रंग और उल्लास का पर्व होली बुधवार को है। रंगोत्सव यानी धुरड्डी गुरुवार को होगी। काफी समय बाद दोनों ही दिन मातंग योग बन रहा है। भद्रा के अधिक समय रहने के कारण इस बार होलिका दहन बुधवार की रात्रि नौ बजे के बाद हो सकेगा। सात साल बाद बृहस्पति के उच्च प्रभाव में दुल्हैंडी यानी रंगोत्सव होगा। ज्योतिषाचार्य पं. दीपक पाण्डेय के अनुसार, होलिका दहन का मुहूर्त किसी भी त्योहार के मुहूर्त से अधिक महत्वपूर्ण है। किसी अन्य पर्व की पूजा अगर उपयुक्त समय पर न की जाए तो केवल पूजा के लाभ से वंचित होना पड़ेगा। वैदिक काल में इस पर्व को नवान्नेष्टि कहा गया। इसमें अधपके अन्न का हवन कर प्रसाद बांटने का विधान है।

होलिका की पवित्र आग में लोग जौ की बाल, सरसों की उबटन, गुझिया, फल, मीठा, गुलाल से होली का पूजन करते हैं। राग और रंग होली के दो प्रमुख अंग हैं। सातों रंगों के अलावा, सात सुरों की झंकार इसका उल्लास बढ़ाती है। गीत, फाग, होरी, धमार, रसिया, कबीर, जोगिरा, ध्रुपद, छोटे’बड़े ख्यालवाली ठुमरी होली की पहचान है।

Holika dahan shubh muhurat

रात्रि: 8:58 बजे से 12:13 बजे तक।

भद्रा पूंछ:
शाम 5:24 से 6:25 बजे तक।
भद्रा मुख:
शाम 6:25से रात 8:07बजे तक।

इसलिए भद्रा में नहीं जलती होली
पंडित केदार नाथ मिश्रा के अनुसार भद्रा में होलिका दहन नहीं होता है। भद्रा को विघ्नकारक माना जाता है। इस दौरान होलिका दहन से हानि एवं अशुभ फलों की प्राप्ति होती है। इसीलिए भद्रा काल छोड़कर होलिका दहन किया जाता है। विशेष परिस्थितियों में भद्रा पूंछ के दौरान होलिका दहन किया जाता है। मगर इस वर्ष अच्छी बात यह है कि भद्रा रात के दूसरे पहर में ही समाप्त हो जाएगी।

पश्चिम भारत में मात्र 10 मिनट
इस बार होलिका दहन में समय बदला है। सामान्यत: यह शाम 4 बजे के बाद होता है लेकिन इस बार भद्र मुख के कारण होलिका दहन का कार्यक्रम थोड़ी देर से शुरू होगा। मुंबई और पश्चिम भारत में होलिका दहन के लिए काफी कम समय मिलेगा। मात्र 10 मिनट। यह 8.57 से शुरू होकर 9.09 तक चलेगा।

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