सियासत को बहुत नज़दीक से देखा तो ये देखा।
हज़ारों गिरगिटों में जंग है रंगत बदलने की!!

कहते हैं बुरे वक़्त में अपने पराये की पहचान हो जाती है।
और वही वक़्त निर्णय का होता है कि बुरे वक़्त में मुँह फेरने वालों से दूरी बना ली जाये।
लेकिन ख़ुदगर्ज़ी के मौजूदा दौर में ये बात फिट नहीं रही।
इसकी मिसाल कांग्रेस पार्टी में साफ़ नज़र आती है। इंदिरा जी के कार्यकाल में भी ऐसा वक़्त आया था एक साथ दर्जनों बड़े नेताओं ने पलायन किया था।
लेकिन उस वक़्त एक अच्छा निर्णय लिया गया था कि अच्छा है सफ़ाई हो जाएगी फिर थोड़े संघर्ष के बाद नये लोगों को मौक़ा मिलेगा और हुआ भी वही। आज भी यही करना चाहिए बजाए इन्हें मनाने में वक़्त ज़ाया करने के अच्छे जुझारू ईमानदार वफ़ादार नई विचारधारा के लोगों आगे बढ़ाना चाहिए जैसा कि मध्यप्रदेश में किया।
पार्टी नेतृत्व को मालूम होना चाहिए कि बरसों से ईमानदारी से वफ़ादारी से पार्टी का काम कर रहे लोग इन्ही स्वार्थी नेताओं के नेटवर्क के चलते आगे नहीं आ पा रहे। और वैसे भी राम मंदिर में एन चुनाव के वक्त मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा भा ज पा पुनः सत्ता का प्रसाद देने वाली है। ऐसे में कांग्रेस के लिए ये मुनासिब वक़्त निर्मम वाशिंग पाउडर बन जाने का है तमाम गंदगी की सफ़ाई का है सारे धमकाने डराने वाले नेताओं को निकाल बाहर करना चाहिए और नये मज़बूत लिखे पढ़े लिखे दमदार निष्ठावान और पार्टी विचारधारा को मानने वाले जुगनुओं से नया सूरज बनाना चाहिये।
बेशक लगातार हार का मुँह देख रही पार्टी में अफ़रा तफ़री का माहौल है। जैसे नाव में पानी भरने पर सबसे पहले चूहे नाव छोड़कर भागते हैं वैसे ही राजनीति में मुसीबत के वक़्त में स्वार्थी,काली कमाई वाले,व्यापारी समर्थक और कमज़र्फ़ जिधर दम उधर हम की तर्ज़ पर बग़ैर वक़्त गवाये अपनी गिरगिटी आस्था बदलने में देर नहीं कर रहे। और पॉवर के साथ चले जा रहे हैं। लेकिन ऐसा पहली बार तो नहीं हो रहा पार्टी से नेताओं के पलायन पहले भी होते रहे हैं लेकिन उस वक़्त पार्टी छोड़ने का सबब स्वार्थ के अलावा स्वाभिमान भी होता था। वैसे राजनीति में जहां तक आस्था का सवाल है तो मान के चलिए राजनीति में लोग पैदा करने वाली माँ और पालने वाले पिता को भी एक पल में छोड़ सकते हैं तो ये पार्टी कहाँ लगती है। इस मौक़े पर अपना एक शेर याद आता है…
क़सम झूठे मुनाफ़िक़ बेईमाँ कमज़र्फ़ नेता की।
सियासत में कभी कोई किसी का हो नहीं सकता!!

विजय तिवारी
“चौथी दुनिया ऑन लाइन दिल्ली”

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