पुलिस और सेना का इस्तेमाल करके लोगों को मारकर आप प्रधानमंत्री पद के मज़बूत दावेदार होने का दावा नहीं कर सकते. यह आपकी कमज़ोरी दर्शाता है, ताक़त नहीं. मैंने इस कॉलम के माध्यम से पहले भी कहा है कि जब नरेंद्र मोदी भारतीय जनता पार्टी की तरफ़ से प्रधानमंत्री पद के दावेदार चुने गए, तब उन्होंने कहा कि वे सेना के माध्यम से पाकिस्तान को सबक सिखाएंगे. वास्तव में वे कोई अध्ययन नहीं करते. उन्हें समझना होगा कि पाकिस्तान भी एक परमाणु शक्ति है. वैसे भी युद्ध कोई विकल्प नहीं होता.
पिछले दिनों प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस की. उनके इस कार्यकाल की संभवत: यह तीसरी या चौथी प्रेस कॉन्फ्रेंस थी. पिछले कुछ दिनों से प्रधानमंत्री से जुड़ी कई सारी उम्मीदों पर चर्चाएं हो रही थीं. यहां तक अफ़वाह थी कि उन्हें इस पद से हटाया भी जा सकता है, जो कि निश्‍चित रूप से सत्य से परे थी. बहरहाल, आख़िर यह पूरी प्रेस कॉन्फ्रेंस बिना आवाज़ का पटाखा साबित हुई. सबसे पहले तो प्रधानमंत्री ने पंद्रह मिनट का जो शुरुआती वक्तव्य दिया, उसकी कोई ज़रूरत नहीं थी, क्योंकि उन्होंने तब तक जो आंकड़े गिनाए और बताया कि वे क्या कर चुके हैं और यह सब कुछ सबके सामने है. बेहतर तो यह होता कि वे इन आंकड़ों का इस्तेमाल उनसे पूछे गए सवालों का जवाब देने में करते. दूसरे, पत्रकारों ने जो सवाल पूछे, वह भी उन्हीं निर्धारित लाइनों पर थे जो कि पहले से ही पूछे जा रहे हैं. इस तरह मीडिया के सवालों में भी भटकाव रहा.
भ्रष्टाचार के मुद्दे पर प्रधानमंत्री का एक ही आदर्श जवाब रहा है कि वे चाहते थे कि कोल ब्लॉक का आवंटन बोली लगाकर किया जाए. वह पारदर्शिता चाहते थे, लेकिन ऐसा हुआ नहीं. समझ में नहीं आता कि अगर वे चाहते थे कि ऐसा हो तो कौन हो सकता है कि जो उनके निर्णय के विरुद्ध जाए? वह देश के प्रधानमंत्री हैं. यह बेहद चिंता का विषय है और देश के प्रधानमंत्री पर यह फ़बता भी नहीं है कि वे कहें कि मैं यह चाहता था, लेकिन ऐसा हुआ नहीं. आपकी बात नहीं मानी गई तो आपको संबंधित मंत्री को बर्ख़ास्त कर देना चाहिए था. संबंधित अधिकारी पर मुक़दमा चलाया जाना चाहिए था. अगर आपकी बात ही नहीं मानी जा रही है फिर आप सरकार कैसे चला सकते हैं? अपनी टेफलॉन इमेज को आगे बढ़ाते हुए वे कहते हैं कि मैं वही अर्थशास्त्री मनमोहन सिंह हूं, जिसने हमेशा ही पारदर्शिता और स्पष्टता में विश्‍वास किया है. लेकिन अब जब आप पॉवर में हैं तो यह कह कर बच नहीं सकते. यह वक्त है कि आप क्रियान्वयन करें और करके दिखाएं. पूरी प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान प्रधानमंत्री ने एक बार भी किसी भी मामले की कोई ज़िम्मेदारी नहीं ली. ऐसा कोई भी क़दम कांग्रेस पार्टी को कोई मदद नहीं देगा.
हालांकि, उन्होंने यह ज़रूर कहा कि राहुल गांधी एक योग्य व्यक्ति हैं और यह संकेत भी दिया कि वे पार्टी की तरफ़ से प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार हो सकते हैं, हालांकि ऐसा है नहीं. हां, उनके पूरे वक्तव्य का जो सबसे सही हिस्सा था कि उन्होंने नरेंद्र मोदी पर एक स्पष्ट स्टैंड लिया. उन्होंने कहा कि अगर आपकी निगाह में ताक़तवर व्यक्ति वह है जो अहमदाबाद की गलियों में मासूम नागरिकों की हत्या का अपराधी हो तो देश के प्रधानमंत्री को ऐसी ताक़त की ज़रूरत नहीं है. मेरा मानना है कि प्रधानमंत्री का यह वक्तव्य उचित था, भले ही देर से आया, लेकिन सही वक्तव्य.
पुलिस और सेना का इस्तेमाल करके लोगों को मारकर आप प्रधानमंत्री पद के मज़बूत दावेदार होने का दावा नहीं कर सकते. यह आपकी कमज़ोरी दर्शाता है, ताक़त नहीं. मैंने इस कॉलम के माध्यम से पहले भी कहा है कि जब नरेंद्र मोदी भारतीय जनता पार्टी की तरफ़ से प्रधानमंत्री पद के दावेदार चुने गए, तब उन्होंने कहा कि वे सेना के माध्यम से पाकिस्तान को सबक सिखाएंगे. वास्तव में वे कोई अध्ययन नहीं करते. उन्हें समझना होगा कि पाकिस्तान भी एक परमाणु शक्ति है. वैसे भी युद्ध कोई विकल्प नहीं होता. भारत में हमें स्थिर राजनीतिक परिवेश मिला है और हम ऐसे बात नहीं कर सकते. निश्‍चित रूप से अपनी सीमाओं की सुरक्षा के लिए हमारी सेनाओं का मज़बूत बने रहना ज़रूरी है, और हमारी सेनाएं मज़बूत हैं. मुश्किल राजनीति का कमज़ोर होना है और नरेंद्र मोदी इस पक्ष को मज़बूत करने की बात करने के बजाए यह कह रहे हैं कि यह एक कमज़ोर सरकार है, मैं एक मज़बूत सरकार दूंगा और पाकिस्तान से रिश्ते सुधारूंगा. मोदी यह भी कहते हैं कि वे पाकिस्तान को सबक सिखाएंगे, इसलिए मोदी के व्यक्तित्व में अलग तरह की कमज़ोरी भी झलकती है और इसे प्रधानमंत्री बेहतरीन तरी़के से लोगों के सामने ले आए.
फिर भी भ्रष्टाचार के मुद्दे पर प्रधानमंत्री बैकफुट पर दिखे. प्रधानमंत्री ने यह भी कहा कि कई बार मीडिया कुछ मुद्दों को लेकर अतिरेक बरतता है और कई बार सीएजी भी ऐसा ही व्यवहार करता है, जबकि सभी आंकड़े सीएजी को भेज दिए गए हैं. यह कोई मसला नहीं है. असली मसला तो यह है कि सीएजी पहले ही यह कह चुका है कि जो नुकसान हुआ है वह सरकारी कार्यविधि के चलते हुआ है और प्रधानमंत्री ने इसे अपनी स्वीकृति भी दी है. और प्रधानमंत्री कह रहे हैं कि वे बोली के माध्यम से नीलामी के पक्ष में थे और वे पारदर्शिता के पक्षधर हैं. वास्तव में दोनों के विचारों में कोई मतभेद नहीं है, दोनों एक जैसी बातें कर रहे हैं, लेकिन कूटनीतिक रूप से प्रधानमंत्री इन मुद्दों से किनारा कर गए.
यह स्थितियां हमें उस सवाल की ओर ले जाती हैं कि अगले चुनाव में क्या होगा? यह एक गंभीर और विचारणीय मुद्दा है. हम लोग ख़ुशक़िस्मत हैं कि हमें राष्ट्रपति के रूप में प्रणब मुखर्जी जैसा व्यक्ति मिला है जिसे लेकर यह भरोसा है कि आख़िर कोई तो है जो परिस्थितियों पर एक संपूर्ण दृष्टिकोण रखता है.
राजनीतिक पार्टियां जिस तरह का व्यवहार कर रही हैं अगर वही व्यवहार जारी रखती हैं तो निश्‍चित तौर पर हम बुरे दौर से गुज़र रहे हैं और इसे देश के लिए बेहतर स्थिति नहीं कहा जा सकता.
सभी राजनीतिक दलों को चाहिए कि एक साथ बैठकर यह हल निकालें कि किस तरह से चीज़ों को बेहतर किया जाए. सही है कि एक दिन में सब कुछ नहीं बदला जा सकता. पाकिस्तान के मसले को एक दिन में नहीं हल किया जा सकता. कश्मीर विवाद पिछले 60 वर्षों से चला आ रहा है, इससे एक दिन में तो नहीं निबटा जा सकता. आपको परिस्थितियों को और परिपक्वता से समझना होगा. मौजूदा व्यवस्था के साथ ही नहीं चला जा सकता. आप केवल धमकी के भरोसे नहीं चल सकते. यह बचपना है, लेकिन आज के राजनेता यही कर रहे हैं.

 भ्रष्टाचार के मुद्दे पर प्रधानमंत्री का एक ही आदर्श जवाब रहा है कि वे चाहते थे कि कोल ब्लॉक का आवंटन बोली लगाकर किया जाए. वह पारदर्शिता चाहते थे, लेकिन ऐसा हुआ नहीं. समझ में नहीं आता कि अगर वे चाहते थे कि ऐसा हो तो कौन हो सकता है कि जो उनके निर्णय के विरुद्ध जाए? वह देश के प्रधानमंत्री हैं. यह बेहद चिंता का विषय है और देश के प्रधानमंत्री पर यह फ़बता भी नहीं है कि वे कहें कि मैं यह चाहता था, लेकिन ऐसा हुआ नहीं. 

आम आदमी पार्टी ने दिल्ली में सरकार बनाई. देश को एक नया संदेश मिला, लेकिन दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल जिस तरह से बात कर रहे हैं, उसे देखते हुए अभी यह कहना जल्दबाज़ी होगी कि वास्तव में उनकी सोच क्या है. हम उनकी विचारधारा को नहीं जानते. क्या वे कॉरपोरेट सेक्टर के हितैषी हैं?
क्या वे पब्लिक सेक्टर के पक्ष में हैं. हम जानते हैं कि वे भ्रष्टाचार के विरोध में हैं, लेकिन भ्रष्टाचार का विरोध मात्र ही पर्याप्त नहीं है. हां, यह ज़रूरी है, लेकिन पर्याप्त नहीं. केवल भ्रष्टाचार का विरोध करने मात्र से ही देश की सारी समस्याएं हल नहीं हो जातीं. आपके ख़ुद के क्या विचार हैं? आप देश के युवाओं की ऊर्जा का किस तरह इस्तेमाल करने जा रहे हैं? आप किस तरह से लॉ एंड ऑर्डर को मज़बूत करेंगे जो कि हक़ीक़त में आपके अधीन है ही नहीं. यह तो केंद्र सरकार के पास है. इसलिए हम यक़ीक़न यह नहीं जानते कि यह पार्टी कहां खड़ी होती है, और यह तब तक मुश्किल रहेगा, जब तक वे वे आने वाले दिनों में अपने विचारों को तराश कर देश के सामने नहीं रखते. वास्तव में आने वाले चुनावों के दौरान एक बेहद भ्रामक माहौल रहेगा.

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