06-(5)किरण बेदी को सीएम का पद का उम्मीदवार घोषित करके भाजपा ने आम आदमी पार्टी के चुनाव प्रचार अभियान की हवा निकालने की कोशिश की है. पार्टी नेतृत्व ने यह निर्णय निश्‍चित रूप से सिर्फ इसलिए नहीं लिया है कि किरण बेदी सबसे काबिल नेता साबित होंगी क्योंकि भाजपा के पास कद्दावर नेताओं की कमी नहीं है. इसे इस रूप में समझा जा सकता है कि दिल्ली में भाजपा के निशाने पर सीधे अरविंद केजरीवाल हैं. अगर पार्टी को उनका जवाब सही तरीके से देना था तो उन्हें एक ऐसे नेता की जरूरत थी जिस पर जनता उसी तरह से विश्‍वास करे जैसा वह केजरीवाल पर करती है. किरण बेदी इसके लिए सबसे उपयुक्त उम्मीदवार थीं क्योंकि वे अन्ना आंदोलन के शुरुआती समय से ही जुडी रहीं थीं. लोग उनमें भी ईमानदारी, कर्तव्यपरायणता और कुशल प्रशासन देखते हैं. ऐसे में पार्टी के भीतर विरोधों के बावजूद उन्हें सीएम उम्मीदवार बनाया गया और अरविंद केजरीवाल को सीधे तौर पर चुनौती दी गई. इस कदम की वजह से भले ही भाजपा के भीतर द्वंद्व चल रहा हो, लेकिन भाजपा के इस कदम की वजह से आम आदमी पार्टी बैकफुट पर आने के लिए मजबूर हो गई. शुरूआत में आम आदमी पार्टी सीधे तौर पर किरण बेदी पर हमले करने से बच रही थी, लेकिन समय के साथ किरण बेदी पर हमले करने शुरू कर दिए. इसकी वजह यह है कि आप ने चुनावी प्रचार में प्रारंभिक बढ़त हासिल कर ली थी, लेकिन किरण बेदी के नामांकन दाखिल करने के एक दिन बाद उन पर हमले तेज कर दिए. आम आदमी पार्टी ने उन्हें इंडिया अगेन्स्ट करप्शन में भाजपा का जासूस तक कह दिया.

किसी भी राजनीतिक दल की जीत में सबसे महत्वपूर्ण किरदार दल के उन कार्यकर्ताओं का होता है जो जमीनी स्तर पर पार्टी को मजबूत बनाते हैं. ऐसा माना जाता है कि पार्टी के कार्यकर्ता खुश हैं तो निश्‍चित रूप से नेताओं को बेहतर नतीजे हासिल होंगे. भारत की पहली महिला आईपीएस अधिकारी किरण बेदी को भाजपा का मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार बनाए जाने के पीछे शायद यही रणनीति काम कर रही है. दरअसल आम आदमी पार्टी के सीएम उम्मीदवार अरविंद केजरीवाल के सामने भाजपा कोई ऐसा चेहरा रखना चाहती थी जिस पर किसी तरह के आरोप न हों साथ ही वह जनता के बीच अरविंद केजरीवाल की तरह लोकप्रिय भी हो. लोकसभा चुनावों के बाद कई प्रदेशों में विधानसभा चुनाव संपन्न हुए. भाजपा ने किसी भी राज्य में चुनाव से पहले अपना मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित नहीं किया था. चुनावी बिगुल बजते ही आप के मुखिया अरविंद केजरीवाल ने इस बात को मुख्य मुद्दा बना दिया कि चुनावी लड़ाई के लिए भाजपा के पास सीएम पद के लिए कोई उम्मीदवार नहीं है. धीरे-धीरे यह बात लोगों को सच भी लगने लगी थी. इस दौरान कई चुनावी सर्वे के परिणामों में यह बात भी साबित होने लगी थी कि अरविंद केजरीवाल लोगों के बीच सीएम पद के सबसे लोकप्रिय प्रत्याशी साबित हो रहे हैं. इसी वजह से भाजपा का शीर्ष नेतृत्व एक ऐसे चेहरे की तलाश में था, जिसे लेकर पार्टी में कोई विवाद भी न हो और वह अरविंद केजरीवाल को उन्हीं की भाषा में जवाब भी दे सके.
किरण बेदी के भाजपा में शामिल होने के कार्यक्रम में पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह और केंद्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली मौजूद थे. शायद ऐसा इसलिए भी किया गया था कि इससे दिल्ली भाजपा के सभी नेताओं को यह संदेश मिल जायेगा कि किरण बेदी ही पार्टी की सीएम उम्मीदवार होंगी. हालांकि उस दिन अमित शाह ने इस बात की औपचारिक घोषणा तो नहीं की, लेकिन दो दिन बाद पार्टी के संसदीय बोर्ड की बैठक के बाद आधिकारिक रूप से घोषणा कर दी गई कि विधानसभा चुनाव में किरण ही पार्टी का चेहरा होंगी. कुछ विशेषज्ञ इसे भाजपा के मास्टर स्टोक के रूप में देख रहे हैं तो कई इसे एक गलत कदम भी मान रहे हैं. मास्टर स्टोक मानने वालों का कहना है किरण बेदी काफी पहले से देश में एक लोकप्रिय चेहरा हैं. लोग उन्हें तब से जानते हैं जब अरविंद केजरीवाल का कोई नाम भी नहीं जानता था. इसके अलावा एक बेहतर प्रशासनिक अधिकारी भी रह चुकी हैं. जिस अन्ना आंदोलन को केजरीवाल ईमानदारी का सबसे बड़ा सबूत मानते हैं, उसमें किरण बेदी सक्रिय रूप से जुड़ी रहीं थीं. किरण बेदी को महिला वोटरों के बीच खास लोकप्रियता हासिल है. ये खूबियां उन्हें अरविंद केजरीवाल से इक्कीस साबित करती हैं. वहीं इस कदम को गलत मानने वालों का कहना है कि एक बाहरी व्यक्ति को सीएम उम्मीदवार घोषित करना भाजपा की परिपाटी नहीं रही है. ऐसे में इस तरह का कदम उठाए जाने से जनता के बीच यह गलत संदेश जा सकता है कि भाजपा के भीतर क्या कोई भी ऐसा नेता नहीं है जो दिल्ली का सीएम बन सके. इसके अलावा किरण बेदी वे किरण बेदी के पास राजनीतिक अनुभव की कमी देखते हैं. उनके प्रतिद्वंद्वी अरविंद केजरीवाल को राजनीति में आए ज्यादा दिन तो नहीं हुए हैं लेकिन उन्होंने कम समय में ही राजनीति के कई रंग देख लिए हैं. ये सारी बातें अरिवंद केजरीवाल के पक्ष में बैठती हैं, इस वजह से वे किरण बेदी से बेहतर उम्मीदवार साबित होंगे.
हालांकि ऐसा नहीं है कि पार्टी आलाकमान के स्पष्ट निर्देशों के बावजूद किरण बेदी का पार्टी में विरोध न हुआ हो. उनके सीएम उम्मीदवार घोषित किए जाने के तुरतं बाद दिल्ली भाजपा के वरिष्ठ नेता जगदीश मुखी का बयान आया था कि किरण को चेहरा बनाने से पहले पार्टी आलाकमान ने उनसे कोई राय नहीं ली. इसे लेकर वह काफी दुखी दिखाई दिए. इसके बाद उन्होंने कहा था कि पार्टी का जो भी आदेश हो उसका पालन तो किया जाएगा लेकिन ऐसा करने से पहले राय ली जानी चाहिए थी. यहां याद रखने वाली बात यह है कि पहले यही माना जा रहा था कि जगदीश मुखी ही पार्टी के सीएम पद के प्रत्याशी हो सकते हैं. हालांकि इस बात की आधिकारिक रूप से पुष्टि नहीं की थी. लेकिन आम आदमी पार्टी ने ऑटो रिक्शा पर केजरीवाल और जगदीश मुखी के पोस्टर लगवाए थे और जनता से सवाल किया था कि आप दिल्ली के मुख्यमंत्री के रूप में किसे देखना पसंद करेंगे? विरोध की सबसे मजबूत आवाज दिल्ली भाजपा के अध्यक्ष सतीश उपाध्याय के समर्थकों की ओर से उठी. उनके समर्थकों ने पार्टी मुख्यालय के बाहर प्रदर्शन किया था. इसके बाद सतीश उपाध्याय ने इस घटना पर स्पष्टीकरण दिया और अपने समर्थकों को शांत करने की कोशिश की. भोजपुरी के मशहूर गायक और दिल्ली में भाजपा के सांसद मनोज तिवारी ने किरण बेदी द्वारा चाय पार्टी पर बुलाए जाने को लेकर नाराजगी व्यक्त करते हुए कहा था कि वे हमारी नेता नहीं हैं. कुछ ही घंटों बाद उनका भी स्पष्टीकरण आ गया कि उनके बयान को तोड़-मरोड़कर पेश किया गया, उन्हें किरण बेदी से कोई दिक्कत नहीं है.
किरण बेदी के खिलाफ पार्टी में आवाज तो उठ रही है लेकिन इसे शीर्ष नेतृत्व का दबाव ही कहा जा सकता है कि नेताओं को नाराजगी जाहिर करने के बाद स्पष्टीकरण देने पड़ रहे हैं. दरअसल, नेताओं की अपनी महत्वाकांक्षाएं भी हैं जिन्हें लेकर उनमें आपसी मतभेद सामने आते रहते हैं, लेकिन जिस तरीके से किरण बेदी को उम्मीदवार घोषित किया गया है, ऐसी परिस्थिति में किसी भी पार्टी मेंे दिक्कतें आ सकती हैं. लेकिन यह नरेंद्र मोदी और अमित शाह की पार्टी पर मजबूत पकड़ ही है वे विरोधों को दबाने में शपल हो रहे हैं. लेकिन विरोधी स्वरों को दबाने का खामियाजा पार्टी को चुनाव में हो सकता है. हालांकि किरण बेदी के सीएम कैंडिडेट घोषित होने के बाद से पार्टी के कार्यकर्ता काफी खुश हैं क्योंकि उन्हें अरविंद केजरीवाल के जवाब में एक ऐसा नेता मिल गया है जो उन्हें मजबूत टक्कर और करारा जवाब दे सकेगा. दोनों में से कौन सवा सेर साबित होगा, इसके लिए हमें चुनावी नतीजों का इंतजार करना पड़ेगा.

Adv from Sponsors

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here