आज भारत में राष्ट्रीय स्तर पर मुझे जो नितांत आवश्यकता प्रतीत होती है वह है लड़ाई की! लड़ाई किसके विरुद्ध? राष्ट्रीय जीवन में बढ़ती जा रही खंडता, विभाजन सभी क्षेत्रों में स्वार्थान्धता, मूल्यच्युति, दिशाहीन पथभ्रष्टता, अशुचिता के प्रति. सन 1920 में गांधी जी को भारत में ऐसी ही लड़ाई की ज़रूरत महसूस हुई थी. उन्होंने जनता को अस्त्र दिया था असहयोग का. तब वह अस्त्र कार्यक्षम था, क्योंकि लड़ाई बाहरी शासन द्वारा यहां हो रहे आर्थिक नियंत्रण तथा सांस्कृतिक उन्मूलन के प्रति थी.
यह दिशा सही है तो गांव के सारे आपसी विवाद सत्याग्रह की पद्धति से हल होने चाहिए. सत्याग्रह की अहिंसक रीति-नीति आमने-सामने के संवाद से शुरू होती है. इस शस्त्रागर में अस्त्र-शस्त्रों की कमी नहीं है? परिस्थिति के अनुसार अस्त्र विशेष का प्रयोग किया जा सकता है, शर्त इतनी ही है कि सत्याग्रह में सरकार के न्याय और सरकार की बंदूक का सहारा नहीं लिया जा सकता. अंतिम समाधान सत्याग्रही उपायों से ही संभव है.
पहला चरण-लक्ष्य और कार्यक्रम
1. ऊपर कही गई बातों को ध्यान में रखकर हम अगले चरण के लक्ष्य और कार्यक्रम स्थिर कर सकते हैं. आज देश को जिस व्यापक जागृति की आवश्यकता है वह नव-जागरण से ही संभव है, लोक चेतना को नए विचार और राष्ट्रभावना का स्पर्श मिलना चाहिए. उसके बिना निर्माण-कारी पुरुषार्थ की प्रेरणा मिलना कठिन है. नवजागरण की भूमिका में समग्र कार्यक्रम विकसित होगा.
2. अगले चुनाव में जनता उम्मीदवार हमारे आंदोलन का एक छोर गांव है और दूसरा संसद और विधानसभा. दोनों बिंदुओं पर साथ-साथ लोक-शक्ति प्रकट होनी चाहिए.
3. गांव-गांव की ग्राम-सभाएं नगर-सभाएं-आवश्यकतानुसार मुहल्ला-सभाएं भी अपनी आंतरिक व्यवस्था के अधिक से अधिक क्षेत्रों में स्वायत्तता की घोषणा करें. उनकी ओर से मांग हो कि उनकी स्वायत्तता की दृष्टि से संविधान का संशोधन भी हो ताकि ग्राम और नगर इकाइयों के अधिकार-क्षेत्र निर्धारित किए जा सकें.
4. खेतिहर मज़दूर दस्तकार-ग्राहक के लिए उचित मूल्य का अभियान हो.
5. प्रेस की स्वतंत्रता की पूरी शक्ति लगाकर रक्षा की जाए
6. गांव के उद्योग विकसित किए जाएं जो माल गांव में कच्चे माल से तैयार हो सके वह गांव में ही तैयार हो.
7. व्यक्तिगत तथा गांवों द्वारा सामूहिक स्तर पर संकल्प हों कि वे ग्रामोद्योगों की ही चीज़ों का इस्तेमाल करेंगे और उनके लिए बड़े उद्योंगो का बहिष्कार करेंगे.
8. हर पंचायत में कम से कम एक कार्यकर्ता हो
9. राष्ट्रीय, राज्य तथा स्थानीय स्तर पर सक्रिय और समर्पित साथियों का भाईचारा बने जिनकी अगुवाई में सारा काम हो.
ये पहले चरण में संगठित कार्य के विभिन्न क्षेत्र हो सकते हैं. सबको मिलाकर अहिंसक क्रांति का एक संपूर्ण, समग्र, कार्यक्रम बनता है, हमे अपने राष्ट्र की नियति तथा लोकशक्ति की संभावनाओं में अटूट श्रद्धा रखकर आगे बढ़ना है. आज भी देश में ऐसे लोगों की कमी नहीं है, जो जलमग्न पृथ्वी के बीच मार्कण्डेय बनकर नई सृष्टि का उद्गम बन सकते हैं
व्यूह रचना

  •  लक्ष्य, मूल्य तथा कार्यक्रम की एकता के आधार पर व्यक्तियों तथा संगठनों का भाईचारा, जिनमें परस्पर विश्‍वास और आदर की भावना हो.
  •  अहिंसा की भूमिका में डाइनेमिक सत्याग्रह-व्यक्तिगत और सामूहिक-के नए प्रयोग, जो नैतिक लोकशक्ति को प्रकट करने में समर्थ हों. इस दृष्टि से स्थानीय प्रश्‍न व्यापक रूप से हाथ में लिए जाएं.
  •  उचित मूल्य के लिए अभियान की तैयारी
  •  राष्ट्रीय तथा स्थानीय, दोनों स्तरों पर साथ-साथ काम हो, जन-जागरण और कुछ प्रश्‍नों पर लोकमत का निर्माण, लोकशक्तिमूलक रचनात्मक कार्यक्रम, अनीति का प्रतिकार और लोक-उम्मीदवार पर शक्ति केंद्रित की जाए.

आज भारत में राष्ट्रीय स्तर पर मुझे जो नितांत आवश्यकता प्रतीत होती है वह है लड़ाई की! लड़ाई किसके विरुद्ध? राष्ट्रीय जीवन में बढ़ती जा रही खंडता, विभाजन सभी क्षेत्रों में स्वार्थान्धता, मूल्यच्युति, दिशाहीन पथभ्रष्टता, अशुचिता के प्रति.
सन 1920 में गांधी जी को भारत में ऐसी ही लड़ाई की ज़रूरत महसूस हुई थी. उन्होंने जनता को अस्त्र दिया था असहयोग का. तब वह अस्त्र कार्यक्षम था, क्योंकि लड़ाई बाहरी शासन द्वारा यहां हो रहे आर्थिक नियंत्रण तथा सांस्कृतिक उन्मूलन के प्रति थी. उसके प्रतिकार के लिए सियासी आज़ादी की प्राथमिक आवश्यकता अवश्य थी, लेकिन वही एकमात्र लक्ष्य नहीं थी. इस अलावा उस समय हमें (गांधी-जीवन-दर्शन के अनुसार सामाजिक कार्य करनेवालों को) सत्ता हाथ में लेकर शासन संभालने की आवश्यकता नहीं थी, ज़िम्मेवारी भी नहीं थी. शासक वर्ग को सुधार के लिए दिशा-निर्देश करते हुए अपना मुख्य कार्य जनता में सद्विचार-संचार का, लोक-शिक्षण का था. उभयदिशा का वह कार्य अपक्षित परिणाम में एवं गहराई से हो नहीं पाया. यह हम अनुभव करते ही होंगे और आज की दशा से उसका संबंध बैठाते होंगे.
अब आज लड़ाई के दो मोर्चे रहना अनिवार्य हो गया है 1-सत्ताधरण में आए हुए प्रदूषणों को निकालने एवं शासन-शुद्धि के लिए राजनैतिक क्षेत्र में प्रयत्न 2- सत्तावाहक वर्ग आत्मभान न भूले, पथभ्रष्ट न हो-इसकी चौकसी रखते हुए उसे चेतावनी देते
रहनेवाला तथा संतुलन रखनेवाला दूसरा वर्ग.
ऐसा द्विविध कार्य करने के लिए देशभर में बिखरे हुए गांधी-जीवन-दर्शन के विश्‍वासी एवं तदानुसार जीनेवाले व्यक्तियों, छोटी-छोटी स्थानीय संस्थाओं एवं सर्वोदय-विचारधारा के अंर्तगत विविध रचनात्मक कार्य एवं सद्प्रवृत्तियां चलाने वाले समूहों को एक मंच पर आ जुटना होगा. उक्त प्रकार से दो मोर्चे संभाल-कर सम्मिलित शक्ति लगानी होगी. सत्ता के क्षेत्र में हस्तक्षेप किए बिना गांधी-जीवन-दर्शन को जिलाना संभव नहीं यह तो नहीं कहा जा सकता, क्योंकि उसमें स्वयं इतना जीवट है कि जो उसे अमर बनाए रखें, लेकिन गांधी विचार तुरही एक पुकार करती रहे और सर्वग्रासी शासन की दुन्दुभि कुछ और ही नाद गुंजाती हुई जनता के दिल-दिमाग़ को बधिर करती चली जाए-दोनों की दिशाएं सवर्था विरोधी हों, तो राष्ट्र की एकता बचाई नहीं जा सकेगी. राष्ट्र की एकता को बचाने के लिए गांधी की विचारधारा के व्यक्ति एकत्र हों, उक्त प्रकार से द्विविध मोर्चा संभालने को, तभी काम बनेगा.

Adv from Sponsors

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here