kurselaबिहार के कटिहार जिले के कुर्सेला का सर्वोदय आश्रम गांधी की स्मृतियों से जुड़ा अनमोल विरासत है. इस विरासत को जिंदा रखने के लिए लोग यहां गांधी के रचनात्मक कार्यों को आगे बढ़ा रहे हैं. आज जब चम्पारण सत्याग्रह का शताब्दी वर्ष मनाया जा रहा है और इस आश्रम की स्थापना के 70 वर्ष पूरे हो रहे हैं, तो ऐसे में गांधी के रचनात्मक कार्यों को आगे बढ़ाकर ही उन्हें सच्ची श्रद्धांजलि दी जा सकती है. यहां हो रहे कार्यों से प्रेरित होकर देश भर से जुटे गांधीवादियों ने इसमें अपना सहयोग देने का भरोसा दिलाया है. बिहार सरकार भी इसके विकास को लेकर तत्पर दिखाई दे रही है.

बिहार सरकार के पर्यटन विभाग ने इस आश्रम को गांधी सर्किट से जोड़ते हुए पर्यटन केंद्र के रूप में विकसित करने के लिए 2.42 करोड़ रुपए की योजना बनाई है. इसके तहत बहुद्देशीय प्रशाल के साथ-साथ ओपेन एयर थियेटर और हॉटीकल्चर के विस्तार की भी योजना है. इस आश्रम से जुड़े रुपेश कुमार बताते हैं कि गांधी के रचनात्मक कार्यों में साम्प्रदायिक एकता, अस्पृश्यता उन्मूलन, ग्रामीण उद्योग, स्त्री उद्धार, प्रौढ़ शिक्षा, सेहत, शारीरिक शिक्षा, राष्ट्र भाषा, किसान, मजदूर, आदिवासी और कुष्ट रोगियों के कल्याण से संबधित कार्य हैं. इन सभी के केंद्र में गांव थे. अब यह प्रयास किया जा रहा है कि इस क्षेत्र को गांधी के मॉडल का क्षेत्र बनाया जाय. गांधी विचार को तो प्रयोग के आधार पर ही परखा जा सकता है. इसकी पहल आरंभ हो गई है.

स्वास्थ मेला और कृषि मेला आयोजित कर लोगों को जागरूक किया जा रहा है. हरिजन सेवक संघ नई दिल्ली के अध्यक्ष शंकर सान्याल बताते हैं कि हरिजन सेवक में एक स्थान पर उन्होंने लिखा है कि हर एक गांव का प्रथम कार्य यह होगा कि वह अपनी जरूरत का तमाम अनाज और कपड़े के लिए कपास खुद पैदा करे. उसके पास इतनी सुरक्षित जमीन होनी चाहिए, जिसमें पशु चर सकें और गांव के बड़ों तथा बच्चों के मन-बहलाव के साधन और खेल-कूद के मैदान वगैरह का बंदोबस्त हो सके. उन्होंने कहा था कि हर गांव को पूर्ण रूप से एक आत्मनिर्भर इकाई होना चाहिए. गांधी का यही जीवन-दर्शन व जीवन-मूल्य मनुष्यता की हिमायती हो जाती है.

इस लिहाज से जैविक खेती और कचरा प्रबंधन के जो प्रयास किए जा रहे हैं, वे महत्वपूर्ण हैं. आनेवाले दिनों में यह मॉडल बनेगा. राजघाट समाधि समिति नई दिल्ली के सचिव डॉ रजनीश कुमार बताते हैं कि गांघी के नाम पर रश्म अदायगी से सुंदर है कि कुछ काम हो, जो यहां होता दिख रहा है. कटिहार के जिलापदाधिकारी मिथलेश मिश्र का कहना है कि इस प्रखंड को खुले में शौच से मुक्त किया गया है. इस आश्रम के लोगों द्वारा सुबह में श्रमदान की प्रवृति विकसित की जा रही है. स्थानीय लोगों का मानना है कि यदि रचनात्मक कार्यों में सामूहिकता विकसित की जाए, तो आनेवाले दिनों में यह क्षेत्र गांधी के मॉडल पर खरा दिखेगा.

1934 में बिहार में आए प्रलयकारी भूकम्प के पीड़ितों के सहायतार्थ महात्मा गांधी 11 मार्च 1934 को बिहार आए थे. इस बिहार यात्रा के अन्तिम दिन 10 अप्रैल 1934 को रूपसी (असम) जाने के क्रम में वे टिकापट्टी (पूर्णिया) होते हुए कुर्सेला पधारे थे. उस समय कुर्सेला भी पूर्णिया जिले का भाग था. महात्मा गांधी ने विद्यालयी छात्रों के विशेष अनुरोध पर उन्हें सम्बोधित किया था. 1942 के आंदोलन में भी यह क्षेत्र काफी अग्रणी रहा. 13 अगस्त 1942 के देवीपुर गोलीकांड में लालजी मंडल, धतुरी मोदी, रमयु यादव, जागेश्वर यादव सहित कई शहीद हुए. 30 जनवरी 1948 को महात्मा गांधी की शहादत के बाद बिहार के अग्रणी सर्वोदयी नेता बैद्यनाथ प्रसाद चौधरी के नेतृत्व में स्थानीय कार्यकर्त्ताओं ने बापू के पार्थिव अंश को 12 फरवरी 1948 को गंगा-कोसी के संगम में विसर्जित किया था.

बैधनाथ चौधरी इस जिले फलका के बरेटा में ख्याति प्राप्त स्वतंत्रता सेनानी थे, जो महात्मा गांधी के आह्वान पर 1920 में आजादी की लड़ाई में शामिल हुए. अप्रैल 1952 में सेवापुरी उत्तर प्रदेश में हुए चौथे सर्वोदय समाज सम्मेलन के लिए विनोबा जी बिहार के जिन अग्रणी समाजसेवकों को लाए थे, वैद्यनाथ चौधरी उनमें से एक थे. कुर्सेला के इस आश्रम की स्थापना 1948 में सौराष्ट्र के गांधीवादी कार्यकर्त्ता भगवन्न स्वामी द्वारा की गई. आश्रम के लिए स्थानीय ग्रामीण बौकु साह एवं गोविन्द साह ने 9.15 एकड़ जमीन उपलब्ध कराई थी.

इस जमीन पर आश्रम के साथ-साथ सर्वोदय महाविद्यालय तथा एक स्कूल भी है. आश्रम की गतिविधियों को संत विनोबा भावे, लोकनायक जयप्रकाश नारायण, डॉ जाकिर हुसैन, डॉ राजेन्द्र प्रसाद, दादा धर्माधिकारी, कामराज नाडार, यूएन ढ़ेवर, कर्पुरी ठाकुर, एमएल जोशी जैसे लोगों ने नजदीक से देखा और सराहा. बाद में इस आश्रम को केंद्रीय गांधी स्मारक निधि, दिल्ली द्वारा गांधीघर के रूप में नामित किया गया तथा बीस हजार रुपए की आर्थिक सहायता भी उपलब्ध कराई गई थी. बाद में यह आश्रम स्थानीय सहयोग से ही संचालित होने लगा. यहां ग्राम सफाई, रात्रि पाठशाला और चरखा जैसे कार्यक्रम संचालित होते थे, लेकिन कालान्तर में सब के सब बंद होते चले गए.

1995 में आम सभा के माध्यम से जब नरेश यादव की अध्यक्षता में 21 सदस्यीय कमेटी बनी, तो गांधी के रचनात्मक कार्यों को बढ़ावा देने का प्रयास तेज हुआ. राज्यसभा सदस्य रहते हुए नरेश यादव ने अपनी विकास निधि से यहां चाहरदिवारी और मंडप निर्माण जैसे कई काम करवाए. आश्रम के अध्यक्ष नरेश यादव  बताते हैं कि यह आश्रम की स्थापना का 70वां वर्ष है. इस अवस पर पर हम गांधी के सपनों का भारत बनाने की दिशा में पांच साल का एक्शन प्लान बनाकर लागू कर रहे हैं. गांधी स्मृति एवं दर्शन समिति नई दिल्ली ने गांधी व्याख्या केंद्र के रूप में इसका चयन कर एक परिसर का निर्माण कराया है, जिसमें गांधी की प्रतिमा के साथ-साथ गांधी की स्मृतियों से जुड़ी प्रदशर्नी भी है.

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