कल रात को सोने के पहले मेरे मराठी भाषी लेखक मित्र दिनानाथ मनोहर की मोर की कहानी पढ़ने के बाद (1969-70) के समय की बाबा आमटे जी के श्रमिक विद्यापीठ की कल्पना वाली जगह सोमनाथ पूराने चंद्रपूर जिल्हा मूल – मारोडा के पास की ! एक कहानी फेसबुक पर पढने के बाद ! मुझे भी हमारे जीवन की लगभग 25-30 साल पहले की एक गरुड अपने ही घर में पालने वाला अनुभव याद आ गया ! तो उसे शेयर कर रहा हूँ ! (जहां के पहले श्रमसंस्कार छावणी में मै भी राष्ट्र सेवा दल शिंदखेडा के कुछ मित्रों के साथ उम्र के चौदह साल में 1967 में शामिल था ! )


शायद आजसे 25 – 30 साल पहले की बात है ! मैडम खैरनार कलकत्ता के फोर्ट विल्यम सेंट्रल स्कूल की प्राचार्या थी ! और उन्हें फोर्ट विल्यम किले (अंग्रेजी राज की निंव जहाँ से डालीं गई वह जगह ! 1756 में शिराजउद्दोला के प्लासी के हार के बाद ईस्ट इंडिया कंपनी ने बनाया हुआ पहला किला ! हूगली नदी के किनारे पर बना हुआ है ! जो आजकल हमारे देश की सेना का इस्टर्न कमांड का मुख्यालय है ! और सेना के जवानों के बच्चों के लिए विशेष रूप से बनाया गया सेंट्रल स्कूल है ! ) तो उस किले के पस्चिम दिशा के गेट का नाम है ! सेंट जॉर्ज गेट, अभी फिलहाल उसके बगल से सेंकड हुगली ब्रिज भी बन गया है ! कोलकाता से हावडा के लिए ! और मुंबई के गेटवे अॉफ इंडिया जैसा ही प्रिंसेफ गेट बना है ! लेकिन सेंकड हुगली ब्रिज के विशाल आकार के निचे आने के कारण उसकी वह शान नही रही है ! अब सरक्यूलर रेल लाइन हुगली के किनारे से बनने के कारण प्रिंसेफ घाट स्टेशन भी बन गया है जो सेंट्रल स्कूल के सामने ही है ! यह सब कुछ हमारे रहते हुए ही अस्सी वाले दशक में मेट्रो रेल से लेकर दुनिया भर के फ्लायओव्हर बनने शुरू होने के बाद ! अब कोलकाता नाम के साथ कलकत्ता की पुरानी पहचान भी खोते जा रही है ! वसंत पळशिकर आते थे तो हम लोग कलकत्ता की पुरानी हवेलियों को देखते हुए पैदल घुमते रहते थे !
सेंट जॉर्ज गेट उसके ऊपर हम लोगों को कम-से-कम पांच हजार स्क्वेअर फिट का कार्पेट एरिया रहने के लिए सेना के तरफसे मील गया था ! और सामने मतलब किले की दिवार के उपर के हिस्से में ! अंग्रेजों की सुरक्षा के हिसाब से किले बनाने की योजनाओं के पार्ट के रूप में हमारे घर और खाली जमीन जो 25-30 फिट उंची थी और दिवार होने के बावजूद उसकी साईज लगभग एकाध एकड के खेतों के जैसे थी ! और कमाल की बात यह किला तैयार होने के बाद इसे कभी भी लडाई का सामना करने की आवश्यकता नहीं हुई ! पंद्रह हजार स्क्वेअर फिट का गार्डन ! निचे के हिस्से में सर्वंट क्वार्टर और गॅरेज ( हालांकि लॅंब्रेटा स्कूटर छोड़कर और मेरी हरक्यूलस कंपनी की वर्धा से 1981 में खरीद कर , सामान के साथ लाई हुई साईकल और बच्चों के दो स्पोर्ट्स साईकिल छोड़ कर अन्य कोई वाहन नही था ! )
कोई भी मेहमान आने के बाद उस तामझाम को देखते हुए ! अचंभित होकर देखते ही रहते थे ! अनायास ही प्रोफेसर मधू दंडवतेजी की जन्मशताब्दी के कारण याद आ रही है ! वह भी कलकत्ता 1994-95 में शायद योजना आयोग के उपाध्यक्ष के हैसियत से आए होंगे ! तो हमारे यहां खाने पर आऐ ! घर और समस्त कॅम्पस को देखते हुए ! “बोले कि सुरेश शायद मेरे दिल्ली के मंत्रियों के बंगले से भी तुम्हारे घर की साईज बड़ी है !” मैंने उन्हें कहा कि “नाना यह अंग्रेजी सल्तनत के भारत पर राज करने के लिए विशेष रूप से बनाया गया पहला ही किला है ! और हमारे देसी लोगों को इसे देखते हुए कुंठा का बोध कराने के लिए ही ! ऐसे विशालकाय भवन जैसे दिल्ली के राष्ट्रपति भवन उसके पहले ! अभिकी कलकत्ता की नॅशनल लायब्ररी जो पहले व्हायसराय लॉज थी ! 1912 तक अंग्रेजों ने यही से राज किया था ! से लेकर तीन मूर्ति जैसे इमारतों को बनाए है ! और यह सेना के ब्रिगेडियर के स्तर के अधिकारियों के लिए एलॉट मकान है ! गलती से मैडम खैरनार को एलॉट हुआ है !


और दुसरी खासियत उस मकान में प्रचूर मात्रा में जगह होने के कारण ! हमारे जेपी आंदोलन के साथीयो से लेकर गंगा मुक्ति और राष्ट्र सेवा दल, नर्मदा बचाव आंदोलन से लेकर एन ए पी एम के देश भर के साथीयो में अनिल प्रकाश, डॉ. योगेन्द्र तथा उदय, घनश्याम, कुमार शुभमूर्ति और उसकी पत्नी कल्पना तथा दोनों बेटियां और गोवा के कुमार कलानंद मणी तथा दिल्ली के पत्रकार विनित नारायण और सत्यप्रकाश भारत, चित्तरंजन, भागलपुर के मुन्ना सिंह और उनकी सुपुत्री तो काफी दिनों तक रहे ! और मुन्ना भाई तो कलकत्ता से नागपुर के तबादले के समय 1997 के जुलाई माह में कलकत्ता से नागपुर ट्रक चालक के साथ हमारे सामान को लेकर पहुंच गए थे ! और राष्ट्र सेवा दल के महाराष्ट्र से बंगाल बिहार के यात्रा पर जाने वाले भी साथी तबीयत से रहा करते थे ! वसंत पळशिकर तो दो – दो हफ्तों का डेरा डालकर बैठते थे ! हम जितने भी दिन रहे ! उसमे कलकत्ता के एकसे एक बढकर लोग आते रहे ! बादल सरकार,महाश्वेता देवी, चिदानंद दासगुप्ता, अपर्णा सेन, समर बागची, अजित नारायण बोस, मणिद्र नारायण बोस , सावली मित्र, अम्लान दत्त, गौरकिशोर घोष, प्रोफेसर दिलिप चक्रवर्ती, प्रोफेसर संदिप दास, एडवोकेट अरुण मांझी, श्यामली खस्तगीर,विणा आलासे, मनिषा बॅनर्जी, बाणी सिंह, निरंजन हलदार तथा मराठी के मुर्धन्य कवि नारायण सुर्वे,सतिश काळसेकर, अशोक /रेखा शहाणे, प्रोफेसर ग. प्र. प्रधान डॉ. कुमार सप्तर्षी, प्रोफेसर शिवाजी गायकवाड और एडवोकेट निशा शिऊरकर, संजीव साने यदुनाथ थत्ते, चंद्रकांत शहा, माधुरी नानल, सारंग पांडे, सिताराम राऊत, नॅशनल लायब्ररी के श्री. बा. जोशी, वसंत – तारा पंडित, सुंदरलाल बहुगुणा तथा मेधा पाटकर तो अपने दल-बल के साथ ठहरा करती थी ! और भाई वैद्य – पन्नालाल सुराणा तथा किशन पटनायक, अशोक सक्सेरिया, दिनेश दास तथा अलका सरावगी, आत्माराम सरावगी और ठाकुरदास बंग तथा अमरनाथ भाई भी अपने दल – बल के साथ ठहरा करते थे ! एक तरह से इतने बड़े मकान का उपयोग सही मायने में होता रहा है ! हमारे कुछ छोटे – मोटे कार्यक्रम हमारे घर के हॉल में ही हुआ करते थे ! वसंत पळशिकरने तो कहाँ की तुम लोगों का घर बंगाल में सांस्कृतिक – बौद्धिक कार्यक्रमों का केंद्र बन गया है !


छत कम-से-कम तीस फिट की उंचाईपर ! और हर कमरे में चौकोनी आकार के रोशनदान बने हुए ! सोते समय उपर देखने से शुरु – शुरू में हमे अपनी क्षुद्रता का एहसास होता था ! दरवाजे अंदमान के टिकवुड के कम-से-कम दस फिट उंचे ! ऐसे 26 दरवाजे और उतनी ही खिड़कियों के ! और बाथरूम आज हमारे घर के सोने के कमरे का साईजके थे ! और काफी दिनों तक उस घर में रहने के बाद थोड़ा घरेलू पन लगा ! लेकिन शुरू में तो बडा अटपटा लगता रहा !
हमारे आवश्यकता से अधिक आकार वाले घर में जीवन मे पहली बार ! और अब आखरी बोलना चाहिए ! रहते हुए उस विशाल घर के सामने काफी पुराना निम का पेड़ था ! और गार्डन के बीचोंबीच एक ताडवृक्ष था ! गार्डन मे मैने अपने आदत के अनुसार घर की आवश्यकता वाली सभी सब्जियों की खेती शुरू कर दी थी ! और सौ से अधिक केले तथा कुछ पपीता कटहल और आम के पेड़ भी लगा दिए थे ! और मछलियों के लिए एक पॉंड भी बनवाया था ! जिसमें कुछ मछली के बीजों को डाल दिया था ! एक सेना के अफसर इतना बडा मकान देखने के बाद सेना के पशुपालन विभाग में थे ! जिसे आर व्ही सी बोलते है ! के कर्नल साहब ने एक अल्सेसियन हंटर डॉगी का पिल्ला जबरदस्ती से लाकर रख दिया ! जो बहुत ही जल्द अपनी प्रजाति की साईजमे दिखाई देने लगा ! जिसका नाम बच्चों ने शेरू रखा ! तो विशाल के आगमन और उसके भी आकार में स्वाभाविक रूप में आने के बाद ! काफी दिनों तक हमे चिंता रहती थी ! “कि कहीं शेरू अपनी हंटर जिन्स के कारण कुछ कर न दे !” लेकिन आस्चर्य की बात शेरू बैठा हुआ, या पसरा हुआ रहते हुए, विराट उसके उपर चढने से लेकर कभी-कभी चोच से हल्का सा पूछ या कानों को पकडने के बावजूद ! शेरू ने कभी भी विराट को काटने की बात तो बहुत ही दूर की है ! लेकिन भोंकता तक नहीं था ! उस समय आजके जैसे मोबाईल फोन और फोटो निकालने की सुविधाएं उपलब्ध नहीं थी ! कभी-कभी कोई ट्रडिशनल कैमरे वालों ने निकाले है ! वह भी बहुत सारे नष्ट हो गए !


एक शाम बहुत ही जोर से तुफान के साथ बारिश होते रही ! तो सबेरे अपनी आदत के अनुसार गार्डन में टहलते – टहलते ताडवृक्ष के निचे एक अजीबो-गरीब छोटे पक्षी का चूजा पड़ा हुआ दिखाई दिया ! और पेडसे काफी उंचाईपर से ! निचे गिरने की वजह से वह जख्मी हो गया था ! तो मैं उसे हल्के हाथों उठाकर से घर में लेकर आया ! तो बच्चे और मैडम सुबह स्कूल जाने की जल्दबाजी में थे ! और मैडम का मधू नाम का प्यून उनकी फाईल्स तथा अन्य सामान लेने के लिए आया हुआ था ! तो मैंने उसे पुछा की यह चूजा किस पक्षियों में से हो सकता है ? मधू तपाकसे बोला “कि सर यह ईगल है !” मुझे रत्तीभर का विश्वास नहीं हुआ ! क्योंकि बहुत ही विद्रुप लेकिन हल्का भूरेऔर काले रंग का था ! मधू को कहा कि इसे क्या करें ? तो वह बोला कि बाहर छोडने से कुत्ते या बिल्लियों के खाने की संभावना है इसे फिलहाल घर में ही रखना चाहिए ! फिर मैंने कहा कि इसे क्या खिलाना – पीलाना चाहिए ? तो उसने कहा कि फिलहाल तो दूध ! तो मैंने कहा कि कैसे ? तो उसने खुद एक कटोरा लेकर किचन से दूध लिया ! और कपास का फाया लेकर उसकी चोच खोल – खोलकर खुद दुध पिलाया ! यह सिलसिला एकाध हप्ताह चला होगा ! तो उसके नए पंखों से लगने लगा कि ईगलही है ! फिर मधूनेही कहा कि अब इसे अंडा उबाल कर देना चाहिए ! तो रोज अंडेकी खुराक शुरू की गई ! और एक महिना भी नहीं हुआ होगा बच्चों ने उसका नाम विराट रखा था ! तो विराट अपनी प्रजाति की नॉर्मल साईजमे आ गया था ! हमारे उस क्वार्टर में दो हॉल थे (शायद साहब लोगों के बॉल डांस के लिए या बिलियर्ड खेल के लिए बनाएं होंगे ! ) कम-से-कम हजार फिट की साईजके ! विशाल उनके बीचोंबीच में खड़े रहते हुए पंख फैलाने के बाद ! दोनों पंख फैलकर आमने-सामने की दिवारों को छूते थे ! तो घर बड़ा था ! वह घरभर भटकता रहता था ! और सोने के समय रात में बच्चों के बेडपर पैरों के तरफसे ! अपने चोच को उनके पैरों के बीच गडाकर पसरजाता था ! और नैसर्गिक विधी के समय गर्दन निचे करते हुए ! पुछ वाले हिस्से को नब्बे डिग्री में उपर करते हुए ! मशीन के स्प्रे पंप की गति से विधि द्वारा हमारे दिवारें रंगते रहता था ! और हम साबुन के और डेटॉल के पानी से पोछते रहते थे ! और कभी-कभी शेरू के उपर भी चढ जाता था ! लेकिन शेरू ने नही उसे काटने की कोशिश की और नही भोंकने की ! काश आज के जैसे मोबाईल फोन होता तो कितने प्रकार के फोटो निकाले गए होते ?


वह अमूमन कभी भी अकेले नहीं रहता था ! हम जहां भी बैठ कर या फिर किसी से बैठक के कमरे में बैठे हुए रहते थे तो ! वह वहां पर आकर पहले सोफे पर और वहीसे मेरे कंधे पर चढकर अपनी चोच से कान को पकडकर नटखटपन करते रहता था ! लेकिन कभी भी चोच से कोई जख्म करने की याद नहीं है !
एक दिन एक एअरफोर्स के अफसर मिलने आए थे ! और हम बैठक के हॉल में बैठ कर बातचीत कर रहे थे ! उतने में वीराट मेरे बगल में आकर हमेशा के जैसे सोफे पर और फिर मेरे कंधे पर ! आकर बैठ गया ! और यह नजारा देखने के बाद ! एअरफोर्स अफसर अपने सोफे से घबरा कर उछलकर ! खड़े – खड़े ही अंग्रेजी में बोले “कि दिस इज नॉट डोमेस्टिक बर्ड ! धिस ईज वाईल्ड बर्ड ! आई वॉज सॉ अ पिक्चर अॉफ महाराजा रणजित सिंह अलॉंग वुइथ धिस बर्ड बट महाराजा ऑलवेज वेअर अ सम लेदर कव्हर अॉन हिज हॅन्ड !” फिर हमने उन्हें वह हमारे घर में कैसे आया ? यह कहानी बतायी ! और तब कहीं वह सेटल हूए ! लेकिन जाते-जाते फिर बोलते गए ! ” कि मेरे लिए आप के घर में देखा हुआ यह नजारा जीवन भर याद रहेगा !”


इस तरह पांच छ महिने विराट रोज अंडे खाकर अपने नॉर्मल साईजमे आ गया था ! तो बच्चों को लगा कि इसे उडना आता है क्या देखा जाए ! तो वह उसे अंडा लेकर हमारे घर की कंपाउंड वॉल पर ले गए ! और उसने अंडा खाने के बाद बच्चों ने उसे अपने ढंग से कमांड दिया ! कि “जंप – जंप” तो वह हमारे अपने ही आंगन में पुराने निम के पेडपर उडकर चढा ! तो बच्चों ने उसे और उकसाने के बाद वह बगल में ही बहुत बड़ा बरगद का पेड़ था उसपर उडकर गया ! और उस के बाद सिधा आसमान में !
बच्चों ने रोज कंपाउंड वॉलपर अंडे रखें ! और आकाश की तरफ देख कर कोई भी उडता हुआ पक्षी देखते हुए ! विराट – विराट चिल्लाते रहे ! लेकिन मैंने कहा कि ” वह अपने बिरादरी में शामिल हो गया है ! और यह एक ना एक दिन होना ही था ! जो आपके कारणों से जल्द ही हो गया !”
डॉ सुरेश खैरनार 27 मार्च 2023, नागपुर

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