mayawatiएक तरफ समाजवादी पार्टी में माफिया सरगना की पार्टी का विलय हो रहा था तो दूसरी तरफ उत्तर प्रदेश विधानसभा में विपक्ष के नेता स्वामी प्रसाद मौर्य का बहुजन समाज पार्टी से विरह हो रहा था. मौर्य और मायावती के विरह में भारी तिक्तता थी. मौर्य मायावती के खिलाफ बयानबाजी का शौर्य दिखा रहे थे, तो मायावती भी अपने अंदाज में स्वामी प्रसाद मौर्य के अस्तित्व को खारिज कर रही थीं. समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी, दोनों तरफ की राजनीतिक रामलीला चरम पर रही.

बहुजन समाज पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव स्वामी प्रसाद मौर्य ने मायावती पर टिकट बेचने का गंभीर आरोप लगाते हुए 22 जून को पार्टी से इस्तीफा दे दिया. मौर्य ने कहा कि मायावती के भीतर पैसे की हवस पैदा हो गई है. विधानसभा परिसर में पत्रकारों से बातचीत करते हुए मौर्य ने मायावती पर करारा प्रहार किया. मौर्य ने कहा कि मनुवादी व्यवस्था में चौथे पायदान पर रहने वाले दलितों के उत्थान के लिए कांशीराम ने बसपा बनाई थी. इस पार्टी ने जिसकी जितनी संख्या भारी, उसकी उतनी भागीदारी की मूल भावना से काम करते हुए समाज में एक स्थान बनाया और दलित आंदोलन को गति दी, लेकिन मायावती धन के लालच और मनुवादियों के मोह में फंसकर कांशीराम के सपनों का सौदा कर रही हैं. मौर्य ने कहा, इसलिए मैंने पत्र लिखकर मायावती को अपना इस्तीफा भेज दिया है. मौर्य ने बसपा कार्यकर्ताओं की उपेक्षा और उन्हें दलित महापुरुषों से जुड़े कार्यक्रमों में जाने से रोकने का आरोप लगाते हुए कहा कि मुझे विचार रखने से रोका गया. विचारों की आजादी छीनने की कोशिश हुई. ऐसे में पार्टी में घुटन हो रही थी. इस्तीफा देकर अब हल्का महसूस कर रहा हूं. मौर्य ने यह भी कहा कि मैं विधायक रहूंगा या नहीं, यह पडरौना की जनता को तय करने का हक है. मायावती यह नहीं तय करेंगी. मौर्य ने मायावती पर भारतीय जनता पार्टी की मदद करने का आरोप लगाया और कहा कि मैं दलितों और पिछड़ों के हितों के लिए काम करता रहूंगा. स्वामी प्रसाद मौर्या ने कहा कि मायावती दलित की नहीं दौलत की बेटी हैं. वे आगामी चुनाव के लिए टिकट बेच रही हैं. यह मान्यवर काशीराम और बाबा साहेब अंबेडकर का अपमान है. बसपा नीलामी का बाजार बन गई है. मायावती ने अंबेडकर के विचारों की हत्या की है. बसपा के कार्यकर्ता हताश हैं, इस पार्टी में दलितों के लिए जगह नहीं रह गई है. मौर्या ने कहा कि बाबा साहेब के सपनों को मायावती ने बर्बाद कर दिया है. उल्लेखनीय है कि स्वामी प्रसाद मौर्य की पूर्वांचल में बसपा के बड़े नेता के रूप में पहचान रही है. 2009 में पडरौना विधानसभा के लिए हुए एक उपचुनाव में तत्कालीन मुख्यमंत्री मायावती ने मौर्य को पार्टी का उम्मीदवार बनाया था. उस चुनाव में मौर्य ने केंद्रीय मंत्री आरपीएन सिंह की मां को हराकर सबको चौंका दिया था. इस जीत के साथ मौर्य ने 2009 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के आरपीएन सिंह के हाथों मिली पराजय का बदला भी ले लिया था.

मौर्य के इस्तीफे और आरोप के जवाब में मायावती ने कहा कि हम मौर्य को खुद ही पार्टी से निकालने वाले थे. पार्टी छोड़कर मौर्या ने बहुजन समाज पार्टी पर बड़ा उपकार किया है. मायावती ने कहा कि मौर्या पहले से मुलायम के साथ थे. मौर्य को परिवारवाद का मोह है. मैंने मौर्य के बेटे बेटी को भी टिकट दिया. लोकसभा चुनाव में भी बेटी को टिकट दिया था. लेकिन उनमें परिवारवाद का व्यामोह पार्टी प्राथमिकताओं से अधिक हावी हो गया था. मायावती ने कहा कि मैंने अपने भाई बहन सभी को राजनीति से दूर रखा. परिवारवाद का विरोध हमारी पार्टी के मूल विचार हैं. लेकिन इसके विपरीत मौर्य लगातार अपने परिवार के लिए टिकट मांग रहे थे. मैं परिवारवाद की सख्त विरोधी हूं. टिकट बेचने के मौर्य के आरोप को मायावती ने पूरी तरह नकार दिया और कहा कि बसपा मुलायम सिंह यादव की पार्टी नहीं है, जहां पहले परिवार को टिकट बांटे जाते हैं, पार्टी के सदस्यों का नम्बर बाद में आता है. पार्टी छोड़कर जाने वाले लोग यही बोलते हैं कि मायावती दलित नहीं दौलत की बेटी है, लेकिन वे सही वजह नहीं बताते हैं. पैसा लेकर टिकट बेचने के आरोपों पर मायावती ने मौर्य से पूछा, 2012 में उन्होंने अपने बेटे-बेटी के टिकट के लिए कितना पैसा दिया था? स्वामी प्रसाद मौर्य एक तरफ मायावती के आरोपों का जवाब भी देते हैं तो दूसरी तरफ भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष के भी मौर्य जाति का होने के प्रति अपनी चिंता जाहिर कर देते हैं. मौर्य ने कहा कि वह परिवारवाद के सख्त खिलाफ हैं, इसके साथ ही भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष केशव प्रसाद मौर्य को बच्चा बताना भी नहीं भूलते.

बसपा के खिलाफ बिगुल फूंकने का क्रम जारी

बहुजन समाज पार्टी में तकरीबन विद्रोह की ही स्थिति है. केवल स्वामी प्रसाद मौर्य ही क्यों, बसपा छोड़ने का क्रम तो पहले से जारी है. डॉ. अखिलेश दास, जुगल किशोर, फतेह बहादुर सिंह, राजेश त्रिपाठी जैसे कई नाम हैं, जो बसपा के खास थे, लेकिन उन्हें पार्टी छोड़ने पर विवश होना पड़ा. इनमें से करीब-करीब सबों ने मायावती पर यही आरोप लगाया कि वे पैसे लेकर लोकसभा और विधानसभा चुनाव का टिकट बांटती हैं या भारी धन लेकर किसी को राज्यसभा के लिए मनोनीत करती हैं. सपा की लहर में भी बसपा से चिल्लूपार जैसी सीट जीतने वाले विधायक और पूर्व मंत्री राजेश त्रिपाठी को बसपा छोड़नी पड़ी. पता चला कि मायावती राजेश को ही दरकिनार कर हरिशंकर तिवारी के किसी रिश्तेदार को विधानसभा चुनाव में उतारने की तैयारी में थीं. इसकी भनक लगते ही राजेश ने बसपा से किनारा कर लिया. बसपा के राज्यसभा सदस्य डॉ. अखिलेश दास गुप्ता के इस्तीफे की कहानी से तो लोग परिचित हैं ही. मायावती ने डॉ. अखिलेश दास गुप्ता को राज्यसभा का टिकट दोबारा देने से मना कर दिया था. इस पर डॉ. दास ने यह आरोप लगाया था कि राज्यसभा का उम्मीदवार बनाने के लिए मायावती सौ-सौ करोड़ रुपये मांगती हैं. इसी तरह राज्यसभा के लिए चयनित नहीं होने का गुस्सा पूर्व सांसद ब्रजेश पाठक में भी है. हालांकि उन्होंने अभी पार्टी नहीं छोड़ी है. लेकिन चर्चा है कि मायावती के सतीश चंद्र मिश्र से एकल-ब्राह्मण प्रेम के कारण ब्राह्मण समुदाय के कई नेता जल्दी ही बसपा को मनमस्ते सदा वत्सलेफ कर देंगे. मायावती ने अपने मुख्यमंत्रित्वकाल में जिस आईपीएस अफसर को सबसे अधिक तरजीह दी थी, वही बृजलाल रिटायरमेंट के बाद भाजपा में शरीक हो गए. बृजलाल के बारे में सबको यही लग रहा था कि वे बसपा में जाएंगे, लेकिन उन्होंने भी मायावती को झटका दे दिया. मायावती ने सारे नियम-कानून और सीनियॉरिटी को ताक पर रख कर अक्टूबर 2011 में बृजलाल को प्रदेश का डीजीपी बनाया था. जबकि उस वक्त बृजलाल गाजियाबाद कोर्ट में एक मुकदमा भी झेल रहे थे. 2012 में यूपी के विधान सभा चुनाव होने थे. चुनाव से ठीक पहले बृजलाल को राज्य का पुलिस प्रमुख बनाए जाने पर समाजवादी पार्टी और कांग्रेस ने चुनाव आयोग से शिकायत की थी. तब आयोग के आदेश पर बृजलाल को पीएसी के डीजी पद पर स्थानांतरित कर दिया गया था. बृजलाल को वर्दी वाला बसपाई तक कहा जाने लगा था. बसपाई बृजलाल के भाजपाई होने के बाद बसपा के राज्यसभा सदस्य जुगल किशोर और मायाकालीन मंत्री फतेह बहादुर सिंह के सपरिवार भाजपा में शामिल होने का कदम भी मायावती के लिए बड़ा झटका था. जुगल किशोर और फतेहबहादुर के परिवार के सदस्यों के साथ-साथ खासी संख्या में बसपाइयों ने भाजपा की सदस्यता ग्रहण की थी. उनमें राज्यसभा सांसद जुगल किशोर की पत्नी दमयंती किशोर और उनके पुत्र सौरभ सिंह व फतेह बहादुर सिंह की पत्नी साधना सिंह और उनके समर्थक शामिल थे. फतेह बहादुर सिंह लंबे समय तक प्रदेश की सरकारों में कैबिनेट मंत्री रहे थे. उनके पिता वीर बहादुर सिंह उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री थे. कैंपियरगंज इनकी परंपरागत सीट है. इसके अलावा पूर्व विधायक सुरेंद्र मिश्र, विधान परिषद सदस्य हरगोविंद मिश्र, आजमगढ़ के बसपा नेता अमित तिवारी और बॉबी अवस्थी ने भी बसपा छोड़ कर भाजपा की सदस्यता ग्रहण की थी.

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