दिन-ब-दिन इबोला अपने पैर पसारता जा रहा है. दुनिया भर में अब तक इस जानलेवा वायरस की वजह से 4600  से भी ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है.
skynews.img.1200पश्‍चिम अफ्रीका समेत दुनिया के अन्य हिस्सों में इबोला वायरस का संक्रमण फैल रहा है. इसके साथ ही इसकी चपेट में भारत के आने का ख़तरा बढ़ता जा रहा है. विशेषज्ञ इस जानलेवा वायरस के संक्रमण से बचाव के नए तरीके खोज रहे हैं. विश्‍व स्वास्थ्य संगठन डब्यलूएचओ ने इस बीच इबोला को आधुनिक समय में देखी गई सबसे गंभीर स्वास्थ्य आपात स्थिति बताया है. अमेरिका, पोलैंड और स्पेन की सरकारों ने अपने यहां स्वास्थय कर्मियों के इबोला के संक्रमण में आने की पुष्टी की है. स्पेन के स्वास्थ्य मंत्री अना माटो ने खबर की पुष्टि करते हुए बताया है कि एक नर्स को इबोला संक्रमण हुआ है और ये संक्रमण उन्हें मैड्रिड में इबोला के दो मरीजों के इलाज के दौरान हुआ. इबोला संक्रमण के चलते इन दोनों मरीजों की मौत हो गई थी. इसी तरह अमेरिका में भी इबोला के संक्रमण के कारण एक व्यक्ति की मौत हो गई है. साथ ही इस मरीज की देखभाल करने वाली एक नर्स भी इबोला की चपेट में आ गई है. इसके बाद अमेरिका ने इबोला से लड़ने के लिए तैयारियों को रिव्यू किया है. अमेरीका ने देश में सभी प्रवेश मार्गों पर यात्रियों के संक्रमण की जांच कराने के नए मानक घोषित किए हैं. अमरीकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने कहा है कि व्हाइट हाउस इबोला से सबसे ज़्यादा प्रभावित पश्‍चिम अफ्रीका से अमरीकी हवाई अड्डे पहुंचने वालों की अतिरिक्त जांच पर गंभीरता से विचार कर रहा है. साथ ही उन्होंने कहा कि हमारे पास ग़लती करने की ज़्यादा गुंजाइश नहीं है. अगर हम मानकों और प्रक्रियाओं का पालन नहीं करेंगे तो अपने लोगों को ख़तरे में डालेंगे. लेकिन भारत में इस तरह की कोई जानकारी सार्वजनिक नहीं की जा रही है. जबकि भारत के हजारों लोग पश्‍चिम अफ्रीकी देशों में काम करते हैं और दीपावली के आसपास देश में छुट्टियों के लिए आने वाले हैं.
अमेरिका में इबोला से पीड़ित एक व्यक्ति की मौत के बाद एक दूसरे रोगी के पाए जाने के बाद इस जानलेवा बीमारी को लेकर दुनिया भर के देशों में चिंता बढ़ गई है. अमेरिकी कंपनी जेड-मैप ने दवा बनाने का दावा किया था. डब्ल्यूएचओ ने दवा के इस्तेमाल की अनुमति दे दी थी इसके बावजूद अभी तक कोई सकारात्मक परिणाम निकल कर सामने नहीं आए हैं. दिन-ब-दिन इबोला अपने पैर पसारता जा रहा है. दुनिया भर में अब तक इस जानलेवा वायरस की वजह से 4600 से भी ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है. इस बामारी को रोकने के लिए विभिन्न देशों द्वारा कई असरदार तरीकों का प्रयोग किया जा चुका है. पश्‍चिमी अफ्रीकी देशों लाइबेरिया, सिएरा लियोन और गिनी में यह बीमारी तेजी से बढ़ रही है. इबोला से सबसे ज्यादा लाइबेरिया प्रभावित है यहां अब तक 4000 से ज्यादा मामले सामने आ चुके हैं जिनमें से 2200 लोगों की मौत हो चुकी है. सियेरा लियोन में 900 से ज्यादा लोग इबोला की वजह से मारे गए हैं. स्पेनिश समाचार एजेंसी के हवाले से सियेरा लियोन में इबोला के खिलाफ संघर्ष कर रहे स्पेनिश चिकित्सक जोस मारिया इचवारिया ने बताया है कि महामारी पूरी तरह नियंत्रण से बाहर है. इस रोकने का एकमात्र उपाय प्रोटोकॉल लगाना है. इबोला से निपटने के लिए लाइबेरिया और सियेरा लियोन को ब्रिटिश और अमरीकी सेना की सहायता मिली है.
भारत और दूनिया के अन्य देशों में इससे बचने के लिए पश्‍चिमी अफ्रीका से आने वाले यात्रियों की स्क्रीनिंग हो रही है. दिल्ली के इंदिरा गांधी अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा और अन्य हवाई अड्डों में यात्रियों की बुखार और इबोला के अन्य लक्षणों की जांच की जा रही है. यह बात साफ नहीं है कि यह स्क्रीनिंग कितनी गंभीरता से की जा रही है. देश की स्वास्थय सुविधाओं के लिए यह एक चुनौती का समय है. यदि यह घातक वायरस देश में किसी भी तरह प्रवेश करने में सफल हो जाता है तो भारत में यह निश्‍चित रुप में एक महामारी का रुप ले लेगा. एक तरफ तो इसका असर स्थापित स्वास्थय सुविधाओं पर पड़ेगा और दूसरी तरफ सरकार के पास इसे रोकने के लिए कोई प्रभावशाली कार्ययोजना तैयार नहीं है. जिससे कि इसे महामारी बनने से रोका जा सके. इसलिए मॉनिटरिंग मैकेनिडज्म की गंभीरता बढ़ जाती है. अमेरिका की सरकार दावा कर रही है कि उसके पास इस बीमारी से लड़ने के लिए पर्याप्त सुविधाएं हैं और उपकरण है बावजूद इसके इबोला के मरीज की देखभाल करने वाली नर्स इस वायरस की चपेट में आ गई. वह इबोला के लाबेरियाई मरीज थॉमस एरिक डंकन की देखभाल कर रही थीं. नर्स नीना फाम ने मरीज की देखभाल के दौरान गलती और लापरवाही करना स्वीकार किया है इसी वजह से वह वायरस संक्रमित हो गईं. अमरीकी स्वास्थ्य विभाग का कहना है कि टेक्सस राज्य में इबोला से मरने वाले बीमारी व्यक्ति का इलाज कर रहे चिकित्सा कर्मियों से साफ़ तौर पर ग़लती हुई थी जिसकी वजह से उनमें से एक स्वास्थ्य कर्मी संक्रमित हो गई. साफ़ है कि इलाज की प्रक्रिया का उल्लंघन हुआ है. यूएस सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल (सीडीसी), के प्रमुख डॉक्टर टॉम फ्रेडन का कहना था कि संक्रमण फैलने की वजह की पूरी जांच होगी. फ्रीडन ने यह भी कहा कि इबोला संक्रमण की रोकथाम के लिए अपनाए जा रहे तरीकों और उपायों पर फिर से गौर करना होगा. एक भी संक्रमण स्वीकार्य नहीं है. इबोला के मरीज की देखभाल बेहद मुश्किल है. हम इसे सुरक्षित और आसान बनाने के लिए काम कर रहे हैं. क्या भारत में इबोला के इलाज के दौरान मरीजों के साथ-साथ डॉक्टर और नर्सिंग स्टाफ को आइसोलेशन में रखा जाएगा? क्या इसके लिए देश भर के सभी बड़े अस्पताल और नर्सिंग होम तैयार हैं ? क्या देश के अधिकांश अस्पतालों के कर्मचारियों को इससे निपटने के लिए ट्रेनिंग मिली है ? क्या भारत में इससे बचने के लिए पर्याप्त मात्रा में सेफ्टी किटें उपलब्ध हैं? इन सवालों के स्पष्ट जवाब अभी साफ तौर पर उपलब्ध नहीं हैं.
अमेरिका में संक्रमण के इस पहले मामले के बाद अधिकारियों में इस बात का पता लगाने के लिए हडकंप मच गया है कि आखिर प्रोटोकॉल के किस उल्लंघन की वजह से महिला को संक्रमण हुआ? क्या भारत में ऐसे किसी प्रोटोकॉल की व्यवस्था है? अमेरिका में इबोला के ताजा मामलों से पता चलता है कि बेहतरीन तकनीक और सुरक्षा के सभी इंतजामों के बावजूद गलती की गुंजाइश है. भारत में आमतौर पर अस्पतालों में ज्यादा नियम कायदों का ध्यान नहीं रखा जाता है. टेक्सस हैल्थ प्रैसबायटीरियन अस्पताल में उनके इलाज के दौरान स्वास्थ्य कर्मी संरक्षात्मक कपड़े पहनती थीं बावजूद इसके एक स्वास्थ्यकर्मी संक्रमित हो गई. पश्‍चिमी अफ्रीकी देशों में स्वास्थ्य सुविधाओं की हालत खराब है वहां लोगों के संक्रमण की चपेट में आ रहे हैै. लेकिन अमेरिका और स्पेन में स्वास्थ्य कर्मियों के संक्रमण की चपेट में आने के बाद यह सवाल खड़ा हो गया है कि क्या पश्‍चिमी देशों के अत्याधुनिक अस्पताल भी इबोला के संक्रमण को रोक पाने की हालत में हैं या नहीं?
यूएस सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल (सीडीसी) के अध्यक्ष डॉक्टर थॉमस फ्रीडन अब तक कहते आए हैं कि अमेरिका का हर अस्पताल इस हालत में है कि इबोला के मरीजों को वहां रखा जा सके. लेकिन ताजा मामलों को देखते हुए उनका रुख भी बदला सा लग रहा है अब वे भी खास आइसोलेशन सेंटर की पैरवी कर रहे हैं. हालांकि डंकन इकलौते ऐसे इबोला के मरीज थे जिन्हें अलग आइसोलेशन यूनिट में रखा गया था. उससे पहले अमेरिका में इबोला संक्रमित पांच लोगों का इलाज सामान्य अस्पतालों में किया जा चुका था. बावजूद इसके डंकन को बचाया नहीं जा सका और उनके संपर्क में आई नर्स भी बीमार हुई. अब विशेषज्ञों का कहना है कि छोटे अस्पतालों में इबोला के इलाज की अनुमति देना सही नहीं है. उनका मानना है कि केवल बड़े अस्पताल ही इस हालत में हैं कि इबोला से निपट सकें. अगर ऐसे अस्पतालों में इबोला का इलाज करने लगें जहां सभी संसाधन ना हों, तो हम बीमारी को फैलने का और मौका देंगे. वहीं कुछ लोगों का मानना है कि मरीजों को आइसोलेशन सेंटर तक ले जाना भी खतरे से खाली नहीं है. इबोला के मरीजों की देखभाल करते समय सुरक्षा सूट पहनना अनिवार्य है. सूट को पहनने के लिए भी दिशा निर्देश हैं. इस सूट में पूरे शरीर को ढकने वाला गाउन, दो जोड़ी दस्ताने, चहरे का मास्क और आंखों को बचाने के लिए चश्मे होते हैं. इसे पहनते और उतारते समय एक स्वास्थ्यकर्मी साथ में मौजूद रहता है जो सुनिश्चित करता है कि सभी निर्देशों का पालन किया गया है. अमेरिका में अब यह जांच चल रही है कि जिस नर्स को संक्रमण हुआ है क्या उसने सुरक्षा सूट ठीक तरह उतारा था. सूट को उतारना जोखिम भरा काम है. हर स्टेप के बाद आपको एंटीसेप्टिक से हाथ धोने होते हैं या फिर सूट पहने व्यक्ति पर क्लोरीन स्प्रे किया जाता है. ऐसे में मुमकिन है कि उतारते समय सूट किसी सतह को छू जाए और उसे संक्रमित कर दे.
अब दुनियाभर के अस्पतालों में डॉक्टरों और नर्सों की सुरक्षा चिंता का विषय बनी हुई है. लेकिन भारत बड़े पैमाने पर इस बीमारी से लड़ने के लिए तैयार नहीं दिखाई पड़ रहा है.


कैसे हुआ इबोला वायरस का नामकरण?
पश्‍चिम अफ्रीका में इबोला के फैलने के बाद से अब तक यह वायरस 4600 लोगों की जान ले चुका है. इबोला वायरस का नाम 1976 में एक नदी के नाम पर रखा गया था. वर्तमान समय के कांगो में सबसे पहले इबोला के लक्षण मिले थे और वहां वायरस की चपेट में आकर कई लोग गंभीर रूप से बीमार पड़े थे. उस समय यह क्षेत्र जायरे के नाम से जाना जाता था. वायरस का पता लगाने वाले पीटर पायट ने अपने संस्मरण नो टाइम टू लूज : ए लाइफ इन परस्युट ऑफ ए डेडली वायरस में लिखा था कि इबोला के नामकरण की कहानी छोटी और आकस्मिक है. यह वायरस सबसे पहले यांबुकु नामक गांव में फैला था, तो इसका नाम उस गांव के नाम पर भी हो सकता था, लेकिन वैज्ञानिकों को लगा कि ऐसा करने से इस गांव को हमेशा के लिए मनहूस मान लिया जाएगा. इसके बाद सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल एंड प्रीवेंशन (सीडीसी) के शोधकर्ता कार्ल जॉनसन ने वायरस का नाम एक नदी के नाम पर रखने की सलाह दी ताकि भविष्य में किसी खास क्षेत्र या स्थान पर नाम का बुरा असर न पड़े. वैज्ञानिकों ने नक्शे में देखा और पाया कि यांबुकु गांव के पास से एक नदी बहती है, जिसका नाम इबोला है, जिसका स्थानीय भाषा में अर्थ होता है काल नदी. यह नाम सभी को उपयुक्तलगा, क्योंकि यह अशुभ का संकेत था.


इबोला संक्रमण से बचने के पांच तरीके
1. मरीज के संपर्क से बचें :इबोला वायरस से संक्रमित व्यक्ति की देखभाल करने वाले संबंधियों और स्वास्थ्य कर्मियों में इसके संक्रमण का सबसे ज़्यादा ख़तरा होता है. इस बीमारी की चपेट में आने वाले व्यक्ति के समीप आने वाला हर व्यक्ति ख़ुद को संक्रमण के ख़तरे में डालता है.
2. कपड़ बदलते रहें: स्वास्थ्य सेवाओं के सिलसिले में इबोला वायरस से संक्रमित व्यक्ति के संपर्क में आते वक्त पूरी तरह सुरक्षित कपड़ों वाली किट पहननी चाहिए. इस दौरान दस्ताने, मॉस्क, चश्मे, रबर के जूते और पूरे शरीर को ढकने वाले कपड़े पहनने चाहिए, लेकिन बहुत कम लोगों के पास इस तरह की किट होती है. इस तरह की किट पहनने वालों को हर 40 मिनट पर इसे बदलते रहना चाहिए. इस बचाव वाली किट को पहनने में पांच मिनट और इसे सहयोगी की मदद से दोबारा उतारने में लगभग 15 मिनट लगते हैं. यह इस वायरस की चपेट में आने का सबसे ख़तरनाक समय होता है और इस दौरान क्लोरीन का छिड़काव किया जाता है.
3. अपनी आखों को ढंकें: अगर इबोला संक्रमित द्रव्य आपकी त्वचा के संपर्क में आता है तो इसे शीघ्रता से साबुन और पानी की मदद से धोया जा सकता है या अल्कोहल वाले हैंड सैनिटाइज़र का इस्तेमाल किया जा सकता है. लेकिन आंखों का मामला काफ़ी अलग है, स्प्रे के दौरान संक्रमित द्रव्य की एक भी बूंद का आंखों में पड़ना भी इस वायरस के संक्रमण की वजह बन सकता है. इसी तरीके से मुंह और नाक का भीतरी हिस्सा संक्रमण की दृष्टि से काफ़ी संवेदनशील होता है, जिनका बचाव करना चाहिए.
4. साफ़-सफ़ाई का ध्यान : इबोला का सबसे घातक लक्षण रक्तस्राव है. इसमें मरीज की आंखों, कान, नाक, मुंह और मलाशय से रक्तस्राव होता है. मरीज की उल्टी में भी रक्त मौजूद हो सकता है. अस्पताल से निकलने वाले कपड़ों और अन्य चीज़ों को जला देना चाहिए. सतह पर गिरे द्रव्य से संक्रमण का ख़तरा होता है, लेकिन अभी यह साफ़ नहीं है कि यह वायरस कितने समय तक सक्रिय रहता है.
5. कंडोम का इस्तेमाल:विशेषज्ञ इबोला से उबरे लोगों को शारीरिक संबंध बनाने के दौरान तीन महीने तक कंडोम का इस्तेमाल करने की सलाह देते हैं. इबोला संक्रमण से पूरी तरह ठीक होने के बाद भी लोगों के शुक्राणु में तीन महीने तक इस वायरस की मौजूदगी पाई गई है. इस वजह से डॉक्टर कहते हैं कि इबोला से उबरे लोगों को तीन महीनों तक शारीरिक संबंध बनाने से बचना चाहिए या तीन महीनों तक कंडोम का इस्तेमाल करना चाहिए.


 

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