camronयूरोपीय संघ से ब्रिटेन के अलग होने के मुद्दे पर जनमत संग्रह का फैसला आने के बाद ब्रिटिश प्रधानमंत्री डेविड कैमरन ने इस्तीफा देने की घोषणा कर दी है. कैमरन ब्रिटेन के ईयू में बने रहने के पक्षधर थे. उन्होंने पिछले साल आम चुनाव में भारी जीत के बाद जनमत संग्रह कराने पर हामी भरी थी. 10 डाउनिंग स्ट्रीट के बाहर नम आंखों से भर्राई आवाज में उन्होंने घोषणा की, मैं अक्टूबर तक इस्तीफा दे दूंगा. मुझे नहीं लगता कि देश जिस अगले पड़ाव पर जा रहा है, उसकी कमान अब मुझे संभालनी चाहिए. कंजर्वेटिव पार्टी को नया नेता चुन लेना चाहिए.

कैमरन नेे कहा कि जहां तक उनकी समझ रही, उन्होंने इस लड़ाई को आगे बढ़ाया. ब्रिटेन यूरोपीय संघ में शामिल नहीं होने के बाद भी आगे बढ़ने का माद्दा रखता है. हमें ब्रिटिश जनमत संग्रह का सम्मान करना चाहिए. उनके इस्तीफा देने की घोषणा के बाद ब्रिटेन के पूर्व प्रधानमंत्री टोनी ब्लेयर ने कहा कि निजी तौर पर वे डेविड कैमरन के लिए बेहद आहत महसूस कर रहे हैं.

ब्रिटेन के ईयू से बाहर होने का फैसला आने के बाद से ही कैमरन पर पद छोड़ने को लेकर काफी दबाव था. ईयू से अलग होने को लेकर अभियान चलाने वाले नाइजल फरागे ने कहा कि 23 जून 2016 को ब्रिटेन के इतिहास में स्वतंत्रता दिवस के रूप में मनाना चाहिए. ये बड़े-बड़े बैंकों और औद्योगिक घरानों के खिलाफ आम लोगों की जीत है. अब ब्रिटेन में ब्रेग्जिट सरकार को आना चाहिए. इससे पूर्व अभियान के दौरान उन्होंने कहा था कि ईयू हर रोज मर रहा है. ब्रिटेन की सरकार को बदलने की जरूरत है. गौरतलब है कि जनमत संग्रह में 52 प्रतिशत लोगों ने यूरोपीय संघ से अलग होने के पक्ष में मुहर लगाई थी, जबकि 48 प्रतिशत यूरोपीय संघ के साथ बने रहना चाहते थे. इंग्लैंड और वेल्स के लोगों ने ईयू से बाहर निकलने के पक्ष में वोट डाला, जबकि नॉर्दर्न आयरलैंड व स्कॉटलैंड ने ईयू में बने रहने के पक्ष में वोट दिया. कह सकते हैं कि इन परिणामों को लेकर पूरा ब्रिटेन दो हिस्सों में बंट गया था.

हालांकि यूरोपीय संघ से ब्रिटेन के अलग होने के फैसले से यूरोपीय संघ के अन्य देश हतप्रभ हैं. यह यूरोपीय संघ के लिए एक भयंकर सपने के सच होने जैसा है. अभी तक किसी भी सदस्य देश ने संघ से अलग होने का फैसला नहीं किया था. हालांकि यूरोपीय युनियन ट्रीटी में आर्टिकल 50 में ऐसा प्रावधान है कि जो देश युनियन से अलग होना चाहता है, वह इस संगठन से बाहर जा सकता है. लेकिन इससे पूर्व संघ छोड़ने वाले देश को इसकी वजह बतानी होती है, जिसपर अन्य सदस्य देश विचार करते हैं. इसके साथ ही भविष्य में उस देश के साथ संबंधों को भी तय किया जाता है. इसका फैसला परिषद को करना होता है, जिसमें अन्य सदस्य देशों की मंजूरी लेनी होती है. इस बैठक में वह देश हिस्सा नहीं लेता है, जिसने संघ छोड़ने का फैसला किया हो. हालांकि डिपार्चर ट्रीटी पर ईयू के अन्य बचे 27 देशों का दस्तखत होने तक ब्रिटेन यूरोपीय संघ का सदस्य बना रहेगा.

उम्मीद है कि यूरोपीय संघ के प्रमुख डोनाल्ड टस्क अगले सप्ताह एक सम्मलेन की अध्यक्षता करेंगे, जिसमें वे ईयू गवर्निंग बॉडी के प्रतिनिधि के तौर पर ब्रिटेन के अलग होने के मुद्दे पर आधिकारिक बयान जारी करेंगे. ईयू का वार्षिक बजट 145 बिलियन यूरो का है, जिसमें ब्रिटेन का योगदान 7 बिलियन यूरो का है. अब ईयू की चिंता इस बजट की कमी को पूरा करने के लिए संसाधन जुटाने की भी होगी.

जनमत संग्रह का फैसला आने के बाद से ही विश्व बाजार में पाउंड लड़खड़ा गया है. फैसला आने के पूर्व पाउंड 1.51 डॉलर पर चल रहा था, जो नतीजे की घोषणा के बाद 1.41 डॉलर तक आ गया. ब्रिटिश कारोबारियों का कहना है कि 2008 के बाद पहली बार उन्होंने पाउंड को इस स्तर पर नीचे गिरता देखा है. इसका असर ईयू के अलावा ब्रिटेन के अन्य सहयोगी देशों पर भी पड़ना तय है.

भारत का ब्रिटेन के साथ ईयू के साथ भी व्यापारिक संबंध रहा है, जो आने वाले दिनों में प्रभावित हो सकता है. भारत के वित्त मंत्री अरुण जेटली और आरबीआई के गवर्नर रघुराम राजन लगातार इस ऐतिहासिक घटनाक्रम पर नजर रखे हैं. अरुण जेटली ने कहा कि ब्रिटेन, यूरोप और दुनिया के बाकी अन्य देशों पर इस घटनाक्रम का क्या असर होगा, अभी कहना मुश्किल है. सभी देशों को इस स्थिति से निपटने के लिए तैयार रहना होगा. वहीं रघुराम राजन ने कहा कि आरबीआई हर तरह की आकस्मिक परिस्थितियों से निपटने के लिए पूरी तरह से तैयार है. जरूरत पड़ने पर हम मुद्रा बाजार में हस्तक्षेप करेंगे.

हालांकि ईयू से ब्रिटेन के अलग होने के फैसले के बाद दुनिया भर के बाजारों में गिरावट का रुख दिख रहा है. कुछ आर्थिक विश्लेषक आशंका जता रहे हैं कि ईयू से अलग होने पर ब्रिटेन आर्थिक रूप से एक कमजोर देश साबित होगा, जिससे उसका विश्व राजनीति और व्यापार पर दबदबा भी कम हो जाएगा. वहीं कुछ लोग कयास लगा रहे हैं कि अभी कुछ और देश ईयू से अलग होने की घोषणा कर सकते हैं. ये देश ईयू से अलग होने के बाद ब्रिटेन की परिस्थितियों की समीक्षा कर रहे हैं. नीदरलैंड में भी जनमत संग्रह कराने की मांग उठने लगी है. हालांकि ईयू के अध्यक्ष टस्क ने कहा कि यूरोपीय युनियन के बाकी सभी 27 देश एकजुट हैं. वे अलग नहीं होंगे. अब देखना है कि ईयू से ब्रिटेन जैसे मजबूत देश के अलग होने के बाद ईयू कमजोर होता है या अन्य देशों को एकजुट रख पाने में सफल रहता है. कैमरन की विदाई से ज्यादा महत्वपूर्ण ब्रिटिश नागरिकों के हित हैं, जिसपर जनता ने मुहर लगाई है. फिलहाल ब्रिटेन के सामने महत्वपूर्ण चुनौती है कि वह ईयू से अलग होने के बाद भी विश्व बाजार पर अपना दबदबा बनाए रखे.

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