में भूतपूर्व प्रधानमंत्री हैं. लालू यादव हैं, जिन्होंने अपने शुरू के पहले पांच सालों में हिंदुस्तान के ग़रीबों को सम्मान के साथ खड़े होने को राजनीतिक सवाल बनाया. इसमें मुलायम सिंह यादव हैं, जिनकी समाजवादी निष्ठा पर कभी कोई संदेह नहीं रहा. अगर उन पर कोई आरोप लग रहे हैं, तो वे उसी तरह के आरोप हैं, जो इस देश में राजनीति के लगभग हर नेता पर लग रहे हैं. हालांकि, वैसे आरोप भी नहीं लगने चाहिए. उन्हें अपनी छवि दूसरों से अलग दिखानी चाहिए.
यह माना जा सकता है कि मुलायम सिंह के घर पर हुई जनता परिवार की बैठक से देश में एक नई राजनीति की शुरुआत हो सकती है. अगर मुलायम सिंह यादव, नीतीश कुमार, लालू यादव, देवेगौड़ा एवं ओम प्रकाश चौटाला ईमानदारी से एक पार्टी की दिशा में आगे बढ़ते हैं, तो वह पार्टी देश के परंपरागत राजनीतिक दलों, जिनमें भाजपा और कांग्रेस दोनों शामिल हैं, के लिए नई चुनौतियां पेश कर सकती हैं. अगले दो महीने देखने लायक हो सकते हैं, क्योंकि भारतीय जनता पार्टी और उससे जुड़े हुए कुछ टिप्पणीकार मानते हैं कि यह यात्रा बहुत दूर तक साथ-साथ नहीं चलेगी, लेकिन बहुत सारे लोग मानते हैं कि यह यात्रा बहुत लंबी चलेगी और इस बार वे अंतर्विरोध शामिल नहीं होंगे, जिन्होंने समाजवादी या कहें लोक नायक जयप्रकाश और डॉ. राम मनोहर लोहिया की विचारधारा को धूमिल कर दिया था. हो सकता है, देश में एक बार फिर वैचारिक बहस की शुरुआत हो और जिसका सेहरा मुलायम सिंह यादव और नीतीश कुमार के सिर पर बंधे.

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