जमीन हथियाने की होड़ में शहीदों के परिजनों को भी नहीं बख्शा जा रहा है. हद तो यह है कि ऐसा करते हुए उन सरकारी मुलाजिमों को जरा भी शर्म नहीं आती, जो जमीन और कागजों की हेराफेरी में लिप्त हैं. मामला उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर जिले का है, जहां देश की रक्षा के लिए अपनी जान कुर्बान कर देने वाले शहीद के परिजनों को 8 साल बाद भी स्मारक की जमीन के लिए दर-दर भटकना पड़ रहा है. हालत यह है कि शहीद की स्मृति में स्मारक बनाने के लिए दी गई जमीन भी दूसरे को पट्टे में दे दी गई है. मिर्जापुर जनपद के मड़िहान थाना क्षेत्र के अंतर्गत ककरद निवासी केंद्रीय अर्धसैनिक बल सीआरपीएफ के जवान रहे गिरिजाशंकर मौर्या 25 मार्च 2009 को असम में उग्रवादियों से हुए मुठभेड़ के दौरान शहीद हो गए थे.

देश की रक्षा में शहीद होने वाले गिरजाशंकर का शव जब गांव ककरद पहुंचा, तब हजारों लोगों की भीड़ ने नम आंखों से श्रद्धांजलि दी थी. मौके पर मौजूद तत्कालीन उपजिलाधिकारी मड़िहान डॉ. विश्राम ने शहीद गिरजाशंकर का स्मारक बनाने के लिए चार बिस्वा जमीन देने की घोषणा की थी. इस घोषणा के बाद चार बिस्वा जमीन शहीद जवान के पुश्तैनी गांव ककरद में देने की बात कही गई थी. मजे की बात यह है कि शहीद गिरजाशंकर के परिजन घोषणा की गई जमीन पर पिछले 8 वर्षों से स्मारक बनाने का इंतजार करते चले आ रहे हैं, जिनकी उम्मीद अब निराशा में बदलने लगी है. मगर सरकारी

लापरवाही के कारण उपजिलाधिकारी का यह आदेश जारी नहीं हो पाया है. पिछले 8 वर्षों से यह जमीन खाली पड़ी रही. शहीद के परिजन तब हैरान रह गए, जब ग्राम प्रधान और लेखपाल द्वारा शहीद के लिए छोड़ी गई जमीन का पट्टा दूसरे को कर दिया गया. मजे की बात यह है कि शहीद स्मारक के नाम पर दी गई जमीन पर स्मारक का निर्माण न होकर पट्टा धारक ने जमीन पर ईंट गिरा कर मकान का निर्माण करना शुरू कर दिया. शहीद स्मारक के लिए छोड़ी गई जमीन पर निर्माण कार्य होते देख शहीद के परिजन भी हैरान हो गए. आनन-फानन में वे न्याय की गुहार लगाने के लिए अधिकारियों के पास पहुंच गए.

शहीद की फोटो के साथ जिला अधिकारी कार्यालय पहुंची शहीद गिरजाशंकर की बेवा पत्नी व परिजनों ने जिलाधिकारी विमल कुमार दुबे से मिलकर स्मारक के लिए छोड़ी गई जमीन पर ग्राम प्रधान और लेखपाल द्वारा किए गए पट्टे का विरोध करते हुए स्मारक के लिए जमीन को उनके चंगुल से मुक्त कराने की मांग की है. जिलाधिकारी विमल कुमार दुबे ने शहीद के परिजनों को प्राथमिकता के आधार पर स्मारक के लिए जमीन उपलब्ध कराने का आश्वासन दिया है. वहीं अधिकारियों के अनुसार उस दौरान तत्कालीन उपजिलाधिकारी ने मौके पर स्मारक बनाने के लिए जमीन देने की घोषणा तो कर दी थी, लेकिन नियमों के मुताबिक उस जमीन का पट्टा शहीद के परिजनों को नहीं मिल पाया था.

ऐसे में यह आदेश मौखिक ही रह गया था. जमीन के कागजात भी शहीद के परिजनों को नहीं मिल पाए थे. फिलहाल गलती किसकी है यह तो जांच के बाद ही पता चल पाएगा. लेकिन शहीद की स्मृति में स्मारक बनने का इंतजार कर रहे ग्रामीण और परिजन निराश हो चुके हैं. वे अब जमीन बचाने के लिए अधिकारियों के यहां चक्कर काट रहे हैं. वहीं दूसरी ओर ग्राम प्रधान और क्षेत्रीय लेखपाल की भूमिका को भी लेकर सवाल उठ रहे हैं कि जब शहीद के नाम पर भी जमीन को बक्शा नहीं जा रहा है, तो आम आदमी की जमीनों का क्या हाल होता होगा. अब तो शहीद के परिजनों को यह डर सता रहा है कि देश की रक्षा में प्राण गवां चुके शहीद कुलदीप का स्मारक बनाने का उनका सपना अधूरा न रह जाए.

Adv from Sponsors

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here