नेपाल में पूर्वी व पश्चिमी चम्पारण के बीस हजार से अधिक लोग वहां फंसे रहे और घर वापस लौटने के लिए छटपटाते रहे. नेपाली यात्री बस संचालकों की मनमानी भी सिर चढ़कर बोलती रही और पांच सौ के बदले दो हजार रुपये के अनुपात में किराया भारतीयों से वसूला जाता रहा. भारत सरकार और बिहार सरकार द्वारा राहत एवं बचाव के लिए भेजे गए सरकारी वाहन कम पड़ रहे थे और नेपाल में फंसे लोगों को इसकी सही जानकारी भी नहीं मिल पा रही थी. लोग किसी प्रकार निजी वाहनों से भारी रकम चुकता कर नेपाल के सेमरा तक पहुंचते रहे, तो फिर सेमरा से छोटे वाहनों से रक्सौल तक लाने के लिए प्रतिव्यक्ति एक से दो हजार रुपये किराये वसूला जाता रहा.

nepalपड़ोसी देश नेपाल में आई भीषण प्राकृतिक आपदा में फंसे कई भारतीय नागरिकों का न केवल अस्पतालों में शोषण होता रहा है, बल्कि घायलों व मृतकों को यहां लाने के लिए की गई सारी घोषणाएं नाकाफी साबित हुईं. घायल भारतीय मरीज नेपाली अस्पतालों में भर्ती तो हुए, लेकिन जिस तरह से इस आपदा की घड़ी में उनका शोषण हुआ, वह शायद कभी नहीं हुआ था. न तो नेपाल सरकार और न ही भारत सरकार की ओर से उन तक जरूरी सहायताएं समय पर पहुंच सकीं. नेपाल में पूर्वी व पश्चिमी चम्पारण के बीस हजार से अधिक लोग वहां फंसे रहे और घर वापस लौटने के लिए छटपटाते रहे. नेपाली यात्री बस संचालकों की मनमानी भी सिर चढ़कर बोलती रही और पांच सौ के बदले दो हजार रुपये के अनुपात में किराया भारतीयों से वसूला जाता रहा. भारत सरकार और बिहार सरकार द्वारा राहत एवं बचाव के लिए भेजे गए सरकारी वाहन कम पड़ रहे थे और नेपाल में फंसे लोगों को इसकी सही जानकारी भी नहीं मिल पा रही थी.
लोग किसी प्रकार निजी वाहनों से भारी रकम चुकता कर नेपाल के सेमरा तक पहुंचते रहे, तो फिर सेमरा से छोटे वाहनों से रक्सौल तक लाने के लिए प्रतिव्यक्ति एक से दो हजार रुपये किराये वसूला जाता रहा. पोखरा से सेमरा तक का किराया दांत खट्‌टा करने वाला था. मात्र पांच सौ के बदले तीन से पांच हजार रुपये प्रति व्यक्ति किराया वसूला गया. एक तरफ प्रकृति की मार, तो दूसरी ओर नेपाली प्रशासन की संवेदनहीनता लोगों को परेशान करती रही. ढाका थाना के रूपौलिया गोपी गांव निवासी नन्दलाल चौधरी का पांच वर्षीय नाती 25 अप्रैल की भूकम्प में मौत के मुंह में समा गया, तो उसकी बेटी व दामाद जान बचाकर किसी तरह अपने गांव लौटे हैं. प्रत्यक्षदर्शियों के मुताबिक, एक सौ से अधिक चम्पारण के लोग इस प्राकृतिक विपदा में काल के गाल में समा गए हैं तो सैकड़ों घायल अस्पतालों में अपनी जान बचाने में जुटे हुए हैं. मोतिहारी सदर अस्पताल में भर्ती हुआ राज किशोर प्रसाद ने जिस सच का खुलासा किया है, उससे न केवल नेपाल की व्यवस्था पर सवाल खड़े हुए हैं, बल्कि भारत सरकार और बिहार सरकार की कोशिशें असरदार साबित नहीं हो सकी है. पूर्वी चम्पारण जिले के घोड़ासहन थाना क्षेत्र के नारायण चौक पकड़िया निवासी चन्द्रिका प्रसाद का पुत्र राज किशोर प्रसाद किसी प्रकार जान बचाकर मोतिहारी पहुंचा है, जहां सदर अस्पताल में भर्ती होकर वह अपना इलाज करा रहा है. उसके बायें हाथ में गंभीर चोटें हैं और शरीर के विभिन्न अंगों में जख्म देखे गए हैं. प्रसाद बताते हैं कि 25 तारीख के भूकम्प में ही वह नेपाल की राजधानी काठमांडू के काली माटी मुहल्ला में तब बुरी तरह घायल हुआ था, जब वहां एक तीन मंजिली इमारत में बढ़ईगिरी का काम कर रहा था. वह अपने तीन भाई व एक भतीजा के साथ वहां काम कर रहा था. भूकम्प में वह गिरा और मलबे में दब गया. उसके भाई और भतीजा ने उसे मलबे से बाहर निकाला और नजदीक के बढ़ोदा अस्पताल में भर्ती कराया. डॉ. ने उसका इलाज तो किया, लेकिन तीन दिनों में उससे 28 हजार पांच सौ नेपाली रुपये इलाज के नाम पर ऐंठ लिए. श्री प्रसाद यहां से किसी प्रकार रक्सौल पहुंचे, जहां उन्हें चार गुणा से ज्यादा किराया देना पड़ा. वे मोतिहारी सदर अस्पताल में भर्ती किए गए.

रक्सौल के हजारीमल उच्च विद्यालय में संचालित सरकारी शिविर में रोज बड़ी संख्या में पीड़ित नेपाल से वापस यहां पहुंच रहे थे, जिन्हें भोजन, विश्राम और उनके गंतव्य तक जाने की व्यवस्था प्रशासन द्वारा कराई जा रही थी. घायलों को प्रशासन द्वारा रक्सौल के अलावा मोतिहारी के सदर अस्पताल में प्राथमिक उपचार के लिए भर्ती कराये जा रहे थे.

उन्होंने बताया कि ऐसे सैकड़ों भारतीय मरीज विभिन्न अस्पतालों में कराह रहे हैं, लेकिन उनकी मदद के लिए अभी तक कोई सरकारी साधन नहीं पहुंच सका है. यदि श्री राजकिशोर प्रसाद की बातों को सच माना जाए, तो अभी तक भारत सरकार और बिहार सरकार द्वारा नेपाल में फंंसे, मरे व घायल लोगों की मदद के लिए की गई तमाम घोषणाएं केवल व केवल लफ्फाजी साबित हो रही हैं. बसें अगर नेपाल में गई हैं तो वह कहां हैं और किसको लेकर लौट रही हैं. चिकित्सकों के दल के नेपाल जाने की घोषणाएं की गईं, वे किन अस्पतालों में हैं. इस सवाल का जवाब किसी के पास नहीं है. हालांकि बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की पहल पर राज्य सरकार ने परिवहन निगम की बसें रक्सौल मार्ग से नेपाल भेजा, जहां से फंसे हुए बिहारियों व भारतीय को लाया गया. आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक अभी तक 34 हजार लोगों को नेपाल से भारत के विभिन्न सीमावर्ती इलाकों पर लाया गया है. बिहार सरकार ने बिहार और नेपाल की सीमा के मुख्य पारगमन स्थल रक्सौल के अलावा बैरगिनिया, जोगबनी एवं बेतिया में राहत एवं बचाव शिविर स्थापित किए हैं, जो मानवता की सेवा में एक मजबूत पहल मानी जा रही है. रक्सौल के हजारीमल उच्च विद्यालय में संचालित सरकारी शिविर में रोज बड़ी संख्या में पीड़ित नेपाल से वापस यहां पहुंच रहे थे, जिन्हें भोजन, विश्राम और उनके गंतव्य तक जाने की व्यवस्था प्रशासन द्वारा कराई जा रही थी. घायलों को प्रशासन द्वारा रक्सौल के अलावा मोतिहारी के सदर अस्पताल में प्राथमिक उपचार के लिए भर्ती कराये जा रहे थे.
रक्सौल के शिविर में चिकित्सा व्यवस्था भी की गई है और विशेष जिला पदाधिकारी श्रीधर अपनी कमान यहां संभाले रहे. गौरतलब है कि सीमावर्ती चम्पारण के लोग बड़ी संख्या में वर्षों से नेपाल में अपना कारोबार करते रहे हैं. प्राय: सभी प्रकार के कारोबार से यहां के लोग जुड़े रहे हैं, जो नेपाल की राजधानी काठमांडू महानगर के अलावा पोखरा, बीरगंज, रउतहट, पर्सा, जाजरपुर, साल्याण, चंदन निगाह पुर समेत नेपाल के विभिन्न पर्यटक स्थलों एवं प्रमुख बाजारों में रहते रहे हैं. 25 और 26 अप्रैल के भीषण भूकम्प से उन सभी का कारोबार चौपट हो गया है. उसमें बड़ी संख्या में लोग घायल हुए हैं तो करीब एक सौ से अधिक चम्पारणवासी वहां मौत के मुंह में समा गए हैं, जिनका अभी तक कोई अता-पता नहीं है. उनके परिजन, जो यहां भागकर पहुंच रहे हैं, उनसे मरने वालों की जानकारियां मिल रही हैं. हालांकि जिला प्रशासन अभी तक इस तरह का कोई आधिकारिक आंकड़ा प्रस्तुत नहीं कर सका है. कपड़ा, सब्जी, कबाड़, होटल, कारोबार के अलावा यहां के लोग बढ़ईगिरी, चमड़ा कारखानों एवं अन्य कारोबारों में नौकरी भी करने वहां जाते रहे हैैं.
अब उन्हें इस हादसे ने तोड़ कर रख दिया है और वे सब अपना सबकुछ गवां कर खाली हाथ वापस लौट रहे हैं. इस हादसे ने नेपाल की राजधानी काठमांडू, वीरों की धरती गोरखा को तहस-नहस कर दिया है और एक अनुमान के अनुसार, दस हजार से अधिक लोग इस दुर्घटना में काल के गाल में समा गए हैं तो हजारों की संख्या में इमारतें ध्वस्त हो गईं और लोग घायल हो गए हैं. भूख और प्यास से लोग छटपटा रहे हैं और खाद्य सामग्रियों के साथ-साथ पीने का पानी भी आसानी से नहीं मिल पा रहा है.

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