मुज्जफरपुर बालिका गृह कांड के तार अब समाज कल्याण विभाग के बड़े अफसरों से भी जुड़ने लगे हैं. इस कांड की अहम् कड़ी मधु की गिरफ़्तारी के बाद सीबीआई ने अपना रुख विभाग की ओर कर लिया है, क्योंकि उसे यकीन है कि इसमें कई सफेदपोशों की मिलीभगत हो सकती है. बालिका गृह कांड के मुख्य आरोपी ब्रजेश के समाज कल्याण विभाग के कई अधिकारियों से अच्छे संबंध रहे हैं.

मधु को गिरफ्त में ले लेने के बाद सीबीआई अब उसके जरिये उन अफसरों तक पहुँचने की कोशिश में है जिनके साथ ब्रजेश का उठना-बैठना था. चूँकि मधु ब्रजेश के काफी करीब थी इसलिए वह उन सभी जगहों पर ब्रजेश के साथ ही आती-जाती थी. ऐसे में वो उन रसूखदारों की पहचान करा सकती है जिनके ब्रजेश से संबंध थे. विभाग में अपनी पहुँच के बल पर ही ब्रजेश अनुदान के नाम पर मोटी राशि प्राप्त कर लेता था और मधु इस पूरे मामले में उसकी सहभागी थी. इस बीच, जहाँ एजेंसी मधु से गहन पूछताछ में लगी हुई है वहीं इस मामले में उसे अब डॉ. प्रमिला की भी तलाश है.

प्रमिला ही किशोरियों के इलाज के लिए बालिका गृह में प्रतिनियुक्त थी. कथित चिकित्सक के रूप में गिरफ्तार किए गए अश्विनी कुमार से पूछताछ में डॉ. प्रमिला का नाम सामने आया है. अश्विनी ने बताया कि वह बालिका गृह में महज एचआईवी काउंसलर था. बालिका गृह की स्पेशल हेल्थ यूनिट की इंचार्ज डॉ. प्रमिला ही थी. लेकिन, वह अब कहां है यह नहीं जानता. कौन है डॉ. प्रमिला इसका सुराग लगाने में सीबीआई जुट गई है. गिरफ्तार अश्विनी ने कोर्ट में पेशी के बाद पत्रकार को भी डॉ. प्रमिला के बारे में जानकारी दी. इसी के साथ बालिका गृह कांड में डॉ. प्रमिला का एक नया नाम सामने आया है.

ज्ञात हो कि मुज्जफरपुर बालिका गृह कांड ने पूरे देश के सामने बिहार को शर्मसार कर दिया है. पूरे मामले में पूर्व मंत्री मंजू वर्मा की संलिप्तता सामने आने और फिर नाटकीय अंदाज में उनके आत्मसमर्पण ने राज्य की कानून व्यवस्था की पोल खोल कर रख दी तो अब समाज कल्याण विभाग के अफसरों का नाम आने पर समूचे गोरखधंधे का पर्दाफाश होने वाला है. खुद सुप्रीम कोर्ट ने कहा था, “बिहार में कुछ भी ठीक नहीं है. पूर्व मंत्री छुपी हुई हैं और सरकार को पता ही नहीं है. मंत्री की जमानत याचिका खारिज होने के बाद भी सरकार उन्हें गिरफ्तार करने में नाकाम रही है.“

जिस बालिका गृह कांड ने पूरे देश को झकझोर दिया है, उसे दुनिया के सामने लाने वाली टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंस (टिस) की ‘कोशिश’ टीम को सोशल ऑडिट के दौरान स्वयंसेवी संस्थाओं के भारी असहयोग का सामना करना पड़ा था. छह महीने तक टीम ने बिहार के एक जिले से दूसरे जिले, एक गृह से दूसरे गृह तक की खाक छानने में कई दुश्वारियां झेली. टिस की इस टीम को संस्था के सहायक प्रोफेसर मो. तारिक लीड कर रहे थे. आठ सदस्यों वाली टीम में सात मनोवैज्ञानिक शामिल थे. इनमें से तीन महिलाएं थीं.

सितम्बर 2017 में समाज कल्याण विभाग ने इन्हें सोशल ऑडिट की जिम्मेवारी सौंपी. सूबे के 38 जिलों में 110 आश्रय गृहों की ऑडिट की गई. 15 मार्च को यह ऑडिट रिपोर्ट प्रकाशित हुई. कोशिश टीम की रिपोर्ट जो तैयार की गई है, वह सौ पन्नों की किताब की शक्ल में है. टीम के अनुसार सभी 38 जिलों में चल रहे आश्रय गृहों की जांच में छह संस्थानों में बालक व बालिकाओं ने यौन प्रताड़ना की शिकायत की. इसके अलावा 14 संस्थाओं में संचालक व कर्मचारियों द्वारा मारपीट की शिकायत पाई गई. टीम ने एक महत्वपूर्ण बात यह बतायी कि प्रत्येक संस्था में प्रावधान के अनुसार शिकायत व सुनवाई के लिए बच्चों की एक कमेटी बनाई गई थी, लेकिन बच्चों से उस रजिस्टर पर सीधे हस्ताक्षर करा लिया जाता था या अंगूठे का निशान ले लिया जाता था.

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