भारत में फोर्ड फाउंडेशन द्वारा पोषित और संचालित  संगठनों और उससे जुड़े सामाजिक कार्यकर्ताओं को बड़ी इज्जत दी जाती है. यह बात जगजाहिर है कि फोर्ड फाउंडेशन अमेरिकी खुफिया एजेंसी सीआईए की एक शाखा की तरह काम करती है. सीआईए का काम दुनिया भर में अमेरिकी विदेश नीति और अमेरिकी हितों को साधना है. इसके लिए र् सीआईए किसी भी हद तक जा सकता है. भारत में सीआईए गैर सरकारी संगठनों के माध्यम से अमेरिकी एजेंडे को लागू कराने पर आमादा है. सीआईए ने बीते कई दशकों के दौरान कई देशों में सत्ता परिवर्तन के नाम पर त्रासदियों को जन्म देकर उन देशों के मासूम लोगों को मरने के लिए छो़ड दिया है. 
800px-Contra_commandas_1987दुनिया में अपनी ताकत का लोहा मनवाने के लिए दूसरे देशों में सत्ता परिवर्तन कराने की अमेरिका रणनीति जगजाहिर है. इराक का हाल दुनिया के सामने है. सद्दाम हुसैन पर कई आरोप ग़ढकर उन्हें सत्ता से बेदखल किया. सबसे दुखद यह रहा कि अमेरिका ने अपनी दादागीरी का नमूना खुले तौर पर पेश किया लेकिन किसी भी मजबूत और ताकतवर देश ने उसका विरोध नहीं किया. सद्दाम युग के ईराक से समाप्त हो जाने के बाद वहां की स्थितियां संभली नहीं बल्कि और ज्यादा बदतर हो गईं. आज ईराक गृह युद्ध की चपेट में आ गया है.कमोबेश यही हालात सीरिया में भी हैं. फ्री सीरियन आर्मी और बशर-अल-असद की सेनाओं के बीच चल रही जंग में देश के कई हिस्से तबाह हो चुके हैं. ईरान में यदि गृह युद्ध जैसे हालात नहीं हैं तो वह आर्थिक अवस्था के बहुत ही बुरे दौर में पहुंच गया है. विचार करने योग्य बात यह है कि ईराक या उस जैसे सभी देश अमेरिकी हस्तक्षेप के पहले तक आर्थिक और सामाजिक रूप से सुदॄढ थे. इन देशों के भीतर थो़डी-बहुत हलचल जरूर रही थी लेकिन इनकी स्थित इतनी ज्यादा खराब नहीं थी. तो क्या इन देशों में रहने वाले करो़डो लोगों के साथ हुए अन्याय के लिए अमेरिका को जिम्मेदार नहीं ठहराया जाना चाहिए?
सत्ता परिवर्तन के लिए अमेरिका परोक्ष या अपरोक्ष रूप से सक्रिय रहता है. उसके इन कार्यक्रमों को अक्सर सीआईए द्वारा नियंत्रित किया जाता है. परिवर्तन में कई बार अमेरिका की प्रत्यक्ष भागीदारी होती है तो कभी वह चरमपंथियोंे को फंडिंग और ट्रेनिंग देकर तैयार करता है. इसमें उस देश की सरकार के विरुद्ध आंदोलन करने के लिए लोगों को तैयार करना और सैनिक विद्रोह जैसे काम सीआईए के जरिए कराए जाते हैं. कई बार अमेरिका ने सीधे तौर पर सैन्य हस्तक्षेप करके भी सत्ता परिवर्तन कराए हैं जिनमें 1989 में पनामा और 2001 में अफग़ानिस्तान में अमेरिकी आक्रमण शामिल है. इसके अलावा अमेरिका कई देशों की विपक्षी पार्टियों को भी बिना किसी वजह समर्थन देता रहा है जिससे कि अमुक देश की सरकार को उखा़ड फेंका जा सके. इसका उदाहरण चिली और इटली जैसे देश हैं जहां सीआइए फंडेड एंटी कम्युनिस्ट विपक्षी पार्टियों ने सरकार का विरोध किया. अमेरिका के दूसरे देशों में इस हस्तक्षेप की शुरुआत 1918 में हुई रूसी बोल्शेविक क्रांति के बाद से ही शुरू हो गई थी जब उसने रूस में सरकार विरोधी ध़डे को समर्थन देना शुरू कर दिया था. वहीं शीत युद्ध के दौरान अमेरिका ने पूर्वी यूरोप और सोवियत संघ की साम्यवादी सरकारों के खिलाफ ख़डे समूहों को लगातार समर्थन दिया.
अगर दूसरे देशों की बात की जाए तो 1946 में ही लोकतंत्र का स्वाद चखने वाले सीरिया को तीन साल के भीतर ही सैनिक विद्रोह का सामना करना प़डा जिससे देश में लोकतांत्रिक सरकार का अंत हो गया. इस सैनिक विद्रोह का नेतृत्व करने वाले सीरियाई आर्मी चीफ होस्नी अल-जईम ने छह बार सीआईए के अधिकारियों से मुलाकात की थी. ऐसा कहा जाता है कि जईम ने अमेरिका से फंड और सैनिक मदद के लिए गुहार लगाई थी लेकिन इस बात का खुलासा नहीं हो सका कि अमेरिका ने उसकी मदद की थी या नहीं. हालांकि सत्ता में आते ही जईम ने अमेरिका के पक्ष में कई कदम उठाए थे.
अमेरिका के शिकार देशों ईरान का नाम आज से शामिल नहीं है. साल 1953 में अमेरिका ने ब्रिटेन के साथ मिलकर ईरान की लोकतांत्रिक सरकार को उखाड़ने का काम किया था. ऐसा बताया जाता है कि उस समय के ईरानी प्रधानमंत्री मोहम्मद मोसादेघ ने देश की पेट्रोलियम इंड्रस्ट्री को नेशनलाइज करने की बात कही थी. इसकी वजह से ईरानी-ब्रिटिश तेल कंपनियों का मुनाफा कम होने का डर पैदा हो गया था. सीआईए द्वारा जारी किए गए दस्तावेजों से यह जानकारी मिलती है कि उस समय ब्रिटेन डर गया था और उसने अमेरिका से गुहार लगाई थी कि ईरान की इस सरकार का हटाकर एक कठपुतली सरकार बैठा दी जाए. इस ऑपरेश का नेतृत्व सीआईए अधिकारी केरमिट रूजवेल्ट जूनियर ने किया था. ग्वाटेमाला में भी अमेरिका सीआईए के सहयोग से 1954 में लोकतांत्रिक सरकार को हटवाने में अहम भागीदारी निभाई थी.
इसके अलावा भी ऐसे देशों की लंबी सूची है जिनमें अमेरिका ने सीआईए के जरिए या तो सीधे सैनिक हस्तक्षेप किए या फिर परोक्ष रूप से सरकार का हटाने के लिए विरोधियों की मदद की. इनमें क्यूबा, इंडोनेशिया, कांगो, दक्षिणी वियतनाम, घाना, ब्राजील, चिली, अर्जेंटीना, अफ्गानिस्तान, तुर्की, पोलैंड और निकारगुआ जैसे देश शामिल है. यह फेहरिस्त यहीं आकर नहीं रुकती. अभी कई ऐसे और देश हैं जिनका जिक्र यहां नहीं किया जा सका है.
अमेरिका एक विश्‍व शक्ति है. विश्‍व शक्ति होने के लिए यह जरूरी है कि दुनिया में उसकी नीतियां कायम हों. अमेरिकी खुफिया एजेंसी की सबसे बड़ी जिम्मेदारी दुनिया भर में अमेरिकी नीतियों को लागू करवाना है और उसके लिए समर्थन हासिल करना है. इसी उद्देश्य को पूरा करने के लिए अमेरिका ने कभी प्रजातंत्र के नाम पर, कभी मानवाधिकार, कभी परमाणु और जनंसहार के हथियार के बहाने बनाकर विरोध करने वाली सरकारों को गिराने का काम किया है. भारत जैसे देश में सत्ता परिवर्तन कराना मुश्किल है क्योंकि यहां सैनिक विद्रोह नहीं हो सकता है. यही वजह है कि अमेरिकी एजेंसियां गैर सरकारी संगठनों के जरिए अपने हित को साधने का काम करती है. देश में फैले असंतोष की भावना को भड़काकर ये एजेंसियां जल जंगल जमीन, रोजगार, पर्यावरण तो कभी लोकपाल के नाम पर भारत के प्रजातांत्रिक संस्थानों की विश्‍वसनीयता को ध्वस्त करने में लगी हैं. देश की जनता को ऐसे गैर सरकारी संगठनों से सावधान हो जाना चाहिए जो कि विदेशी पैसे से संचालित हो रहे हैं.

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