मुंबई : मेलघाट एक ऐसा इलाका जहाँ हर रोज़ एक मौत होती है , जहाँ हर दिन एक माँ की गोद उजड़ जाती है। आज सतपुड़ा पर्वतमाला की मेलघाट पहाडि़यों के भीतर मौत ने अपना परमानेंट ठिकाना बना लिया है। इस इलाके की सुबह रोती की माँओं की चीत्कार से शुरू होती तो शाम अपने लाल के लिए तड़पते ढल जाता है। लगतार मेलघाट पहाडि़यों के भीतर छोटे बच्चों की मौत के आंकड़े पहाडि़यों से भी ऊंचे होते जा रहे हैं।
अदालत में सरकार ने मौतों का जो आंकड़ा दिया है उसे सुनकर खुदा अदालत भी सन्न है। सरकार ने जानकरी दी है की मेलघाट क्षेत्र में ग्यारह महीने में 485 बच्चों की मौत हो चुकी हैं और आज भी कई मौत के कागार पर खड़े हैं। यह मामला कई सदन में भी गूंजा है। हर बार सरकार की ओर से बताया गया कि सरकार गंभीर है और बच्चों के मौत रोकने के लिए सरकार पूरी कोशिश कर रही है। लेकिन मौत के ये आंकड़े लगातार बढ़ते जा रहे हैं।
कुपोषण के लगातार बढ़ते मामलों के खिलाफ बॉम्बे हाई कोर्ट में लगतार सुनवाई चल रही। बॉम्बे हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को मेलघाट व अन्य आदिवासी इलाकों में तुरंत डॉक्टर उपलब्ध कराने के निर्देश दिए थे। लेकिन याचिकाकर्ता के मुताबिक़ आज भी इस इलाके के अस्पताल डॉक्टरों की कमी से जूझ रहे हैं।  अब तक कुपोषण के खिलाफ जो जंग सरकार को लडनी चाहिए थी सरकार उस स्तर पर गंभीर नहीं है।  खुद स्वास्थ विभाग के आंकड़ों के मुताबिक कुपोषण से लड़ने के लिए टोटल बजट का कुल 19 फीसदी यानी 536 . 35 लाख रूपये ही दिसम्बर 2016 तक खर्च किये गए हैं। जबकि अब तक ग्यारह महीनो में 485 मौतें हो चुकी हैं और मरने वाले बच्चों की उम्र पांच साल से भी काम थी,ये सारी मौतें अकेले मेलघाट में हुईं हैं।
वहीँ साल 2015 और 2016 के बीच शून्य से लेकर 6 साल के 6,589 बच्चों और 306 माताओं की मौत हो गई थी। इस साल मार्च से लेकर 16 अगस्त 2016 में 1,454 बच्चों की और 153 माताओं की मौत हुई। अब तक ये आंकड़ा सत्रह हज़ार पर कर चुकी है। ज़्यादा तर बच्चों की मौत निमोनिया, जन्म के वक्त वजन कम होने, समय से पूर्व बच्चे का जन्म होने जैसी अन्य बीमारियों के कारण हुई थी, जबकि माताओं की मृत्यु ज्यादा खून जाने, गर्भथैली फटने, खून की टीबी जैसी अन्य बीमारियों से हुई हैं ।
अकेले मेलघाट की आबादी तीन लाख है। वहां न तो एक भी स्त्री रोग विशेषज्ञ है और न ही बच्चों का कोई डॉक्टर है।
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