foolसाल 2010 में जब फीफा ने कतर को 2022 में होने वाले फुटबॉल विश्‍वकप की दावेदारी सौंपी थी उस समय उसके मन में यह आशंका नहीं आई होगी कि चार साल के अंदर-अंदर ही उसे कतर से यह दावेदारी वापस लेने के बारे में विचार करना प़डेगा. दरअसल जब फीफा ने कतर को यह दावेदारी थी तब भी उसे यह मालूम था कि इस देश मेंे गर्मी के महीने में तापमान काफी ज्यादा होगा और ठंढे यूरोपीय देशों से आए खिला़िडयों को खेलने में काफी दिक्कतों का सामना करना प़डेगा. लेकिन इन सब के बावजूद भी कतर को दावेदारी दे दी गई. इसे लेकर फीफा घूस लेने का आरोप भी झेल रहा है. अगर गंभीरता से प़डताल की जाए तो इस निष्कर्ष पर पहुंचा जा सकता है कि सिर्फ गर्मी ही इसकी एक वजह नहीं है. आइए जानने कि कोशिश करते हैं कि गर्मी के अलावा ऐसे कौन से कारण थे जिसने फीफा को सोचने पर मजबूर कर दिया.
ज्यादा दिन नहीं बीते जब अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार संस्था एमनेस्टी इंटरनेशनल ने कतर में फीफा विश्‍व कप 2022 के लिए काम में लगे मजदूरों की अवस्था पर एक रिपोर्ट जारी की थी. अपनी रिपोर्ट ‘द डार्क साइड ऑफ माइग्रेशन’ में संस्था ने बताया कि देश में मजदूरों की एक ब़डी संख्या बंधुआ मजदूरों की तरह काम कर रही है. इन मजदूरों के साथ जानवरों जैस बर्ताव किया जाता है. चाहे कितनी ही गर्मी क्यों न हो हफ्ते में सातों दिन उनसे 12-12 घंटे काम कराया जाता है. बहुत से मजदूर इस दौरान न चोट लगने के कारण अपंग हो गए बल्कि कईयों की लाशें ही घर लौटीं.
दरअसल कतर को दावेदारी देने को लेकर कई मामलों में विवाद झेल रहा है. पहला तो फीफा के अधिकारियों पर इस बात के आरोप लगे कि कतर को यह दावेदारी देने के एवज में संस्था के भीतर ही काफी घूस चली. इसके पीछे पूर्व फीफा उपाध्यक्ष मोहम्मद बिन हम्माम का हाथ माना जा रहा है. उन पर ऐसा करने को लेकर आरोप भी लगे. फीफा में हो रहे इस भ्रष्टाचार को लेकर महान फुटबॉल खिला़डी डियागो माराडोना ने भी संस्था की खिंचाई और आलोचना की थी. दरअसल फीफा को उसके ही एक निरीक्षक दल ने पहले ही इस बात की जानकारी दे दी थी कि गर्मी के मौसम में कतर में खिलाडियों को खेलने में काफी दिक्कते आएंगी क्योंकि गर्मी में यहां का तापमान यूरोपीय देशों की तुलना में काफी ज्यादा होता है. इसके बावजूद भी अमेरिका, दक्षिण कोरिया और ऑस्ट्रेलिया जैसे काबिल प्रतिद्वंद्वियों को किनारे कतर को दावेदारी सौंप दी गई. इसे लेकर तुरंत ही फीफा की आलोचना साबित हो गई थी. एक साक्षात्कार के दौरान फीफा अध्यक्ष योसेव ब्लाटर ने कहा था कि कतर को दावेदारी देने को लेकर फ्रांस और जर्मनी जैसे देशों का तगडा राजनीतिक दबाव था. उनके मुताबिक इन दोनों देशों की कई ब़डी कंपनियां कतर में काम कर रही थीं, इसी वजह से इन दोनों देशों ने यह राजनीतिक दबाव बनाया था. उनकी बातों के मुताबिक कतर को दावेदारी दिए जाने को लेकर मोहम्मद बिन हम्माम ने इतना दबाव बनवा दिया था, जिसे तोडा जाना लगभग नामुमकिन सा था. ब्लाटर ने यह माना है कि कतर को विश्‍व कप की दावेदारी दिया जाना पूरी तरह से गलत था. यह एक भूल थी, जो फीफा से हो गई है.
ब्लाटर की इन बातों पर भरोसा किया जा सकता है लेकिन इस सब के बावजूद भी ये महा आयोजन कभी चर्चा का विषय नहीं बनता अगर वहां पर इतने सारे श्रामिकों की मौत नहीं हो रही होती. दरअसल विश्‍वकप की मेजबानी हथियाने के बाद कतर न सिर्फ आततायी हो गया बल्कि उसने दूसरे देशों के मजदूरों के साथ घृणित व्यवहार करना शुरू कर दिया. भारत भी उन देशों में शामिल है जिसके नागरिक कतर के अमानवीय तरीकों से काल के गाल में समाते जा रहे हैं. कतर में काम करने वाले कुल मजदूरों में 38 प्रतिशत जनसंख्या भारतीय मजदूरों की है.
इसी साल फरवरी में यूरोपीय संसद में भी कतर और फीफा की आलोचना की गई थी. आइटक की एक रिपोर्ट के मुताबिक कतर अंतरात्मा विहीन देश है. दीन हीन प्रवासी मजदूर हों, उच्च वेतनभोगी हों फिर या वहां रह रहे विदेशी, इन सभी के लिए मौलिक मानवाधिकारों का कोई मतलब ही नहीं है. इस देश में कफाला कानून लागू है जो विदेशी मजदूरों को जानवरों से भी बदतर सुलूक जैसी है. इसके अनुसार विदेश आने वाले मजदूरों के सारे अधिकार नियोक्ता के पास होते हैं. उसे यह अधिकार प्राप्त है कि मजदूरों को कैसा काम देगा, क्या काम देगा और कितने समय तक काम लेगा. अगर किसी के पास पहचान पत्र नहीं है. तो उसे जेल तक भेजा जा सकता है. आइटक ने यह अनुमान लगाया था कि अगर इसी तरह मजदूरों की मौतों का सिलसिला जारी रहा तो साल 2022 तक चार हजार से भी ज्यादा अप्रवासी मजदूरों की मौत हो चुकी होगी.
कतर में कुल चौदह लाख विदेश श्रमिक काम कर रहे हैं. इनमें पाकिस्तान, बांग्लादेश, श्रीलंका, इंडोनेशिया और फिलीपींस के लगभग 62 प्रतिशत मजदूर हैं. वहीं भारत और नेपाल के कुल मजदूर लगभग 38 प्रतिशत हैं. अगर आकंडों पर नजर दौडाएं तो हम यह पाएंगे कि वहां पर 2011 के बाद प्रत्येक साल लगभग 250 के आस-पास भारतीय मजदूरों की मौत हो रही है. इस हिसाब से अगर देखा जाए तो अभी तक कतर में अभी तक लगभग एक हजार भारतीय मजदूरों की मौत हो चुकी है. इन सबके बीच जो सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि इस पूरे मामले को उठाने का श्रेय ब्रिटेन के द गार्जियन अखबार को जाता है. जबकि इस दौरान वे सभी देश जिनके नागरिक कतर के जुल्म का शिकार हो रहे थे, सिर्फ खामोश थे. आखिर ऐसा क्यों है कि ये देश अपने नागरिकों को मरने के लिए छोड देते हैं. आखिर अपने नागरिकों की रक्षा करना देश की सरकार का ही तो कर्तव्य है. इन मजदूरों की मौत और भी ज्यादा दुखदायी इस वजह से है क्योंकि ये सभी नागरिक काफी गरीब हैं. इनकी मौत के बाद पूरा परिवार सडक पर आ जाने के लिए मजबूर हो जाता है.
ऐसी स्थिति में अगर देखा जाए तो फीफा पर लग रहे भ्रष्टाचार के आरोप और भी गंभीर हो जाते हैं क्योंकि उन्होंने एक ऐसे देश के हाथों में विश्‍व कप जैसे बेहतरीन आयोजन की जिम्मेदारी सौंपी जो मजदूर की मौत का जिम्मेदार बनता जा रहा है. फीफा को इस पर संशय किए बिना ही कतर से मेजबानी छीन ली जानी चाहिए चाहिए.

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