magadhबारिश आते ही मगध के ग्रामीण क्षेत्रों में संक्रामक बीमारियों को लेकर दहशत फैल जाती है. इन बीमारियों से निबटने के लिए स्वास्थ्य विभाग की व्यवस्थाएं नाकाफी साबित होती हैं. यातायात की असुविधा के कारण ग्रामीण क्षेत्रों में बीमार व्यक्ति का इलाज कराना मुश्किल हो जाता है. गया समेत मगध के अन्य चार जिले औरंगाबाद, जहानाबाद, नवादा और अरवल के ग्रामीण क्षेत्रों में जब किसी बीमारी का फैलाव होता है तो वह महामारी का रूप ले लेता है.

मगध के गामीण क्षेत्रों में दहशत का कारण यह है कि मगध मेडिकल कॉलेज में दस वर्षों में जापानी इनसेफ्लाइटिस के 1400 मामले सामने आए, जिसमें 357 लोगों की मौत हो गई. पिछले वर्ष  गया जिले में जेई से 33 बच्चों की मौत हुई थी, वहीं अज्ञात बीमारी की चपेट में आकर 74 बच्चों ने दम तोड़ दिया था. पिछले वर्ष जून माह में ही जापानी इनसेफ्लाइटिस के मरीज मगध मेडिकल कॉलेज अस्पताल में आने शुरू हो गए थे.

पिछले साल जेई श्रेणी की अज्ञात बीमारी से 33 बच्चों की जान चली गई थी. यही कारण है कि बरसात में पानी व जंगलों-पहाड़ों से आच्छादित ग्रामीण क्षेत्रों में लोगों का डर इस बीमारी से बढ़ जाता है. गया के सिविल सर्जन डॉ. बबन कुंवर ने बताया कि प्रखंड स्तर पर सभी स्वास्थ्यकर्मियों को अलर्ट जारी कर दिया गया है. स्वास्थ्य विभाग की गाइडलाइन के मुताबिक मरीज की पहचान व उसका इलाज किया जा रहा है. आशा कार्यकर्ताओं को जिम्मेवारी दी गई है कि वे गांव में लोगों को जापानी

इनसेफ्लाइटिस के प्रति जागरूक करें. अनुग्रह नारायण मगध मेडिकल कॉलेज अस्पताल के अधीक्षक डॉ. सुधीर कुमार सिन्हा ने बताया कि शिशु रोग विभाग के सभी चिकित्सकों के साथ बैठक कर पूरी तैयारी कर ली गई है. दवाओं की खरीद भी हो गई है. स्पेशल आईसीयू वार्ड में भी बेहतर इंतजाम के निर्देश दिए गए हैं. जापानी

इनसेफ्लाइटिस से पीड़ित मरीजों के लिए 15 बेड की व्यवस्था की गई है. इसके बावजूद ग्रामीण क्षेत्र के लोगों में जापानी इनसेफ्लाइटिस के संभावित फैलाव से डर का माहौल है. ग्रामीण कहते हैं कि स्वास्थ्य विभाग बीमारी से निपटने के बड़े-बड़े दावे करता है, लेकिन जब मरीजों की संख्या बढ़ने लगती है तो चिकित्साकर्मी हाथ खड़े कर देते हैं. गया जिले के फतेहपुर, टनकुप्पा, डुमरिया, इमामगंज, बांके बाजार, मोहनपुर, बाराचट्टी, नवादा जिले के कौआकोल, रजौली, गोबिन्दपुर, अकबरपुर, जहानाबाद के मखदुमपुर, औरंगाबाद के रफीगंज आदि प्रखंडों में

जापानी इनसेफ्लाइटिस का प्रकोप अधिक होता है. इसी दौरान कुछ क्षेत्रों में मलेरिया का भी प्रकोप बढ़ जाता है. इन दो बीमारियों के अलावा जेई की अज्ञात बीमारी ने चिकित्साकर्मियों को भी सकते में डाल दिया है. इस संबंध में पिछले दस साल का रिकॉर्ड देखा जाए तो बड़ी भयावह स्थिति नजर आती है. 2007 में जापानी इनसेफ्लाइटिस के 158 मामले सामने आए, जिसमें 29 की मौत हो गई. इसी प्रकार 2008 में 196 में 46 की मौत, 2009 में 151 मरीजों में से 46 की मौत हो गई.

2010 में कोई मामला सामने नहीं आया था. 2011 में 409 में 93 की मौत, 2012 में 50 मरीजों में से 21 की मौत, 2013 में 77 मरीजों में से 22 की मौत, 2014 में 84 में से 28 की मौत, 2015 में 124 मरीजों में से 25 की मौत तथा 2016 में 151 में 47 की मौत हो गई. इसी आंकड़े से आप जेई की भयावहता का अंदाजा लगा सकते हैं. ये सरकारी आंकड़े हैं, जिसे स्वास्थ्य विभाग जारी करता है.

वहीं लोगों का कहना है कि  वास्तविक स्थिति इन आंकड़ों से कई गुणा ज्यादा है. प्रखंडों के प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्रों में तमाम सुविधाओं का दावा किया जाता है, परन्तु ये सभी दावे हवा-हवाई साबित होते हैं. बताया जाता है कि  मगध के कई प्रखंडों के सैकड़ों गांव ऐसे हैं, जिनका बारिश में प्रखंड मुख्यालय से सम्पर्क टूट जाता है.

मरीजों को पैदल या फिर नाव ही सहारा होता है. ऐसे में यदि किसी को जापानी इन्सेफ्लाइटिस हो जाए, तो समझ सकते हैं कि उसका इलाज कितना मुश्किल होगा.   पिछले वर्ष गया जिले के 24 प्रखंडों में जापानी इन्सेफ्लाइटिस से 26 तथा अज्ञात बीमारी से 74 बच्चों की मौत हो गई थी. यही कारण है कि बारिश के दिनों में मगध के निवासी बीमारी की आशंका से जीने को मजबूर हैं.

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